जब तुम ताज को देखकर …

तब जब तुम ताज को देख कर झूम जाओगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
अपनी सफेद बालों और बेहतरीन पाशमिना के साथ ….
उम्र के उस मोड़ पर .
एयरपोर्ट से उसी तेज चाल से निकलते हुए ….
मुझे देख मुस्कुरा बैठोगी ….
टैक्सी लाए हो या खुद ड्राइव करोगे …
थोड़ी तंग …थोड़ी परेशान …
मुझसे हमेशा कि तरह बेझिजक सवाल पूछ बैठोगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
अपनी सफेद बालों और बेहतरीन पाशमीना के साथ ….
मै भी थोड़ा नटखट …
उम्र के उस मोड़ पर …
हल्के से पूछ बैठूंगा …
बगल में बैठोगी या पीछे …
उम्र के उस मोड़ पर .
रास्ते में वृंदावन और मथुरा भी तो पड़ता है …
हौले से तुम मुझसे पूछ बैठोगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
सफेद बालों और बेहतरीन पाशमिना के साथ …

~ रंजन / दालान / 16.01.20

ज़िन्दगी के पन्ने

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – आउट ऑफ साईट , आउट ऑफ माइंड – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !

~ RR / Daalaan / 18.01.2015

प्रेम और युद्ध

दिनकर लिखते हैं – ” समस्या युद्ध की हो अथवा प्रेम की, कठिनाइयाँ सर्वत्र समान हैं। ” – दोनों में बहुत साहस चाहिए होता है ! हवा में तलवार भांजना ‘युद्ध’ नहीं होता और ना ही कविता लिख सन्देश भेजना प्रेम होता है ! युद्ध और प्रेम दोनों की भावनात्मक इंटेंसिटी एक ही है ! युद्ध में किसी की जान ले लेने की शक्ती होनी चाहिए और प्रेम में खुद को विलीन करने की शक्ती ! दोनों का मजा तभी है – जब सामनेवाला भी उसी कला और साहस से मैदान में है ! कई बार बगैर कौशल भी – साहस से कई युद्ध या प्रेम जीता जाता है – कई बार सारे कौशल …साहस की कमी के कारण वहीँ ढेर हो जाते हैं …जहाँ से वो पनपे होते हैं ! और एक हल्की चूक – युद्ध में जान ले सकती है और प्रेम में नज़र से गिरा सकती है !
इतिहास गवाह है – ऐसे शूरवीरों से भरा पडा है – जिसने प्रेम में खुद को समर्पित किया और वही इंसान युद्ध में किसी को मार गिराया – यह ईश्वरीय देन है – भोग का महत्व भी वही समझ सकता है – जिसने कभी कुछ त्याग किया हो !
कहते हैं – राजा दशरथ किसी युद्ध से विजेता होकर – जब कैकेयी के कमरे में घुसे तो उनके पैर कांपने लगे – यह वही कर सकता है – जिसे युद्ध और प्रेम दोनों की समझ हो ! दोनों में पौरुषता और वीरता दोनों की अनन्त शक्ती होनी चाहिए ! पृथ्वीराज चौहान वीर थे – प्रेम भी उसी कौशल और साहस से किया – जिस कौशल और साहस से युद्ध ! मैंने इतिहास नहीं पढ़ा है – पर कई पौरुष इर्द गिर्द भी नज़र आये – जिनसे आप सीखते हैं ! हर पुरुष की तमन्ना होती है – वो खुद को पूर्णता के तरफ ले जाए – और यह सफ़र आसान नहीं होता !
युद्ध और प्रेम …दोनों के अपने नियम होते हैं – और दोनों में जो हार जाता है – उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है ! रोमांस / इश्क प्रेम नहीं है …महज एक कल्पना है ! फीलिंग्स नीड्स एक्शन – जब भावनाएं एक्शन डिमांड करती हैं – तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है – तब पता चलता है – ख्यालों को मन में पालना और उन्हें हकीकत में उतारना – कितना मुश्किल कार्य है !
युद्ध के सामान ही प्रेम आपसे एक एक कर के सब कुछ माँगता चला जाता है – देनेवाला किसी भी हाल में लेनेवाले से उंचा और ऊपर होता है – युद्ध में हारने वाला आपसे माफी मांगता है – प्रेम में बहाने बनाता है – युद्ध में आप माफ़ कर सकते हैं – पर प्रेम में कभी माफी नहीं मिलती – युद्ध भी कभी कभी प्रेम में बदल जाता है और सबसे बड़ी मुश्किल तब होती जब आप जिससे प्रेम करे – उसी से युद्ध करना पड़े ! और उसी इंटेंसिटी से करें – जिस इंटेंसिटी से प्रेम किया था – फिर तो ….वह दुबारा भगोड़ा हो सकता है …:))

