रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग
Requirement Engineering / Management ?
~ मास्टर डिग्री के अंतिम सेमेस्टर में मैंने काफ़ी पढ़ाई की . इंजीनियरिंग मैनेजमेंट और बाक़ी स्वयं के विषय के कई किताबों को पढ़ा .
नोएडा आने पर मुझे जेपी यूनिवर्सिटी के प्रो नवीन के बारे में पता चला कि उत्तर भारत में वही रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग के एक एकडेमिक एक्सपर्ट हैं , लेकिन मैं मिल नहीं सका . मालूम नहीं क्यों 😐
सन 1997 में नोएडा / अथॉरिटी ने धनबाद / सिंदरी की सरकारी उपक्रम पीडीआईएल और अन्य पीएसयू को सेक्टर 62 में फ्लैट्स बनाने को ज़मीन दी . इसी के नोएडा ऑफिस में मेरा पूर्व सहपाठी सुबीर सिन्हा भी काम करता था और उसका अपना फ्लैट भी था . इस सरकारी कंपनी में क़रीब 95 % स्टाफ सिर्फ़ इंजीनियर ही थे .
~ खैर , सुबीर और श्रीप्रकाश के चलते मुझे इस सोसाइटी में दो कमरों का फ्लैट किराया पर मिल गया . कॉलेज मात्र 1 किलोमीटर दूर रहा होगा .
पीडीआईएल , जिसके 95 % स्टाफ डिज़ाइन इंजीनियर , उनकी अपनी 200+ फ्लैट्स की सोसाइटी . एक से बढ़कर एक धाकड़ इंजीनियर . बेहतरीन हवादार फ्लैट्स 😊
लेकिन पीडीआईएल वालों ने अपने सोसाइटी के अंदर कार पार्किंग की जगह नहीं दी 😃 सन 1997 में नोएडा / अथॉरिटी ने इन्हें ज़मीन दी . सन 2001 तक इनका सोसाइटी बना .
~ कार पार्किंग के सवाल पर इसके कर्ता धर्ता बोले कि सन 1997 तक आम पीएसयू की सैलरी इतनी कम थी की किसी ने स्वयं कार रखने की कल्पना नहीं की .
: सो सोसाइटी का डिज़ाइन बिना कार पार्किंग के हुआ 😐
यह एक अजीब उदाहरण है . डिज़ाइन इंजीनियरिंग की कंपनी और स्वयं के फ़्लैट में कार पार्किंग नहीं . कम्पलीट फेलियर ऑफ़ रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग / मैनेजमेंट 😡
रांची में अंतिम सेमेस्टर लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ाई का निष्कर्ष यही निकला की किसी भी प्रोजेक्ट के सफल होने के पीछे रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग / मैनेजमेंट का बहुत बड़ा हाथ है .
सन 2003/04 में मैंने नोएडा में पहले से निर्मित और इंदिरापुरम में नव निर्मित करीब 50 अपार्टमेंट सोसाइटी देखा . तीन कमरे का फ्लैट लेना था और अधिकतर के तीनो कमरे एक ही पैसेज में खुलते या फिर बेडरूम में जाने के लिए मुझे ड्राइंग रूम डायग्नॉल क्रॉस कर के जाना होता 😐 हम हैरान परेशान की कैसे आर्टिटेक्ट ?
जहाँ फ़्लैट बुक किया , वहाँ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर आईआईटी रुड़की और आईआईटी दिल्ली से पास . बेहतरीन 3+1 का फ़्लैट . सब कुछ बढ़िया लेकिन लॉबी इतना छोटा बना दिए की मन उदास . साथ में लिफ्ट इतना छोटा दिए की मेरा किंग और क्वीन खालिस सागवान का आलमीरा ना तो सीढ़ी से उतरा और लिफ्ट का सवाल ही पैदा नहीं हुआ .
~ रेंटर भोग रहा है 😊 लेकिन फ़्लैट में शिफ्ट होने के बाद मैं ख़ुद यह भूल गया की कल को मुझे फ़्लैट ख़ाली करना पड़ेगा तो इतना भारी किंग एंड क्वीन आलमीरा कैसे नीचे जाएगा ?
