अनुशान , प्रेम और अहंकार …

सामाजिक जीवन में सफलता अनुशासन से ही मिलती है लेकिन ऐसी कई सफलताओं को पाने के बाद ऐसे घोर अनुशासित लोगों को यह भ्रम भी हो जाता है की जीवन की सारी अनुभूतियां अनुशासन से ही प्राप्त हो जाएंगी ।~ ऐसा मै नही मानता । भूखे पेट सोना भी एक अनुभूति है । और यह … Continue reading अनुशान , प्रेम और अहंकार …

सभ्यता और संस्कृति …

दिनकर लिखते हैं : हर सुसभ्य आदमी सुसंस्कृत ही होता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता; क्योंकि अच्छी पोशाक पहनने वाला आदमी भी तबीयत से नंगा हो सकता है और तबीयत से नंगा होना संस्कृति के खिलाफ बात है। और यह भी नहीं कहा जा सकता कि हर सुसंस्कृत आदमी सभ्य भी होता है, क्योंकि … Continue reading सभ्यता और संस्कृति …

कहानी साइकिल की …

कहानी साइकिल की : ब्रांड रेलेे 😊कोई राजा हो या रंक - हमारे समाज में उसकी पहली सवारी साइकिल ही होती है और साइकिल के प्रति उसका प्रेम आजीवन रहता है - भले ही वो चढ़े या नहीं चढ़े ।अगर आप अपने बचपन को याद करें तो बड़े बुजुर्ग ब्रांड रेलेे की बात करते थे … Continue reading कहानी साइकिल की …

अंचार….

आपके डाइनिंग टेबल या आपके भोजन पर बेहतरीन अंचार अवश्य होना चाहिए । अब खाना बढ़िया नहीं बना है , यह कहने का हिम्मत बहुत कम लोगों को होता है तो उसकी भरपाई वह अंचार करता है 😝दस बजिया स्कूल में पढ़े है । मतलब सुबह दस से शाम चार वाला । टिफिन ले जाना … Continue reading अंचार….

स्त्री – पुरुष / स्पर्श

स्त्री और पुरुष जब एक दुसरे से नजदीक आते हैं ! स्पर्श की अनुभूति या स्पर्श का होना ही प्रेम का परिचायक है ! स्त्री 'मन के स्पर्श' को प्रेम कहती है और पुरुष 'तन के स्पर्श' को प्रेम की मंजिल समझता है ! यह स्पर्श कैसा होगा - यह उन्दोनो के प्रेम की इन्तेंसिटी … Continue reading स्त्री – पुरुष / स्पर्श

वसंत : फरवरी या मार्च …

धरा ने वसंत को पूरी तरह जिया भी नहीं की पतझड़ की आहट होने लगी है । अचानक से धूप तीखी हो गयी है । ऐसे जैसे मार्च अपने वक़्त से पहले आ कर - फ़रवरी का हिस्सा छिन रहा हो । ग़लत बात लगती है , किसी के हिस्से में प्रवेश करना । ऐसा … Continue reading वसंत : फरवरी या मार्च …

ये इश्क़ है …मेरी जां …

ये इश्क़ है , मेरी जाँ … दरवाज़े बंद कर दो , खिड़कियाँ बंद कर दो । चाहो तो ख़ुद को किसी क़ैदखाने में क़ैद कर दो । भले इस जहाँ को छोड़ किसी और जहाँ चले जाओ । ये इश्क़ है , मेरी जाँ …

माँ… स्मृतियों में 🙏

माँ माँ ( 8th May 1949 - 5th Feb 2013 ) माँ , आज शाम माँ अपनी यादों को छोड़ हमेशा के लिए उस दुनिया में चली गयीं - जहाँ उनके माता पिता और बड़े भाई रहते हैं ! पिछले बीस जनवरी को माँ का फोन आया था ...मेरी पत्नी को ...रंजू से कहना ...हम उससे ज्यादा उसके … Continue reading माँ… स्मृतियों में 🙏

हर ज़िन्दगी एक कहानी है …

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही - कहानी को सुन्दर बनाता है ! … Continue reading हर ज़िन्दगी एक कहानी है …

