बहुत सारे विषय पर लिखने का मन करता है ! कई लोग पर्सनल चैट पर प्रशंषा करते हैं – आगे खुल कर नहीं बोल पाते 🙂 ! आप सभी को मेरा लिखना पसंद आता है – यही बहुत बड़ी बात है ! बहुत सारे लोग जो यह भी जानते हैं की मै एक शिक्षक हूँ – उन्हें यह आशा जरुर होगी की मै शिक्षक दिवस पर कुछ लिखूंगा !
एक घटना याद है – उन दिनो “याहू मेस्सेंजर” पर चैट होती थी – एक सज्जन थे – ‘पनिया जहाज’ पर कैप्टन या इंजिनियर ! सुना है वैसे कामो में बहुत पैसा होता है ! खैर , परिचय हुआ – बिहार के थे ! मैंने भी अपना परिचय दिया ! अब वो अचानक बोल पड़े – “शिक्षक हो ? कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालते हो ? – कितना कमाते हो ? ” उनकी भाषा ‘कटाक्ष’ वाली थी ! मै कुछ जबाब नहीं दे पाया – सन्न रह गया ! जुबान से कुछ नहीं निकला – बस एक स्माईली टाईप कर दिया ! पर , उनके शब्द आज तक ‘कानो’ में गूंजते हैं !
कई घटनाएं हैं ! नॉएडा नया नया आया था ! जिस दिन ज्वाइन करना था – अपने ‘हेड’ के रूम के आगे दिन भर खड़ा रहा – मुझे उनसे मिलना था और उनके पास समय नहीं – मेरे ‘इंतज़ार’ करने का फल ये हुआ की – इम्रेशन बढ़िया बना ! सब्जेक्ट भी आसान मिला – प्रथम एवं अंतिम बार “जम के मेहनत किया और पढाया” ! कई विद्यार्थीओं ने मेरे नाम के आगे “झा” जोड़ दिया था 🙂
कुछ बैच ऐसे होते हैं – जिसमे आप २-३ सब्जेक्ट पढाएं तो वहाँ एक खास तरह का स्नेह बन जाता है ! फिर ता उम्र आप उनसे जुट जाते हैं ! एक रिश्ता बन जाता है ! एक विद्यार्थी था – दूसरे ब्रांच का ! उसे थोड़ी हिम्मत की कमी थी – अक्सर वो मिल जाता और मै उसको हमेशा यह बोलता की तुम अपने क्लास में टॉप कर सकते हो …फिर मैंने उसको जान बुझ कर उसके हौसले को बढ़ाने के लिए १-२ मार्क्स ज्यादा दिए – फिर वो आगे देखा न पीछे …अचानक फ़ाइनल इयर में पता चला की – वो टॉप कर गया है – क्लास में नहीं -पुरे यूनिवर्सटी में 🙂 कॉलेज आया तो अपने माता -पिता से मुझसे मिलवाया ! अछ्छा लगा था !
एक बार मै अपने हेड के कमरे में गया तो वहाँ एक वृद्ध सज्जन बैठे थे – उनदिनो मेरे हेड एक ‘सरदार जी’ होते थे ! शायद उनको मै बहुत पसंद नहीं था – पर मै इतनी सज्जनता से पेश आता की – उनके पास कोई और उपाय नहीं था – खैर उनके कमरे में बैठे सज्जन के बारे में पूछा तो पता चला की उनका ‘पोता’ हमारे यहाँ पढता है और फेल कर गया है – अब वो नाम कटवा के वापस ले जाना चाहते हैं – मैंने बोला – आप एक कोशिश और कीजिए – मै उसका ध्यान रखूँगा – मै ज्यादा ध्यान नहीं रख पाया – पर , हाँ – कभी कभी टोक टाक दिया करता था – वो लड़का सुधर गया – पास करने के कुछ दिन बाद आया – मेरे केबिन में – “पैर छूने लगा – मैंने मना कर दिया ” – धीरे से बोला – ‘सर , विप्रो में नौकरी लग गयी है ‘ – बंगलौर जाना है – सोचा आप से मिल लूँ ! इतनी खुशी हुई की – पूछिए मत – लगा आँखों से खुशी के आंसू छलक जायेंगे ! मुझे यह पूर्ण विश्वास है की – दुनिया की कोई ऐसा दूसरा पेशा नहीं है – जिसमे आपको ऐसी खुशी मिल सके ! मुझे मैनेजमेंट गुरु बहुत पसंद आते हैं – और अक्सर मै एक ‘इलेकटीव’ पढाता हूँ – जिसमे मैनेजमेंट के कुछ ज्यादा भाग हैं ! अखबार में अगर कोई ऐसा आर्टिकल किसी मैनेजमेंट गुरु का अगर आ जाए तो – मै उसे बिना पढ़े नहीं छोड़ता – खास कर ‘ब्रांड मैनेजमेंट’ का ! खैर ये मेरी पुरानी आदत से – कोर विषय से अलग हट के ‘काम’ करना 😉 वैसे मेरी नज़र में ‘कंप्यूटर इंजिनीरिंग’ में ‘प्रोग्रामिंग’ के बाद अधिकतर विषय बकवास ही होते हैं – और मुझे सब कुछ नहीं आता ! 🙂
बाबू जी भी शिक्षक हैं ! जिस किसी दिन भी उनका क्लास होता है – उसके २ दिन पहले से वो ‘जम’ के पढते हैं – उनके कमरे में कोई नहीं जाता है !