: ऐसा सिर्फ़ सिविल इंजीनियरिंग में नहीं है बल्कि सॉफ्टवेयर में तो कमजोर रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग / मैनेजमेंट ने काफ़ी गंध मचाया . खरबों डॉलर का फेमस वाईटूके प्रोजेक्ट भी तो इसी का नतीजा था . साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में अमरीका डिफेंस और फार्च्यून 500 कंपनी के ख़रबो डॉलर के सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट बर्बाद हुए .
~ बनाना है आम और बना रहे हैं इमली . क्लाइंट का पैसा . मुफ्त का चंदन , घस रघुनंदन 😃
अगर आप इंजीनियरिंग फ़ील्ड से हैं तो रिक्वायरमेंट इंजीनियरिंग / मैनेजमेंट / एनालिसिस को समझिए . नहीं तो क्लाइंट से माई बहिन सुनिए 😂 मेरे एक मित्र को पोलैंड में क्लाइंट जेल में ठूँस दिया था 😆
~ रंजन ऋतुराज , दालान
रतन टाटा : राजकुंवर
राजकुंवर कौन होते हैं 😊
~ राजकुंवर कोमल होते हैं . राजकुंवर मृदुल होते हैं . राजकुंवर दयालु होते हैं . राजकुंवर करुणा से भरपूर होते हैं . राजकुंवर मासूम होते हैं .
राजकुंवर अभावविहीन होते हैं , छल प्रपंच से कोसों दूर होते हैं 😊
~ हर इंसान को तो ईश्वर गंगोत्री की तरह पवित्र बना के भेजता है . लेकिन जीने के लिए समाज का संघर्ष उसे या तो कठोर बना देता है या फिर या इतना मृदुल की अब संघर्ष का उस पर असर ही ना हो .
जिस इंसान ने अपने जीवन में कभी अभाव देखा ही नहीं , वही तो राजकुंवर जैसा बर्ताव करेगा . वही न्याय करेगा . वही अन्यों की पीड़ा समझेगा . जीवन के जिस कोण में इन्होंने अभाव देखा , बड़ी हिम्मत से अपने इंटरव्यू में उसे बोला भी है . छुपाया नहीं . खुल कर अपने जीवन के अंत समय के अकेलेपन को बोला . किसी पर तोहमत नहीं लगाया लेकिन उस सच को स्वीकार भी किया .
~ जीवन के किसी कड़वे सच को स्वीकार करने के लिए भी करेजा चाहिए .
ज़्यादा पुरानी बात क्या करें. याद कीज़िये कोरोना काल का वह मौसम और टाटा ट्रस्ट के तरफ़ से ₹ 1500 करोड़ का ऐलान हुआ . फिर रतन टाटा ने कहा की ना तो किसी की छँटनी होगी और ना ही किसी की तनख़ाह काटी जाएगी 🙏
जा कर इंस्टाग्राम के वीडियो / रील देखिए . लड़कियां किस तरह ‘तथाकथित अल्फ़ा मैन’ की परिभाषा बदल रही हैं . ये बच्चियाँ आपसे कम पढ़ी लिखी या कम धन दौलत वाली नहीं हैं . लेकिन वो स्त्री हैं तो …
~ उन्हें आपकी मर्दानगी के पीछे से मुस्कुराता करुणामय छवि भी चाहिए . आपके बलिष्ठ भुजाओं में कोमलता भी चाहिए . आप वीर हैं तो आपसे उन्हें न्याय भी चाहिए 😊
थैंक्स सर 😊
: रंजन ऋतुराज , दालान
इस तस्वीर की मासूमियत ने लिखने को मजबूर कर दिया .
