“सलाम… बाबू”
~ इसी संबोधन के साथ अक्सर शाम को हमारे ग्रामीण अलाउद्दीन का फोन आता है 😊 हम बचपन में अलाउद्दीन को अलाऊ कहते थे । हमारे पंचायत के करीब 22 साल तक मुखिया / ग्राम प्रधान रहे अल्शेर मियां के 4/5 पुत्रों में से एक : अलाऊ 😊
: दरबार में करीब 200 साल तक हाथी रहा तो अल्शेर मियां का परिवार ही महावत रहा । पीढ़ी दर पीढ़ी । अंतिम हाथी 1989/90 में बिक गया । 67 हजार में । अलाऊ कहते हैं की मालूम नही क्या हड़बड़ी थी , 85 हजार का हाथी 67 हजार में मालिक लोग बेच दिया । अलाऊ को बहुत अफसोस क्योंकि अपने पिता अल्शेर मियां के मुखिया बनने के बाद , अलाऊ ही महावत रहे ।
~ अल्शेर मियां अपनी जवानी में राजा रजवाड़ा के यहां महावत थे , दरबार बुला लिया तो यहीं रह गए । छोटा कद और हिम्मती । मुखिया बनने के बाद अक्सर दरवाजे पर आते और उनका ड्यूटी होता था : बंदूक और रायफल साफ करना , सुखाना और भादो के महीना में बंदूक लेकर शिकार और हम बच्चे पीछे पीछे 😎 हमारी पीढ़ी तो कम या नहीं लेकिन पिता जी और चाचा की पीढ़ी अल्शेर मियां के पीछे पीछे बहुत पगलाया है 😀
: हम बच्चो के पसंदीदा अलाऊ होते थे । छोटा कद और गठीला शरीर । ग्रामीण मेला में एक साइज छोटा नया बनियान पहन वो अपने सीना को चौड़ा करते और बनियान चर्र चर्र करके फट जाता । सबसे बेहतरीन याद दशहरा के रोज का होता । हाथी सज के तैयार और अलाऊ नया कुर्ता पायजामा पहन आगे हाथी के सुंड के सहारे हाथी पर बैठते और हम सभी अजीन कजिन हौदा पर । गांव होते मठिया और फिर प्राण टोला होते हुए रेवतीथ होते हुए वापस घर । रास्ता में लोग भाई पट्टीदार तो नही लेकिन कई जगहों पर लोग सलाम करते । यह झूठ नही है । सच है । खासकर 150 एकड़ का प्राण टोला जो आजादी उपरांत हमारे ही जमीन पर बसाया गया । अब कोई पलट जाए तो क्या कहा जाए । 2019 में बाबा की बरखी पर एक एक आदमी टोला से आया था 🙏 नई पीढ़ी जो व्यवहार करे , हमे कोई शिकायत नहीं 🙏
~ तो 1990 में हाथी बिका और अलाऊ सर्कस पकड़ लिए । कहते हैं पूर्वोत्तर भारत छोड़ वो समस्त भारत घूमे । केरल ब्राह्मण का सर्कस था । शंकर नायर मालिक । सर्कस भी बंद हो गया तो अलाऊ अपने नए मालिक के यहां कई वर्ष तक मैनेजर रहे । केरल में । सौभाग्य की अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि और दुर्भाग्य की बहुत कम पढ़े लिखे ।
: केरल की कहानी वो कहते हैं 😊 कैसे उनके मालिक का सर्कस बंद हुआ तो उनके मालिक काजू और काली मिर्च की खेती करने लगे । कैसे मालकिन का बर्ताव और अलाऊ के बेटी के बियाह में 5 किलो काली मिर्च उनकी मालकिन अलग से बांध कर दी । 800 ग्राम ही खर्च हुआ 😀
~ नई पीढ़ी को हम क्या कहें ? लेकिन यह मुस्लिम टोला दो शताब्दी हमारे परिवार के साथ रहा । परिवार का महाजनी और जमींदारी का काम था । समस्त बिहार के मंझौले जमींदारों को पैसा जाता था । सवा छह फीट के कई मुस्लिम होते थे जो ढेकूआ में ही पैसा बांध वर्तमान गोपालगंज से लखनचन्द मोकामा तक पैदल ही चले जाते 😊 गफ्फार गांधी जैसे , लाठी हाथ में ।
~ सन 1957 में श्री बाबू अचानक से जमींदारी व्यवस्था खत्म किए । जमींदारी गया तो गया ही साथ में महाजनी में बहुत पैसा भी डूबा । गोमस्ता अब नए नायक थे । हम आर्थिक रूप से कमज़ोर हुए । बहुत कमज़ोर । सन 1980 के आसपास में जब पिता जी की पीढ़ी वापस नौकरी में आई तो मेरे बड़े परबाबा सभी लोगों को इकट्ठा कर सबकी तन्खाह पूछे , सभी का तन्खाह जोड़ वो मन ही मन बुदबुदाए की अब ठीक है , जमींदारी के बराबर नई पीढ़ी का तन्खाह हो गया । महाराज , स्थिति बहुत खराब हो गई थी , बड़े परबाबा तो धोती फाड़ कर पहनने लगे थे 😐 चीनी वाली चाय भी बंद ।
~ लेकिन पूर्वजों का आशीर्वाद की दरवाजे की रौनक हाल फिलहाल तक बनी रही । लेकिन कितना रौनक बनाइएगा ? जमाना बहुत बदल गया । बहुत । यह कोई सामाजिक क्रांति की बात नहीं बल्कि जमींदारी के नए स्वरूप की है । अब तो राजनीतिक शक्ति भी पिछड़ेपन की निशानी है । जिसके घर धंधा पानी है , उसी के दरवाजे हाथी और महावत है । शोभा तभी है जब थोड़ी बड़पन्नता भी है 😊
: अलाऊ फिर शाम को फोन करेंगे :
सलाम … बाबू 😊
~ रंजन , दालान / जुलाई , 2023