Archives 2020

ये जो अक्टूबर है .. न …

ये जो ऑक्टोबर है न …इसे शरद का वसंत भी कहते है । गोधुलि की बेला के बाद से ही हल्की ठंड की एहसास शुरू हो जाती है । तुम्हें पता है – गोधुलि की बेला किसे कहते हैं ? सूरज के ढलते ही चरवाहे अपने गाय के साथ वापस लौटते है …एक तरफ़ सूरज ढल रहा होता है और उसकी किरणों के बीच गाय के ख़ुरों से जो धूल उड़ती है …बड़ी पवित्र नज़र आती है । उसे ही गोधुलि कहते हैं …:)) हाँ …गाय के गले में बंधी घुँघरू की आवाज़ भी ..:))
पर तुम्हारे शहर में तो बड़ी कोठियाँ और लॉन होते हैं । ऑक्टोबर की शाम – बड़े लॉन में – मखमली घास पर एक बेंत की कुर्सी जिस पर तुम और …और एक कुर्सी ख़ाली …बरामदे में एक मध्यम रौशनी …और अंदर उस बड़े ड्रॉइंग रूम से बिलकुल उस मध्यम रौशनी की तरह बोस के स्पीकर से सैक्सोफ़ोन की धुन …बेहतरीन दार्जिलिंग चाय …
पर वो एक कुर्सी ख़ाली …बेंत वाली …लॉन के बीचोबीच …
अब तो ठंड भी लग रही होगी …कहो तो कुर्सी बरामदे में रखवा दूँ …उस अकेली कुर्सी को वहीं लॉन में अकेला छोड़ ….
~ RR / दालान / 25.10.2016

नवरात्र ~ ९ , २०२०

देवी

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
~ आज महानवमी और कल विजयदशमी । ढेरो शुभकामनाएं । देवी पूजन के 9 रात और शक्ति के एक रूप रचनात्मकता की पूजा के मेरे भी 9 साल ।
ढेरो सवाल आते हैं । सबका ज़बाब मुश्किल है । उम्र , अनुभव और महसूस करना – शायद इन्हीं के इर्द गिर्द आपके सभी सवाल के जवाब है ।
लेकिन मेरा मानना है कि जब तक देवी खुद आपको नहीं चुनेंगी , आप इनके रहस्य को नहीं समझ पायेंगे । मै बात देवी की कर रहा हूं ना की शक्ति की । मेरी नजर में , शक्ति पात्र के साथ है और देवी अपने पात्र के पास :)) शक्ति बिना शिव के नहीं और देवी बिना साधक के नहीं :))
इसी 9 साल में मैंने दुर्गा सप्तशती को छोड़ अनेकों दुर्गा स्तुति के संस्कृत में लेखनी पढ़े जिन्हें आप श्लोक भी कह सकते हैं , गूगल केे कारण ट्रांसलेशन भी मिला । कुल मिला कर यही लगा कि जितने भी साधक रहे वो मूलतः देवी की प्रशंसा ही किए । पूजा की शुरुआत उन्होंने मां रूप से की और अंतोगत्वा देवी की आराधना वो प्रेमी रूप में करने लगे । अब आप ललिता सहस्रनाम को ही पढ़ लीजिए , साधक देवी के इतने नजदीक हो गए की वो देवी के शारीरिक अंगों की स्तुति करने लगे हैं । यह मां रूप में असम्भव है । लेकिन यह इजाजत भी देवी हर किसी को नहीं देे सकती । यह बिल्कुल एक स्त्री और पुरुष के उस प्रेम की तरह है जो आत्मा से शुरू होकर मिलन तक जा पहुंचता है । यह आसान भी नहीं है । कठोर साधना । जब तक भाव नहीं उत्पन्न होगा – प्रेम का कोई भी रूप व्यर्थ है । आप कहां तक डूबते हैं , यह आपकी साधना तय करेगी और साधना की पराकाष्ठा आपकी आत्मा में पनप रहे पूजा रूपेण प्रेम से होगी ।
लेकिन यह एक अलग ही दुनिया है । इसका अंत कहां है – किसी को नहीं पता । नशा नहीं कह सकते क्योंकि नशा भी कभी न कभी टूटता है । यह श्रृंखला कभी नहीं टूटता । बचपन में साधकों के बारे में सुनता था । अब महसूस किया हूं । गृहस्थ जीवन में भी साधना सम्भव है और शायद इसी लिए नवरात्र का जन्म हुआ ।
लेकिन अंतोगत्वा मांगना बहुत मुश्किल है और वो भी खुद के लिए । हां , पूजा के बाद करबद्ध इंसान देवी के सामने खड़ा हो सकता है , अपने परिवार , मित्र के लिए मांग सकता है । लेकिन खुद के लिए …मुश्किल है । जो मिल जाए वही परसाद है । नहीं मिला तो पास रहने का वो क्षण ही परसाद है ।
क्योंंकि साधना के बाद साधक भी देवी के समकक्ष हो जाता है – इस भावना के साथ की अगर तुम शक्ति हो तो हम शिव है 🙏 क्षमाप्रार्थी हूं । और समकक्षों से मांगा नहीं जाता …जो मिल जाए … उसे सहज भाव से स्वीकार किया जाता है …
कुछ तो मिला ही होगा …एक नज़र ही सही । और ये क्या कम है कि एक नजर पड़ गई :))
सभी को महानवमी की ढेरो शुभकामनाएं 🙏
: रंजन , दालान 🙏❤️🙏

