Archives September 2020

निर्णय …

आईक्यू के एक ख़ास बैंडविथ में – करोड़ों लोग होते हैं पर सामाजिक पटल पर उनके जीवन में बहुत अंतर होता है – उसकी एक ख़ास वजह होती है – ‘निर्णय’ ! जीवन एक सफ़र है और यह एक ऐसा सफ़र होता है – जिसमे ‘मंजिल’ नाम की कोई चीज़ नहीं होती – जहाँ तक जैसे पहुंचे – वही आपकी मंजिल हो जाती है ! पर हर चार कदम पर एक चौराहा होता है और उस चौराहे से किधर मुड़ना है – वहीँ आपका ‘निर्णय’ निर्धारीत करता है आप किधर की ओर रुख कर रहे हैं ! कई बार एक छोटी सी निर्णय आपके पुरे ज़िंदगी को बदल देती है – ये निर्णय सिर्फ इंसान को ही नहीं बड़े से बड़े संगठन से लेकर समूह तक को प्रभावित करती है !
एक उदहारण देता हूँ – अज़ीम प्रेम जी खाने वाले तेल के व्यापार से थे – एक निर्णय लिया – मुझे आईटी में जाना है – विप्रो को दुनिया जान गयी – अम्बानी ने लेट कर दिया – एअरटेल कहाँ से कहाँ पहुँच गयी ! इंसान वही है – उसकी आतंरिक मेरिट भी वही है – उसकी क्षमता भी वही है – बस एक निर्णय उसे आसमां तक पहुंचा सकता है – अगर बात सामाजिक पटल की हो तो !
कई बार निर्णय लेते वक़्त ‘स्टेकहोल्डर’ का भी ध्यान रखना होता है – इंसान कभी अकेला नहीं होता – यह एक भ्रम है की वो अकेला है और उसकी ज़िंदगी सिर्फ उसी की है – कई और लोग उसकी ज़िंदगी से जुड़े होते हैं – जितना बड़ा व्यक्तित्व उतने ज्यादा स्टेकहोल्डर – कई निर्णय में सबका ध्यान रखना होता है – कई बार बिना कुछ सोचे समझे निर्णय ले लिया जाता है – जो होगा देखा जायेगा – इसके लिए अन्दर से बहुत हिम्मत चाहिए होता है – ऐसे ही निर्णय में – हमें कई बार किसी ख़ास की जरुरत होती है – जो हमें बस यह दिलासा दे सके – जाओ आगे बढ़ो – तुम्हारा निर्णय सही है !
कई बार हमें अपने निर्णय के सकरात्मक और नकरात्मक दोनों के अंत तक सोच कर रखना चाहिए – सिर्फ एक पक्ष सोच लेने से – बाद में दिक्कत हो सकती है ! निर्णय और उसके फल में सिर्फ आप नहीं शामिल होते हैं – उसमे कई और लोग भी शामिल होते हैं – वो आपको मदद भी पहुंचा सकते हैं या फिर आपको कमज़ोर भी कर सकते है !
पर किसी भी हाल में …निर्णय लेते रहिये …ज़िंदगी आगे बढ़ते रहने का ही नाम है …:))


~ दालान / 10 Sep – 2014

उम्र …

हर रविवार सुबह नाश्ते के बाद – पान खाने जाता हूँ – मेरे गेट के सामने ही ‘पान वाला’ है – चौरसिया नहीं है पर मेरे गृह राज्य का ही है – कई गलत आदतें छूट गयीं हैं लेकिन हर इतवार पान खाना बंद नहीं होता – जब उसका लाल पिक होठों के बगल से हल्का निकलता है – खुद को दुनिया का सबसे बड़ा इलीट समझता हूँ और इसी नशे में हर वक्त रहता हूँ !
खैर …पान खाने के बाद ..दो कदम आगे बढ़ा ..पान वाला छोकरा बोला – ‘अंकल ..’ – हम ध्यान नहीं दिए ! फिर वो टोका – ‘अंकल…’ . अब बर्दास्त नहीं हुआ – मुड़े और बोले – क्या है रे …हम तुम्हारे ‘अंकल’ लगते हैं ? देंगे दू हाथ घुमा के …दो चार श्लोक गुस्सा में सुना दिए ! अब वो हक्का – बक्का रह गया ! फिर दूसरी गलती किया – बोला – कल भाभी जी ‘भुट्टा’ मंगाई थीं ..उसका पैसा भी बाकी है …अब मेरा पारा चढ गया ! बोले ..मेरी पत्नी को भाभी जी और हमको अंकल जी …तुम्हारा ‘गुमटी’ ( दूकान ) कल से नहीं लगेगा ! 😡
सच में ..भाई लोग ..बहुत दर्द होता है …’अंकल’ शब्द सुन के ! उसका एक रीजन है …मै इस शब्द को बहुत सुरक्षित ढंग से यूज करता हूँ …यहाँ तक की पिता जी के अधिकतर दोस्तों को भी ‘सर’ ही कहता हूँ – अंकल तब के स्थिती में – जब वो बहुत घरेलु / पिता जी के भी आदरणीय हों – तब के स्थिति में !
इण्डिया में सबसे एब्यूजड शब्द है – अंकल !
मेरी हमउम्र महिलायें अगर खुद को किसी से भी ‘आंटी’ कहलाना पसंद करें – वो उनका निर्णय होगा – पर मुझे गैरों से ‘अंकल’ कहलाना पसंद नहीं ! 😡
बात साफ़ ! अब कैटरीना ..किसी दिन गलती से ..सलमान को अंकल बोल दे ..क्या होगा 😉 😝

