Archives February 2020

प्रेम और विशालता

प्रेम और विशालता :
दिनकर लिखते हैं – “नर के भीतर एक और नर है जिससे मिलने को एक नारी आतुर रहती है – नारी के भीतर एक और नारी है – जिससे मिलने को एक नर बेचैन रहता है ” ..:))
और यहीं से शुरू होती है …प्रेम और विशालता की कहानी ! ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है !
कोई भी नर किसी नारी के प्रेम से उब नहीं सकता – उसके अन्दर प्रेम की कमी होती है – वो कठोर होता है – उसे खुद को मृदुल बनाना होता है – वह डूबता चला जाता है – वह डूबता चला जाता है ! नारी हैरान रहती है – आखिर क्या है इस प्रेम में – वो समझा नहीं पाता है – उसे वो प्रेम का सागर भी कम लगता है !
अब सवाल यह उठता है – प्रेम में डूबने के बाद भी – वह प्रेम उसे कम क्यों लगता है ? नारी अपने प्रेम के बदले नर की विशालता देखना चाहती है – क्योंकी प्रकृती ने उसे प्रेम तो दिया पर उस प्रेम को रखने के लिए एक विशालता नहीं दी ! नारी अपने प्रेम को उस विशाल नर को सौंपना चाहती है जो उसके प्रेम को अपने विशालता के अन्दर सुरक्षित रख सके ! और यहीं से शुरू होता है – द्वंद्ध !
तुम मुझे थोड़ा और प्रेम दो – तुम थोड़े और विशाल बनो ! अभी मै भींगा नहीं – अभी मै तुम्हारे विशालता में खोयी नहीं – वो अपना प्रेम देने लगती है और नर अपनी विशालता फैलाने लगता है – हाँ …प्रेमकुंड और विशालता ..दोनों एक ही अनुपात में बढ़ते रहने चाहिए ! एक सूखे कुंड में एक विशाल खडा नर – अजीब लगेगा और एक लबालब भरे कुंड में – एक छोटा व्यक्तित्व भी अजीब लगेगा !
नारी उस हद तक विशालता खोजती है जहाँ वो हमेशा के लिए खो जाए – नर उस हद प्रेमकुंड की तलाश करता है – जहाँ एक बार डूबने के बाद – फिर से वापस धरातल पर लौटने की कोई गुंजाईश न हो !
इन सब के जड़ में है – माता पिता द्वारा दिया गया प्रेम – पिता के बाद कोई दूसरा पुरुष उस विशालता को लेकर आया नहीं और माँ के बराबर किसी अन्य नारी का प्रेम उतना गहरा दिखा नहीं – फिर भी तलाश जारी है – डूबने की …फैलने की …प्रेमकुंड की …विशालता की !
अपने प्रेमकुंड को और गहरा करते करते नारी थक जाती है – अपनी विशालता को और फैलाते फैलाते नर टूट जाता है …शायद इसीलिये दोनों अतृप्त रह जाते है …अपनी गाथा …अगले जन्म में निभाने को …
ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है – जहाँ उन्मुक्ता बगैर किसी भय के हो ….
~ कुछ यूँ ही …:))