नवरात्र ~ ८ , २०२०

~ असंख्य शक्तियां है । आप यह नहीं कह सकते कि फलाना शक्ति ही महत्वपूर्ण है । फिर भी , हम पुरुषों को पद को लेकर बड़ी लालसा होती है । क्योंकि हम बाहरी दुनिया यानी समाज में उठते बैठते हैं । पुरुषों में यह आचरण जेनेटिक है । मुहल्ले में दुर्गा पूजा हो रही है , नवयुवक मंडली बना तो सबसे पहले पद पर फैसला होगा । हा हा हा । मुन्ना को संयुक्त सचिव पद नहीं मिला तो वो विद्रोह कर दिया । हा हा हा । सामाजिक नेतृत्व भी व्यक्तित्व/ कद के हिसाब से पद बांटता है । कई दफा यहां भी झोल । फिर भी , पद का बहुत महत्व है । स्त्रियां भी इसे ही प्रमुख समझती है । मंत्री जी का भतीजा है तो वही बढ़िया प्रेमी होगा । एक भोजपुरी गाना है – हमरा पीछे लागल बा मोछमुंडा , हीरो होंडा लेे के – लईका के नेता ह , नेता के लईका ह । मतलब की – मेरे पीछे एक एक लड़का पड़ा हुआ है जो हीरो होंडा चलाता है , फिर वो खुद विद्यार्थियों का नेता है और सबसे अच्छी बात की वो किसी नेता का पुत्र भी है । हा हा हा । स्त्री मनो विज्ञान को भी किसी पुरुष ने गीत का शब्द दिया । लेकिन यह सच है ।
~ लेकिन पुरुष का कर्तव्य हैं कि वो अपने सामाजिक पद के हिसाब से अपने कद को बढ़ाए । अब बन गए ससुर और दिन भर आंगन में खटिया पर बैठे रहिएगा , कुछ दिन बाद आप अपनी इज्जत खो बैठेंगे । जिस दिन ससुर बने , उसी दिन आंगन का त्याग कर दालान पर झोला डंडा लेकर बैठ जाइए । आपका कद भी सुरक्षित और पद की गरिमा भी । अब आप रट रटा के बहुत बडा़ अफसर बन गए और दिन भर सोशल मीडिया पर गीत , नाक में क्लिप लगा के , मउगा टाइप । एक दो दिन बाद आप अपना आकर्षण खो बैठेंगे । बहुत पुरुषों की आदत होती है , पत्नियों के सखी सहेली के बीच हाई फाई बात करने की । पहला दिन तो बढ़िया लगता है – मेरी दोस्त के पति कितने हंसमुख है , कोई ईगो नहीं इत्यादि इत्यादि और एक आप हैं इत्यादि इत्यादि । इसी बीच कुछ दिन बाद कोई हाई आइक्यू महिला रही तो बोल देगी – फलनवा के पति भारी मउग है , मुंह तक्का टाइप 😂
~ पद मिले तो अपने कद का बदलाव कीजिए । योग कीजिए । प्रकृति के बहाव पर नियंत्रण रखिए । योग का मतलब नहीं कि अर्ध नग्न फोटो इंस्टाग्राम पर डालिए – टॉय बॉय बनने के चक्कर में 😂 किसी को सुष्मिता सेन के टॉय बॉय का नाम नहीं पता । कोई अर्जुन कपूर को इज्जत नहीं देता है । मिस्टर प्रियंका चोपड़ा बउआ लगता है 😂
~ बड़ी मुश्किल से पद मिलता है । भारत में भेड़िया धसान है । लोग किसी भी पद के लिए, कोई भी राजनीति चल देते हैं । माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला लिखते हैं , माइक्रोसॉफ्ट जैसी संस्था के वीपी किसी भी वक्त एक दूसरे के पीठ पर छुरा चलाने को तैयार थे । वो अमरीका है , इसका मतलब नहीं कि वहां के पुरुष अपने प्रकृति को भूल जाएं :))
बाकी …आज महागौरी का दिन 🙏❤️🙏
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ ७ , २०२०