~ दालान / 9 Sep – 2012 / इंदिरपुरम

शिक्षक दिवस …कुछ दिल से …

बहुत सारे विषय पर लिखने का मन करता है ! कई लोग पर्सनल चैट पर प्रशंषा करते हैं – आगे खुल कर नहीं बोल पाते 🙂 ! आप सभी को मेरा लिखना पसंद आता है – यही बहुत बड़ी बात है ! बहुत सारे लोग जो यह भी जानते हैं की मै एक शिक्षक हूँ – उन्हें यह आशा जरुर होगी की मै शिक्षक दिवस पर कुछ लिखूंगा ! 
एक घटना याद है – उन दिनो “याहू मेस्सेंजर” पर चैट होती थी – एक सज्जन थे – ‘पनिया जहाज’ पर कैप्टन या इंजिनियर ! सुना है वैसे कामो में बहुत पैसा होता है ! खैर , परिचय हुआ – बिहार के थे ! मैंने भी अपना परिचय दिया ! अब वो अचानक बोल पड़े – “शिक्षक हो ? कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालते हो ? – कितना कमाते हो ? ” उनकी भाषा ‘कटाक्ष’ वाली थी ! मै कुछ जबाब नहीं दे पाया – सन्न रह गया ! जुबान से कुछ नहीं निकला – बस एक स्माईली टाईप कर दिया ! पर , उनके शब्द आज तक ‘कानो’ में गूंजते हैं ! 
कई घटनाएं हैं ! नॉएडा नया नया आया था ! जिस दिन ज्वाइन करना था – अपने ‘हेड’ के रूम के आगे दिन भर खड़ा रहा – मुझे उनसे मिलना था और उनके पास समय नहीं – मेरे ‘इंतज़ार’ करने का फल ये हुआ की – इम्रेशन बढ़िया बना ! सब्जेक्ट भी आसान मिला  – प्रथम एवं अंतिम बार “जम के मेहनत किया और पढाया” ! कई विद्यार्थीओं ने मेरे नाम के आगे “झा” जोड़ दिया था 🙂 
कुछ बैच ऐसे होते हैं – जिसमे आप २-३ सब्जेक्ट पढाएं तो वहाँ एक खास तरह का स्नेह बन जाता है ! फिर ता उम्र आप उनसे जुट जाते हैं ! एक रिश्ता बन जाता है ! एक विद्यार्थी था – दूसरे ब्रांच का ! उसे थोड़ी हिम्मत की कमी थी – अक्सर वो मिल जाता और मै उसको हमेशा यह बोलता की तुम अपने क्लास में टॉप कर सकते हो …फिर मैंने उसको जान बुझ कर उसके हौसले को बढ़ाने के लिए १-२ मार्क्स ज्यादा दिए – फिर वो आगे देखा न पीछे …अचानक फ़ाइनल इयर में पता चला की – वो टॉप कर गया है – क्लास में नहीं -पुरे यूनिवर्सटी में 🙂 कॉलेज आया तो अपने माता -पिता से मुझसे मिलवाया ! अछ्छा लगा था ! 
एक बार मै अपने हेड के कमरे में गया तो वहाँ एक वृद्ध सज्जन बैठे थे – उनदिनो मेरे हेड एक ‘सरदार जी’ होते थे ! शायद उनको मै बहुत पसंद नहीं था – पर मै इतनी सज्जनता से पेश आता की – उनके पास कोई और उपाय नहीं था – खैर उनके कमरे में बैठे सज्जन के बारे में पूछा तो पता चला की उनका ‘पोता’ हमारे यहाँ पढता है और  फेल कर गया है – अब वो नाम कटवा के वापस ले जाना चाहते हैं – मैंने बोला – आप एक कोशिश और कीजिए – मै उसका ध्यान रखूँगा – मै ज्यादा ध्यान नहीं रख पाया – पर , हाँ – कभी कभी टोक टाक दिया करता था – वो लड़का सुधर गया – पास करने के कुछ दिन बाद आया – मेरे केबिन में –  “पैर छूने लगा – मैंने मना कर दिया ” – धीरे से बोला – ‘सर , विप्रो में नौकरी लग गयी है ‘ – बंगलौर जाना है – सोचा आप से मिल लूँ ! इतनी खुशी हुई की – पूछिए मत – लगा आँखों से खुशी के आंसू छलक जायेंगे ! मुझे यह पूर्ण विश्वास है की – दुनिया की कोई ऐसा दूसरा पेशा नहीं है – जिसमे आपको ऐसी खुशी मिल सके  ! मुझे मैनेजमेंट गुरु बहुत पसंद आते हैं – और अक्सर मै एक ‘इलेकटीव’ पढाता हूँ – जिसमे मैनेजमेंट के कुछ                   ज्यादा भाग हैं ! अखबार में अगर कोई ऐसा आर्टिकल किसी मैनेजमेंट गुरु का अगर आ जाए तो – मै उसे बिना पढ़े नहीं छोड़ता – खास कर ‘ब्रांड मैनेजमेंट’ का ! खैर ये मेरी पुरानी आदत से – कोर विषय से अलग हट के ‘काम’ करना 😉 वैसे मेरी नज़र में ‘कंप्यूटर इंजिनीरिंग’ में ‘प्रोग्रामिंग’ के बाद अधिकतर  विषय बकवास ही होते हैं – और मुझे सब कुछ नहीं आता ! 🙂 
