अमिताभ बच्चन 💕

वहमों गुमान से दूर दूर…यकीन के हद के पास पास ,
दिल को भरम ये हो गया…कि उनको हम से प्यार है…☺️
~ और आज आप अपने जीवन के 82 वसंत पार किए ❤️
यंग एंग्री मैन की छवि के अलावा , 70 और 80 के दसक में , अमिताभ एक बेहतरीन रोमांटिक छवि भी रखे । फिल्म कभी कभी में जब वो राखी के गोद में सर रखते हैं और राखी उनके चेहरे को अपने बालों से ढक लेती हैं या ऐसा ही कुछ एक दृश्य फिल्म सिलसिला का, जब नीला आसमान गीत के सीन में रेखा अमिताभ के क्लीन शेव गालों पर अपनी उल्टी हाथ फेरती हैं 😊 खैर , जावेद अख्तर साहेब का लिखा गीत जो शायद मैं 1000 बार अपने स्वर में भी बोल चुका हूं , बेहद नही अति पसंद ।
‘ ये रात है या, तुम्हारी जुल्फे खुली हुई है
है चांदनी या तुम्हारी नज़रों से मेरी राते धुली हुई है
ये चाँद है, या तुम्हारा कंगन
सितारें है, या तुम्हारा आँचल
हवा का झोंका है, या तुम्हारे बदन की खुशबू
ये पत्तियों की है सरसराहट, के तुम ने चुपके से कुछ कहा है’
~ शुभकामनाएं 💕
: रंजन , दालान

नवरात्र – ४ , २०२०

~ प्रेम में बहुत शक्ति है । लेकिन हर किसी की चाह अनकंडीशनल प्रेम की होती है । हा हा हा । मुझे लगता है – यह प्रेम सिर्फ और सिर्फ मां से ही प्राप्त होता है लेकिन इसमें भी एक कंडीशन है – आपको उन्हीं के कोख से जन्मना होगा । हा हा हा । हां , कई दफा हमें ऐसा लगता है कि सामने वाला हमे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है लेकिन ऐसा प्रतीत होना भी गलत है । दरअसल , वह आपसे प्रेम तो कर रहा है लेकिन आपसे अपेक्षा भी रख रहा है । अब आप उसकी कसौटी पर नहीं उतरे तो वो आपसे बदला नहीं लेे रहा बल्कि माफ कर देे रहा है । इसका कतई मतलब नहीं कि वो आपसे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है ।
~ कहीं किसी फिलॉसफर को पढ़ा कि महिलाएं माफ तो कर देती है लेकिन पुरुष माफ नहीं कर पाते । वहीं , पुरुष भूल तो जाते है लेकिन महिलाएं भूल नहीं पाते । इस पर एक लम्बा चौड़ा लेख भी कुछ एक वर्ष पहले लिखा था । मुझे लगता है, उम्र के साथ पुरुष भी माफ करना जान जाते हैं । यह कोई उनके हॉर्मन बैलेंस का बात नहीं होता बल्कि उन्हें अब इस संसार से विदाई के द्वार आभास होने लगते है । पुरुष जानवर के नजदीक होते हैं , तमाम उम्र / जवानी तरह तरह कि लड़ाई लड़ते है । लड़ाई का मतलब मार पीट नहीं बल्कि द्वंद्व भी हो सकता है । स्त्रियां द्वंद्व में नहीं होती और शायद इसलिए वो पुरुषों की इस लड़ाई को समझ नहीं पाती । तमाम उम्र घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं का मन भी अन्दर की दुनिया / आंगन में ही होता है और तमाम उम्र पुरुष को कमरा में कैद कर दीजिए तो भी उसका मन बाहर की दुनिया में होता है । उदाहरण के लिए , मेरा पेट डॉग गूगल मेल है । दिन भर दरवाजे के पास बैठा रहता है कि जैसे गेट खुले और वो नजर बचा कर सीधे बाहर के प्रागंण में , जहां तक वो सूंघते सूंघते चला जाए :))
~ तो बात है प्रेम , माफी और भूलने की शक्ति । पुरुष को भूलने की शक्ति उसके ज़िन्दगी के सफ़र में एक वरदान है । अगर वो नहीं भूलेगा तो उसका सफर बीच किसी रास्ते अटक जायेगा । स्त्री के अन्दर माफ करने की शक्ति है वरना उसके साथ दुनिया में इतने जुल्म होते है कि वो बगैर माफ किए खुद खत्म हो जायेगी । पुरुष माफ करने लगे तो वो अपनी प्रकृति के हिसाब से लड़ाई हार जायेंगे और स्त्री भूलने लगे तो उसके मन की कोमलता ख़त्म हो जायेगी :))
~ लेकिन प्रेम तो सर्व शक्तिमान है । भावना के आगे सभी नतमस्तक हैं । गूगल / ट्विटर / या सोशल मीडिया के किसी भी अंग पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला शब्द ’ लव ’ है । इसकी क्षमता अनन्त है । इसके कई रूप है और हर सम्बन्ध का प्राण है । हालांकि रोमांटिक प्रेम एक ज़िद या अहंकार के साथ होता है जहां अलग अलग कंडीशन होते हैं । तभी इसे कभी पूर्ण प्रेम नहीं कहा गया । इन्द्रियों के आकर्षण से पैदा लिया प्रेम कब भटक जाए – कहना मुश्किल l
विशेष क्या लिखा जाए …मौसम में ठंड प्रवेश कर चुका है …देवी की कल्पना ही मन को प्रफुल्लित कर देती है …कभी साक्षात आ जाए तो क्या हो … :))
: रंजन , दालान