~ आज सप्तमी है । बिहार में देवी का पट खुल गया होगा । सर्वप्रथम देवी पूजन हमारे घर की बहन , बेटी और बहु करेंगी । देवी का आगमन और देवियों के द्वारा स्वागत ❤️
सब कुछ तो हमारी सभ्यता से ही है । जब कोई दुल्हन प्रथम बार ससुराल आती है तो उसका स्वागत भी घर की महिलाएं ही करती है :)) कितनी अचरज की बात है कि हिन्दू धर्म के जितने भी पर्व और त्योहार है , सभी किसानों के समय को या उनके सुविधा अनुसार ही बनाए गए हैं । किसान मूल हैं ।🙏
~ मैंने देखा है लोग अपनी शक्ति से ज्यादा दूसरों की शक्ति को तौलते हैं । यह उतना उचित नहीं है । खुद की शक्ति को पहचानिए । दो वक़्त की रोटी और एक छत के बाद , इस संसार में किसी से डरने की जरूरत नहीं है । अपना पॉजिटिव प्वाइंट समझिए । अपने खुद के प्रकृति को समझिए । आप अव्वल दर्जे के फ्रॉड हैं तो यह भी एक पॉजिटिव प्वाइंट है लेकिन उस शक्ति का आदर कीजिए । हम जैसे साधुओं को जान बक्श दीजिए । रोड किनारे , स्टेशन पर , मेला में फ्राउडगिरि कीजिए । हम जैसे लोग आपको प्रणाम कर के आगे बढ़ जायेंगे। यह मेरा स्वभाव है , आप चोर हैं , चोट्टा है , फ्रॉड है – हम अपनी मूल प्रकृति के अनुसार आपको नहीं टोकेंगे जब तक कि आपकी चोर कटाई से हमको कोई फर्क नहीं पड़ता । समाज है – हर तरह के लोग है , आप भी रहिए । खुशी खुशी अपना चोर और चोट्टा के ग्रुप में ।
हमको अपना पॉजिटिव प्वाइंट पता है । निगेटिव भी पता है । किसी का आठ आना भी नहीं मारेंगे । पैसा के मामले में पक्का ईमानदार । अब खूबसूरती नजर के सामने से गुजरेगी तो कनखिया के एक नज़र देखेंगे ही देखेंगे । अब वो एक घड़ी , पेन या कोई हम उम्र बेमिसाल हो । मूल प्रकृति है । पढ़ने में मन नहीं लगा तो कभी किसी को खुद को होशियार समझ कर बर्ताव नहीं किया । भाई , हम बकलोल और आप होशियार । अब आगे बढ़िये । अब बाप दादा हाथी रखता था तो वो लिखेंगे ही लेकिन अपना पटल पर । भांट की तरह दरवाजे दरवाजे नहीं । हे हे …मौसी जी , अहं बड नीक छीये । मार साला मऊग के । किसी की यही प्रतिभा । गीत गाते गाते अंगना में ढूक गए । हा हा हा । भाई , ई सब प्रतिभा हम में नहीं 🙏
तो घुमा फिरा के कहने का मतलब की आप अपने मूल प्रकृति को समझिए । मूल शक्ति वही है । आपका स्वभाव । वहीं से आपको इज्जत मिलेगी या बेइज्जती । बड़का फ्रॉड तो बड़का फ्रॉड के समूह में जाए – बहुत इज्जत मिलेगी । साधु के ग्रुप में जायेंगे तो बेइज्जती मिलेगी । बड़का साधु हैं तो साधु के समाज में रहे , वहीं इज्जत मिलेगी । फ्रॉड के समाज में जायेंगे तो गाली मिलेगी । देख साला साधु को , बैठ कर खाता है । हा हा हा ।
क्योंकि शक्ति का एक मंज़िल – सामाजिक प्रतिष्ठा भी है :))
: रंजन , दालान

