मेरे गाँव के पास से एक छोटी रेलवे लाईन गुजरती है – हर दो चार घंटे में एक गाड़ी इधर या उधर से – पहले भाप इंजन – छुक छुक …लेकिन अब डीजल इंजन है ..भोम्पू देता है ..बचपन में छुक छुक गाड़ी को देखने के बहाने रेलवे ट्रैक के पास जाते थे ..वहाँ ..पटरी के बगल में पत्थर होते थे …कोई बढ़िया ..सुन्दर थोडा बड़ा पत्थर उठा लाते थे …घर आकर सीधे ..पूजा पर ..कभी कोई टोका नहीं ..कभी कोई रोका नहीं …कुछ दिन बाद देखा …किसी ने उसको रोड़ी / चन्दन / सिन्दूर लगा दिया ….परदादी रोज सुबह हनुमान चालीसा पढ़ती थी …बगल में बैठ जाता …मै भी परदादी के साथ बुदबुदाता …फिर मै अपने उस पत्थर को देखता ….एक श्रद्धा के साथ ..एक विश्वास के साथ …समर्पण में ..पूजा में ..प्रार्थना में बड़ी ताकत है ….श्रद्धा / विस्वास / पूजा / समर्पण ..पत्थर को भी भगवान बना दे …वरना इंसान हीरे को भी …समुद्र में बहा दे …
~ 14 August 2012
Leave a Reply