Archives October 2020

नवरात्र – ५ , २०२०

~ बात ठीक दस साल पहले की है । दशहरा की छुट्टी में हम सपरिवार पटना में थे । एक शाम एक गहरे मित्र भोजन पर आमंत्रित किए। उनके घर गया तो उनका दो चार साल का बेटा बहुत रो रहा था। बहुत। उसकी मां परेशान परेशान । थोड़ी देर बाद मेरी पत्नी ने उसे अपने गोद में लिया और हनुमान चालीसा पढ़ने लगी । देखते देखते वो शान्त ही नहीं हुआ बल्कि सो भी गया ।
मेरे मन में यही बात आईं की हनुमान चालीसा महज एक कविता है और कविता में इतनी शक्ति कहां से आई । सैकडो साल से उस कविता को करोड़ों लोग रोज अपनी श्रद्धा से उसका जाप करते है । श्रद्धा और जाप का असर है कि उस कविता में इतनी शक्ति है । श्रद्धा विश्वास पैदा करता है और जाप एक ख़ास तरह कि ऊर्जा ।
कुछ साल पहले एक मित्र से थोड़े दिनों बाद एक समारोह में मुलाकात हुई , मेरी व्यक्तिगत श्रद्धा उसके लिए अनन्त थी और जैसे ही मैंने उसे देखा , मुझे ऐसा लगा कि मेरे अन्दर एक ऊर्जा का संचार हुआ । और ऐसा मेरे साथ हर बार हुआ । उसके अन्दर कितनी शक्ति , मुझे नहीं पता लेकिन मेरे अन्दर उसके लिए अनन्त विश्वास था और शायद उस श्रद्धा और विश्वास का असर था कि मै क्षण भर में खुद के अन्दर ऊर्जा पाता था । बाद में , मैंने उसका नाम ही क्वांटा रख दिया था । हा हा हा – ऊर्जा का पैकेट :))
~ माता पिता इतने शक्तिशाली क्यों होते है ? खून के रिश्ते के साथ साथ एक विश्वास । कई दफा लोगों की अपेक्षा अपने माता पिता से इतनी हो जाती है उम्र के आखिरी पड़ाव तक उनसे शिकायत होती है । लेकिन इस विश्वास की शक्ति आप कहीं भी पैदा कर सकते हैं और कहीं भी पा सकते हैं । शायद यह पहली नजर का कमाल होता है जब आपका दिल नहीं बल्कि आत्मा स्वीकार करती है । शरीर खत्म हो जाता है , दिल टूट सकता है लेकिन आत्मा नश्वर है । और जहां आत्मा गवाही देता है , वहीं ईश्वर होता है । मुझे अन्य धर्मों का नहीं पता , जहां मेरा विश्वास है – वहीं मेरा ईश्वर है । लेकिन यह सिर्फ पहली नजर नहीं बल्कि कई बार लगातार एक बिलिफ सिस्टम में रहने से भी होता है । इस पर लेख बहुत लंबा हो जायेगा ।
~ लेकिन ऐसी कई घटनाओं की अनुभूति होना भी अपने आप में एक शक्ति है । इस शक्ति का एहसास तभी होगा जब आप ध्यान मग्न होंगे । कोई अंत्र मंत्र की ज़रूरत नहीं । इस नवरात्र आप नौवें दिन मुझसे आंख नहीं मिला सकते :)) इतनी इंटेनसिटी होती है कि यह सिर्फ और सिर्फ दुर्गा को शक्ति है ।
जहां साधक है , वहीं देवी है या जहां देवी है वहीं साधक है 🙏❤️🙏
: रंजन , दालान