28 Feb 2015 .

स्त्री – पुरुष / अर्धनारीश्वर

स्त्री – पुरुष / अर्धनारीश्वर

आज महाशिवरात्रि है ! स्त्री पुरुष के बीच के संबंधों को समझने का एक अध्यात्मिक कोण ! किसी भी चीज को समझने का अलग अलग कोण है ! अब आप अपने सुविधानुसार या किसी कारणवश किसी भी चीज को अपने कोण से देखते हैं और आपको प्रकृति भी आपको अपने कोण से देखने की छुट भी देती है ! सर्वप्रथम  यह मान के चलना चाहिए की यह ‘महाशिवरात्रि’ नहीं बल्कि ‘महाशिवशक्ति रात्री’ है ! शिव और शक्ति दोनों के मिलन की रात्री है ! अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट ! एक ऐसी संरचना या  अनुभूति जहाँ शिव और शक्ति दोनों की बराबर उपस्थिति है ! जैसे ‘शिव लिंग की पूजा’ – वो शिव लिंग नहीं बल्कि ‘शिव और शक्ति’ दोनों का लिंग है ! वो मिलन के मुद्रा में है – वह मिलन जो इस जगत का आधार है , वो मिलन जो इंसान के परम सुख का आधार है ! यही मिलन अर्धनारीश्वर है ! संभवतः समाज पुरुष प्रधान रहा होगा तो इस शिव और शक्ति के मिलन वाले दिन को महाशिवरात्री कह दिया गया या शिव शक्ति के लिंगों के मिलन को सिर्फ शिव लिंग कह दिया गया और यह परंपरा चलती आई ! हालांकि इस विषय पर मैंने कुछ साल पहले हलके इशारा में इसी शिव रात्री के दिन लिखा था – यह कह कर की यह ‘शिव शक्ति रात्रि’ है ! आज का संयोग देखिये – मैंने इसी नाम से एक ज्वेलरी  का दूकान भी देखा !
जब हम शिव के नाम के साथ शक्ति का भी प्रयोग करते हैं  संभवतः हम शक्ति को भी उचित स्थान देते हैं , हालांकि धर्म के जानकार यह कह सकते हैं की शिव में शक्ति का मिलन है तो शिव नाम से ही शक्ति का भी ध्यान होता है ! यह तर्क भी उचित है लेकिन मै विशुद्ध शक्ति का उपासक हूँ तो मेरे व्यक्तिगत मत से शिव के साथ साथ शक्ति शब्द का भी प्रयोग होना चाहिए ! या फिर लोग करते आये हैं ! लेकिन हमारी कल्पना में शिव पूर्ण है – जहाँ शक्ति समाहित है !
स्त्री और पुरुष के बीच तीन तरह के सम्बन्ध बनते है – कारण जो भी हो ! शारीरिक , भावनात्मक और अध्यात्मिक ! उम्र के अलग अलग पड़ाव पर अलग अलग ढंग से बन सकते हैं ! माँ और पुत्र में यह अध्यात्मिक होता है – जन्म के साथ ही शायद हम पुरुष अपनी माँ के साथ एक अध्यात्मिक भाव बनाते हैं ! फिर उम्र के हिसाब से अन्य स्त्रीओं के साथ शारीरिक आकर्षण और साथ में भावनात्मक भी ! कभी भावनात्मक तो कभी शारीरिक आकर्षण – उस दौर के हिसाब के ! लेकिन माँ के साथ बचपन में अध्यात्मिक सम्बन्ध के बाद – फिर यौवन की पहली नज़र की पहली फुहार भी किसी अन्य स्त्री के साथ भावनात्मक ही होती है – शारीरिक नहीं होती है ! मै बात यौवन की पहली फुहार की कर रहा हूँ ! फिर उम्र के साथ शारीरिक आकर्षण ! प्रकृति है ! आप प्रकृति से नहीं बच सकते ! जैसे आपके घर का कुत्ता विशुद्ध शाकाहारी ढंग से दूध रोटी खिला कर पाला पोशा गया हो लेकिन हड्डी देखते ही वो उसकी सुगंध के तरफ आकर्षित होगा ही होगा ! यह प्रकृति है ! बकरी को हड्डी नहीं लुभाएगा क्योंकि बकरी को प्रकृति ने शाकाहारी बना के भेजा है !
लेकिन एक लोचा है – उम्र के एक ख़ास पडाव या दौर में क्षणिक ही सही लेकिन शारीरिक और भावनात्मक सम्बन्ध – दोनों साथ साथ होते है ! यह जोड़े जोड़े पर निर्भर कर सकता है – किसमे किस आकर्षण का अनुपात ज्यादा है ! कहीं शारीरिक ज्यादा तो कहीं भावनात्मक ज्यादा ! लेकिन ‘शिव शक्ति’ का मिलन इन तीनो भावों को दर्शाता है ! तीसरा भाव ‘अध्यात्मिक’ बहुत कठिन है ! इसे बहुत वक़्त चाहिए ! बहुत ! कई संबंधों में यह भाव तब आता है – जब बाकी के दोनों भाव ख़त्म हो चुके हों ! आप आस पास के संबंधों को गौर से देखिये – कई पति पत्नी में यह अध्यात्मिक भाव आपको नज़र आएगा – जब पत्नी माँ के रूप में बन जाती है ! काफी उमरदराज जोड़ों में यह नज़र आएगा – जब उन्हें जीवन का अनुभव सच के करीब लाएगा ! लेकिन कम उम्र में – इन तीनो भावों के साथ कोई रिश्ता बनाना अत्यंत कठिन है ! सारे योग फेल हो जायेंगे क्योंकि मनुष्य की प्रकृति इसकी इजाजत नहीं देती ! दो भाव एक साथ आयेंगे तो तीसरा नदारत ! और सिर्फ एक भाव के साथ सम्बन्ध को टूटने का ख़तरा क्योंकि इन सारे रहस्यों को एक वातावरण भी कंट्रोल करता है – जिसे हम संसार कहते हैं और संसार आपके हिसाब से नहीं चलता !