आत्माएं भाव की भूखी होती है …

आत्माएं भाव की भूखी होती है और उसी भाव से आत्म विश्वास पनपता है । भाव बहुत महत्वपूर्ण है । आज माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला के बारे में पढ़ रहा था । उन्होंने अपने बचपन के स्कूली क्रिकेट की चर्चा की । उन्होंने कहा - एक स्कूल क्रिकेट मैच के दौरान , गेंदबाजी करते … Continue reading आत्माएं भाव की भूखी होती है …

लेखक और काल

मुझे ऐसा लगता है - जो कोई भी लेखक है - किसी भी रूप में - साहित्यकार हो या फ़िलॉसफ़र । मूलतः वो अपने 'काल' से ही अपनी रचना को सजाते हैं । शेक़सपियर हों या कालिदास या फिर प्रेमचंद । सभी ने अपनी रचना के मूल में 'मानव स्वभाव' को रखा और उसको अपने … Continue reading लेखक और काल

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस :))

चाय पर चर्चा और आज अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस है 🙂 ।माँ बहुत चाय पीती थी । हर वक़्त चाय चाहिए । सो बहुत बचपन से हम दोनों भाई बहन को भी चाय चाहिए होता था । चाय के चक्कर मे बहुत कुछ छूटा है - परीक्षा तक भी - तो उसी चाय के चक्कर मे … Continue reading अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस :))

सरौता …कहां भूल आए … :))

" सरौता कहां भूल आए …प्यारे नंदोइया "~ पद्म विभूषण गायिका स्व गिरिजा देवी जब इस गीत को बेहद सलीके अंदाज़ से गाती थी ,समा बन्ध जाता था :))हम शायद उस पीढ़ी से आते हैं , जहां बचपन कि स्मृतियों में सरौता बसा हुआ है । पुरुष के महिन चाल चलन का यह भी एक … Continue reading सरौता …कहां भूल आए … :))

इलेवन मिनट्स …

वर्षों पहले की बात है । विश्वविद्यालय के तरफ़ से प्रायोगिक परीक्षाएँ में परीक्षक बन मुझे आगरा जाना हुआ । आस पास के दो तीन कॉलेज में प्रायोगिक परीक्षा समाप्त करवा मैंने एक टैक्सी ले ली । आगरा में ही 'इलेवन मिनट्स' किताब ख़रीद ली । उम्र कम थी - किताब बस दो घंटे में … Continue reading इलेवन मिनट्स …

गुल्लक …

गुल्लक बेहद पसंद । कहीं से भी आओ और पॉकेट में खनखनाते चंद सिक्कों को गुल्लक में डाल निश्चिंत । फिर उस गुल्लक के भरने का इंतजार ताकि उसे फोड़ा जा सके । कभी किसी को कड़कड़ाते नोट गुल्लक में डालते नहीं देखा । हमेशा सिक्के ही ।पर कभी कभी ऐसा लगता है क्या इतने … Continue reading गुल्लक …

ओनली बुलेट …

पटना में घर घर बुलेट , हर हर बुलेट हो गया है । जिसको देखिये वही बुलेट हांक रहा है । हाफ लिवर का आदमी भी बुलेट लेकर घूम रहा है । अरे भाई , तुम्हारा कोई इज्जत नही है लेकिन बुलेट का इज्जत तो है …न । अकेले बुलेट स्टैंड पर नही लगेगा लेकिन … Continue reading ओनली बुलेट …

शब्द छवि बनाते हैं …

मै कोई साहित्यकार / लेखक / पत्रकार / कवी / शायर नहीं हूँ - बस जो जब दिल में आया लिख दिया - करीब ठीक दस साल पहले - मैंने यूँ ही रोमन लिपि में हिंदी भाषा में - रामेश्वर सिंह कश्यप उर्फ़ लोहा सिंह से प्रेरित होते हुए - खुद पर ही एक बेहतरीन … Continue reading शब्द छवि बनाते हैं …

छठ क्या है ?