नवरात्र – ४ , २०२०

~ प्रेम में बहुत शक्ति है । लेकिन हर किसी की चाह अनकंडीशनल प्रेम की होती है । हा हा हा । मुझे लगता है – यह प्रेम सिर्फ और सिर्फ मां से ही प्राप्त होता है लेकिन इसमें भी एक कंडीशन है – आपको उन्हीं के कोख से जन्मना होगा । हा हा हा । हां , कई दफा हमें ऐसा लगता है कि सामने वाला हमे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है लेकिन ऐसा प्रतीत होना भी गलत है । दरअसल , वह आपसे प्रेम तो कर रहा है लेकिन आपसे अपेक्षा भी रख रहा है । अब आप उसकी कसौटी पर नहीं उतरे तो वो आपसे बदला नहीं लेे रहा बल्कि माफ कर देे रहा है । इसका कतई मतलब नहीं कि वो आपसे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है ।
~ कहीं किसी फिलॉसफर को पढ़ा कि महिलाएं माफ तो कर देती है लेकिन पुरुष माफ नहीं कर पाते । वहीं , पुरुष भूल तो जाते है लेकिन महिलाएं भूल नहीं पाते । इस पर एक लम्बा चौड़ा लेख भी कुछ एक वर्ष पहले लिखा था । मुझे लगता है, उम्र के साथ पुरुष भी माफ करना जान जाते हैं । यह कोई उनके हॉर्मन बैलेंस का बात नहीं होता बल्कि उन्हें अब इस संसार से विदाई के द्वार आभास होने लगते है । पुरुष जानवर के नजदीक होते हैं , तमाम उम्र / जवानी तरह तरह कि लड़ाई लड़ते है । लड़ाई का मतलब मार पीट नहीं बल्कि द्वंद्व भी हो सकता है । स्त्रियां द्वंद्व में नहीं होती और शायद इसलिए वो पुरुषों की इस लड़ाई को समझ नहीं पाती । तमाम उम्र घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं का मन भी अन्दर की दुनिया / आंगन में ही होता है और तमाम उम्र पुरुष को कमरा में कैद कर दीजिए तो भी उसका मन बाहर की दुनिया में होता है । उदाहरण के लिए , मेरा पेट डॉग गूगल मेल है । दिन भर दरवाजे के पास बैठा रहता है कि जैसे गेट खुले और वो नजर बचा कर सीधे बाहर के प्रागंण में , जहां तक वो सूंघते सूंघते चला जाए :))
~ तो बात है प्रेम , माफी और भूलने की शक्ति । पुरुष को भूलने की शक्ति उसके ज़िन्दगी के सफ़र में एक वरदान है । अगर वो नहीं भूलेगा तो उसका सफर बीच किसी रास्ते अटक जायेगा । स्त्री के अन्दर माफ करने की शक्ति है वरना उसके साथ दुनिया में इतने जुल्म होते है कि वो बगैर माफ किए खुद खत्म हो जायेगी । पुरुष माफ करने लगे तो वो अपनी प्रकृति के हिसाब से लड़ाई हार जायेंगे और स्त्री भूलने लगे तो उसके मन की कोमलता ख़त्म हो जायेगी :))
~ लेकिन प्रेम तो सर्व शक्तिमान है । भावना के आगे सभी नतमस्तक हैं । गूगल / ट्विटर / या सोशल मीडिया के किसी भी अंग पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला शब्द ’ लव ’ है । इसकी क्षमता अनन्त है । इसके कई रूप है और हर सम्बन्ध का प्राण है । हालांकि रोमांटिक प्रेम एक ज़िद या अहंकार के साथ होता है जहां अलग अलग कंडीशन होते हैं । तभी इसे कभी पूर्ण प्रेम नहीं कहा गया । इन्द्रियों के आकर्षण से पैदा लिया प्रेम कब भटक जाए – कहना मुश्किल l
विशेष क्या लिखा जाए …मौसम में ठंड प्रवेश कर चुका है …देवी की कल्पना ही मन को प्रफुल्लित कर देती है …कभी साक्षात आ जाए तो क्या हो … :))
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ ३ , २०२०

Devi #Shakti #NavRatra :

