ख्याल …

ख्याल …

एक भोर से देर रात तक में – न जाने कितने ख़याल आते हैं – अलग अलग रंग की भावनाओं में रंगे हुए – तेज़ प्रवाह वाली नदी की तरह , छप्पर उड़ा देने वाली आँधी की तरह । ये ख़याल आते हैं और चले जाते हैं । मन के पटल पर कुछ निशान छोड़ जाते हैं – वो ख़याल , वही अलग अलग रंगों वाले ।
हाथ में कलम और मुँह में उस क़लम की ढक्कन – मैं उन ख़यालों को रोकने की कोशिश करता हूँ – रुक गए तो वो लेखनी बन गए , नहीं रुके तो न जाने किधर निकल गए ।
बढ़ती उम्र ने रोज आते जाते उन ख़यालों और उन भावनाओं को समझना शुरू कर दिया है । अब पता चलने लगा है – किन्हे रोकना है और किन्हे जाने देना है ।
शायद कुछ ऐसा ही तुमने एक बार मुझसे कहा था …सुनो ..मुझे तेरी हर बात याद क्यों रहती , क्यों मैं इस ख़याल को रोक रहा हूँ …तकिए के नीचे …घड़ी के पास । ख़याल वक़्त के साथ रहेंगे बड़े हो जाएँगे ।
सुनो…तुम कुछ पेंटिंग क्यों नहीं करते …अलग अलग ख़यालों को अलग अलग भावनाओं के रंग में …गुल्लक को कभी पेंट किया है ? गुल्लक भर जाते हैं तो …हम फोड़ देते हैं …।
डरते हो …ख़यालों को पेंट करने से …बहुत डरपोक हो । डरो मत …कुछ गुल्लक कभी नहीं फूटते …कहीं किसी आलमिरा के कोने में चुपके से पड़े रहते हैं । वार्डरॉब में उस टंगे हुए पुराने सूट के पीछे । आधे भरे – आधे ख़ाली गुल्लक । सुनहरे रंग से पेंट किए हुए – वक़्त पर काम आने का विश्वास दिलाते हुए ….ख़्वाबों के शक्ल में भावनाओं से रंगे गुल्लक …
~ दालान , 11.37 PM / 20अगस्त , 2016

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