♥️🌸♥️
विजयादशमी 🙏
विजयादशमी / दशहरा की शुभकामनाएं 🌸
~ जहां इंसान अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहता है , वहीं धर्म की जय होती है 🙏
: आज देवी की विदाई भी है । देवी की विदाई इस बात का प्रतीक है की जिस शक्ति की आराधना कर के , ईश्वर से प्राप्ति कर के आप पाते हैं , उनका यथोचित रूप से सम्मान के साथ विदाई होना अवश्य है 🙏
~ श्रीराम स्वयं विष्णु के अवतार थे । जब इस पृथ्वी पर उनको इतना कष्ट हुआ तो हम और आप क्या चीज है । जिनके पिता स्वयं अयोध्या के राजा , ससुर राजा जनक और नसीब में समस्त जवानी जंगल में । लेकिन यह भी सत्य है की धैर्य , साहस और कुछ एक मित्रों की सहायता से वैसे कष्ट दूर किए जा सकते हैं । शायद इसलिए रामायण और महाभारत प्राचीन काल से ही जीवन का एक फिलोसॉफी है । जब आप इसकी महत्ता समझेंगे फिर किसी को भी ‘जज ’ करना बंद कर देंगे 🙏
~ लेकिन मेरा एक सवाल है 😐 क्या इतिहास श्रीराम की जवानी लौटा सकता है ? अगर वो 14 साल के वनवास की जगह अयोध्या के राजा होते तो क्या होता ? रावण नही मारा जाता या फिर किसी दूसरे तरीके से रावण मारा जाता । श्रीलंका से युद्ध होता इत्यादि । एक बचपन से मेरे मन में यही सवाल कौंधता है : श्रीराम का वो 14 साल का वनवास और कैकेयी । बाकी आवण रावण से मतलब नहीं । वह ज्ञान और स्वर्ण की लंका का कोई मोल नहीं है जो अहंकार के आवरण में लिपटी हुई हो ।
~ किसी आध्यात्मिक का वीडियो देख रहा था , उन्होंने कहा की जिसके ससुर राजा दशरथ , जिसके पिता राजा जनक , जिसके नैहर और ससुराल में शुद्ध सोना का असीम भंडार : वह सीता रोल्ड गोल्ड / मृग को देख ललच गई 😐
: यही जीवन है । यही प्रकृति है । स्वयं को छोड़ किसी भी अन्य के मन और प्रकृति को नियंत्रण करना मुश्किल है । फिर इस हालात में मन के योग से स्वयं को अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रखना ही मर्यादा पुरुष श्री राम को आदर्श बनाना है ।
~ बाकी सब पहले से तय है । कब किसको राम बनना है और किसको रावण ।
: रंजन ऋतुराज , विजयादशमी , दालान 🙏
टाटा की विदाई और संदेश
रतन टाटा का जाना दुखदाई रहा लेकिन जिस कदर और हद तक इंडियन मिडिल क्लास ने इनकी विदाई दी , यह भविष्य के भारत के लिए एक शुभ संकेत हैं . टाटा परिवार की व्यापारिक विचारधारा का पेनिट्रेशन किस हद तक है , यह पिछला 48 घंटा बता गया 🙏
बिहार जैसे अति पिछड़ा प्रदेश जहाँ टाटा की उपस्थिति लगभग नगण्य है , वहाँ से भी असंख्य श्रद्धांजलि आए . आम जन मूल बातों को समझ रहे हैं और उन्हें उसे अपनाने के लिए एक आदर्श चाहिए .
कई शताब्दी तक या अभी भी व्यापार को नीची नज़र से देखा जाता है क्योंकि उसमे मुनाफ़ा होता है . मुनाफ़ा को समाज कभी प्रतिष्ठा नहीं देता . लेकिन वही मुनाफ़ा जब वापस समाज में आता है तब इतनी प्रतिष्ठा देता है की हुकूमत के बराबर खड़ा हो जाता है 😊
रतन टाटा को असंख्य श्रद्धांजलि एक मैसेज है की ‘एथिक्स के साथ व्यापार’ को इंडियन मिडिल क्लास ने स्वीकार किया है और उस मुनाफा से परहेज़ नहीं जहाँ ‘पे बैक टू सोसाइटी’ हो .
~ धन के तीन ही गति . दान , भोग नहीं तो नाश. विश्व की किसी भी सभ्यता में दान को सर्वोच्च माना गया . हर धर्म में . भारत में मुगल काल हो या अंग्रेज़ , हर काल में अपने अपने स्तर पर दान हुए हैं . वरना बिहार के कोने कोने में स्कूल , कॉलेज , अस्पताल या मंदिर मस्जिद कहाँ से बनते ?