शायद यही वजह है हम तीसरे भाव के लिए ईश्वर की तरफ धकेल दिए जाते हैं ! क्योंकि एक साथ इन तीनो भाव के होने की इजाजत यह संसार नहीं देता ! शायद इसलिए मैंने अपने एक पुराने पोस्ट में ईश्वर , प्रकृति के साथ साथ संसार को भी एक बराबर की जगह दी है ! हालांकि मेरा झुकाव प्रकृति के तरफ होता है क्योंकि मै मानव स्वभाव को समझने की कोशिश करता हूँ !
एक बात और क्लियर है की जो एक ख़ास उम्र के दौर में है और अद्यात्मिक है – वह अपनी आत्मा या अपने से ऊँची आत्मा के साथ संपर्क बनाना चाहता है या बन चुका है – उसके अंदर भी बाकी के भाव होंगे ! यहाँ समाज या तीसरा व्यक्ति गलत कैलकुलेट करता है और कई बार अध्यात्मिक लोग कई लांक्षण के शिकार होते हैं क्योंकि वो बाकी के दोनों भाव को रोक नहीं पाते ! यहाँ उम्र भी कारक है ! लेकिन समाज कहता है की जब आप अध्यात्मिक हो गए यानी अपने से ऊपर किसी आत्मा के संपर्क में आ गए फिर आपके दोनों बाकी भाव ख़त्म हो जाने चाहिए ! शायद यह योग से संभव है ! लेकिन योग की भी काल / समय के साथ एक सीमा है ! लेकिन यह योग बहुत हद तक मदद करता है लेकिन किसी भाव को रोकना – प्रकृति के नियम के खिलाफ है ! जैसे किसी नदी की दिशा को मोड़ना ! फिर वो बाढ़ लाएगी ! शायद यही वजह है की इंसान अध्यात्म में ईश्वर के किसी रूप से खुद को कनेक्ट करना चाहता है – इंसान का कोई भरोसा नहीं और इंसान के बीच सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक या शारीरिक आकर्षण ही बन के रह पाता है ! भावनात्मक भाव के चरम बिंदु से अध्यात्म की शुरूआत होती है और शारीरिक भाव के चरम बिंदु से भावनात्मक ! शायद यही वजह है की कई बार सेक्स वर्कर अपने चरम बिंदु से बचते / बचती है क्योंकि यहाँ से उनको भावनात्मक भाव के आ जाने का भय होता है ! यह कतई जरुरी नहीं की भावनात्मक भाव के लिए स्पर्श जरुरी है लेकिन स्पर्श के माध्यम से आया भावनात्मक लगाव थोड़ा टिकाऊ होता है !
स्त्रीयां यहाँ अलग ढंग से सोचती है – कहीं एक मशहूर लेखिका ने लिखा था – ‘मन से देह का रास्ता जाता है या देह से मन का – कहना कठिन है’ ! स्त्री के लिए उसके देह का रास्ता मन से होकर जाता है और पुरुष के लिए उसके मन का रास्ता देह से होकर जाता है !
शायद यही वजह है की – कई दफा कोई स्त्री अपने पुरुष के अन्य दैहिक सम्बन्ध को तो स्वीकार कर लेती है लेकिन अपने पुरुष के भावनात्मक समबन्ध पर चिढ जाती है , वहीँ दूसरी और पुरुष अपने स्त्री के अन्य भावनात्मक सम्बन्ध को स्वीकार तो कर लेते हैं लेकिन शारीरिक कतई नहीं ! हालांकि भय दोनों तरफ होता है – कहीं यह सम्बन्ध भावनात्मक से शारीरिक न हो जाए या फिर शारीरिक से भावनात्मक न हो जाए ! लेकिन तीनो भावों की जरुरत स्त्री और पुरुष दोनों को होती है ! देर सबेर या कम ज्यादा ! खैर , बात अर्धनारीश्वर से शुरू हुई थी ! जब शक्ति शिव में समाहित होती है – मूलतः वो प्रेरणा होती है ! कई साधारण से साधारण पुरुष भी किसी स्त्री के संपर्क मात्रा से अपने सांसारिक जीवन में कई सीढ़ी ऊपर चढ़ जाते हैं – पताका लहराते हैं ! अब यह उस पुरुष पर निर्भर करता है की वह कैसी प्रेरणा स्वीकार करता है ! यह उसकी अपनी वर्तमान परिस्थिति या ग्रहों की दिशा तय करेगी ! हर पुरुष एक शिव है और हर स्त्री एक शक्ति है ! कब किस शक्ति को किस शिव में समाहित होना है – यह ग्रहों के भाव तय करेंगे ! लेकिन शक्ति के समाहित होने के साथ कोई इंसान शिव न बने – यह असंभव है ! अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट मूलतः ‘शिव शक्ति’ के मिलन के उस रूप को है ! अब आप इसे भावनात्मक भाव से देखिये या शारीरिक या अध्यात्मिक – यह सोच आपकी वर्तमान मनोवस्था की परिचायक होगी ! लेकिन इस सारे कथा कहानी या शास्त्र का स्रोत समाज या संसार रहा है जो प्रकृति के इन रहस्यों को स्वीकार तो करता है लेकिन अपने शर्तों या नियम के साथ और इन रहस्यों के साथ बंधे सामाजिक शर्त को हम भी रहस्य मान बैठते हैं या फिर इंसान इतना कमज़ोर होता है की समाज के शर्तों में बंधी इन रहस्यों को स्वीकारने का हिम्मत उसके अंदर नहीं ! कारण जो भी हो लेकिन किसी भी स्त्री पुरुष का मिलन किसी भी भाव के साथ ही ‘अर्धनारीश्वर’ का कांसेप्ट है ! अब वह भाव वह जोड़ा तय करेगा !
याद रहे – सभी भावों की आयु कम है ! और इंसान की अपेक्षा अनंत है ! तभी प्रकृति और सामाज के साथ साथ ईश्वर भी है या यूँ कहिये ईश्वर ही हैं :)) 