~ शक्ति आती है , आपको छूती है , आपसे अच्छे या बुरे कर्म करवाती है और फिर वही शक्ति क्षीण हो जाती है । यह शक्ति किसी इंसान विशेष , परिवार , टोला या मुहल्ले या किसी समुदाय के साथ अटैच हो सकती है । लेकिन शक्ति के विलुप्त होने के बाद भी उसकी आभा अगले कई सेकेंड , मिनट , घण्टे, दिन, महीना , वर्ष , या दसक तक बरकरार रहती है जिसके नशे में पात्र भी रहते हैं और उसकी इज्जत अन्य भी करते हैं लेकिन पात्र को यह समझना होगा कि अब शक्ति जा चुकी है या शक्ति का प्रभाव खत्म हो चुका है ।
~ ईश्वर , प्रकृति के बाद तीसरी जो सबसे बड़ी शक्ति है – वो है समाज । इस समाज के गठन में हजारों साल लगे और विडम्बना देखिए कि यह अधिकांश लोग इसी समाज की शक्ति में फंस कर अपनी ईश्वरीय या प्राकृतिक शक्ति को खो बैठते हैं । जैसे आप ईश्वर और प्रकृति से ऊपर नहीं है , ठीक उसी तरह आप समाज से ऊपर नहीं है । लेकिन समाज की अपनी सीमा है । एक मित्र भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं , लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ कर लौटे हैं । एक दिन मैंने पूछा कि – आएं सर , लंदन के मेट्रो / ट्यूब में सफर करते वक्त भी आप खुद को आईएएस समझ तन के रहते थे , का ? आईआईटियन हैं सो मेरी बात का बुरा तो नहीं माने लेकिन झेंप गए । हा हा हा । फिर भी , आपको समाज की शक्ति को मानना ही मानना होगा । आप जितने लोग सामाजिक पटल पर सफल देखते हैं – वो कोई बहुत हाई आइक्यू के लोग नहीं होते , वो किसी शक्ति के उपासक नहीं होते । उनकी बस यही शक्ति होती है कि वो समाज के फॉर्म्युला को बखूबी जानते हैं और उसमें वो खुद को फिट करना जानते हैं । यह समाज कोई सरकार , संस्था या परिवार हो सकता है ।
और आप सारी समझ रख कर भी दांत चियारते रहते हैं । आपको समाज की प्रकृति को समझना होगा जो इंसानों की प्रकृति से बना है ।
~ लेकिन आपके अंदर एक और शक्ति होती है जो इस फॉर्म्युला को मानने से इन्कार करती है । जब आप अपने से ज्यादा स्थापित शक्ति को चैलेंज करेंगे तो आप या तो कुचल दिए जायेंगे या फिर आप विजेता बनेंगे । तीसरा कोई रास्ता नहीं है ।
हा हा हा …
नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …ईश्वर ने जो प्रकृति दिया है , उसकी शक्ति के साथ मस्त रहिए :))
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ २ , २०२०

~ अभी अभी दो चार दिनों पहले की बात है , हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के एक लेख में यह लिखा था कि अगर आप खुद को कमज़ोर महसूस कर रहे हैं , या डिप्रेशन में हैं या लो हैं फिर एक ऐसे मित्र की तलाश कीजिए जो आपके पूर्व में आपके बेहतरीन दिनों की याद करवाए ।
कहने का मतलब की शब्दों की ताकत । कल्पना कीजिए कि आपका कोई मित्र आपके लिए बढ़िया शब्द बोले , मन एकदम से प्रफुल्लित हो जाता है :))
अगर मेरे इर्द गिर्द कोई नहीं होता तो मै खुद के लिए ऐसे वातावरण तैयार कर लेता हूं । लेकिन यह एक आदत है – सामने वाले की खूबी को देखना और बोलना । बचपन का मेरा एक मित्र है , एकदम जान देने वाला दोस्ती । जब हमारी दोस्ती हुई थी , उस वक़्त उसके परिवार की वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन कालान्तर उसने बहुत पैसा कमाया । टीनएज में कम बुद्धि सो मैंने कुछ गलत शब्द इस्तेमाल कर दिए थे । आज तीस साल बाद भी उसको मेरे नकरात्मक शब्द याद है । कभी कभी वो चर्चा में उस बात को याद कर देता है और मै शर्मिन्दा हो जाता हूं । बात कुछ नहीं थी – मैंने उसे कुत्ता कह दिया था । हा हा हा । लेकिन यह बात उसे चुभ गई । ऐसा मेरे साथ भी हुआ है , मेरे एक सबसे अजीज ने बातों बातों मुझे बौना / बोनसाई पेड़ / सूखा हुआ पेड़ कह दिया क्योंकि मेरे व्यक्तित्व का सिर्फ एक पक्ष उन्हें नजर आया और उस दौरान वो दो अन्य नए मित्रों के लगातार संपर्क में थे । यह बात बुरी तरह चुभ गई । इस कदर चुभी की मै बहुत छटपटा कर , कुछ महीनों बाद खुद को अलग कर लिए । और कोई चारा नहीं था ।
साकारात्मक शब्द लोग भूल जाते हैं लेकिन आपके नकरात्मक शब्द लोगों को याद रहता है । अब मेरी उम्र के लोग जो जीवन के हर एक रंग को लगभग देख चुके हैं , जीवन के पहलू को समझ चुके हैं , ऊंच नीच देख चुके हैं – फिर क्यों तौलना ? अगर सामने वाला आपको तौल दिया तो ? तराजू तो सबके पास होती है , न ।
खैर , हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के उस लेख में यही था कि आस पास बढ़िया मित्र रखिए जो आपके लिए बढ़िया शब्द बोले । कल एक मित्र से करीब 20 साल बाद मिला , बातों बातों में उसने कह दिया – अब हमारी जिन्दगी में वक्त ही कितना रह गया है कि नया एक्सपेरिमेंट करें । बात उसने सही कही लेकिन थोड़ी नकरात्मक थी । पूरी रात बोझिल रहा ।
सीता गीता , राम श्याम इत्यादि सिनेमा देखें होंगे । कैसे शब्दों की चोट से इंसान को बंधुआ की तरह रखा जाता है । दुर्भाग्य देखिए समाज का , ऐसे नकरात्मक शब्द आपके सबसे अजीज द्वारा ही बोले जाते हैं या फिर साइकोलॉजी है कि उनके ही शब्द आपको चोट पहुंचाते हैं ।
नकरात्मक छूत की बीमारी है । कोरोना से भी खतरनाक । नकारात्मकता से गुजर रहे किसी इंसान से दो मिनट गप्प कर लीजिए , यह नकारात्मकता आपको घेर लेगी । इसकी अपनी ही एक ख़ास शक्ति है । इससे बचने के लिए खुद के मन के इम्यून सिस्टम को मजबूत करना होता है ।
खैर … आज रविवार का दिन । धूप खिली हुई है । बेटा बोल दिया कि आपका ग्रामर का सिर पैर का कुछ पता ही नहीं चलता 😐 आज से रेन और मार्टिन शुरू 😂 कभी कभी टोकना भी बढ़िया होता है :)) शब्दों का प्रभाव ❤️
नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएं …
: रंजन , दालान