मेरा गांव – मेरा देस – मेरा दशहरा

हर जगह का ‘दशहरा’ देखा हूँ 🙂 मुज़फ्फ्फरपुर –  रांची – पटना – गाँव – कर्नाटका – मैसूर – नॉएडा -गाज़ियाबाद 🙂
गाँव में बाबा कलश स्थापन करेंगे ! हर रोज पाठ होगा ! बाबा इस बीच दाढ़ी नहीं बनायेंगे ! पंडित जी हर रोज सुबह सुबह आयेंगे ! नवमी को ‘हवन’ होगा ! दशमी को मेला ! दशमी को हम सभी बच्चे मेला देखने जाते थे – हाथी पर् सवार होकर 😉 ( सौरी , मेरी हाथी वाली किस्से पर् कई भाई लोग नाक – भों सिकोड़ लेते हैं )…महावत को विशेष हिदायत …बगल वाले गांव के सबसे बड़े ज़मींदार के दरवाजे के सामने से ले चलो …जब तक मेरा हाथी उनका पुआल खाया नहीं …तब तक मन में संतोष कहाँ …😉  गाँव से दूर ब्लॉक में मेला लगता था ! जिलेबी – लाल लाल 🙂 मल मल के कुरता में ! फलाना बाबु का पोता ! कितना प्यार मिलता था ! कोई झुक कर सलाम किया तो कोई गोद में उठा कर प्यार किया ! किसी ने खिलौने खरीद दिए तो किसी ने ‘बर्फी मिठाई’ ! तीर – धनुष स्पेशल बन कर आता था ! लगता था – हम ही राम हैं 🙂 पर् किस सीता के लिए ‘राम’ हैं – पता नहीं होता ! 
रांची में याद है  नाना जी के एक पट्टीदार वाले भतीजा होते थे – एच ई सी में – हमको मूड हुआ – रावणवध देखने का – ट्रक भेजवाये थे ! ट्रक पर् सवार होकर हम ‘रावण वध’ देखने गए थे ! ननिहाल से लेकर अपने घर तक – दुश्मन से लेकर – दोस्त तक – ‘भाई ..बात साफ़ है ….मेरा ट्रीटमेंट एकदम ‘स्पेशल’ होना चाहिए …अभी भी वही आदत है …जहाँ हम हैं ..वहां कोई नहीं .. 😛
मुजफ्फरपुर में ‘देवी स्थान’ ! बच्चा बाबु बनवाए थे – सिन्धी थे – पर नाम ‘बिहारी’ ! अति सुन्दर – दुर्गा की प्रतिमा  ! वहाँ से लेकर कल्याणी तक मेला ! पैदल चलते चलते पैर थक जाता था 🙁 चाचा जैसा आइटम लोग पीठईयाँ कर लेता 🙂 फिर बाबू जी एक आर्मी वाला सेकण्ड हैंड जीप ले लिए ! पूरा मोहल्ला उसमे ठूंसा जाता ! फिर रात भर घूमना 🙂 झुलुआ झुलना ! कुछ खिलोने – चिटपुटिया बन्दूक  !  उस ज़माने में दुर्गा पूजा के अवसर पर् – ओर्केस्ट्रा आता था ! शाम से ही आगे की कुर्सी पर् बैठ जाना और प्रोग्राम शुरू होने के पहले ही सो जाना 🙂 पापा मोतीझील के पूजा मार्किट से एक हरे रंग का ‘एक्रिलिक’ का टी शर्ट खरीद दिए थे – तब वो पी जी ही कर रहे थे – मोहल्ला के सीनियर भईया लोग के साथ घुमने गए थे – बहुत साल तक उस हरे रंग के टी शर्ट को ‘लमार – लमार’ के पहिने ..:)) 
पटना आ गया ! विशाल जगह था ! बड़ा ! माँ – बाबु जी घूमने नहीं जाते ! कोई स्टाफ साथ में ! भीड़ ही भीड़ ! मछुआटोली आते आते – लगता कहाँ आ गए ! तब तक आवाज़ आती – अमूल स्पेय की दुर्गा जी – पूरा भीड़ उधर ! ठेलम ठेल ! ये लेडिस के लाईन में घुसता है ? हा हा हा हा ! उफ्फ्फ …बंगाली अखाड़ा ! नवमी को दोस्त लोग मिलता – कोई बोलता – फलाना जगह का मूर्ती कमाल का है – फिर नवमी को ..वही हाल ! 
 गाँधी मैदान और पटना कौलेजीयट में तरह तरह का प्रोग्राम होता – पास कैसे मिलता है – पता ही नहीं था ! गाँधी मैदान गया था – महेंद्र कपूर आये थे ! देख ही लिए 🙂 एक बार मूड हुआ ‘गाँधी मैदान’ का रावण वध देखने का ! एक दोस्त मेरे क्लास का ही – हनुमान बना था – राम जी के साथ जीप पर् सवार था ! इधर से बहुत चिल्लाये – नहीं सुना 🙂 एक बार गए – फिर दुबारा नहीं गए ! बाद में छत पर् पानी के टंकी पर् चढ  कर देखने का एहसास करते थे 🙂
थोडा जवानी की रवानी आयी तो सुबह में – सुबह चार बजे ..:)) जींस के जैकेट में ….बाल में जेल वेल लगा के …जूता शुता टाईट पहिन के …:)) आईक – बाईक पर ट्रिपल सवारी …पूरा पटना रौंद देते थे …
नॉएडा आ गए ! बंगाली लोग का एक मंदिर है – कालीबाड़ी ! वहाँ जरुर जाते ! नवमी को मोहल्ले में ही ‘बंगाली दादा’ लोग पूजा करता था ! जबरदस्त ! अब यहाँ एकदम एलीट की तरह ! मल मल का कुरता ! बेटा भी ! दुर्गा माँ को साष्टांग ! हे माँ – इतनी शक्ति देना की ……….! फिर प्रोग्राम ! रविन्द्र संगीत और नृत्य ! ये लोग बड़े – बड़े कलाकार बुलाते हैं – कभी कुमान शानू तो कभी उषा उथप ! गाना साना सुने ! ढेर बंगाली दादा लोग हमको ‘बिहारी बाहुबली’ ही समझता था – सो इज्जत भी उसी तरह ! पर् अच्छा लगता था !

रंजन ऋतुराज – इंदिरापुरम !