@रंजन ऋतुराज / 4 मार्च 2019 / महाशिवशक्ति रात्री 🙂 

गुलज़ार से मुलाकात : छह साल पहले …2014 में

पटना लिट्रेचर फेस्टिवल -2014

कल्पनाओं के शिखर पर एक अबोध तमन्ना बैठी होती है – उसकी अबोधता को देख ईश्वर उसे अपने गोद में बैठाते हैं – फिर वो तमन्ना एक दिन हकीकत बन बैठती है…:))


आज का दिन बेहतरीन रहा – कल देर रात तक जागने के बाद – सुबह नींद ही खुली ‘रविश’ की आवाज़ से – नहाते धोते …थोड़ी देर हो ही गयी ..झटपट भागा …रविश स्टेज पर बैठे थे ..वहीं से हाथ हिलाया ..मै भी सबसे पिछली कतार में बैठ गया …तब तक एक आवाज़ आयी “आप दालान वाले हैं ..न ” – एक तस्वीर खिंचवानी है आपके साथ …ये थे आभाश भूषण – दालान को चाहने वाले …फिर वो दोनों पति पत्नी मेरे साथ फोटो खिंचवाए – बेहद सज्जन और उन्दोनो ने बताया – दालान पर दी गयी सुचना कारण ही वो दोनों यहाँ आये ..:))
रविश का सत्र ख़त्म होने के साथ – उनका दूसरा सत्र शुरू होने वाला था – इसमे कोई दो राय नहीं – रविश काफी लोकप्रिय हैं – कई नौजवान उनके साथ फोटो खिंचवाने को बेताब थे – मेरी वेश भूषा देख – उनके प्रशंसक भी “दालान” वाले समझ गए ..:)) बढ़िया लगा …
रविश के दुसरे सत्र के ठीक पहले आये – “गुलज़ार” ..झटपट भागा – दोनों हाथ से उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया – आभास भूषण समझ गए – उन्होंने बाद में गुलज़ार के साथ मेरी कुछ तस्वीरें लीं ..गुलज़ार के साथ थे – ओम थानवी जी – मै क्या बोलता – भाव विभोर था – बस एक लाईन सुना पाया – “सारी रात मेरे शब्द जलते रहे – वो पत्थर से मोम बनते रहे..:)) गुलज़ार के ठीक पीछे बैठ – रविश का दूसरा सत्र – जिसके वो बादशाह जाने जाते हैं – नोस्टैल्जिया ..मेरा भी पसंदीदा …उनके साथ थे – अंग्रेज़ी और डेनिश के लेखक – “तबिश खैर” – ताबिश सभी भाषा प्रयोग कर रहे थे – रविश अपनी हिंदी और भोजपुरी …रविश बोलते बोलते – “छठ पूजा की यादों” पर बोलना शुरू कर दिए – डर था – कहीं फिर से वो मेरा नाम न बोल बैठें ..:)) रविश संभले – शुक्रगुज़ार रहता हूँ – हर ऐसे समाचार पत्र के लेख में वो मेरा नाम ठूंस ही देते हैं …
रविश को लोग घेरे हुए थे – मैंने बोला – रविश ..मैंने पटना म्यूजियम नहीं देखा है …और आज आप मेरे गाईड बन के ..मुझे घुमाएं ..:) रविश तैयार हुए ..हम दोनों अकेले निकल पड़े …घूम कर लौटे तो …पवन कार्टूनिस्ट और उनकी पत्नी रश्मी दोनों रविश को अपने कार्टून का एक बेहद बढ़िया गिफ्ट …इसी बीच ..टेलेग्राफ़ के रोविंग एडिटर ‘संकर्षण ठाकुर’ मिल गए – बोले ..रंजन ..मेरी भी किताब का आज लोकार्पण है – आप आईये – संकर्षण बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं – अपने साथ वालों से परिचय कराने लगे – रंजन को पढने से ज्यादा सुनने में मजा आता है …:))
फिर हम और रविश संकर्षण ठाकुर के किताब जो नितीश कुमार के ऊपर छपी है …के लोकार्पण में चले गए – ढेर सारी गप्प – व्यक्तिगत बातें …वहां से निकले तो …रविश के साथ पटना का सैर …फिलोसोफी …फिलोसोफी और फिलोसोफी …ढेर सारी गाईडलाईन …दोनों तरफ से …:))
रविश …तुम बेहद इज्ज़त करते हो …आज भी याद है ..माँ के देहांत के बाद इंदिरापुरम पहुँचने के बाद …पिछले साल …तुम सबसे पहले मिलने आये थे …कोई शक नहीं हिंदी न्यूज के बेताज बादशाह हो ..तुम पर ईश्वर का आशीर्वाद बना रहे …अहंकार तुमसे कोसों दूर रहे …और मेरा नाम तुम्हारे जुबान पर नहीं आये …:))

