बिहार की मदद और अप्रवासी बिहारी

Kind Attn : #NonResidentBihari : –
विगत कुछ सालों में बिहार को लेकर सबसे ज्यादा बदलाव अप्रवासी बिहारियों के सोच में आया है । पिछले 17 सालों मैं अप्रवासी बिहारी के कई सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ा रहा हूँ – पिछले पांच सालों में उनके बिहार के प्रति रुख में जबरदस्त गिरावट है । यह सोच बहुत ही नकरात्मक है ।
कोई जमीन या मिट्टी अपनी नही होती – जहां माँ बाप होते हैं – वही जमीन या मिट्टी अपनी होती है । अगर मैं पटना शहर की बात करूँ और खासकर मिडिल क्लास की तो – मेरी उम्र के लोग अपने माता पिता या उनमें से एक खोने लगे हैं या फिर माता पिता को अपने पास बुला लिए है और बच्चे भी आपकी कर्मभूमि के सभ्यता या संस्कार में पल बढ़ – बिहार का परिचय – मम्मी डैडी का गाँव बन चुका है । बहुत हुआ तो बहुत करीबी वैसे रिश्तेदार जो आपकी तरह बाहर नही जा सके – उनके यहां किसी शादी विवाह में पहुंच खुद को #NRB के स्टेटस और अपने कर्मभूमि के बखान से ज्यादा इस मिट्टी से कोई लगाव नही है – बहुत हुआ तो कुछ तस्वीरें अपने उस पुअर कजिन के साथ या फिर अपनी माँ के गुजर जाने के बाद पटना की संपत्ति को बेचने के लिए किसी दोस्त महिम को इशारा में बताना । आपके इस बदलाव को वक़्त की मजबूरी कहा जा सकता है – लेकिन मेरे जैसों के लिए यह बदलाव देखना एक दर्द है ।
मेरे मित्र और आईजी शालिन कहते हैं – बिहारी के बीच क्षेत्रीयता घमंड या भावना कम और प्रबल जातीयता भावना देख अजीब लगता है । उनका कहना सही है ।
यहूदी अमरीका जा बसे लेकिन अमरीका से ही अपने जन्मभूमि इस्रायल की रक्षा के लिए जिस हद तक जाना पड़े , उस हद तक जाकर , अमरीका सरकार पर दबाब बनाये रखते हैं ।
बिहार तभी सुधरेगा जब बाहर जा कर बसे हुए बिहारी हर माध्यम से यहां दबाब बनाएंगे क्योंकि मेरा यह पुरजोर मानना है कि अधिकतर वैसे अप्रवासी बिहारीं जात पात से उठ चुके हैं । ऐसा भी नही है कि अप्रवासी बिहारीं आगे नही आये हैं , वो आये लेकिन यहां की ‘सामाजिक न्याय और न्याय के साथ विकास’ वाली सरकारों पर उनका विस्वास नही जम पाया – वापस लौट गए ।
पंजाब , गुजरात या महाराष्ट्र में ऐसा नही है – वहां के अप्रवासी ना सिर्फ लोकल घटनाओं पर नज़र रखते हैं बल्कि अपने मन लायक परिस्थिति बनाने पर सरकारों को मजबूर भी करते हैं । लेकिन बिहार में ऐसा नही है । खबर पर नज़र है लेकिन अपने तरफ से कोई दबाब नही है ।
आवाज़ में दम होता है । आवाज़ उठाएं । एक घटना याद है – मेरे एक मित्र आईआईटी से पास कर सीधे इंटेल अमरीका जॉइन किये , बहुत ऊंचे पद तक पहुंचे और हज़ार करोड़ की संपत्ति खड़ा किये । संपति , मेहनत और पद के बदौलत वो अमरीका के इलीट सोसाइटी तक पहुंचे और फिर उस सोसाइटी में उनके धन और ओहदा की चर्चा नही हुई बल्कि उनसे उनके ‘जड़’ को लेकर चर्चा हुई । ” आप हैं कौन ? – क्या आपकी जड़ें सही सलामत हैं या आप उखड़ चुके हैं ? इस सवाल ने मेरे मित्र को वापस दिल्ली और फिर बिहार में अपनी कमाई का एक अंश लगाने पर मजबूर किया ।
भूख सिर्फ पेट की नही होती है – भूख दिल , आत्मा और ललाट की भी होती है । लेकिन हम इतने गरीब राज्य की पैदाइश है कि जीवन पेट की भूख में ही सिमट कर रह गया । पेट के आगे भी एक दुनिया है – यह ना उस बिहारीं मजदूर को पता है और ना ही महलों में रहने वाले मानसिक गरीब बिहारीं को ।
कहने का मतलब की बिहार से भावमात्मक लगाव को बरकरार रखिये । यह आपका घर था , है और रहेगा । मौरिशस गए गरीब मजदूर भी आज अरबपति हो गए लेकिन भावनात्मक संपर्क बरकरार रखे ।
सर्वप्रथम अपनी सभ्यता और संस्कृति बरकरार रखिये , फिर किसी बहाने सपरिवार बिहार आते जाते रहिये । अलग अलग फोरम पर अपनी आवाज़ उठाइये ।
और हाँ …अपने माता पिता के मृत्यु का इंतज़ार के दौरान बिहार वाला घर कितने में बेचना है – यह मत सोचिए – यह सोच बहुत दर्दनाक है । मैं इसलिए कह रहा हूँ कि बिहार के शहरों या मिडिल क्लास के गांव में स्थिति बहुत बुरी हो चुकी है । बड़े बड़े घर भुतहा बंगला बन चुके है – इस इंतज़ार में की कब नया मालिक आएगा …
क्रमशः
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 30.01.2019

अगर दिक्कत न हो तो इसे शेयर करें । बिहारियत की भावना ही अब बिहार को बचा सकती है ।

धन्यवाद ।

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