विदाई : रतन टाटा

रतन टाटा

बड़पन्नता 🙏 सरलता
~ बात दस साल पहले की होगी , बात बड़पन्नता और सरलता की हो रही थी तो पंकजा ठाकुर ( 95 बैच आईआरएस ) , पूर्व सीईओ , सेंसर बोर्ड ने कहा की बॉम्बे में किसी मीटिंग में रतन टाटा के साथ भेंट मुलाकात और लंच का प्रोग्राम था . लंच के बाद आदतन पंकजा अपना लेडीज पर्स / टोट बैग वहीं छोड़ अपने कार के तरफ़ बढ़ गई तो रतन टाटा उस बैग को लेकर पंकजा तक आ गए : ‘आपका बैग वहीं छूट गया था’

: शायद पंकजा ठाकुर थैंक्स भी नहीं बोल पाई . पिता से भी 10 साल बड़े , भारत ही नहीं विश्व के सबसे प्रतिष्ठित कॉरपोरेट. धन और फ़िलन्थ्रॉपी की बात ही मत पूछिए .
~ इंसान अचानक से इतने बड़े व्यक्तित्व के सरलता और बडपन्नता से इतना चकित हो जाता है की उसके मन की बात मुँह पर आ कर अटक जाती है . पंकजा आगे कहती हैं की उस पल भर की घटना ने उनके मन और आचरण को प्रभावित नहीं किया बल्कि एक बदलाव भी दिया 🙏

अभी सुहेल सेठ का एक इंटरव्यू देख रहा था . ब्रिटिश राज घराना रतन टाटा को पुरस्कार देने वाला था . सुहेल लंदन पंहुचे तो बॉम्बे से रतन टाटा का 11 मिस कॉल . सुहेल वापस रिंग बैक किए तो पता चला की करुणा से भरपूर रतन टाटा अपने पेट डॉग के बीमार होने से ब्रिटिश राजघराना पुरस्कार लेने नहीं जा रहे . प्रिंस चार्ल्स मुस्कुरा दिए : यही करुणा टाटा की पहचान है 😊

सन 2013 में जेएसएस , नोएडा त्यागने के बाद , मैंने प्रण लिया था की अब कोई नौकरी नहीं . लेकिन जब टाटा ब्रांड से प्रस्ताव आया तो ठीक एक महीना सोचने विचारने के बाद , प्रण टूट गया .
~ जो आपके प्रण को तुड़वा दे : वही ब्रांड , वही इंसान , वही भाव महान 🙏

सर , विदाई हो तो ऐसी 🙏 कल रात वाट्स एप स्टेटस पर देखा तो महज पाँच मिनट में सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही थे .
~ हर भारतीय की आत्मा आपके अंतिम विदाई में आपके साथ है . एक साथ अरबों लोगों के हाथ उठे और सर झुके हैं .
: सच में , विदाई हो तो ऐसी हो 🙏

: रंजन , दालान

शिक्षक दिवस

शिक्षक 🙏

~ मैंने जीवन में अनेकों काम किए . कुछ ग्रह दशा और कुछ चित चंचल 😊

लेकिन बतौर शिक्षक आत्मा को जो संतुष्टि मिली , वह कहीं नहीं मिली . क़रीब 15+ साल जीवन का एक सक्रिय शिक्षक के रूप में रहा .

मैट्रिक के बाद से स्नातक तक काफ़ी ख़राब परफॉरमेंस वाला विद्यार्थी रहा तो स्वयं को कभी बढ़िया शिक्षक नसीब नहीं हुआ . यह कसक मन में रही . जिसका रिजल्ट हुआ कि डायस पर अगर विद्यार्थी सजग रहे और ख़ुद का लेक्चर तैयार है तो हम उस वक़्त ख़ुद को दुनिया का सबसे बढ़िया शिक्षक मानते रहे थे 😀

~ मैंने मुख्यतः तीन विषय पढ़ाए : प्रोग्रामिंग , प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कॉरपोरेट स्ट्रेटेजी . सौभाग्य रहा कि इंजीनियरिंग के विद्यार्थी को मैनेजमेंट का ज्ञान देने का मौक़ा मिला और दुर्भाग्य रहा कि आधे सेमेस्टर के बाद ये विद्यार्थी मैनेजमेंट के विषय में रुचि खो बैठते थे 😐

