कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे किसी रेस्तरां में …अपने जुड़े के क्लिप को दांतों में फंसा …अपनी हाथों से …अपने तंग जुल्फों में व्यस्त मिलो …
कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे मेरी नज़र तुम्हारे उस खुबसूरत पेंडेंट पर अटकी हो …और तूम अपने उस बड़े लाल टोट बैग में …अपनी लिपस्टिक को खोजती …थोड़ी परेशान मिलो …
इन्ही छोटी – छोटी उलझनों के बीच …वो जो तुम्हारा हसीन चेहरा …थोड़ा तंग लेकिन गुलाबी दिखता है …बेफिक्र होकर भी …थोड़ी फिक्रमंद दिखती हो ….प्यारी लगती हो …
वो जो अपने लिपस्टिक – जुड़े का गुस्सा …अपने लाल टोट बैग में खोये सामान का गुस्सा …मुझपर निकालती हो …अच्छी लगती हो ….
हाँ ..उसी रेस्तरां में …एक प्याली चाय और गर्म पनीर पकौड़े के बीच …जब तुम्हे शाम के पहले अपने घर लौटने की हडबडी में ..तब मुझसे ही लिफ्ट मांगती हो …
……..मेरे चेहरे पर तुम्हारी गुलाबी मुस्कान आ जाती है ….:))
…अच्छी लगती हो …
~ रंजन / एक लेखक की कल्पना / 2014
Anand Kanaujiya
इतनी ऐंठन तो मेरे अंदर कभी हुई ही नही, आप निचोड़ कर रख देने की कला में माहिर हैं।