सुना है ….

सुना है …वो मेरे दालान पर आती है …चुपके चुपके …देर चाँदनी रात …लम्बे घूँघट में झुकी नज़रों के साथ …सावन की बूँदों सी पायल की रुनझुन के साथ …दबे पाँव आधी रात …:))
कुछ पढ़ कर …कुछ सुन कर …खिड़कियों को खटखटा कर …वो वापस चली जाती है …चुपके चुपके…देर चाँदनी रात …लम्बे घूँघट में झुकी नज़रों के साथ…दबे पाँव आधी रात…:))
मैंने भी कहलवा दिया है …कभी यूँ ही आँगन में भी आया करो …:))
~ RR / 2016
पेंटिंग साभार : माधवी संदूर

प्रेम का आधार …

शायद मैंने पहले भी लिखा था और फिर से लिख रहा हूँ ! प्रेम का आधार क्या है ? मै ‘आकर्षण’ की बात नहीं कर रहा ! मै विशुद्ध प्रेम की बात कर रहा हूँ ! मेरी नज़र में प्रेम का दो आधार है – ‘खून और अपनापन’ ! बाकी सभी आधार पल भर के लिए हैं !
यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटीविटी भी काम करती है ! खून एक जबरदस्त आधार है ! कभी गौर फरमाईयेगा – फुआ , मौसी , चाचा , मामा से आप खुद को ज्यादा नजदीक पायेंगे ! वहीँ फूफा , मौसा , चाची , मामी इत्यादी से थोड़ी दूरी ! हो सकता है – मौसा या मौसी से परिचय आपका जन्म से ही है फिर भी मौसी आपसे ज्यादा नजदीक होंगी या आप खुद को पायेंगे ! इसी आधार पर मैंने एक बार लिखा था की आप यूरोप या अमरीका में किसी पाकिस्तानी को देखते है तो आप खुद को उसके ज्यादा नजदीक पाते हैं , उसी पाकिस्तानी को आप भारत में रहते हुए दिन भर गाली देते हैं ! ठीक उसी तरह जब आप मंगल गृह पर जायेंगे तो पृथ्वीवासी ही आपके सुख दुःख को समझ पायेंगे !
शायद यह खून ही है की आजीवन पति पत्नी आपस में लड़ते हैं लेकिन औलाद के लिए दोनों के अन्दर सामान प्रेम होता है ! कई बार पुरुष यहीं फंस जाते हैं – माँ या पत्नी ! महिलायें भी आजीवन अपने पति / प्रेमी में अपने पिता की छवी तलाशती रहती हैं !
दूसरा आधार है – अपनापन ! यह बहुत लम्बे समय साथ रहने से होता है ! जब आप सुबह से शाम तक किसी के संपर्क में रहेंगे – अपनापन हो ही जाएगा और वह भी एक जबरदस्त प्रेम का आधार बन जाता है पर शर्त रहती है की आप कितने करीब हो पाते हैं ! आप एक दुसरे के खूबी / कमी को कितना महसूस कर पाते हैं !
शायद खून ही एक आधार है जिसके कारण समाज में ‘जाति’ आज भी बरकरार है ! श्री लालू प्रसाद को देख कई लोगों में यह भाव आया – कोई मेरे जैसा , मेरा कोई अपना उस शिखर पर है ! सुन्दर पिचासी को गूगल के शिखर पर देख लोगों के अन्दर भाव आया – कोई मेरा भारतीय – हम जैसा – उस शिखर पर है वहीँ से एक प्रेम छलकता है !
मेरा तो यही दोनों आधार है ! बाकी ‘आकर्षण’ को बस स्टॉप पर भी हो जाता है – इस उम्र तक यह समझ तो ही गयी है – वह आकर्षण जितना आसानी से आता है उतनी ही तेज़ी से जाता भी है ! प्रेम का तो बस एक दो ही आधार है – खून और अपनापन ! तभी तो खून जब पुकारता है – लोग सात समुन्दर पार भी अपने माता पिता के लिए बेचैन हो जाते हैं ! खून आधार नहीं होता तो ‘सौतेली माँ’ शब्द ही नहीं बनता …और ना ही एकता ‘सास बहु ‘ का सीरियल बना करोडो कमाई होती :))
और जहाँ असल प्रेम है वहीँ वफादारी भी है :))