~ स्नातक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन की पढ़ाई की . बेसिक प्रोग्रामिंग के बाद कुछ नहीं आता था लेकिन मैंने स्वयं किताब से पढ़ कर सी लैंग्वेज सीखी , सी++ भी . और उसका नतीजा हुआ कि मेसरा में पीजी करते वक़्त ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड टेक्नोलॉजी की मैडम अपने केबिन में बुला कर बोली : काश , हम आपको एक्सीलेंट दे सकते लेकिन मेसरा में इसकी इजाज़त नहीं है . आज भी उनके शब्द आँखों में तैर रहे हैं 😊

इसी मौसम सन 2012 की बात है . मैं बीटेक प्रथम वर्ष को सी प्रोग्रामिंग पढ़ा रहा था . तेज बारिश और पिन ड्राप साइलेंस . मैं पॉइंटर इन सी पढ़ा रहा था . पॉडियम पर ब्लैकबेरी रखा हुआ . जस्ट प्लस टू पास किए विद्यार्थियों की सारी चंचलता ग़ायब . मेरा 14 वर्ष का अनुभव . हाथ चाक से सफ़ेद , एक हाथ डस्टर . चाक गाढ़े रंग के ट्राउज़र को आधे सफ़ेद कर चुके . विद्यार्थियों का एक लगातार 50 मिनट पिन ड्राप साइलेंस हाथों के रोंगटे खड़े कर दिये 😊

~ और जीवन में ऐसे कई मौक़े आये लेकिन कब आये ? जब स्वयं का लेक्चर ज़बरदस्त प्रीपेयर हो , आपके अंदर ज्ञान को सरल और तरल कर के प्रवाह की क्षमता हो फिर पिन ड्राप साइलेंस होना तय है 😊

: टाटा जॉइन किया तो भारतवर्ष की एक अत्यंत खूबसूरत महिला पत्रकार नोएडा में स्वयं कॉफ़ी पर आमंत्रित की . अत्यंत खूबसूरत , वैजयन्ती माला जैसी लेकिन जेनिफ़र लोपेज़ 😊 कॉफ़ी मग को दोनों हाथ से पकड़ तीखे नज़र से टोंट कसी : लोग जवानी में कॉरपोरेट और 40 बाद प्रोफ़ेसर बनते हैं , लेकिन आपका उल्टा ही है 😀

हमने कहा की लगता है आपको जवान प्रोफ़ेसर से मुलाक़ात नहीं हुई है . वरना फ़ेयरवेल के रात , अंतिम वर्ष के विद्यार्थी कॉलेज पार्किंग में आपको देख सिटी बजाती है , वह एक अलग आनंद है 😊 बतौर शिक्षक कुछ ऐसे भी अनुभव होते हैं 😀

~ आईआईएम , आईआईटी , मेसरा , मैसूर , पटना के तमाम शिक्षकों इत्यादि का विद्यार्थी रहा लेकिन स्वयं का सहकर्मी रिंकज गोयल से बढ़िया शिक्षक कभी नहीं मिला . कॉलेज शुरू होने के आधे घंटे पहले आ जाना , पहला लेक्चर रिंकज़ का . पागल की तरह लड़के आधी नींद में सुबह सुबह उसके क्लास में . कभी इंटरनल परीक्षा का कॉपी चेक नहीं करना और विद्यार्थी थर्र थर् काँप रहे जबकि वो कभी किसी को फेल नहीं किया 😊 “रिंकज शिक्षक नहीं , आतंकवादी है “ : बेंच पर ऐसा लिखा भी मैंने पाया 🤣 सन 2005 में वो दूसरा यूनिवर्सिटी जॉइन कर लिया . कानपुर का रहने वाला , हमको दादा कहता था और कॉलेज के बाहर पैर छू के प्रणाम 😀

सन 2002 में , पहली बार जब जेएसएस नोएडा में पढ़ाया तो एक लेक्चर की तैयारी में तीन घंटा लगाया करता था . स्वाभाविक है कि लेक्चर बेहतरीन होगा . कोई बिहारी लड़का मेरा नाम ही बदल दिया : की रंजन सर रंजन झा हैं 😀 इतना ज्ञान झा जी लोग के ही पास होता है 🤣