~ रंजन / 15.02.14

प्रेम …

प्रेम का कोई अलग अलग रूप नहीं होता …हां इसके अलग अलग स्तर जरुर होते हैं ..अब आप किस स्तर पर हैं …यह आपकी क्षमता है …जैसे किसी महासागर की गहराई को नापने की क्षमता …गोताखोर के ताकत पर ! यह जरुरी नहीं की प्रेम स्त्री और पुरुष के बीच ही हो …एक वैज्ञानिक अपने लैब से प्रेम करता है …एक लेखक अपने विचार से प्रेम करता है …एक चित्रकार अपने चित्र से करता है …एक कंप्यूटर इंजीनियर अपने कोडिंग से प्रेम करता है …प्रेम वही जहाँ आपको आनंद मिले …कई लोग खुद से भी प्रेम करते हैं ..आईने में खुद को देख मंत्रमुग्ध …जहाँ खुशी मिले ..वही प्रेम है …
पर …यह इतना भी आसान नहीं ..जितना यहाँ लिखना …प्रेम एक एक कर के आपसे सब कुछ मांगता है …आप कहाँ तक अपने प्रेम पर न्योछावर हैं…यह आपकी क्षमता …और आप उसी स्तर को जीते हैं …पर इस अनंत गहराई को छूने की कोशिश ही …प्रेम है !
स्त्री और पुरुष के बीच का प्रेम प्रकृती है …और कोई इंसान इतना ताकतवर नहीं हुआ है जो प्रकृती से लड़ सके …यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ! जीवन एक सफ़र है – और जहाँ मन हमेशा के लिए ठहर जाय …वही प्रेम है ! मन चंचल है – उसे विशुद्ध प्रेम से बांधना होता है …पर विशुद्ध प्रेम क्या है …’माँ – औलाद’ का प्रेम ? प्रकृती का नियम है – जो माँ अपने औलाद को अनंत प्रेम करती है – वही माँ दुसरे के बच्चे के लिए वही प्रेम क्यों नहीं पैदा कर पाती – ‘प्रेम अपनापन तलाशता है’ – यह अपनापन खून से भी आ सकता है – साथ रहने से भी हो सकता है – जहाँ अपनापन नहीं वहां प्रेम नहीं …
प्रेम आदर खोजता है …प्रेम को सिंहाशन चाहिए …वह सर्वोत्तम है …भावनाओं का बादशाह …विशुद्ध प्रेम आशीर्वाद देता है – ताकत देता है – जीने की उमंग देता है …प्रेम से सबकुछ लेने के लिए उसे पूजना होता है …अपने अहंकार को उसके चरणों में समर्पित करना होता है …और समर्पण बगैर विश्वास नहीं आता …और किसी के विश्वास की हिफाज़त करना ही …शायद ‘प्रेम’ है …:))