~13 अगस्त , 2015

प्रेम और विशालता

प्रेम और विशालता :
दिनकर लिखते हैं – “नर के भीतर एक और नर है जिससे मिलने को एक नारी आतुर रहती है – नारी के भीतर एक और नारी है – जिससे मिलने को एक नर बेचैन रहता है ” ..:))
और यहीं से शुरू होती है …प्रेम और विशालता की कहानी ! ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है !
कोई भी नर किसी नारी के प्रेम से उब नहीं सकता – उसके अन्दर प्रेम की कमी होती है – वो कठोर होता है – उसे खुद को मृदुल बनाना होता है – वह डूबता चला जाता है – वह डूबता चला जाता है ! नारी हैरान रहती है – आखिर क्या है इस प्रेम में – वो समझा नहीं पाता है – उसे वो प्रेम का सागर भी कम लगता है !
अब सवाल यह उठता है – प्रेम में डूबने के बाद भी – वह प्रेम उसे कम क्यों लगता है ? नारी अपने प्रेम के बदले नर की विशालता देखना चाहती है – क्योंकी प्रकृती ने उसे प्रेम तो दिया पर उस प्रेम को रखने के लिए एक विशालता नहीं दी ! नारी अपने प्रेम को उस विशाल नर को सौंपना चाहती है जो उसके प्रेम को अपने विशालता के अन्दर सुरक्षित रख सके ! और यहीं से शुरू होता है – द्वंद्ध !
तुम मुझे थोड़ा और प्रेम दो – तुम थोड़े और विशाल बनो ! अभी मै भींगा नहीं – अभी मै तुम्हारे विशालता में खोयी नहीं – वो अपना प्रेम देने लगती है और नर अपनी विशालता फैलाने लगता है – हाँ …प्रेमकुंड और विशालता ..दोनों एक ही अनुपात में बढ़ते रहने चाहिए ! एक सूखे कुंड में एक विशाल खडा नर – अजीब लगेगा और एक लबालब भरे कुंड में – एक छोटा व्यक्तित्व भी अजीब लगेगा !
नारी उस हद तक विशालता खोजती है जहाँ वो हमेशा के लिए खो जाए – नर उस हद प्रेमकुंड की तलाश करता है – जहाँ एक बार डूबने के बाद – फिर से वापस धरातल पर लौटने की कोई गुंजाईश न हो !
इन सब के जड़ में है – माता पिता द्वारा दिया गया प्रेम – पिता के बाद कोई दूसरा पुरुष उस विशालता को लेकर आया नहीं और माँ के बराबर किसी अन्य नारी का प्रेम उतना गहरा दिखा नहीं – फिर भी तलाश जारी है – डूबने की …फैलने की …प्रेमकुंड की …विशालता की !
अपने प्रेमकुंड को और गहरा करते करते नारी थक जाती है – अपनी विशालता को और फैलाते फैलाते नर टूट जाता है …शायद इसीलिये दोनों अतृप्त रह जाते है …अपनी गाथा …अगले जन्म में निभाने को …
ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है – जहाँ उन्मुक्ता बगैर किसी भय के हो ….
~ कुछ यूँ ही …:))