~ प्रोफ़ेशन की ऊब , लेक्चर का तैयार नहीं होना , मेट्रो शहर में और ज़्यादा पैसा कमाने का दबाव इत्यादि आपको एक रोज़ बढ़िया शिक्षक से बकवास शिक्षक भी बना देती है . यह ट्रैप है . इससे बचना चाहिए वरना आगे गड्ढा है : जिसमें आप मेरी तरह गिर भी सकते हैं 😐

~ जीवन में एक बार शिक्षक का काम अवश्य करना चाहिए . डायस पर खड़ा होकर एक साथ 60/90/120 विद्यार्थी को कमांड करना पड़े तो सब स्मार्टनेस ग़ायब हो जाती है 🤣

रंजन ऋतुराज , दालान

मुझे अपने जीवन में स्वयं के ज्ञान या बुद्धिमत्ता से कहीं ज़्यादा तेज तरार और बेहतरीन विद्यार्थी मिले . आप सभी का शुक्रिया 😊

कहानी साबुन की …

खस साबुन

इस छोटे से जीवन में तरह तरह का साबुन देखा और लगाया लेकिन आज भी गर्मी के दिनों में खस और जाड़ा में पियर्स का कोई जोड़ नहीं है ।
बाबा को लक्स लगाते देखते थे । दे लक्स …दे लक्स । ढेला जैसा लेकिन सुगंधित । किसी पर चला दीजिए तो कपार फुट जाए । बाबू जी का पसंदीदा होता था – मार्गो – नीम वाला । जब हम लोग टीन एजर हुए तो – जिसका टीवी प्रचार बढ़िया – उहे साबुन खरीदाएगा । लिरिल 😝 आज भी लिरिल के प्रचार का कोई बराबरी नहीं कर पाया । नींबू की खुशबू के साथ – लिरिल से नहा लीजिए तो तन से लेकर मन तक फ्रेश फ्रेश 😊 नहाते वक़्त उसका प्रचार भी याद कर लीजिए 😝 मन कुछ और भी फ्रेश । फिर सिंथॉल आया – घोड़ा लेकर विनोद खन्ना अंकल ऐसा दौड़े की सिंथॉल भी बाज़ार में दौड़ने लगा – लेकिन हम कभी नहीं लगाए 😐 पिता जी उम्र के विनोद खन्ना नहीं पसंद 😐 आज तक सिंथॉल नहीं लगाए 😝
एक आता था – मोती साबुन । वो और भी ढेला । तराजू के बटखरा जैसा । चंदन की खुशबू पहली बार मोती में ही सुंघे । फिर दक्षिण भारत गए तो मैसूर चंदन वाला – सरकारी साबुन । ऐसा लगता था कि नहाने के बाद अब सीधे पूजा ही करना है – चंदन का असर होता था । कभी कभार खरीद कर थोक में घर भी लाते । अलग अलग क्वालिटी । एक्सपोर्ट क्वालिटी खरीदते वक्त एनआरआई टाइप फिल होता था 😁
लाइफबॉय का नसीब देखिए । उसका जिंदगी टॉयलेट के पास ही कट गया । कटा हुआ लाइफबॉय । जब किसी के शरीर में चमड़े का कोई बीमारी होता था तो बाबू उसको सलाह देते थे कि लाइफबॉय लगाव । हम उनका मुंह देखते थे – कोई कैसे शरीर में लाइफबॉय लगा सकता है 😐 लेकिन बैक्टीरिया मारने का सबसे बेजोड़ साबुन लाइफबॉय ही होता था ।
उसी टीनएज डिंपल आंटी गोदरेज के किसी साबुन के प्रचार में आई । कुछ ग्लोरी टाइप । ऐसा ना जुल्फ झटकी की दो चार महीना वो भी खारीदाया । कोई दोस्त महिम बोल दिया – लेडिस साबुन है । डिंपल आंटी का प्रचार मन में रह गया और साबुन दूर हो गया ।
पार्क एवेन्यू भी दूध के स्मेल टाइप कुछ प्रोडक्ट लाया लेकिन हम नहीं लगाए । बेकार । पूरा शरीर दुधाईन महकता था । फिर कुछ ओव डोब आया – जनानी टाइप । लगा के नहाने के बाद , कितना भी तौलिया से देह पोंछिए – लगता था अभी भी साबुन देह में लगा ही हुआ है 😐
लेकिन 15 साल दिल्ली / एनसीआर रहा । नया नया में फैब इंडिया गया – जेएनयू टाइप फिल करवाने के लिए – वहां से भी खस खरीदा लेकिन अफ़ग़ान ऑटो खस जैसा कहीं नहीं मिला । उत्तर भारत में ही बनता है लेकिन बिहार में बिकता है । हर साल थोक में अफ़ग़ान ओट्टो खस साबुन पटना से खरीद कर नोएडा / इंदिरापुरम जाता था । अब इसका लिक्विड भी आया है । गर्मी के दिन में ठंडा पानी से नहाने के साथ खस लगा लीजिए – पूरा दिन मन ठंडा ठंडा रहेगा । अब ये भी पहले वाला जैसा नहीं रहा – अलोए वेरा और गिलिश्रिन मिला दिया है । अब एक साबुन केक का दाम – 40 है ।
नोएडा में मॉल संस्कृति आया तो ‘ द बॉडी शॉप ‘ खुला । 300 -400 वाला साबुन भी आया । स्ट्राबेरी और मालूम नहीं क्या क्या सुगंध । वह दुकान पटना के मौर्या होटल में भी है ।
फिर , भारत का सबसे महंगा साबुन – मिलेनियम । ₹ 850 प्रति केक । 12 % चंदन का तेल । लगा लीजिए तो ऐसे ही खुद को मैसूर महाराजा समझने लगिएगा । अखोर बखोर से बात करने का मन नहीं करेगा 😝 7-8 साल से यही साबुन । बाबू जी किसान के बेटा हैं – एक दिन धमका दिए – जमीन जायदाद बेच के साबुन लगाओ 😐
हद हाल है …अब जन्मकुंडली के केंद्र में शुक्र बहुत मजबूती से बैठे हैं तो मेरा क्या दोष 😐 अब यही सब पसंद आएगा – साबुन तेल पाउडर गीत ग़ज़ल इत्यादि इत्यादि 😝
खैर …इस गर्मी अफ़ग़ान ओट्टो खस का कोई जवाब नहीं :))
~ रंजन / दालान

