Archives December 2020

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस :))

चाय पर चर्चा और आज अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस है 🙂 ।
माँ बहुत चाय पीती थी । हर वक़्त चाय चाहिए । सो बहुत बचपन से हम दोनों भाई बहन को भी चाय चाहिए होता था । चाय के चक्कर मे बहुत कुछ छूटा है – परीक्षा तक भी – तो उसी चाय के चक्कर मे एक आध हसीन मुलाकात भी हुई है । हा हा हा ।
एक मध्यम वर्ग जिस हद तक के चाय के ब्रांड को अफोर्ड कर सकता है – किया हूँ । लेकिन दार्जिलिंग चाय बेहद पसंद ।
आप जितने रईस , चाय परोसने और उसको रखने के उतने ही रईस ढंग । और चाय परोसने का अंदाज़ आपकी कुलीनता का परिचय भी है । चाय रोमांस है । चाय की चुस्की विचार है । मेरी खुद की कई रोमांटिक लेखनी में दार्जिलिंग चाय जरूर से होती है । मोदी जी खुद “चाय पर चर्चा” से सत्ता में आये ।
चाय की बात हो तो चाय के कप प्याले की भी बात हो । लालू जी मंत्री बने तो चुक्कड़ / मिट्टी वाले कप फिर से फैशन में आये । वरना हम तो स्टील वाले कप में भी चाय पिये है , जिससे होंठ जल जाते थे । कोजी में ढके चाय के सेट और जाड़े की सुबह लॉन में आसाम बेंत की कुर्सियों पर धूप से पाश्मीना शाल में लिपटी पीठ को सेंकना ही असल रईसी है या फिर गाँव मुहल्ले के चौक पर चाय के दुकान पर चाय पीते पीते गप्प में ही किसी की भी सरकार गिरा देना ही बादशाहत है ।
चाय के साथ अलग अलग कॉम्बिनेशन है । चाय और सुट्टा – कॉलेज के छोकरे , अपनी पुरानी जीन्स – बाएं हाथ मे चाय और दाहिने में सुट्टा और एक तीखी निगाह अपनी क्रश पर ।
चाय और बिस्कुट । भारत मे ब्रिटेनिया का मेरी बिस्कुट मध्यम वर्ग की शालीनता का परिचायक है । कहीं कहीं चाय के साथ ‘दालमोट’ भी 😉 भर मुठ्ठी दालमोट और फिर चाय । हा हा हा ।
चाय और रोटी भी सुबह का बेहतरीन नाश्ता होता है । कुछ लोगों को हर वक़्त चाय चाहिए होता है । सुबह नित्य क्रिया के पहले चाय , दाढ़ी बनाने के साथ चाय । नहाने के बाद चाय । दिन के भोजन के बाद चाय । बस चाय चाय और चाय ।
रेल यात्राओं में भी चाय का महत्व है । गरम चाय गरम चाय करते हुए आपकी बोगी में बेचने आया हुआ वो चाय वाला । नही मन करते हुए भी – एक कप लाना । सहयात्री को भी देना और उसके चाय के पैसे खुद देना ही ‘सामंतवाद’ है – पल भर के लिए ही सही 😉
कलकत्ता में महज चार आने का भी चाय पिया हूँ और आज गली मोहल्ले की चाय दस रुपये हो गयी है ।
रुकिए …एक कप चाय पीकर आते हैं :))
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 15.12.2018

सरौता …कहां भूल आए … :))

” सरौता कहां भूल आए …प्यारे नंदोइया “
~ पद्म विभूषण गायिका स्व गिरिजा देवी जब इस गीत को बेहद सलीके अंदाज़ से गाती थी ,समा बन्ध जाता था :))
हम शायद उस पीढ़ी से आते हैं , जहां बचपन कि स्मृतियों में सरौता बसा हुआ है । पुरुष के महिन चाल चलन का यह भी एक परिचायक होता था कि वो कितनी महिनी से अपने सरौता से सुपारी काटता है । बाएं हाथ में सुपारी और दाहिने हाथ में सरौता । बेहतरीन सफेद धोती और मलमल का कुर्ता । मुख में पान , लाल होटों से रिसता पान का पिक । शीशम के बड़े कुर्सी पर बैठा ।
बाबा के पास हर तरह का सरौता होता था । छोटा वाला पॉकेट में । एक दादी ( दीदी ) के दराज में । एक दो इधर उधर । खानदान की परम्परा – सरौता से सुपारी काटना पहले सीखो :)) उस सरौता से उस बचपन में सुपारी काटते वक्त जो एहसास होता था , वह सचमुच में सुखद होता था ।
एक बहुत गलत परम्परा भी थी – दरवाजे पर इस जाड़े बड़े बुजुर्ग जब अपने अपने शाल को ओढ़ … दे गप्प …दे गप्प करते थे । इसी बीच हम बच्चों को ऑर्डर होता था – जाओ आंगन से पान बना कर लाओ । लोग अन्य धूम्र पान में बड़े बुजुर्ग का लिहाज करते थे लेकिन पान के मामले में ऐसा कुछ नहीं था । दरवाजे पर बैठे बाबा , चाचा सभी एक साथ पान की फरमाइश कर देते थे । किसी को पीला पत्ती तो किसी को काला किसी को काला – पीला दोनों । यहां काला मतलब – लखनउ वाला पंजुम और पीला मतलब मुजफ्फरपुर का रत्ना छाप 300 . पान बनाते वक़्त चुना और कत्था का सही मिश्रण । वक़्त लगा था – कई फटकार के बाद सीखने में । हर एक कुर्सी के बगल में , पीतल का दो फीट ऊंचा पीकदान । नक्काशी किया हुआ ।
घर की महिलाएं भी पान खाती थी । पुरुषों के जरदा खत्म हो जाने पर , महिलाओं से जर्दा मांगा जाता था ।
पन्हेरी टोला था । वहां से एक बुजुर्ग हर सुबह बाबा के पान वाली डलीया में पान रख जाते थे । पुराने सड़े पान फेंक दिया जाता था । हर सुबह का रिवाज ।
तीसरी कसम का एक गीत है – पान खाए सैयां हमारो …मलमल के कुर्ते पर छींट लाल लाल …तब शायद यही गीत पुरुष का परिचायक होता था । अब तो सीधे वोदका और मालूम नहीं क्या लिखा जाता है ।
कहते हैं – जब तक राजकपूर जिंदा होते थे और उनके पार्टी के अंतिम पेशकश ” मगही पान ” होता था :))
खैर , बात सरौता से शुरू होकर कहां आ गई और आप भी पूरा पढ़ लिए ।
” पान खाए सैयां हमारो …मलमल के कुर्ते पर छींट लाल लाल ” 🙂
है न बढ़िया गीत …
~ रंजन / दालान / 09.12.2019