07.10.2010

दस साल पुराना लेख है :))

नवरात्र ~ ६ , २०२०

~ खुद के आनंदित होने के बाद शक्ति का प्रमुख उपयोग रक्षा करना है । और शायद इसी रक्षा भाव से शक्ति की आराधना और स्थापना होती है । अगर देवी पूजन को देखें तो कई बार पर्वत और पहाड़ों पर घिरे गांव , टोले या कबीला में बहुत ही तीव्र भावना से होती है । शायद वो जगह प्राकृतिक आपदाओं से घिरे होते होंगे और खुद की रक्षा के लिए देवी की स्थापना । शायद यहीं से कुल देवी की स्थापना और पूजने की भाव निकलती होगी ।
लेकिन – शक्ति रक्षा करेगी या विपदा लायेगी , यह उसके पात्र की प्रकृति पर निर्भर करेगा । शक्ति का रूप पात्र के रूप से बदल जायेगा । जैसे मुख्यमंत्री नीतीश भी हैं और मुख्यमंत्री लालू भी थे , अब मुख्यमंत्री कि शक्तियों का उपयोग किस दिशा में होगी यह पात्र का व्यक्तित्व तय करेगा । जैसे गंगा कहीं बाढ़ लाती है तो वही गंगा कहीं उपजाऊ मिट्टी भी लाती है और वही गंगा फसलों को पानी भी देती है , अब गंगा तो सब जगह है लेकिन गंगा का आचरण बदल जायेगा , यह आचरण उसके बहाव के जगह पर निर्भर करेगा । गंगोत्री और कानपुर – दोनो जगह एक ही गंगा है लेकिन पानी अलग है ।
परिस्थितियां भी पात्र के रूप को बदल देती है । लेकिन सामाजिक परिस्थिति से आया बदलाव बदल भी सकता है । लेकिन जो ईश्वरीय देन है , वह बदलना मुश्किल है । वो कुछ समय बाद तेज होकर निकलेगा ही निकलेगा । अब यह तेज आपके लिए घातक है या फलदायक है , यह निर्भर करेगा कि शक्ति के सामने आप किस कोण पर खड़े हैं ।
आज नहीं बल्कि कई युगों से बढ़िया गुरु , स्कूल , कॉलेज इत्यादि इसलिए बनाए गए की वहां से निकले शक्तिशाली लोगों का पात्र गठन बढ़िया हो सके और कालांतर जब उनके अंदर सामाजिक शक्ति का समावहन हो तो पात्र अपनी मजबूती से उस शक्ति को समाज हित में प्रयोग कर सके ।
लेकिन सब फेल हो जाता है । जो द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु वही द्रोणाचार्य दुर्योधन के गुरु । ज्ञान की असीम सीमा लांघने वाले रावण भी अपनी मूल प्रकृति से नहीं बच सके । उसी घर , रहन सहन और भोजन के साथ विभीषण का चरित्र अलग था । दुर्भाग्य देखिए – राम भक्त होकर भी किसी हिन्दू ने अपने पुत्र का नाम विभीषण नहीं रखा और इतना ज्ञान के बाद भी रावण नाम का कोई दूसरा नाम नहीं हुआ ।
~ खैर , बात ईश्वरीय देन पात्र के बनावट और उसके अन्दर की शक्ति की है । पात्र के गठन पर बहस होनी चाहिए और समाज के द्वारा उस पात्र की विषमताएं कम करनी चाहिए । लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और अंतोगत्वा हम ईश्वरीय देन चरित्र पर ही आधारित होकर शक्ति के उस वाहक के हिसाब से शक्ति का उपयोग या दुरुपयोग झेलते हैं ।
साथ साथ यह मान कर चलना होगा कि हर तरह कि शक्ति किसी एक ख़ास के पास नहीं हो सकती । यह एक प्यास है और यह प्यास कालान्तर एक कुंठा बन के भी रह जाती है । मेरे पास पैसा है तो राजनीति भी मेरे पॉकेट में होनी चाहिए इत्यादि इत्यादि । यह सोच गलत है । जिस दिन यह सोच आपके अंदर आयेगी उसी रोज से आपकी प्रमुख शक्ति का विनाश शुरू हो जायेगा । या फिर शक्ति बली मांगती है । दोनो बात सच है । आध्यात्मिक शक्ति तो मांगती ही मांगती है । यह बस अनुभव की बात है कि आपने बलि पर क्या चढ़ाया ।
लेकिन आम गृहस्थ के लिए किसी एक ख़ास प्रमुख शक्ति के सहारे जीवन काटना सबसे उपयुक्त है । बहुत छेड़ छाड़ में , वह शक्ति आपको ही तंग करना शुरू कर देती है । यह बात बहुत महत्वपूर्ण है – इसको गौर से सोचिए । या फिर पात्र की कमजोरी के कारण शक्ति उसे विचलित कर देती है ।
शायद इसी लिए हमारे समाज में एक मिश्रित जिन्दगी की शैली को प्रमुखता दी गई है । थोडा़ अध्यात्म हो तो थोडा़ संसार भी हो । धन हो तो दान का साहस भी हो ।
नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …कल हमारे बिहार में देवी का पट खुल जायेगा । हालांकि बंगाल में पहले से ही देवी का पट खुल जाता है । मेरे बिहार में सप्तमी के रोज ।
शुभकामनाएं ….
: रंजन , दालान