गुलाब बस गुलाब होते हैं …:))

गुलाब

यह गुलाब है । ऋतुराज वसंत के एक सुबह खिला हुआ गुलाब । गुलाब के साथ कोई विशेषण नहीं लगाते , गुलाब की तौहिनि होती है , बस इन्हें गुलाब कहते हैं । बड़ी मुश्किल से गुलाबी गुलाब दिखते है । इन्हें तोड़ना नहीं , मिट्टी से ख़ुशबू निकाल तुमतक पहुँचाते रहेंगे । गुलाब मख़मली होते हैं । गुलाब सिल्क़ी होते हैं । गुलाब ख़ुशबूदार होते हैं । बोला न …गुलाब के साथ कोई विशेषण नहीं लगाते …गुलाब बस गुलाब होते हैं …उनकी ख़ूबसूरती और सुगंध बस महसूस किए जाते हैं …:)) गुलाब तो बस माली का होता है …दूर से माली गुलाब को देखता है और गुलाब अपने माली को …वही माली जो चुपके से गुलाब के पेड़ के जड़ में खाद पानी दे जाता है – गुलाब खिलता रहे तो खर पतवार को हटा देता है …और खिला गुलाब मुस्कुराता रहता है …यह गुलाब है । ऋतुराज वसंत के एक सुबह खिला हुआ गुलाब …कहीं ऐसा गुलाब देखा है ? अगर ऐसा गुलाब नहीं दिखा तो ख़ुद को आइना में देख लेना …:)) तुम्हारी ख़ुशबू और तुम्हारे रंग वाला – गुलाबी गुलाब …:))

 ( राष्ट्रपति भवन के मुग़ल गार्डन से हिंदुस्तान टाइम्स के लिए खिंचा हुआ – एक गुलाबी गुलाब ) 

~ फ़रवरी / 2016 

वसंत पंचमी और सरस्वती

वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की शुभकामनाएं …!!!