नवरात्र – १ , २०२०

नवरात्र

सन 2012 से लगातार इस पटल पर शक्ति / देवी की विवेचना करता आया हूं । कुछ एक पाठक अवश्य से ही इसका इंतजार करते हैं । लेकिन यह अनुभव एक गोलचक्कर जैसा है – जहां से चले थे फिर वहीं पहुंच गए :))
लेकिन मै किसी मंज़िल की तरफ नहीं बढ़ा था । बस एक जिज्ञासा हुई और विवेचना शुरू किया । सबसे बड़ी खुशी तब हुई जब 2014/ 2015 / 2016 में मेरे कई लेख मुस्लिम समाज के भाई बहन पढ़े भी , लाइक भी किए और कमेंट भी । बड़ी रोचकता से वो पढ़े क्योंकि शक्ति की विवेचना धर्म से परे है ।
~ शक्ति का मूल उद्देश्य आत्मा की संतुष्टि है । किसी भी तरह कि शक्ति की । जैसे आपके पास बहुत सारा पैसा है तो अपना पासबुक देख पहली अनुभूति यह होनी चाहिए कि आपकी आत्मा प्रफुल्लित हो । लेकिन उस प्रफुल्लता के बाद इंसान संसार में फंस जाता है । संसार उससे उस शक्ति के प्रदर्शन की चाह रखता है । इसके कई वजह हो सकते हैं , शायद संसार में कई लोग उस खास शक्ति के बगैर होते हैं , जो आपकी शक्ति के सहारे खुद को शक्तिशाली महसूस करें इत्यादि इत्यादि ।
लेकिन यह नवरात्र एक ख़ास अनुभव की राते होती है । मुझे कर्मकाण्ड नहीं आता लेकिन अब मै इसके महत्व को समझता हूं । लेकिन जानता नहीं । मूल पूजा – केन्द्रित होना है । मन को बांधना । मन को किसी एक ख़ास जगह केन्द्रित रखना । प्रकृति के बहाव को वश में रखना ही योग है । और पूजा एक योग है । सारी शक्ति आपके मन में है ।
लेकिन शक्ति आयेगी , रुकेगी फिर वो आपको चंचल बनायेगी ही बनायेगी । और इसी चंचलता से बिखराव शुरू होगा और फिर एक दिन वो शक्ति फुर्ररर …हा हा हा । यह शक्ति किसी इंसान की हो सकती है , किसी समाज की हो सकती है , किसी गांव या टोला की हो सकती है ।
~ एक बात जो हमेशा स्त्री समाज कहता है कि पुरुष नवरात्र में देवी / दुर्गा की पूजा तो करते हैं लेकिन आम जीवन में वो आदर आस पास की महिला को नहीं देते । ” एक बात कहूंगा – पूजा किसी स्त्री की नहीं होती है , पूजा स्त्री के एक ख़ास रूप की होती है ” जो स्त्री आपकी प्रेमिका या पत्नी है , वो किसी की बेटी , बहन या मां भी है । जिसके हिस्से में जो रूप आयेगा , वह उसी रूप / नजर के हिसाब से उसे देखेगा । कभी किसी मां की बेइज्जती करते किसी पुत्र को देखा है ? अगर आवेश में कभी हुआ भी तो कौन ऐसी मां है जो अपने पुत्र को माफ नहीं की होगी ? फिर वही स्त्री अपने प्रेमी / पति को माफ क्यों नहीं करती ? बात नजर की है :))
खैर , दुर्गा स्त्री की वो भव्य रूप है जो पुरुष की कल्पना में होती है । सर्वशक्तिमान । कोई इन्हे मां रूप में देखता है तो कोई बेटी रूप में ।
~ मैंने सन 2015 में लिख दिया , दुर्गा को मै प्रेमिका रूप में देखता हूं । हुआ हंगामा । हा हा हा ।
~ पूजा भी अलग है । मै देवी के पास पुजारी रूप में नहीं जा सकता । घोड़े पर सवार उस राजकुमार की तरह जो देवी के पास गया , हाथ जोड़ प्रार्थना किया और उनका सारा आशीर्वाद पल भर में लिया और फिर घोड़े पर सवार आगे की ओर निकल पड़ा । यह कल्पना ही मेरे अन्दर रोमांच भरती है । उस एक क्षण में पूरे जिन्दगी की ऊर्जा मिलती है ❤️
आप सभी को नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …
: रंजन , दालान , 2020 .