नवरात्र – ५ , २०२०

~ बात ठीक दस साल पहले की है । दशहरा की छुट्टी में हम सपरिवार पटना में थे । एक शाम एक गहरे मित्र भोजन पर आमंत्रित किए। उनके घर गया तो उनका दो चार साल का बेटा बहुत रो रहा था। बहुत। उसकी मां परेशान परेशान । थोड़ी देर बाद मेरी पत्नी ने उसे अपने गोद में लिया और हनुमान चालीसा पढ़ने लगी । देखते देखते वो शान्त ही नहीं हुआ बल्कि सो भी गया ।
मेरे मन में यही बात आईं की हनुमान चालीसा महज एक कविता है और कविता में इतनी शक्ति कहां से आई । सैकडो साल से उस कविता को करोड़ों लोग रोज अपनी श्रद्धा से उसका जाप करते है । श्रद्धा और जाप का असर है कि उस कविता में इतनी शक्ति है । श्रद्धा विश्वास पैदा करता है और जाप एक ख़ास तरह कि ऊर्जा ।
कुछ साल पहले एक मित्र से थोड़े दिनों बाद एक समारोह में मुलाकात हुई , मेरी व्यक्तिगत श्रद्धा उसके लिए अनन्त थी और जैसे ही मैंने उसे देखा , मुझे ऐसा लगा कि मेरे अन्दर एक ऊर्जा का संचार हुआ । और ऐसा मेरे साथ हर बार हुआ । उसके अन्दर कितनी शक्ति , मुझे नहीं पता लेकिन मेरे अन्दर उसके लिए अनन्त विश्वास था और शायद उस श्रद्धा और विश्वास का असर था कि मै क्षण भर में खुद के अन्दर ऊर्जा पाता था । बाद में , मैंने उसका नाम ही क्वांटा रख दिया था । हा हा हा – ऊर्जा का पैकेट :))
~ माता पिता इतने शक्तिशाली क्यों होते है ? खून के रिश्ते के साथ साथ एक विश्वास । कई दफा लोगों की अपेक्षा अपने माता पिता से इतनी हो जाती है उम्र के आखिरी पड़ाव तक उनसे शिकायत होती है । लेकिन इस विश्वास की शक्ति आप कहीं भी पैदा कर सकते हैं और कहीं भी पा सकते हैं । शायद यह पहली नजर का कमाल होता है जब आपका दिल नहीं बल्कि आत्मा स्वीकार करती है । शरीर खत्म हो जाता है , दिल टूट सकता है लेकिन आत्मा नश्वर है । और जहां आत्मा गवाही देता है , वहीं ईश्वर होता है । मुझे अन्य धर्मों का नहीं पता , जहां मेरा विश्वास है – वहीं मेरा ईश्वर है । लेकिन यह सिर्फ पहली नजर नहीं बल्कि कई बार लगातार एक बिलिफ सिस्टम में रहने से भी होता है । इस पर लेख बहुत लंबा हो जायेगा ।
~ लेकिन ऐसी कई घटनाओं की अनुभूति होना भी अपने आप में एक शक्ति है । इस शक्ति का एहसास तभी होगा जब आप ध्यान मग्न होंगे । कोई अंत्र मंत्र की ज़रूरत नहीं । इस नवरात्र आप नौवें दिन मुझसे आंख नहीं मिला सकते :)) इतनी इंटेनसिटी होती है कि यह सिर्फ और सिर्फ दुर्गा को शक्ति है ।
जहां साधक है , वहीं देवी है या जहां देवी है वहीं साधक है 🙏❤️🙏
: रंजन , दालान

नवरात्र – ४ , २०२०

~ प्रेम में बहुत शक्ति है । लेकिन हर किसी की चाह अनकंडीशनल प्रेम की होती है । हा हा हा । मुझे लगता है – यह प्रेम सिर्फ और सिर्फ मां से ही प्राप्त होता है लेकिन इसमें भी एक कंडीशन है – आपको उन्हीं के कोख से जन्मना होगा । हा हा हा । हां , कई दफा हमें ऐसा लगता है कि सामने वाला हमे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है लेकिन ऐसा प्रतीत होना भी गलत है । दरअसल , वह आपसे प्रेम तो कर रहा है लेकिन आपसे अपेक्षा भी रख रहा है । अब आप उसकी कसौटी पर नहीं उतरे तो वो आपसे बदला नहीं लेे रहा बल्कि माफ कर देे रहा है । इसका कतई मतलब नहीं कि वो आपसे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है ।
~ कहीं किसी फिलॉसफर को पढ़ा कि महिलाएं माफ तो कर देती है लेकिन पुरुष माफ नहीं कर पाते । वहीं , पुरुष भूल तो जाते है लेकिन महिलाएं भूल नहीं पाते । इस पर एक लम्बा चौड़ा लेख भी कुछ एक वर्ष पहले लिखा था । मुझे लगता है, उम्र के साथ पुरुष भी माफ करना जान जाते हैं । यह कोई उनके हॉर्मन बैलेंस का बात नहीं होता बल्कि उन्हें अब इस संसार से विदाई के द्वार आभास होने लगते है । पुरुष जानवर के नजदीक होते हैं , तमाम उम्र / जवानी तरह तरह कि लड़ाई लड़ते है । लड़ाई का मतलब मार पीट नहीं बल्कि द्वंद्व भी हो सकता है । स्त्रियां द्वंद्व में नहीं होती और शायद इसलिए वो पुरुषों की इस लड़ाई को समझ नहीं पाती । तमाम उम्र घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं का मन भी अन्दर की दुनिया / आंगन में ही होता है और तमाम उम्र पुरुष को कमरा में कैद कर दीजिए तो भी उसका मन बाहर की दुनिया में होता है । उदाहरण के लिए , मेरा पेट डॉग गूगल मेल है । दिन भर दरवाजे के पास बैठा रहता है कि जैसे गेट खुले और वो नजर बचा कर सीधे बाहर के प्रागंण में , जहां तक वो सूंघते सूंघते चला जाए :))
~ तो बात है प्रेम , माफी और भूलने की शक्ति । पुरुष को भूलने की शक्ति उसके ज़िन्दगी के सफ़र में एक वरदान है । अगर वो नहीं भूलेगा तो उसका सफर बीच किसी रास्ते अटक जायेगा । स्त्री के अन्दर माफ करने की शक्ति है वरना उसके साथ दुनिया में इतने जुल्म होते है कि वो बगैर माफ किए खुद खत्म हो जायेगी । पुरुष माफ करने लगे तो वो अपनी प्रकृति के हिसाब से लड़ाई हार जायेंगे और स्त्री भूलने लगे तो उसके मन की कोमलता ख़त्म हो जायेगी :))
~ लेकिन प्रेम तो सर्व शक्तिमान है । भावना के आगे सभी नतमस्तक हैं । गूगल / ट्विटर / या सोशल मीडिया के किसी भी अंग पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला शब्द ’ लव ’ है । इसकी क्षमता अनन्त है । इसके कई रूप है और हर सम्बन्ध का प्राण है । हालांकि रोमांटिक प्रेम एक ज़िद या अहंकार के साथ होता है जहां अलग अलग कंडीशन होते हैं । तभी इसे कभी पूर्ण प्रेम नहीं कहा गया । इन्द्रियों के आकर्षण से पैदा लिया प्रेम कब भटक जाए – कहना मुश्किल l
विशेष क्या लिखा जाए …मौसम में ठंड प्रवेश कर चुका है …देवी की कल्पना ही मन को प्रफुल्लित कर देती है …कभी साक्षात आ जाए तो क्या हो … :))
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ ३ , २०२०

Devi #Shakti #NavRatra :

~ शक्ति आती है , आपको छूती है , आपसे अच्छे या बुरे कर्म करवाती है और फिर वही शक्ति क्षीण हो जाती है । यह शक्ति किसी इंसान विशेष , परिवार , टोला या मुहल्ले या किसी समुदाय के साथ अटैच हो सकती है । लेकिन शक्ति के विलुप्त होने के बाद भी उसकी आभा अगले कई सेकेंड , मिनट , घण्टे, दिन, महीना , वर्ष , या दसक तक बरकरार रहती है जिसके नशे में पात्र भी रहते हैं और उसकी इज्जत अन्य भी करते हैं लेकिन पात्र को यह समझना होगा कि अब शक्ति जा चुकी है या शक्ति का प्रभाव खत्म हो चुका है ।
~ ईश्वर , प्रकृति के बाद तीसरी जो सबसे बड़ी शक्ति है – वो है समाज । इस समाज के गठन में हजारों साल लगे और विडम्बना देखिए कि यह अधिकांश लोग इसी समाज की शक्ति में फंस कर अपनी ईश्वरीय या प्राकृतिक शक्ति को खो बैठते हैं । जैसे आप ईश्वर और प्रकृति से ऊपर नहीं है , ठीक उसी तरह आप समाज से ऊपर नहीं है । लेकिन समाज की अपनी सीमा है । एक मित्र भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं , लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ कर लौटे हैं । एक दिन मैंने पूछा कि – आएं सर , लंदन के मेट्रो / ट्यूब में सफर करते वक्त भी आप खुद को आईएएस समझ तन के रहते थे , का ? आईआईटियन हैं सो मेरी बात का बुरा तो नहीं माने लेकिन झेंप गए । हा हा हा । फिर भी , आपको समाज की शक्ति को मानना ही मानना होगा । आप जितने लोग सामाजिक पटल पर सफल देखते हैं – वो कोई बहुत हाई आइक्यू के लोग नहीं होते , वो किसी शक्ति के उपासक नहीं होते । उनकी बस यही शक्ति होती है कि वो समाज के फॉर्म्युला को बखूबी जानते हैं और उसमें वो खुद को फिट करना जानते हैं । यह समाज कोई सरकार , संस्था या परिवार हो सकता है ।
और आप सारी समझ रख कर भी दांत चियारते रहते हैं । आपको समाज की प्रकृति को समझना होगा जो इंसानों की प्रकृति से बना है ।
~ लेकिन आपके अंदर एक और शक्ति होती है जो इस फॉर्म्युला को मानने से इन्कार करती है । जब आप अपने से ज्यादा स्थापित शक्ति को चैलेंज करेंगे तो आप या तो कुचल दिए जायेंगे या फिर आप विजेता बनेंगे । तीसरा कोई रास्ता नहीं है ।
हा हा हा …
नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …ईश्वर ने जो प्रकृति दिया है , उसकी शक्ति के साथ मस्त रहिए :))
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ २ , २०२०