शिशिर का भाई हेमंत अभी भी उत्तर भारत में अपने पैरों को जमाए खड़ा है और ऋतुराज वसंत भी चौखट पर है । कहने का मतलब की ठंड है ।
यह तस्वीर 1650 की मेवाड़ स्टाइल पेंटिंग है । मैंने इधर करीब 5 सालों में लाखों अलग अलग तरह की देवी और देवताओं की पेंटिंग देखी है । मेरे पिछले ही मोबाईल में करीब 16000 तस्वीरें थी । सरस्वती क्रिएटिविटी की देवी हैं और मैंने देखा कि हर एक क्रियेटिव इंसान अपने क्रिएटिविटी में काल और स्थान / जियोग्राफिकल लोकेशन को ही दर्शाया है । उसकी कल्पना वहीं सिमट कर रहती हैं । अगर देवी / देवताओं की पेंटिंग करनी है तो वह कहीं न कहीं अपने मन को रंगों में उतार देता है । तिब्बत की देवी और दक्षिण की देवी की आकृति में अंतर है । अधिकांश देवताओं के चेहरे को कोमल बनाया गया क्योंकि यह मान कर चला जाता है कि जो सच में शक्तिशाली है उसके अंदर क्षमा की शक्ति आएगी ही आएगी और क्षमा आपके अंदर की कोमलता को बढ़ाएगी । हालांकि आजकल के शिव जिम से लौटते ज्यादा नजर आते हैं , शक्ति के लिए बेचैन कम । हा हा हा । खैर , फिर से एक बार लिख रहा हूं – शक्ति के हजारों रूप और उन रूपों तक पहुंचने का दो ही आधार – या तो ईश्वरीय देन या फिर साधना । अब मेरा यह पुरजोर मानना है कि साधना से प्राप्त शक्ति कि आयु कम होती है और ईश्वरीय देन अंतिम दिन तक रहता है और आकर्षण हमेशा ईश्वरीय देन वाली शक्ति ही पैदा करती है । लेकिन शक्ति का असल आनंद आकर्षण पैदा करने में नहीं है , खुद से उसके आनंद पाने में हैं । लेकिन इंसान का व्यक्तित्व ही इतना छोटा होता है कि वह आनंद छोड़ बाज़ार में आकर्षण पैदा करने निकल पड़ता है । अब यह सही है या गलत – बहस का मुद्दा है ।
लेकिन , मैंने सरस्वती को खुद को छूते हुए महसूस किया है , कब , कैसे और क्यों – पता नहीं । और शक्ति के किसी भी रूप का खुद को छूते हुए महसूस करना ही असल आनंद है या कभी कभी पीड़ा भी :)) हा हा हा ।
फिर से एक बार – वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं …!!! ऋतुराज वसंत का आनंद लीजिए …
धन्यवाद ..!!!
~ रंजन / दालान / वसंत पंचमी – 2020

