धरा – सखी , ये किसकी आहट है ?
प्रकृति – ये वसंत की आहट लगती है ..
धरा – कौन वसंत ? हेमंत का भाई ऋतुराज वसंत ?
प्रकृती – हाँ , वही तुम्हारा ऋतुराज वसंत …:))
धरा – और ये शिशिर ?
प्रकृति – वो अब जाने वाला है …
धरा – सुनो , मैं कैसी दिख रही हूँ …
प्रकृति – बेहद ख़ूबसूरत …
धरा – सच बोल रही हो …न..
प्रकृति – मैंने कब झूठ बोला है …
धरा – ऋतुराज के साथ और कौन कौन है …
प्रकृति – कामदेव हैं …
धरा – ओह …फिर मुझे सजना होगा …
प्रकृति – मैंने तुम्हारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – वो कब और कैसे …
प्रकृति – सरसों के लहलहाते खेतों से ..आम्र की मंजरिओं से …
धरा – सुनो , फागुन भी आएगा ..न …
प्रकृति – तुम बुलाओ और वो न आए …:))
धरा – अबीर के संग आएगा ?
प्रकृति – गुलाल के संग भी …
धरा – सुनो ..मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – सूरज की नज़र लग जाएगी …
धरा – सुनो ..ये ऋतुराज वसंत कब तक रुकेंगे ?
प्रकृति – कहो तो …पूरे वर्ष रोक लूँ …
धरा – नहीं …नहीं…सच बताओ न …
प्रकृति – चैत कृष्ण पक्ष तक तो रुकेंगे ही …
धरा – कामदेव कहाँ हैं ?
प्रकृति – तुम्हारे नृत्य का इंतज़ार कर रहे हैं …
धरा – थोड़ा रुको …कब है नृत्य…
प्रकृति – वसंत पंचमी को …
धरा – सरस्वती पूजन के बाद ?
प्रकृति – हां …
धरा – सरस्वती कैसी हैं ?
प्रकृति – इस बार बड़ी आँखों वाली …
धरा – और उनका वीणा ?
प्रकृति – उनके वीणा के धुन पर ही तुम्हारा नृत्य होगा …
धरा – सुनो …मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – कर तो दिया …
धरा – नहीं …अभी घुँघरू नहीं मिले …
प्रकृति – वो अंतिम श्रृंगार होता है …
धरा – फिर अलता ही लगा दो …
प्रकृति – सारे श्रृंगार हो चुके हैं …
धरा – फिर नज़र क्यों नहीं आ रहा …
प्रकृति – जब ऋतुराज आते हैं …धरा को कुछ नज़र नहीं आता …
धरा – कहीं मै ख्वाब में तो नहीं हूँ …
प्रकृती – नहीं सखी …हकीकत …वो देखो तुम्हारा सवेरा …
धरा – दूर से आता …ये कैसा संगीत है …
प्रकृती – कामदेव के संग वसंत है …ढोल – बताशे के संग दुनिया है …
धरा – मेरा बाजूबंद कहाँ है …?
प्रकृती – धरा को किस बाजूबंद की जरुरत ?
धरा – नहीं …मुझे सोलहों श्रृंगार करना है ..मेरी आरसी खोजो ..
प्रकृती – मुझपर विश्वास रखो – मैंने सारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – नारी का मन ..कब श्रृंगार से भरा है ..
प्रकृती – चाँद से पूछ लो …:))
धरा – सुनो …ऋतुराज आयें तो तुम छुप जाना …आँगन के पार चले जाना …
प्रकृती – जैसे कामदेव में ऋतुराज समाये – वैसे ही तुम में मै समायी हूँ …
धरा – नहीं …तुम संग मुझे शर्म आएगी …
प्रकृती – मुझ बिन ..तुम कुछ भी नहीं …
धरा – सखी ..जिद नहीं करते …
प्रकृती – मै तुम्हारी आत्मा हूँ …आत्मा बगैर कैसा मिलन ..
धरा – फिर भी तुम छुप जाना …:))
ऋतुराज के रुकने तक …उनके ठहरने तक ….:))
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~ RR / 09.02.2016 / Patna
तस्वीर साभार : सुश्री गीता कामत , आसाम , भारत