गांधी …

आज से पांच सौ साल बाद कोई विश्वास नहीं करेगा – कोई इंसान महात्मा बन कर – एक धोती में खुद को लपेट कर – वर्षों तक अपने विश्वास को कायम रखा ! “मेरे अन्दर एक सच है और वही सच मेरी लड़ाई को जिंदा रखेगा” – शायद यही जीवन दर्शन रहा होगा – महात्मा गांधी का ! बैरिस्टर थे – बड़े आराम से ज़िंदगी कट रही थी – कट जाती ! एक घटना ने उनके पुरे जीवन दर्शन को बदल दिया – किस कदर उनकी अंतरात्मा को चोट पहुँची होगी – कल्पना कीजिए – दक्षिण अफ्रीका का वो रेलवे स्टेशन – और गांधी को ट्रेन से उतार – उनके सामान को फेंक देना – गांधी ने एक दिन नस्लवादी विचारधारा को ही – इस देश से उखाड़ फेंका !
इंसान के रूप में जन्मे – खुद को महात्मा बनाए – अन्दर की जिद को बरकरार रखे – ‘अहिंसा’ को जीवित रखे – उनकी ‘अहिंसा’ को बहुत गलत ढंग से अपनाया गया है !
आसान नहीं है – उनकी बातों को सचमुच में अपने जीवन में उतार देना – एक बात तो है – इस देश में या कहीं भी – वही हज़ारों वर्ष तक जीवित रहेगा – जिसकी जीवन दर्शन ‘गंगोत्री’ की तरह साफ़ हो – यहीं दिक्कत होती है – जीवन के सफ़र में खुद की गंगोत्री कब मैली होकर कितने ज़हर फैलाती है – मालूम नहीं !
शायद मेरी नज़र में – वो कहते हैं – सामने वाले के अहंकार को जरुर ध्वस्त करो – ध्यान रहे – उसके अहंकार को ध्वस्त करते वक़्त – उसकी अंतरात्मा को न चोट पहुंचे – अगर वो जिद्दी है – फिर एक और महात्मा बन जाएगा – तुम्हारे वजूद को ही उखाड़ फेंकेगा !
गलत और सही कुछ नहीं होता – जो आपके मन में मजबूती से बस जाए – वही सही है – बशर्ते आप ‘महात्मा’ की तरह ‘जिद’ वाले हों ..:))
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 02.10.2013