मैथिली ठाकुर की आवाज़ में यह गीत 🙂
” अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया रे …ए ननदी …दियरा जरा द ..आपन भईया के जगा द ” – ए ननद …मेरी उंगली में एक नागिन ने डंस लिया है ..दीया जला दो …अपने भैया को जगा दो …:))
स्व महेंद्र मिश्र का लिखे हुए इस गीत को न जाने कितने गायकों को गाया है – इंसान कहीं भी चला जाए – कितना भी ऊपर चला जाए – प्रेम का भाव एक ही संवेदना और वेदना पैदा करता है – क्योंकी यह प्रकृती का देन है !
भोजपुरी के ढेर सारे गीतों में – एक नारी अपनी वेदना और संवेदना दोनों अपने ‘ननद’ से ही कहती मिलती है – संभवतः विछोह के दौरान उस नारी को आँगन में …अपने ससुराल में …ननद के रूप में ही एक सखी मिलती है …जिससे वो अपने मन की बात कहती है …एक और गीत है …जिसके शब्दों में उल्लेख है ..’ननदी के अंगूरी के सोना ..कईलक हमरा मन पे टोना ..” इस गीत में एक नारी अपने साजन से कहती है – ननद के उंगली में जो अंगूठी है उससे मुझे जलन हो रही है ..मुझे भी वैसा ही एक अंगूठी ला दो …:))
कहाँ एक गीत में …एक ओर उस ननद से अपने मन की व्यथा और दुसरे गीत में …रात के बीते पहर में …उसी ननद की अंगूठी से जलन …:))
धन्य है वो प्रकृती …जिसने आपके इस प्रकृती को बनाया …हा हा हा हा …
~ रंजन / 03.02.15