अभिभावक होना …

इस जीवन में कई मुश्किल काम करने होते हैं – उन्ही में से एक है – ‘पैरेंटिंग’ ! अब इस उम्र में जब बच्चे टीनएजर हो चुके हैं – इसका दबाब महसूस होता है ! हर एक पीढी अपने हिसाब से – अपने दौर की नज़र से – अपनी बेसिक क्लास की समझ से ‘पैरेंटिंग’ करना चाहती है ! जैसे मेरे माता पिता जिस जमाने से आते थे – वहां ‘नौकरी’ ही बहुत बड़ी चीज़ थी और मै जिस तरह की विचारधारा और एक्सपोजर ले रहा था – वहां एक जबरदस्त कनफ्लिक्ट था – जीवन मतलब ‘आदर’ और किसी भी तरह की नौकरी से किसी के जीवन का भरण पोषण हो सकता है – उसे ‘आदर’ कैसे मिल सकता है – यह बात मेरी समझ से परे था ! संभवतः मेरे बचपन में मेरे दादा जी का प्रभाव था जो ‘पोलिटिक्स’ में थे और मेरे पिता जी – मुझपर से अपना लगाम ढीली करने के मूड में नहीं थे – संभवतः आज भी नहीं – उन्हें आज भी लगता है – जिस दिन लगाम ढीली हुई – मै ‘हेड ओं कोलिजन’ कर बैठूँगा…हा हा हा !
खैर …अब ज़माना बहुत बदल चुका है …बच्चे जन्म से ही ग्लोबल एक्सपोजर ले रहे हैं …जो मेट्रो लिविंग हमारे कल्पना में बसती थी …वो इलेक्ट्रोनिक माध्यम से उनकी नज़र में चौबीस घंटे हैं …जो गीत हम रेडिओ पर सुने ..वो किसी भी पल उनके उंगली के इशारे इंटरनेट के माध्यम से है ..! सबसे बड़ी बात – “एक प्लेन / समतल प्लेटफार्म’ की तरह समाज हो चुका है – जहाँ न कोई बड़ा है और ना ही कोई छोटा है – यह इस शताब्दी की सबसे बड़ी सामाजिक परिवर्तन है ! हम नेहरु और मुस्तफा कमालपाशा को पढ़ बड़े हुए – हमारे बच्चे स्टीव जॉब्स और फ्लिप्कार्ट / अमेज़न की सफलता पढ़ रहे हैं ! दो वक़्त की रोटी अब दिक्कत नहीं रही – मेरे गुरु और भारत के मशहूर प्रोफ़ेसर स्व० चन्द्रशेखर झा ( भूतपूर्व आईआईटी डाइरेक्टर एवं बीएचयू वाईस चांसलर) ने करीब दस साल पहले कहा था – तुम एक शिक्षक हो – तुम्हारे विद्यार्थी तीस की उम्र तक लगभग छः देशों के नागरिक के साथ काम कर चुके होंगे – जिन गोरों को देख तुम आँखें बड़ी कर लेते हो – तुम्हारे बच्चे उनके साथ न्यूयार्क के किसी रेस्त्रां में – किसी वीकएंड अपनी शाम बिता रहे होंगे – उन गोरों के बराबर कांफिडेंस के साथ !
अब इस माहौल में – कैसी ‘पैरेंटिंग’ हो – एक अज़ीज़ मित्र ने कहा – औलाद के जीने खाने के लिए अकूट धन है – बस एक ही चीज़ सिखानी है – इस भीड़ में कैसे रहा जाए – और खुद की भावनाओं को किसी चोट से कैसे बचाया जाय – क्योंकी यह ‘इंसान की प्रकृती’ से जुड़ा है ! उसके कहने का एक ही मतलब था – अपने बच्चे के अन्दर ‘ फेक और असल’ की पहचान करने की क्षमता बढ़ाना !
कई बार बेहतर बेहतर पैरेंटिंग के चक्कर में – हमारी पिछली पीढी – हमें इतना ज्यादा सुरक्षा कवच पहना दी – यह भूलते हुए – एक दिन हमें उसी समाज में जाना है – जिससे बचा के हमारी परवरिश की गयी – फिर हमपर जो गुज़री वो हम ही जाने – सिखने के चक्कर में – हम अपनी मासूमियत कब खो बैठे – पता ही नहीं चला !
सबसे बड़ी मुश्किल है – बेटीओं की पैरेंटिंग – अब उनपर जबरदस्त बोझ आ चुका है – उन्हें ना सिर्फ अपनी ‘प्रकृती’ के हिसाब से जीवन जीना है बल्की अपने जीवन के हमसफ़र के साथ कदम भी मिलाना है – उसे अपने क्लास में टॉप कर के बढ़िया प्रोफेशनल / नौकरी भी पकडनी है – अपनी कोमलता को भी बरक़रार रखना है – और माँ भी बनना है – हाँ …सुबह का नास्ता भी तो तैयार करना है – अपनी मेट्रो रेल को पकड़ने के पहले – देर शाम थकने के बाद – चाय बनाना भी तो उनके जिम्मे होगा …अगर हमसफ़र ने कोई नया फ़्लैट खरीदा – लोन में आधा का हिस्सेदार भी बनना है …और न जाने …क्या क्या …वीकएंड में बच्चों का होमवर्क भी !
लडके तो वही थे …जो कल थे …!
पैरेंटिंग मुश्किल हो चुकी है …जो कुछ हम अपने अनुभव से सिखायेंगे …बच्चे उससे बीस साल आगे की सोच में जियेंगे …लगाम कब ढीली रखनी है …कब जोर से पकड़ना है …कुछ तो हमें भी सिखना है …:))
बस यूँ ही …कई आयामों को एक सांस में …लिखते हुए …:))
थैंक्स …:))
~ रंजन /दालान

