एक कविता …

अहंकार तुम्हारा शस्त्र है
उसके बगैर जीना व्यर्थ है …

शस्त्र के साथ हर जगह नहीं …
इसके बगैर भी हर जगह नहीं ….
अहंकार अग्रज के साथ नहीं ….
कुचल दिए जाओगे …
अहंकार अनुज के साथ नहीं …
घृणा के पात्र बन जाओगे ….
अहंकार प्रेम में नहीं …
दफ़न हो जाओगे ….
अहंकार गुरु के साथ नहीं …
कफ़न में लिपट जाओगे ….

आत्म सम्मान पर जब चोट लगे …
सब भूल जाओ …
अहंकार को कवच बना
खुद को जलाओ …

मानव ही धरती को रौंदता है …
है हिम्मत तो शेर भी डरता है …
यह जीवन बार बार नहीं आता है …
है हाथ में लगाम तो आसमान भी झुकता है …

जीवन अगर युद्ध है …
तुम्हारा अहंकार ही वो अश्व है …

जब अश्व पर चाबूक लगेगा …
हवा के संग बातें करेगा ….
जीने की कला सिखाएगा ….
कुचले हुए आत्म सम्मान को उठाएगा ….

कहाँ शस्त्र उठाना है ….
कहाँ शस्त्र गिराना है …..
यही सिखना जीवन है …..
प्रेम और युद्ध दोनों के बगैर जीवन अधूरा है ….


~ RR / 11.09.2014 / दालान

हरश्रृंगार

हरश्रृंगार

पांच साल पुरानी तस्वीर है । इसी शरद ऋतु की एक सुबह अपने गाँव में – घर के बाहरी आँगन में लगे हरसिंगार के पौधे से झरते फूलों को इकट्ठा कर यह तस्वीर मैंने खिंची थी ।
शेफाली, पारिजात, सिउली, हरसिंगार, प्राजक्ता …न जाने कितने नाम हैं ।
अपनी मीठी ख़ुशबू से सारी रात चाँद को रिझाना और सुबह होते ही धरती को बिछावन बना ख़ुद को सौंप देना । शायद यही नियति है – हरसिंगार की । यही प्रकृति है – हरसिंगार की ।
” विदेशों में एक कहानी है – पारिजात को सूर्य से असीम प्रेम था पर कोमल पुष्प सूर्य की धधकती ज्वाला को बर्दाश्त नहीं कर पाती इसलिए सूर्य के डूबने के बाद यह खिलती है और सुबह सूर्य के उगने से पहले दर्द भरे आंसुओं की भावना देते हुए पेड़ से झड़ कर ज़मीन पर गिर जाती है । “
असीम ख़ुशबू के साथ साथ असीम प्रेम का भी बोध भी है – हरसिंगार का फूल , शायद तभी हम इसे देवी को भी समर्पित करते हैं :)) किसी ने कहीं लिखा है – “हरसिंगार सी झरती हैं तेरी यादें …शरद ऋतु के इस सुबह की बेला में …तुम्हारी ख़ुशबू के साथ …लाज सी बिछी तुम पारिजात …कहती को …चुन लो मुझे …अंज़ूरी में भर लो मुझे” …:))

वहीं महान कवि पंत लिखते हैं –

शरद के
एकांत शुभ्र प्रभात में
हरसिंगार के
सहस्रों झरते फूल
उस आनंद सौन्‍दर्य का
आभास न दे सके
जो
तुम्‍हारे अज्ञात स्‍पर्श से
असंख्‍य स्‍वर्गिक अनुभूतियों में
मेरे भीतर
बरस पड़ता है !

  • सुमित्रानंदन पंत
    ~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना