ये इश्क़ है , मेरी जाँ …
दरवाज़े बंद कर दो , खिड़कियाँ बंद कर दो ।
चाहो तो ख़ुद को किसी क़ैदखाने में क़ैद कर दो ।
भले इस जहाँ को छोड़ किसी और जहाँ चले जाओ ।
ये इश्क़ है , मेरी जाँ …
रात के किसी पहर ख़यालों में आ जाएगा ।
तेरे इंकार पर भी , तेरी सारी वफ़ा ले जाएगा ।
ये इश्क़ है , मेरी जाँ …
बड़ी मासूमियत से हवाओं में घुल तुमको छू जाएगा ।
ये इश्क़ है , मेरी जां …
उसे आने दो …
पल भर को हुस्न के घमंड को तोड़ जाने दो ।
अपनी मियाद पूरी कर जाएगा …
अपनी उम्र पूरी कर स्वतः ख़त्म हो जाएगा …
सच्चा हुआ तो तुमको मज़बूत कर जाएगा …
झूठा हुआ तो सबक़ दे जाएगा ।
ये इश्क़ है , मेरी जाँ …
उसे आने दो …
~ रंजन / दालान
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