कभी कबड्डी खेले हो ? सामने से एक बंदा बड़ी तेजी से , अपनी दम साधे आता है , साँसों को रोक कर , तुम्हे छूता है और भाग खड़ा होता है । पकड़ भी लिया गया तो दम नही छोड़ता , साँसों को रोके रखता है । तुम उसे पकड़ भी लिए तो वो अपनी सांसे नही तोड़ता – खिलाड़ी जो है ।
कुछ इश्क़ ऐसे भी होते है , अपनी साँसों को रोक , सामने वाले को छू कर वापस अपने घेरे में आ जाना । दम टूटने पर अपनी हार और दम ना टूटे तो सामने वाले कि हार । और इसी ज़िद में एक पल वो तुम्हे छोड़ देता है , तुम जीत कर मुस्कुराते हो और वो हार कर मुस्कुराता है ।
और इसी मुस्कान में जो इश्क़ जवां होती है , बड़ी दूर तलक जाती है …बड़ी दूर … :)) कहां तक जाती है …दोनों को नहीं पता :))
तुम्हे भी पता था , उस पल के आगे तुम्हारी हार थी और उसे भी पता था , उस पल के आगे उसकी जीत थी ।
अब बताओ …जीता कौन …हारा कौन :))
खैर , एक सच तो है …न , भागते वक़्त हौले से तुमने उसे छू लिया , हां …उसी वक़्त जब तुम्हारी सांस भी टूट गई थी …वो एक पल तुम्हे भी याद होगा …और वो एक पल उसे भी याद है …
~ रंजन / 31.01.20