~ अभी अभी दो चार दिनों पहले की बात है , हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के एक लेख में यह लिखा था कि अगर आप खुद को कमज़ोर महसूस कर रहे हैं , या डिप्रेशन में हैं या लो हैं फिर एक ऐसे मित्र की तलाश कीजिए जो आपके पूर्व में आपके बेहतरीन दिनों की याद करवाए ।
कहने का मतलब की शब्दों की ताकत । कल्पना कीजिए कि आपका कोई मित्र आपके लिए बढ़िया शब्द बोले , मन एकदम से प्रफुल्लित हो जाता है :))
अगर मेरे इर्द गिर्द कोई नहीं होता तो मै खुद के लिए ऐसे वातावरण तैयार कर लेता हूं । लेकिन यह एक आदत है – सामने वाले की खूबी को देखना और बोलना । बचपन का मेरा एक मित्र है , एकदम जान देने वाला दोस्ती । जब हमारी दोस्ती हुई थी , उस वक़्त उसके परिवार की वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन कालान्तर उसने बहुत पैसा कमाया । टीनएज में कम बुद्धि सो मैंने कुछ गलत शब्द इस्तेमाल कर दिए थे । आज तीस साल बाद भी उसको मेरे नकरात्मक शब्द याद है । कभी कभी वो चर्चा में उस बात को याद कर देता है और मै शर्मिन्दा हो जाता हूं । बात कुछ नहीं थी – मैंने उसे कुत्ता कह दिया था । हा हा हा । लेकिन यह बात उसे चुभ गई । ऐसा मेरे साथ भी हुआ है , मेरे एक सबसे अजीज ने बातों बातों मुझे बौना / बोनसाई पेड़ / सूखा हुआ पेड़ कह दिया क्योंकि मेरे व्यक्तित्व का सिर्फ एक पक्ष उन्हें नजर आया और उस दौरान वो दो अन्य नए मित्रों के लगातार संपर्क में थे । यह बात बुरी तरह चुभ गई । इस कदर चुभी की मै बहुत छटपटा कर , कुछ महीनों बाद खुद को अलग कर लिए । और कोई चारा नहीं था ।
साकारात्मक शब्द लोग भूल जाते हैं लेकिन आपके नकरात्मक शब्द लोगों को याद रहता है । अब मेरी उम्र के लोग जो जीवन के हर एक रंग को लगभग देख चुके हैं , जीवन के पहलू को समझ चुके हैं , ऊंच नीच देख चुके हैं – फिर क्यों तौलना ? अगर सामने वाला आपको तौल दिया तो ? तराजू तो सबके पास होती है , न ।
खैर , हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के उस लेख में यही था कि आस पास बढ़िया मित्र रखिए जो आपके लिए बढ़िया शब्द बोले । कल एक मित्र से करीब 20 साल बाद मिला , बातों बातों में उसने कह दिया – अब हमारी जिन्दगी में वक्त ही कितना रह गया है कि नया एक्सपेरिमेंट करें । बात उसने सही कही लेकिन थोड़ी नकरात्मक थी । पूरी रात बोझिल रहा ।
सीता गीता , राम श्याम इत्यादि सिनेमा देखें होंगे । कैसे शब्दों की चोट से इंसान को बंधुआ की तरह रखा जाता है । दुर्भाग्य देखिए समाज का , ऐसे नकरात्मक शब्द आपके सबसे अजीज द्वारा ही बोले जाते हैं या फिर साइकोलॉजी है कि उनके ही शब्द आपको चोट पहुंचाते हैं ।
नकरात्मक छूत की बीमारी है । कोरोना से भी खतरनाक । नकारात्मकता से गुजर रहे किसी इंसान से दो मिनट गप्प कर लीजिए , यह नकारात्मकता आपको घेर लेगी । इसकी अपनी ही एक ख़ास शक्ति है । इससे बचने के लिए खुद के मन के इम्यून सिस्टम को मजबूत करना होता है ।
खैर … आज रविवार का दिन । धूप खिली हुई है । बेटा बोल दिया कि आपका ग्रामर का सिर पैर का कुछ पता ही नहीं चलता 😐 आज से रेन और मार्टिन शुरू 😂 कभी कभी टोकना भी बढ़िया होता है :)) शब्दों का प्रभाव ❤️
नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएं …
: रंजन , दालान