गांधी …

आज से पांच सौ साल बाद कोई विश्वास नहीं करेगा – कोई इंसान महात्मा बन कर – एक धोती में खुद को लपेट कर – वर्षों तक अपने विश्वास को कायम रखा ! “मेरे अन्दर एक सच है और वही सच मेरी लड़ाई को जिंदा रखेगा” – शायद यही जीवन दर्शन रहा होगा – महात्मा गांधी का ! बैरिस्टर थे – बड़े आराम से ज़िंदगी कट रही थी – कट जाती ! एक घटना ने उनके पुरे जीवन दर्शन को बदल दिया – किस कदर उनकी अंतरात्मा को चोट पहुँची होगी – कल्पना कीजिए – दक्षिण अफ्रीका का वो रेलवे स्टेशन – और गांधी को ट्रेन से उतार – उनके सामान को फेंक देना – गांधी ने एक दिन नस्लवादी विचारधारा को ही – इस देश से उखाड़ फेंका !
इंसान के रूप में जन्मे – खुद को महात्मा बनाए – अन्दर की जिद को बरकरार रखे – ‘अहिंसा’ को जीवित रखे – उनकी ‘अहिंसा’ को बहुत गलत ढंग से अपनाया गया है !
आसान नहीं है – उनकी बातों को सचमुच में अपने जीवन में उतार देना – एक बात तो है – इस देश में या कहीं भी – वही हज़ारों वर्ष तक जीवित रहेगा – जिसकी जीवन दर्शन ‘गंगोत्री’ की तरह साफ़ हो – यहीं दिक्कत होती है – जीवन के सफ़र में खुद की गंगोत्री कब मैली होकर कितने ज़हर फैलाती है – मालूम नहीं !
शायद मेरी नज़र में – वो कहते हैं – सामने वाले के अहंकार को जरुर ध्वस्त करो – ध्यान रहे – उसके अहंकार को ध्वस्त करते वक़्त – उसकी अंतरात्मा को न चोट पहुंचे – अगर वो जिद्दी है – फिर एक और महात्मा बन जाएगा – तुम्हारे वजूद को ही उखाड़ फेंकेगा !
गलत और सही कुछ नहीं होता – जो आपके मन में मजबूती से बस जाए – वही सही है – बशर्ते आप ‘महात्मा’ की तरह ‘जिद’ वाले हों ..:))
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 02.10.2013

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