~ रंजन

वर्ल्ड रेडियो डे

आज वर्ल्ड रेडिओ डे है – रेडिओ से जुडी कई यादें हैं – यूँ कहिये जिस जेनेरेशन से हम आते हैं – वो रेडिओ से ही शुरू होता है ..फिर रेडिओ से स्मार्टफोन तक का हमारा सफ़र ..:)

बाबा रात में पौने नौ वाला राष्ट्रिय समाचार जरुर से सुनते थे – फिर समाचार के वक़्त ही रात्री भोजन – बड़े वाले पीढ़ा पर बैठ कर – वहीँ बगल में हम भी उनके गोद में ..:) लगता था ..ये लोग कौन हैं ..जो ‘समाचार पढ़ते’ हैं …बस एक कल्पना में उनकी आकृती होती थी …साढ़े सात का प्रादेशिक समाचार …फिर दोपहर का धीमीगती का समाचार …हर घंटे समाचार ..:)
रेडिओ विश्वास था – जब तक रेडिओ ने कुछ नहीं कहा – कैसे ‘झप्पू भैया’ का बात मान लें …रेडिओ ने कह दिया …जयप्रकाश नारायण नहीं रहे – स्कूल में छुट्टी …रेडिओ अभी तक नहीं कहा …की श्रीमति इंदिरा गांधी की ह्त्या हुई है – अरे , कोई बीबीसी तो लगाओ 🙂
आज भी कानो में गूंजती है – “ये आकाशवाणी है ..अब आप रामानन्द प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए” …
कुछ चाचा / मामा टाईप आइटम होते थे …कब किस स्टेशन से गीत आ रहा होगा …एकदम से एक्सपर्ट …रेडिओ हाथ में लिया और धडाक से वही स्टेशन ..हम बच्चे मुह बा के उनको देखते …गजब के हाई फाई हैं …फिर उन गीतों में फरमाईश …क्या जमाना था ..लोग एक गीत सुनने के लिए ..पोस्टकार्ड पर पुरे गाँव / मोहल्ले का नाम लिख भेजते थे …फलना पोस्टबैग नंबर …नासिक से रीता बाघमारे …झुमरी तिलैया से पिंकी , रिंकी , टिंकी…:))

एक याद है – फाइनल ईयर में था – ठीक 7.40 शाम पूरा शहर घूम कर अपने कुर्सी टेबल पर बैठ जाता था और टेबल पर सामने रेडियो और रेडियो पर बीबीसी – हिंदी सेवा । 8.30 तक । इतना देर ध्यान केंद्रित करने में ही लग जाता था । बीबीसी की क्या कद्र थी – किसी खबर के सच का पता लगाना हो तो बीबीसी सुनिए :)) अभी फेसबुक पर देखा तो यहां की मेरी सबसे पुरानी मित्र शीबा लंदन बीबीसी स्टूडियो में थी – बहुत ही अच्छा लगा , कोई जान पहचान का चेहरा बीबीसी में हो । मार्क टुली तो भारतीय ही हो गए थे । मालूम नहीं अब कहां हैं ।

पिता जी के जमाने से ही सायनी साहब का बिनाका टॉप टेन । साल के अंतिम सप्ताह धड़कने बढ़ जाती थी – कौन सा गीत टॉप तीन में होगा । जिसे उन्होंने घोषित कर दिया वहीं टॉपर हो गया । आपको बताता चलूं – बिनाका टूथपेस्ट के साथ एक बेहतरीन रबर का जानवर खिलौना भी मिलता था जो उसके डब्बे में पैक होता था । और वैसे रबर के जानवर आकृति वाले खिलौने जमा करना एक अलग शौक होता था :))


जब पूरा गाँव सो जाता था …तब भी कहीं किसी के घर से देर रात तक रेडिओ से गीत बजता था …किसी ने कहा ..’नयकी भाभी’ हैं ..बिना गीत सुने नींद नहीं आती है …’नयकी भाभी’ को देखने उनके घर पहुँच गए ..पर्दा से उनको झाँक …भाग खड़ा …उन्होंने ने भी प्यार से बुलाया – बउआ जी ..आईये …:)