28 Feb 2015 .

प्रेम …

प्रेम का कोई अलग अलग रूप नहीं होता …हां इसके अलग अलग स्तर जरुर होते हैं ..अब आप किस स्तर पर हैं …यह आपकी क्षमता है …जैसे किसी महासागर की गहराई को नापने की क्षमता …गोताखोर के ताकत पर ! यह जरुरी नहीं की प्रेम स्त्री और पुरुष के बीच ही हो …एक वैज्ञानिक अपने लैब से प्रेम करता है …एक लेखक अपने विचार से प्रेम करता है …एक चित्रकार अपने चित्र से करता है …एक कंप्यूटर इंजीनियर अपने कोडिंग से प्रेम करता है …प्रेम वही जहाँ आपको आनंद मिले …कई लोग खुद से भी प्रेम करते हैं ..आईने में खुद को देख मंत्रमुग्ध …जहाँ खुशी मिले ..वही प्रेम है …
पर …यह इतना भी आसान नहीं ..जितना यहाँ लिखना …प्रेम एक एक कर के आपसे सब कुछ मांगता है …आप कहाँ तक अपने प्रेम पर न्योछावर हैं…यह आपकी क्षमता …और आप उसी स्तर को जीते हैं …पर इस अनंत गहराई को छूने की कोशिश ही …प्रेम है !
स्त्री और पुरुष के बीच का प्रेम प्रकृती है …और कोई इंसान इतना ताकतवर नहीं हुआ है जो प्रकृती से लड़ सके …यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ! जीवन एक सफ़र है – और जहाँ मन हमेशा के लिए ठहर जाय …वही प्रेम है ! मन चंचल है – उसे विशुद्ध प्रेम से बांधना होता है …पर विशुद्ध प्रेम क्या है …’माँ – औलाद’ का प्रेम ? प्रकृती का नियम है – जो माँ अपने औलाद को अनंत प्रेम करती है – वही माँ दुसरे के बच्चे के लिए वही प्रेम क्यों नहीं पैदा कर पाती – ‘प्रेम अपनापन तलाशता है’ – यह अपनापन खून से भी आ सकता है – साथ रहने से भी हो सकता है – जहाँ अपनापन नहीं वहां प्रेम नहीं …
प्रेम आदर खोजता है …प्रेम को सिंहाशन चाहिए …वह सर्वोत्तम है …भावनाओं का बादशाह …विशुद्ध प्रेम आशीर्वाद देता है – ताकत देता है – जीने की उमंग देता है …प्रेम से सबकुछ लेने के लिए उसे पूजना होता है …अपने अहंकार को उसके चरणों में समर्पित करना होता है …और समर्पण बगैर विश्वास नहीं आता …और किसी के विश्वास की हिफाज़त करना ही …शायद ‘प्रेम’ है …:))