~ RR / Daalaan / 19.01.2015

प्रकृति , धरा और ऋतुराज

धरा – सखी , ये किसकी आहट है ?
प्रकृति – ये वसंत की आहट लगती है ..
धरा – कौन वसंत ? हेमंत का भाई ऋतुराज वसंत ?
प्रकृती – हाँ , वही तुम्हारा ऋतुराज वसंत …:))
धरा – और ये शिशिर ?
प्रकृति – वो अब जाने वाला है …
धरा – सुनो , मैं कैसी दिख रही हूँ …
प्रकृति – बेहद ख़ूबसूरत …
धरा – सच बोल रही हो …न..
प्रकृति – मैंने कब झूठ बोला है …
धरा – ऋतुराज के साथ और कौन कौन है …
प्रकृति – कामदेव हैं …
धरा – ओह …फिर मुझे सजना होगा …
प्रकृति – मैंने तुम्हारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – वो कब और कैसे …
प्रकृति – सरसों के लहलहाते खेतों से ..आम्र की मंजरिओं से …
धरा – सुनो , फागुन भी आएगा ..न …
प्रकृति – तुम बुलाओ और वो न आए …:))
धरा – अबीर के संग आएगा ?
प्रकृति – गुलाल के संग भी …
धरा – सुनो ..मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – सूरज की नज़र लग जाएगी …
धरा – सुनो ..ये ऋतुराज वसंत कब तक रुकेंगे ?
प्रकृति – कहो तो …पूरे वर्ष रोक लूँ …
धरा – नहीं …नहीं…सच बताओ न …
प्रकृति – चैत कृष्ण पक्ष तक तो रुकेंगे ही …
धरा – कामदेव कहाँ हैं ?
प्रकृति – तुम्हारे नृत्य का इंतज़ार कर रहे हैं …
धरा – थोड़ा रुको …कब है नृत्य…
प्रकृति – वसंत पंचमी को …
धरा – सरस्वती पूजन के बाद ?
प्रकृति – हां …
धरा – सरस्वती कैसी हैं ?
प्रकृति – इस बार बड़ी आँखों वाली …
धरा – और उनका वीणा ?
प्रकृति – उनके वीणा के धुन पर ही तुम्हारा नृत्य होगा …
धरा – सुनो …मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – कर तो दिया …
धरा – नहीं …अभी घुँघरू नहीं मिले …
प्रकृति – वो अंतिम श्रृंगार होता है …
धरा – फिर अलता ही लगा दो …
प्रकृति – सारे श्रृंगार हो चुके हैं …
धरा – फिर नज़र क्यों नहीं आ रहा …
प्रकृति – जब ऋतुराज आते हैं …धरा को कुछ नज़र नहीं आता …
धरा – कहीं मै ख्वाब में तो नहीं हूँ …
प्रकृती – नहीं सखी …हकीकत …वो देखो तुम्हारा सवेरा …
धरा – दूर से आता …ये कैसा संगीत है …
प्रकृती – कामदेव के संग वसंत है …ढोल – बताशे के संग दुनिया है …
धरा – मेरा बाजूबंद कहाँ है …?
प्रकृती – धरा को किस बाजूबंद की जरुरत ?
धरा – नहीं …मुझे सोलहों श्रृंगार करना है ..मेरी आरसी खोजो ..
प्रकृती – मुझपर विश्वास रखो – मैंने सारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – नारी का मन ..कब श्रृंगार से भरा है ..
प्रकृती – चाँद से पूछ लो …:))
धरा – सुनो …ऋतुराज आयें तो तुम छुप जाना …आँगन के पार चले जाना …
प्रकृती – जैसे कामदेव में ऋतुराज समाये – वैसे ही तुम में मै समायी हूँ …
धरा – नहीं …तुम संग मुझे शर्म आएगी …
प्रकृती – मुझ बिन ..तुम कुछ भी नहीं …
धरा – सखी ..जिद नहीं करते …
प्रकृती – मै तुम्हारी आत्मा हूँ …आत्मा बगैर कैसा मिलन ..
धरा – फिर भी तुम छुप जाना …:))
ऋतुराज के रुकने तक …उनके ठहरने तक ….:))
………………
~ RR / 09.02.2016 / Patna

तस्वीर साभार : सुश्री गीता कामत , आसाम , भारत