बाबू जी भी शिक्षक हैं ! जिस किसी दिन भी उनका क्लास होता है – उसके २ दिन पहले से वो ‘जम’ के पढते हैं – उनके कमरे में कोई नहीं जाता है ! 
खुद शिक्षक हूँ – पर मुझे मेरी जिंदगी में कोई ऐसा शिक्षक नहीं मिला – जो मेरी प्रतिभा को पहचान एक दिशा देता ! कुल मिलाकर – मेरे बाबु जी ही मेरे लिए दिशा निर्देशक के रूप में हैं – शुरुआती दिनों में उनके कई बात नज़रंदाज़ किया हूँ – अब दुःख होता है – खासकर उनकी एक सलाह – जब मैंने ‘मैट्रीक पास किया’ – मानविकी एवं समाज विज्ञानं  ले लो , पढ़ा होता तो शायद किसी बड़ी पत्रिका का संपादक या राज नेता होता ! माँ की  ट्रेनिंग भी बहुत महत्वपूर्ण है मेरे लिए – आम जिंदगी में मेरी शालीनता और त्याग जल्द ही नज़र आ जाती है – कभी इसका बुरा फल मिलता है – कभी लोगों में जलन तो कभी लोग महत्त्व भी देते हैं – मेरे इस गुण के लिए मेरी माता जी ही जिम्मेदार है – कुछ खून का असर है – कुछ ट्रेनिंग ! 
मेरी स्नातक ‘इलेक्ट्रोनिक एवं संचार’ अभियंत्रण में है ! ‘खुद जब विद्यार्थी था तब क्लास में आज तक मुझे कुछ समझ’ में नहीं आया ! जिसका रिजल्ट यह हुआ की  – मै  बहुत ही सरल अंदाज़ में कोई भी सब्जेक्ट पढ़ाना पसंद करता हूँ ! अब तो कुछ सालों से ‘प्योर लेक्चर’ – एक घंटा तक बक बक ! मुझे याद है – पटना के एक कॉलेज में पढाने गया था – पहले ही क्लास में वहाँ के डाइरेक्टर साहब बैठ गए – जो जाने माने शिक्षक होते थे और आजादी के समय अमरीका से  पढ़ कर लौटे थे – मेरा लेक्चर सुनने के बाद बोले – ” पढने की कोशिश करना – ज़माने बाद – कोई ऐसा मिला – जिसके अंदर ऐसी क्षमता हो जो  बातों को सरल अंदाज़ में विद्यार्थीओं को समझा सके – पर ज्ञान बढ़ाने के लिए तुमको पढ़ना होगा ” ! खुद विद्यार्थी जीवन में बहुत अच्छे मार्क्स कभी नहीं आये पर बहुत सारी चीज़ें बहुत जल्द समझ आ जाती थी – जिसने मुझे ‘खरगोश’ बना दिया और देखते देखते ‘कई कछुए’ आगे निकल गए ! 
मेरी दो तमन्ना है – एक मैनेजमेंट में कोई बढ़िया लेख लिखूं और ‘हाई स्कूल’ में पढाऊँ ! कंप्यूटर से पी जी करने के बाद भी – मैंने कई ‘हाई स्कूल’ में शिक्षक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन दिया था – सब्जेक्ट – भूगोल , इतिहास , नागरीक शास्त्र 🙂 मुझे लगता है – अगर हाई स्कूल में हम चाहें तो बच्चों को जीवन में कुछ बड़ा सपना देखने को बढ़िया ढंग से प्रेरित कर सकते हैं ! 
कई लोग मुझे मिलते हैं जो भिन्न – भिन्न पेशा में हैं और कहते हैं – मै भी कुछ दिनों बाद ‘शिक्षक’ बनना पसंद करूँगा ! पर , बहुत कम लोग ‘शिक्षक’ बनने आते हैं और एक बेहरतीन विद्यार्थी होते हुए भी – बढ़िया शिक्षक नहीं बन पाते ! 
बहुत कुछ लिखने का मन था …लिख नहीं पाया …फिर कभी .. 