~ रंजन

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो …

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो जैसे एक लम्बे उम्र का इंतज़ार …चंद लम्हों में मिलो …
हां …उसी रेस्तरां में …जब तुम वेटर को एक कप और चाय की फरमाईश करते हो …जैसे …मै इतनी मासूम ….मुझे कुछ पता ही नहीं …कुछ देर और रुकने का बहाना खोजते मिलो …अपनी मंद मंद मुस्कान में बहुत प्यारे दिखते हो ….:))
वहीँ टेबल पर ….कभी अपने कार की चावी तो कभी मोबाईल को नचाते …चुप चाप मेरे तमाम किस्से सुनते हो …और फिर एक लम्बी सांस के साथ …एक गहरी नज़र मेरी आँखों में डालते हो …जैसे क़यामत को कोई और पल नहीं चाहिए ….
हाँ ..कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो …जैसे मेरी तमाम उलझनों को …हौले हौले सुलझाते मिलो ..और मै अपने मन की सारी बातें कह …खुद को खाली कर दूँ …
..लौटते वक़्त …रेस्तरां से कार पार्किंग तक के सफ़र में …तुम्हारे हाथों से …मेरे हाथों का स्पर्श ……धड़कने वहीँ पिघल के …न जाने कब तुममे समा जाती है …कह नहीं सकती …पर कभी न मिटने वाली एक एहसास छोड़ जाते हो …
कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो ….:))

~ RR / #DaalaanBlog / 2014

शकुन्तला

शकुन्तला

क्या तुम ही मेनका पुत्री शकुंतला हो ? क्या तुम ही मेनका – विश्वामित्र के प्रेम की धरोहर हो ? क्या तुम ही राजा दुष्यंत की असीम चाहत हो ? क्या तुम ही गंधर्व विवाह की जनक हो ? क्या तुम ही राजा भरत की कोख हो ?
या फिर तुम महाकवि कालिदास की महज एक कोरी कल्पना हो ? अगर तुम सच हो तो फिर मैंने आज तक देखा क्यों नहीं ? अगर तुम झूट हो तो फिर मैंने आज तक तुम्हे तलाशा क्यों नहीं ?
अगर तुम सम्पूर्ण हो तो मेरा ये स्वप्न कैसा ? अगर तुम अधूरी हो तो फिर मिलन का तड़प कैसा ?
~ रंजन / दालान / 20.12.19

वो एक पल ….

हम और तुम

कभी कबड्डी खेले हो ? सामने से एक बंदा बड़ी तेजी से , अपनी दम साधे आता है , साँसों को रोक कर , तुम्हे छूता है और भाग खड़ा होता है । पकड़ भी लिया गया तो दम नही छोड़ता , साँसों को रोके रखता है । तुम उसे पकड़ भी लिए तो वो अपनी सांसे नही तोड़ता – खिलाड़ी जो है ।
कुछ इश्क़ ऐसे भी होते है , अपनी साँसों को रोक , सामने वाले को छू कर वापस अपने घेरे में आ जाना । दम टूटने पर अपनी हार और दम ना टूटे तो सामने वाले कि हार । और इसी ज़िद में एक पल वो तुम्हे छोड़ देता है , तुम जीत कर मुस्कुराते हो और वो हार कर मुस्कुराता है ।
और इसी मुस्कान में जो इश्क़ जवां होती है , बड़ी दूर तलक जाती है …बड़ी दूर … :)) कहां तक जाती है …दोनों को नहीं पता :))
तुम्हे भी पता था , उस पल के आगे तुम्हारी हार थी और उसे भी पता था , उस पल के आगे उसकी जीत थी ।
अब बताओ …जीता कौन …हारा कौन :))
खैर , एक सच तो है …न , भागते वक़्त हौले से तुमने उसे छू लिया , हां …उसी वक़्त जब तुम्हारी सांस भी टूट गई थी …वो एक पल तुम्हे भी याद होगा …और वो एक पल उसे भी याद है …

~ रंजन / 31.01.20

कौन किसका दीदार करे …

तुम और ताज

कौन किसका दीदार करे …
तू ताज का करे
या ताज तेरा करे …
सुना है संगमरमर है
तराशे हुए दोनो तरफ़ …
कौन किसको स्पर्श करे …
तू ताज को करे
या ताज तुझे करे …

~ RR / #Daalaan / 09.01.2017

तस्वीर साभार : ऑनलाइन मैगज़ीन ‘ब्यूटिफ़ुल डेस्टिनेशन’ – जहाँ एक फ़ोटो प्रतियोगिता में लंदन के Joe O ने इस ताज की तस्वीर को डाल 7000 प्रतिभागियों में पहला स्थान लिया । Joe O महज़ 17 साल के हैं ।