छठ क्या है ? छठ यही है 🙏~ किसी भी बिहारी के लिए यह समझा पाना की छठ क्या है । दुनिया का सबसे मुश्किल काम । जाति को कौन पूछे – धर्म की दीवारें गिर जाती है ।~ भावनाओं का वह सागर किस तूफान पर होता होगा जब गांव के नथुनी मियां कहते हैं … Continue reading छठ क्या है ?

छठ : जब ले माई बिया …

आज नहाय - खाय है ! हल्का ठण्ड ! कुहासा भी है ! कम्बल से बाहर निकला तो देखा - दरवाजे पर हुजूम ! बाबा का खादी वाला शाल ओढ़ - चाचा का हवाई चप्पल ले के …बाहर ! कुर्सियां सजी है - लोग बैठे हैं !अहा …मिंटू चाचा …एक कुर्सी पर चुप चाप ! … Continue reading छठ : जब ले माई बिया …

छठ की यादें : रंजन ऋतुराज

कल से ही अखबार में 'छठ पूजा' को लेकर हो रही तैयारी के बारे में समाचार आने लगे ! आज तो दिल्ली वाला 'हिंदुस्तान दैनिक' फूल एक पेज लिखा है ! कल दोपहर बाद देखा - फेसबुक पर् शैलेन्द्र सर ने एक गीत अपने वाल पर् लगाया था - शारदा सिन्हा जी का ! गीत … Continue reading छठ की यादें : रंजन ऋतुराज

रवीश कुमार की यादों में छठ

रविश कुमार शौक से पत्रकार है - मेरे पड़ोसी से मेरा ही परिचय देने लगे - "हम यादों में जीते हैं" - आज के 'प्रभात खबर' के पहले पन्ने पर छपी - उनकी बेहतरीन लेख - छठ पूजा पर - "सामूहिकता सिखाते छठ घाट"‘नरियलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुग्गा मेड़राए, ऊ जे खबरी … Continue reading रवीश कुमार की यादों में छठ

छठ पर गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी का एक लेख …

अक्सर पिछले छह दशकों की वीथियों में घूम ही आती हूं। उन स्मृतियों में सब हैं, दादा-दादी, मां-पिताजी, भाई-बहन और ढेर सारे चाचा-चाचियां और सेवक-सेविकाएं। उन्हीं रिश्तों के बीच होली-दिवाली, दुर्गा पूजा, चौथचंदा, सरस्वती पूजा और व्रत-त्योहार। सबसे ऊपर रहती है छठ पर्व की स्मृति। कितना सुहाना, कितनी आस्था। दादी द्वारा कितने सारे निषेध। चार … Continue reading छठ पर गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी का एक लेख …

मेरा गांव – मेरा देस – मेरी दिवाली :))

एक बार फिर दिवाली आ गया ! हर साल आता है ! यादों का मौसम एक बार फिर आया ! अभी अभी पटना से लौटा हूँ - कई लोग फिर से बोलने पूछने लगे - 'दिवाली में भी आना है ?' अरे ..मेरे भाई ..हम पेटभरुआ मजदूर हैं ..कहाँ इतना पैसा बचाता है कि ..हर … Continue reading मेरा गांव – मेरा देस – मेरी दिवाली :))

पोंच …

जाड़ा आ ही गया ! मेरे बिहार में जाड़ा के आते आते ही आपको गली - गली में हर चार कदम पर 'अंडा' का दूकान मिल जाएगा । - चार वर्ष का बच्चा से लेकर सत्तर साल के बुढा तक दुकानदार मिल जाएगा - इसी उम्र का खाने वाला भी ! एक ठेला पर सजा … Continue reading पोंच …

गोभी … :))

फूलगोभी की इस तस्वीर को देख आप मक्खन भूल जाएंगे । सीजन आ गया है । सुबह सुबह नहा धों कर , हल्का गीला गरम भात पर दो चम्मच घी और ' गरम गरम गोभी आलू ' का सब्जी । उसके बाद रोजी रोटी कमाने निकल जाइए । गोभी जबरदस्त कमजोरी है । सालों भर … Continue reading गोभी … :))