रंजन ऋतुराज सिंह – इंदिरापुरम !

05.09.2010

गप्प …दे गप्प …दे गप्प …

सुख क्या है ? आनन्द की अनुभूती कब होती है ? परम आनन्द कैसे मिले ? कई सवाल हैं ! हर उम्र और मौके के हिसाब से इन सब की व्याख्या है ! पर एक सुख है – वो है – ‘गप्प’ ! जिसे मेरे बिहार में ‘गप्पासटिंग’ भी कहते हैं ! और हम एक ऐसे परिवेश से आते हैं – जहाँ ‘गप्प’ की प्रधानता हमेशा से रही है !
अभी माँ – बाबु जी आये थे – देर रात तक गप्प – गप्प और गप्प ! सोफा पर लेट गए – उधर बाबु जी आराम कुर्सी पर – फिर चालू …बीच बीच में चाय आ रहा है …बालकोनी से बरखा की फुहार …गप्प ..गप्प ! थक गए – सो गए – फिर रविवार सुबह सुबह छ बजे ही उठ के गप्प …यह एक सुख है .. आनन्द है ! लेकिन परम आनंद तब है जब इस गप्प में किसी की ‘परनिंदा’ दिल खोल के की जाए – कोई खास – कोई पुराना मित्र – कोई नजदीक का रिश्तेदार – कोई सहकर्मी ..सच में ..ऐसा लगता है ..किसी ने दिल पर ‘बनफूल’ तेल लगा दिया हो …ठंडा – ठंडा सा एहसास !
हर मौसम में गप्प का मजा है ! जाड़े के दिन में बड़े पलंग पर रजाई के चारों कोने पर चार आदमी – चाय के बड़े मग को दोनों हाथ से पकड़ – गप्प पर गप्प ! थक गए – देर हो गयी – मन हल्का हुआ तब जा कर उठे ! गर्मी में ..छत पर ..एक तरफ से ढेर सारे चौकी – खटिया / सफ़ेद सूती वाला मच्छरदानी और मसनद …फिर बगल वाले चौकी पर लेटे / सोये ..किसी कजिन से गप्प …उस कजिन की परनिंदा जो अभी वहाँ नहीं है …मजा आ जाए …रात के दो बजे ..अब सोना चाहिए …कह के हलके मन से मसनद पर पैर चढ़ा गाढी नींद में ….फिर सुबह गप्प होगी !
किताब में लिखी चीज़ें ‘छुई’ हुई होती है ..जूठा सा लगता है ..जैसे किसी ने पहले भी उसे पढ़ा होगा …पर गप्प हमेशा ‘फ्रेश’ होता है ..ताजा होता है …कई भाव और सन्देश को लपेटे हुए ..किसी कोजी में ..गर्माहट के साथ !

~ 4 September / 2012 , Indirapuram