सुना है …वो मेरे दालान पर आती है …चुपके चुपके …देर चाँदनी रात …लम्बे घूँघट में झुकी नज़रों के साथ …सावन की बूँदों सी पायल की रुनझुन के साथ …दबे पाँव आधी रात …:))
कुछ पढ़ कर …कुछ सुन कर …खिड़कियों को खटखटा कर …वो वापस चली जाती है …चुपके चुपके…देर चाँदनी रात …लम्बे घूँघट में झुकी नज़रों के साथ…दबे पाँव आधी रात…:))
मैंने भी कहलवा दिया है …कभी यूँ ही आँगन में भी आया करो …:))
~ RR / 2016
पेंटिंग साभार : माधवी संदूर