~ रंजन ऋतुराज / वर्ल्ड रेडियो डे / 2014 – 2020

कभी हवाई यात्रा नहीं किए :(

हम आज तक हवाई जहाज़ पर नहीं चढ़े हैं 😐 आपकी क़सम । जब कोई फ़ेसबुक पर हवाई अड्डा पर चेक इन करता है – कैसा कैसा दो मन करने लगता है । हमारे जैसा आदमी के अंदर हीन भावना आती है । 😐 कोई रेलवे स्टेशन पर चेक इन वाला पोस्ट क्यों नहीं डालता है 🙁
बचपन में छत से एकदम ऊँचा हवाई जहाज़ नज़र आता था । छत से ही टाटा करते थे – मन भर देख भी नहीं पाते थे – अजिन कज़िन को बुला कर दिखाने में ही हवाई जहाज़ आसमान से ग़ायब 😐 तब तक कोई बड़ा अजिन कज़िन का हवा शुरू – कैसे उसके नाना जी हवाई जहाज़ पर चढ़े थे , उनका गप्प सुन मन एकदम से चिढ़ जाता था ।
जन्म भी मिडिल में भी मिडिल और उसके भी मिडिल क्लास में हुआ 😐 ब्रह्मा जी पिछला जनम में मेरे ‘गुंडागर्दी’ से परेशान रहे होंगे , धर के बिहार के मिडिल क्लास में टपका दिए 😟 स्कूल में भी ‘बस यात्रा , रेल यात्रा , चाँदनी रात में नौका विहार ‘ इत्यादि पर लेख लिखने को आता था लेकिन कोई शिक्षक ‘हवाई यात्रा’ पर पैराग्राफ़ तक लिखने को नहीं बोला । सोच में ही मिडिल क्लास घुसा हुआ था , रेल यात्रा से आगे बढ़ा ही नहीं 🙁
कॉलेज में कुछ दोस्त यार हवाई जहाज़ वाले होते थे । सेमेस्टर परीक्षा के बाद सबसे अंत में होस्टल छोड़ते थे और सबसे पहले अपने घर पहुँच जाते थे । ब्रह्मा जी पर ग़ुस्सा आता था । 😐 कभी कभी किसी को एयरपोर्ट पर सी ऑफ करने जाते हैं तो मन मे उदासी की कैसा दोस्त है , कभी तो बोलेगा – चलो रंजन , इस बार तुम भी हवाई जहाज पर चढ़ लो । मुंह मारी ऐसा धनिक दोस्त यार का ।
अब कभी कभी चार्टेड से पटना दिल्ली करने का मन । एकदम सफ़ेद ड्रेस में । घस्स से पटना हवाई अड्डा पर स्कॉर्पीओ रुका – फट फट गेट खुला , खट खट बंद हुआ । लेदर वाला पतला ब्रीफ़केस , अरमानी का गागल्स , सीधे चार्टेड के अंदर । चेला चपाटी टाटा किया । एक मुस्कान एयर होस्टेस को 😎 सीधे दिल्ली । ड्राईवर साहब को बोले – तनी ताजमहल के ऊपर से लेे चलिए तो ।
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 26.10.2016

कभी मिलो तो ऐसे मिलो

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे किसी रेस्तरां में …अपने जुड़े के क्लिप को दांतों में फंसा …अपनी हाथों से …अपने तंग जुल्फों में व्यस्त मिलो …
कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे मेरी नज़र तुम्हारे उस खुबसूरत पेंडेंट पर अटकी हो …और तूम अपने उस बड़े लाल टोट बैग में …अपनी लिपस्टिक को खोजती …थोड़ी परेशान मिलो …
इन्ही छोटी – छोटी उलझनों के बीच …वो जो तुम्हारा हसीन चेहरा …थोड़ा तंग लेकिन गुलाबी दिखता है …बेफिक्र होकर भी …थोड़ी फिक्रमंद दिखती हो ….प्यारी लगती हो …
वो जो अपने लिपस्टिक – जुड़े का गुस्सा …अपने लाल टोट बैग में खोये सामान का गुस्सा …मुझपर निकालती हो …अच्छी लगती हो ….
हाँ ..उसी रेस्तरां में …एक प्याली चाय और गर्म पनीर पकौड़े के बीच …जब तुम्हे शाम के पहले अपने घर लौटने की हडबडी में ..तब मुझसे ही लिफ्ट मांगती हो …
……..मेरे चेहरे पर तुम्हारी गुलाबी मुस्कान आ जाती है ….:))
…अच्छी लगती हो …