जब तुम ताज को देखकर …

तब जब तुम ताज को देख कर झूम जाओगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
अपनी सफेद बालों और बेहतरीन पाशमिना के साथ ….
उम्र के उस मोड़ पर .
एयरपोर्ट से उसी तेज चाल से निकलते हुए ….
मुझे देख मुस्कुरा बैठोगी ….
टैक्सी लाए हो या खुद ड्राइव करोगे …
थोड़ी तंग …थोड़ी परेशान …
मुझसे हमेशा कि तरह बेझिजक सवाल पूछ बैठोगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
अपनी सफेद बालों और बेहतरीन पाशमीना के साथ ….
मै भी थोड़ा नटखट …
उम्र के उस मोड़ पर …
हल्के से पूछ बैठूंगा …
बगल में बैठोगी या पीछे …
उम्र के उस मोड़ पर .
रास्ते में वृंदावन और मथुरा भी तो पड़ता है …
हौले से तुम मुझसे पूछ बैठोगी …
उम्र के उस मोड़ पर .
सफेद बालों और बेहतरीन पाशमिना के साथ …

~ रंजन / दालान / 16.01.20

ज़िन्दगी के पन्ने

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – आउट ऑफ साईट , आउट ऑफ माइंड – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !

~ RR / Daalaan / 18.01.2015

प्रेम और युद्ध

दिनकर लिखते हैं – ” समस्या युद्ध की हो अथवा प्रेम की, कठिनाइयाँ सर्वत्र समान हैं। ” – दोनों में बहुत साहस चाहिए होता है ! हवा में तलवार भांजना ‘युद्ध’ नहीं होता और ना ही कविता लिख सन्देश भेजना प्रेम होता है ! युद्ध और प्रेम दोनों की भावनात्मक इंटेंसिटी एक ही है ! युद्ध में किसी की जान ले लेने की शक्ती होनी चाहिए और प्रेम में खुद को विलीन करने की शक्ती ! दोनों का मजा तभी है – जब सामनेवाला भी उसी कला और साहस से मैदान में है ! कई बार बगैर कौशल भी – साहस से कई युद्ध या प्रेम जीता जाता है – कई बार सारे कौशल …साहस की कमी के कारण वहीँ ढेर हो जाते हैं …जहाँ से वो पनपे होते हैं ! और एक हल्की चूक – युद्ध में जान ले सकती है और प्रेम में नज़र से गिरा सकती है !
इतिहास गवाह है – ऐसे शूरवीरों से भरा पडा है – जिसने प्रेम में खुद को समर्पित किया और वही इंसान युद्ध में किसी को मार गिराया – यह ईश्वरीय देन है – भोग का महत्व भी वही समझ सकता है – जिसने कभी कुछ त्याग किया हो !
कहते हैं – राजा दशरथ किसी युद्ध से विजेता होकर – जब कैकेयी के कमरे में घुसे तो उनके पैर कांपने लगे – यह वही कर सकता है – जिसे युद्ध और प्रेम दोनों की समझ हो ! दोनों में पौरुषता और वीरता दोनों की अनन्त शक्ती होनी चाहिए ! पृथ्वीराज चौहान वीर थे – प्रेम भी उसी कौशल और साहस से किया – जिस कौशल और साहस से युद्ध ! मैंने इतिहास नहीं पढ़ा है – पर कई पौरुष इर्द गिर्द भी नज़र आये – जिनसे आप सीखते हैं ! हर पुरुष की तमन्ना होती है – वो खुद को पूर्णता के तरफ ले जाए – और यह सफ़र आसान नहीं होता !
युद्ध और प्रेम …दोनों के अपने नियम होते हैं – और दोनों में जो हार जाता है – उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है ! रोमांस / इश्क प्रेम नहीं है …महज एक कल्पना है ! फीलिंग्स नीड्स एक्शन – जब भावनाएं एक्शन डिमांड करती हैं – तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है – तब पता चलता है – ख्यालों को मन में पालना और उन्हें हकीकत में उतारना – कितना मुश्किल कार्य है !
युद्ध के सामान ही प्रेम आपसे एक एक कर के सब कुछ माँगता चला जाता है – देनेवाला किसी भी हाल में लेनेवाले से उंचा और ऊपर होता है – युद्ध में हारने वाला आपसे माफी मांगता है – प्रेम में बहाने बनाता है – युद्ध में आप माफ़ कर सकते हैं – पर प्रेम में कभी माफी नहीं मिलती – युद्ध भी कभी कभी प्रेम में बदल जाता है और सबसे बड़ी मुश्किल तब होती जब आप जिससे प्रेम करे – उसी से युद्ध करना पड़े ! और उसी इंटेंसिटी से करें – जिस इंटेंसिटी से प्रेम किया था – फिर तो ….वह दुबारा भगोड़ा हो सकता है …:))