खुद शिक्षक हूँ – पर मुझे मेरी जिंदगी में कोई ऐसा शिक्षक नहीं मिला – जो मेरी प्रतिभा को पहचान एक दिशा देता ! कुल मिलाकर – मेरे बाबु जी ही मेरे लिए दिशा निर्देशक के रूप में हैं – शुरुआती दिनों में उनके कई बात नज़रंदाज़ किया हूँ – अब दुःख होता है – खासकर उनकी एक सलाह – जब मैंने ‘मैट्रीक पास किया’ – मानविकी एवं समाज विज्ञानं ले लो , पढ़ा होता तो शायद किसी बड़ी पत्रिका का संपादक या राज नेता होता ! माँ की ट्रेनिंग भी बहुत महत्वपूर्ण है मेरे लिए – आम जिंदगी में मेरी शालीनता और त्याग जल्द ही नज़र आ जाती है – कभी इसका बुरा फल मिलता है – कभी लोगों में जलन तो कभी लोग महत्त्व भी देते हैं – मेरे इस गुण के लिए मेरी माता जी ही जिम्मेदार है – कुछ खून का असर है – कुछ ट्रेनिंग !
मेरी स्नातक ‘इलेक्ट्रोनिक एवं संचार’ अभियंत्रण में है ! ‘खुद जब विद्यार्थी था तब क्लास में आज तक मुझे कुछ समझ’ में नहीं आया ! जिसका रिजल्ट यह हुआ की – मै बहुत ही सरल अंदाज़ में कोई भी सब्जेक्ट पढ़ाना पसंद करता हूँ ! अब तो कुछ सालों से ‘प्योर लेक्चर’ – एक घंटा तक बक बक ! मुझे याद है – पटना के एक कॉलेज में पढाने गया था – पहले ही क्लास में वहाँ के डाइरेक्टर साहब बैठ गए – जो जाने माने शिक्षक होते थे और आजादी के समय अमरीका से पढ़ कर लौटे थे – मेरा लेक्चर सुनने के बाद बोले – ” पढने की कोशिश करना – ज़माने बाद – कोई ऐसा मिला – जिसके अंदर ऐसी क्षमता हो जो बातों को सरल अंदाज़ में विद्यार्थीओं को समझा सके – पर ज्ञान बढ़ाने के लिए तुमको पढ़ना होगा ” ! खुद विद्यार्थी जीवन में बहुत अच्छे मार्क्स कभी नहीं आये पर बहुत सारी चीज़ें बहुत जल्द समझ आ जाती थी – जिसने मुझे ‘खरगोश’ बना दिया और देखते देखते ‘कई कछुए’ आगे निकल गए !
मेरी दो तमन्ना है – एक मैनेजमेंट में कोई बढ़िया लेख लिखूं और ‘हाई स्कूल’ में पढाऊँ ! कंप्यूटर से पी जी करने के बाद भी – मैंने कई ‘हाई स्कूल’ में शिक्षक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन दिया था – सब्जेक्ट – भूगोल , इतिहास , नागरीक शास्त्र 🙂 मुझे लगता है – अगर हाई स्कूल में हम चाहें तो बच्चों को जीवन में कुछ बड़ा सपना देखने को बढ़िया ढंग से प्रेरित कर सकते हैं !
कई लोग मुझे मिलते हैं जो भिन्न – भिन्न पेशा में हैं और कहते हैं – मै भी कुछ दिनों बाद ‘शिक्षक’ बनना पसंद करूँगा ! पर , बहुत कम लोग ‘शिक्षक’ बनने आते हैं और एक बेहरतीन विद्यार्थी होते हुए भी – बढ़िया शिक्षक नहीं बन पाते !
बहुत कुछ लिखने का मन था …लिख नहीं पाया …फिर कभी ..
रंजन ऋतुराज सिंह – इंदिरापुरम !
05.09.2010