~ रंजन / एक लेखक की कल्पना / 2014

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो …

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो जैसे एक लम्बे उम्र का इंतज़ार …चंद लम्हों में मिलो …
हां …उसी रेस्तरां में …जब तुम वेटर को एक कप और चाय की फरमाईश करते हो …जैसे …मै इतनी मासूम ….मुझे कुछ पता ही नहीं …कुछ देर और रुकने का बहाना खोजते मिलो …अपनी मंद मंद मुस्कान में बहुत प्यारे दिखते हो ….:))
वहीँ टेबल पर ….कभी अपने कार की चावी तो कभी मोबाईल को नचाते …चुप चाप मेरे तमाम किस्से सुनते हो …और फिर एक लम्बी सांस के साथ …एक गहरी नज़र मेरी आँखों में डालते हो …जैसे क़यामत को कोई और पल नहीं चाहिए ….
हाँ ..कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो …जैसे मेरी तमाम उलझनों को …हौले हौले सुलझाते मिलो ..और मै अपने मन की सारी बातें कह …खुद को खाली कर दूँ …
..लौटते वक़्त …रेस्तरां से कार पार्किंग तक के सफ़र में …तुम्हारे हाथों से …मेरे हाथों का स्पर्श ……धड़कने वहीँ पिघल के …न जाने कब तुममे समा जाती है …कह नहीं सकती …पर कभी न मिटने वाली एक एहसास छोड़ जाते हो …
कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो ….:))

~ RR / #DaalaanBlog / 2014

शकुन्तला

शकुन्तला

क्या तुम ही मेनका पुत्री शकुंतला हो ? क्या तुम ही मेनका – विश्वामित्र के प्रेम की धरोहर हो ? क्या तुम ही राजा दुष्यंत की असीम चाहत हो ? क्या तुम ही गंधर्व विवाह की जनक हो ? क्या तुम ही राजा भरत की कोख हो ?
या फिर तुम महाकवि कालिदास की महज एक कोरी कल्पना हो ? अगर तुम सच हो तो फिर मैंने आज तक देखा क्यों नहीं ? अगर तुम झूट हो तो फिर मैंने आज तक तुम्हे तलाशा क्यों नहीं ?
अगर तुम सम्पूर्ण हो तो मेरा ये स्वप्न कैसा ? अगर तुम अधूरी हो तो फिर मिलन का तड़प कैसा ?
~ रंजन / दालान / 20.12.19

हर हर बुलेट

बुलेट राजा

पटना में घर घर बुलेट , हर हर बुलेट हो गया है । जिसको देखिये वही बुलेट हांक रहा है । हाफ लिवर का आदमी भी बुलेट लेकर घूम रहा है । अरे भाई , तुम्हारा कोई इज्जत नही है लेकिन बुलेट का इज्जत तो है …न । अकेले बुलेट स्टैंड पर नही लगेगा लेकिन घूमेंगे बुलेट पर ही । कुकुर बिलाई , खियाईल बिहारी जब बुलेट लेकर घूमता है , मन उदास हो जाता है 🙁
बुलेट मतलब बड़का ठीकेदार या उसका मुंशी मैनेजर या थानेदार । डीजल वाला बुलेट , चार कोस दूर से ही आवाज़ आ रहा है । लाल बुलेट , हैंडिल में लाल झालर , आईना में कोई देवी स्थान का चुनरी लपेटा हुआ । ज़िला जवार का कोई बड़का रंगबाज़ , आर्मी का कैप्टन , फॉरेस्ट ऑफिसियल पर बुलेट शोभा देता है ।
बुलेट पर गर्लफ्रेंड को लेकर नही घुमा जाता है , शौकिया में बड़े भाई की छोटी साली को लेकर घुमाया जाता है । जीजा जी , बोलिये न रंजू जी को की थोड़ा बुलेट से घुमा दे । अब रंजुलाल हाफ पैंट में ही बुलेट स्टार्ट । चलिए न , जहां कहियेगा , वहीं घुमा देंगे , थोड़ा सट के बैठिये ..न , बैलेंस नही हो रहा है । बुलेट मतलब नहर किनारे …ढक चक …ढक चक …हवा के झोंका से लाल दुपट्टा लहरा रहा । जितना दुपट्टा लहरा रहा उतना ही बुलेट का स्पीड बढ़ रहा ।
अब पटना के कंकड़बाग में हाफ लिवर वालों को बुलेट का सवारी करते देख , मन दुखी हो जाता है । खैर …..
~ रंजन ऋतुराज / पटना / 19.11.2017