~ RR / Daalaan / 19.01.2015

प्रकृति , धरा और ऋतुराज

धरा – सखी , ये किसकी आहट है ?
प्रकृति – ये वसंत की आहट लगती है ..
धरा – कौन वसंत ? हेमंत का भाई ऋतुराज वसंत ?
प्रकृती – हाँ , वही तुम्हारा ऋतुराज वसंत …:))
धरा – और ये शिशिर ?
प्रकृति – वो अब जाने वाला है …
धरा – सुनो , मैं कैसी दिख रही हूँ …
प्रकृति – बेहद ख़ूबसूरत …
धरा – सच बोल रही हो …न..
प्रकृति – मैंने कब झूठ बोला है …
धरा – ऋतुराज के साथ और कौन कौन है …
प्रकृति – कामदेव हैं …
धरा – ओह …फिर मुझे सजना होगा …
प्रकृति – मैंने तुम्हारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – वो कब और कैसे …
प्रकृति – सरसों के लहलहाते खेतों से ..आम्र की मंजरिओं से …
धरा – सुनो , फागुन भी आएगा ..न …
प्रकृति – तुम बुलाओ और वो न आए …:))
धरा – अबीर के संग आएगा ?
प्रकृति – गुलाल के संग भी …
धरा – सुनो ..मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – सूरज की नज़र लग जाएगी …
धरा – सुनो ..ये ऋतुराज वसंत कब तक रुकेंगे ?
प्रकृति – कहो तो …पूरे वर्ष रोक लूँ …
धरा – नहीं …नहीं…सच बताओ न …
प्रकृति – चैत कृष्ण पक्ष तक तो रुकेंगे ही …
धरा – कामदेव कहाँ हैं ?
प्रकृति – तुम्हारे नृत्य का इंतज़ार कर रहे हैं …
धरा – थोड़ा रुको …कब है नृत्य…
प्रकृति – वसंत पंचमी को …
धरा – सरस्वती पूजन के बाद ?
प्रकृति – हां …
धरा – सरस्वती कैसी हैं ?
प्रकृति – इस बार बड़ी आँखों वाली …
धरा – और उनका वीणा ?
प्रकृति – उनके वीणा के धुन पर ही तुम्हारा नृत्य होगा …
धरा – सुनो …मेरा और श्रृंगार कर दो …
प्रकृति – कर तो दिया …
धरा – नहीं …अभी घुँघरू नहीं मिले …
प्रकृति – वो अंतिम श्रृंगार होता है …
धरा – फिर अलता ही लगा दो …
प्रकृति – सारे श्रृंगार हो चुके हैं …
धरा – फिर नज़र क्यों नहीं आ रहा …
प्रकृति – जब ऋतुराज आते हैं …धरा को कुछ नज़र नहीं आता …
धरा – कहीं मै ख्वाब में तो नहीं हूँ …
प्रकृती – नहीं सखी …हकीकत …वो देखो तुम्हारा सवेरा …
धरा – दूर से आता …ये कैसा संगीत है …
प्रकृती – कामदेव के संग वसंत है …ढोल – बताशे के संग दुनिया है …
धरा – मेरा बाजूबंद कहाँ है …?
प्रकृती – धरा को किस बाजूबंद की जरुरत ?
धरा – नहीं …मुझे सोलहों श्रृंगार करना है ..मेरी आरसी खोजो ..
प्रकृती – मुझपर विश्वास रखो – मैंने सारा श्रृंगार कर दिया है …
धरा – नारी का मन ..कब श्रृंगार से भरा है ..
प्रकृती – चाँद से पूछ लो …:))
धरा – सुनो …ऋतुराज आयें तो तुम छुप जाना …आँगन के पार चले जाना …
प्रकृती – जैसे कामदेव में ऋतुराज समाये – वैसे ही तुम में मै समायी हूँ …
धरा – नहीं …तुम संग मुझे शर्म आएगी …
प्रकृती – मुझ बिन ..तुम कुछ भी नहीं …
धरा – सखी ..जिद नहीं करते …
प्रकृती – मै तुम्हारी आत्मा हूँ …आत्मा बगैर कैसा मिलन ..
धरा – फिर भी तुम छुप जाना …:))
ऋतुराज के रुकने तक …उनके ठहरने तक ….:))
………………
~ RR / 09.02.2016 / Patna

तस्वीर साभार : सुश्री गीता कामत , आसाम , भारत