रतन टाटा का जाना दुखदाई रहा लेकिन जिस कदर और हद तक इंडियन मिडिल क्लास ने इनकी विदाई दी , यह भविष्य के भारत के लिए एक शुभ संकेत हैं . टाटा परिवार की व्यापारिक विचारधारा का पेनिट्रेशन किस हद तक है , यह पिछला 48 घंटा बता गया 🙏
बिहार जैसे अति पिछड़ा प्रदेश जहाँ टाटा की उपस्थिति लगभग नगण्य है , वहाँ से भी असंख्य श्रद्धांजलि आए . आम जन मूल बातों को समझ रहे हैं और उन्हें उसे अपनाने के लिए एक आदर्श चाहिए .
कई शताब्दी तक या अभी भी व्यापार को नीची नज़र से देखा जाता है क्योंकि उसमे मुनाफ़ा होता है . मुनाफ़ा को समाज कभी प्रतिष्ठा नहीं देता . लेकिन वही मुनाफ़ा जब वापस समाज में आता है तब इतनी प्रतिष्ठा देता है की हुकूमत के बराबर खड़ा हो जाता है 😊
रतन टाटा को असंख्य श्रद्धांजलि एक मैसेज है की ‘एथिक्स के साथ व्यापार’ को इंडियन मिडिल क्लास ने स्वीकार किया है और उस मुनाफा से परहेज़ नहीं जहाँ ‘पे बैक टू सोसाइटी’ हो .
~ धन के तीन ही गति . दान , भोग नहीं तो नाश. विश्व की किसी भी सभ्यता में दान को सर्वोच्च माना गया . हर धर्म में . भारत में मुगल काल हो या अंग्रेज़ , हर काल में अपने अपने स्तर पर दान हुए हैं . वरना बिहार के कोने कोने में स्कूल , कॉलेज , अस्पताल या मंदिर मस्जिद कहाँ से बनते ?
लेकिन जब एथिक्स के साथ व्यापार और उस मुनाफ़ा को वापस समाज को देना , यह मूल मंत्र जब इंडियन मिडिल क्लास समझ जायेगा तो ब्रांड किस कदर कम्पाउंड इंटरेस्ट देगा , जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते 😊
~ सूचना क्रांति के दौर में जब हर हिसाब का पार्ट पार्ट हर किसी को नज़र आ रहा है , वहाँ बेहतर होगा की हम सभी एथिक्स और ट्रांसपेरेंसी को मूल मंत्र समझे 🙏
जब आप अपने पेशा / व्यापार में अपने एथिक्स / ट्रांसपेरेंसी के साथ खड़े हैं , दो वक्त की रोटी भी घर में मौजूद है फिर अपना व्यक्तित्व जियें 😊 रतन टाटा की तरह , अपने इर्द गिर्द 🙏
आशा है बात समझ में आई होगी 😊
~ रंजन , दालान