मेरा गांव – मेरा देस – मेरी दिवाली :))

एक बार फिर दिवाली आ गया ! हर साल आता है ! यादों का मौसम एक बार फिर आया ! अभी अभी पटना से लौटा हूँ – कई लोग फिर से बोलने पूछने लगे – ‘दिवाली में भी आना है ?’ अरे ..मेरे भाई ..हम पेटभरुआ मजदूर हैं ..कहाँ इतना पैसा बचाता है कि ..हर पर्व त्यौहार में घर-गाँव जा सकें !
स्कूल में पढते थे ! कई दिन पहले से सड़क पर् ईट लगा के चौकी पर् ‘पड़ाका’ ( पटाखा ) बिकता था ! स्कूल से लौटते वक्त उन पडाकों को मन भर देखना – दोस्तों से तरह तरह के ‘पडाकों’ के बारे में बात करना – खासकर ‘बम’ ..एटम बम ..बीडिया बम.. हई बम ..हौऊ बम – सड़क पर् लगे चौकी पर् चादर बिछा कर पठाखे को देख उनको एक बार छूना …! फिर ..घर में पिछले साल के बचे पटाखे खोजना और उनको छत पर् चटाई बिछा करने धूप दिखाना ! उफ्फ़..वो भी क्या दिन थे !
दिवाली के एक दो दिन पहले से ही .खुद को रोक नहीं पाते ..कभी बालकोनी तो कभी छत पर् जा कर एक धमाका करना और उस धमाके के बाद खुद को गर्वान्वीत महसूस करना ! फिर ये पता करना की सबको पता चला की नहीं ..मैंने ही ये धमाका किया था 🙂 कार के मोबील का डब्बा होता था – उस तरह के कई डब्बों को दिवाली के दिन के लिये जमा करना और फिर दिवाली के दिन उन डब्बों के नीचे बम रख उनको आसमान में उडाना 🙂

धनतेरस के दिन दोपहर से ही ‘बरतन’ के दूकानदारों के यहाँ भीड़ होती थी – जो बरतन उस दिन खरीदाता वो ‘धनतेरस वाला बरतन’ ही कहलाता था ! अब नए धनीक बैंक से सोना का सिक्का खरीदते हैं – तनिष्क वाला डीलर धनतेरस के दिन राजा हो जाता है ! पब्लिक दुकान लूट लेता है !

दीया का जमाना था – करुआ तेल डाल के – स्टील के थरिया में सब दीया सजा के घर के चारों तरफ दीया लगाना  ! इस काम में फुआ – बहन लोग आगे रहती थीं – हमको इतना पेशेंस नहीं होता ! बाबु जी को कभी लक्ष्मी पूजन में शरीक होते नहीं देखा – मा कुछ आरती वैगरह करती थीं – हम लोग इतने देर बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पाते ! पूजा के बाद लड्डू खाया और फरार !

कॉलेज गया तो – ‘फ्लश’ ! एक दोस्त होता है – पंडित ! बेगुसराय का पंडित ! बहतर घंटा लगातार ‘फ्लश’ का रिकॉर्ड – पंडित  के चक्कर में ! बहुत बड़ा करेजा था उसका ! अब तो रिलाइंस में मैनेजर है – लेकिन कॉलेज के ज़माने उसके दबंगई का कोई जोड़ नहीं ! दिवाली के दस दिन पहले से ही पंडित के यहाँ कॉलेज के सभी  वेटरन जुआरी सीनियर – जूनियर पंडित के कमरे में पहुँच जाते ! पब्लिक के जोर पर् ‘नेता’ भी शामिल होते ! हमारा पूरा गैंग ! हंसी मजाक और कभी कभी मामला काफी सीरिअस भी ! हारने पर् हम अपना जगह बदलते या फिर कपड़ा भी – यह बोल कर की – यह ‘धार’ नहीं रहा है ! 🙂 कई दोस्त इस दिन गर्ल्स होटल के पास मिठाई और पटाखे के साथ देखे जाते ! 🙂

बचपन में दीवाली की रात कुछ पटाखे ‘छठ पूजा’ के लिये बचा कर रखना – और फिर अगले सुबह छत पर् जा कर यह देखना की ..पटाखे के कागज कितने बिखरे पड़े हैं 🙂 अच्छा लगता था !

नॉएडा – गाजियाबाद आने के बाद – मुझे पता चला की – इस दिन ‘गिफ्ट’ बांटा जाता है ! अब मुझ जैसे शिक्षक को कौन गिफ्ट देगा 🙂 खैर , बिहार के कुछ बड़े बड़े बिल्डर यहाँ हो गए हैं और पिछले साल तक दोस्त की तरह ही थे – सो वो कुछ कुछ मेरी ‘अवकात’ को ध्यान में रखते हुए – भेज देते थे 🙂 घरवालों को भी लगता कि हम डू पैसा के आदमी हैं 🙂 लेकिन ..इस गिफ्ट बाज़ार को देख मै हैरान हूँ ! मेरा यह अनुमान है की कई ऐसे सरकारी बाबु हैं – जिनको दिवाली के दिन तक करीब एक करोड तक का कुल गिफ्ट आता है !  जलन होती है – पर् सब दोस्त ही हैं – सो मुह बंद करता हूँ 😉 वैसे इनकम टैक्स वाले अफसर भाई लोग को ‘१-२ लाख’ का जूता तो मैंने मिलते देखा है ! मालूम नहीं ये जूता कैसे चमड़ा से बनता है 😦

इस बार मै भी धनतेरस में एक गाड़ी खरीदने का सोचा था ! डीलर भी उस दिन देने के मूड में नहीं था ! कोई नहीं – अगला साल ! पटना के फेमस व्यापारी अर्जुन गुप्ता जी जो मेरे ससुराल वालों के काफी करीबी हैं – कह रहे थे – नितीश राज में हर धनतेरस को लगभग ४०-५० टाटा सफारी बिकता है !

01.11.2010 / दालान

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