लेकिन जब एथिक्स के साथ व्यापार और उस मुनाफ़ा को वापस समाज को देना , यह मूल मंत्र जब इंडियन मिडिल क्लास समझ जायेगा तो ब्रांड किस कदर कम्पाउंड इंटरेस्ट देगा , जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते 😊
~ सूचना क्रांति के दौर में जब हर हिसाब का पार्ट पार्ट हर किसी को नज़र आ रहा है , वहाँ बेहतर होगा की हम सभी एथिक्स और ट्रांसपेरेंसी को मूल मंत्र समझे 🙏
जब आप अपने पेशा / व्यापार में अपने एथिक्स / ट्रांसपेरेंसी के साथ खड़े हैं , दो वक्त की रोटी भी घर में मौजूद है फिर अपना व्यक्तित्व जियें 😊 रतन टाटा की तरह , अपने इर्द गिर्द 🙏
आशा है बात समझ में आई होगी 😊
~ रंजन , दालान
अमिताभ बच्चन 💕
वहमों गुमान से दूर दूर…यकीन के हद के पास पास ,
दिल को भरम ये हो गया…कि उनको हम से प्यार है…☺️
~ और आज आप अपने जीवन के 82 वसंत पार किए ❤️
यंग एंग्री मैन की छवि के अलावा , 70 और 80 के दसक में , अमिताभ एक बेहतरीन रोमांटिक छवि भी रखे । फिल्म कभी कभी में जब वो राखी के गोद में सर रखते हैं और राखी उनके चेहरे को अपने बालों से ढक लेती हैं या ऐसा ही कुछ एक दृश्य फिल्म सिलसिला का, जब नीला आसमान गीत के सीन में रेखा अमिताभ के क्लीन शेव गालों पर अपनी उल्टी हाथ फेरती हैं 😊 खैर , जावेद अख्तर साहेब का लिखा गीत जो शायद मैं 1000 बार अपने स्वर में भी बोल चुका हूं , बेहद नही अति पसंद ।
‘ ये रात है या, तुम्हारी जुल्फे खुली हुई है
है चांदनी या तुम्हारी नज़रों से मेरी राते धुली हुई है
ये चाँद है, या तुम्हारा कंगन
सितारें है, या तुम्हारा आँचल
हवा का झोंका है, या तुम्हारे बदन की खुशबू
ये पत्तियों की है सरसराहट, के तुम ने चुपके से कुछ कहा है’
~ शुभकामनाएं 💕
: रंजन , दालान
विदाई : रतन टाटा
बड़पन्नता 🙏 सरलता
~ बात दस साल पहले की होगी , बात बड़पन्नता और सरलता की हो रही थी तो पंकजा ठाकुर ( 95 बैच आईआरएस ) , पूर्व सीईओ , सेंसर बोर्ड ने कहा की बॉम्बे में किसी मीटिंग में रतन टाटा के साथ भेंट मुलाकात और लंच का प्रोग्राम था . लंच के बाद आदतन पंकजा अपना लेडीज पर्स / टोट बैग वहीं छोड़ अपने कार के तरफ़ बढ़ गई तो रतन टाटा उस बैग को लेकर पंकजा तक आ गए : ‘आपका बैग वहीं छूट गया था’
: शायद पंकजा ठाकुर थैंक्स भी नहीं बोल पाई . पिता से भी 10 साल बड़े , भारत ही नहीं विश्व के सबसे प्रतिष्ठित कॉरपोरेट. धन और फ़िलन्थ्रॉपी की बात ही मत पूछिए .
~ इंसान अचानक से इतने बड़े व्यक्तित्व के सरलता और बडपन्नता से इतना चकित हो जाता है की उसके मन की बात मुँह पर आ कर अटक जाती है . पंकजा आगे कहती हैं की उस पल भर की घटना ने उनके मन और आचरण को प्रभावित नहीं किया बल्कि एक बदलाव भी दिया 🙏
अभी सुहेल सेठ का एक इंटरव्यू देख रहा था . ब्रिटिश राज घराना रतन टाटा को पुरस्कार देने वाला था . सुहेल लंदन पंहुचे तो बॉम्बे से रतन टाटा का 11 मिस कॉल . सुहेल वापस रिंग बैक किए तो पता चला की करुणा से भरपूर रतन टाटा अपने पेट डॉग के बीमार होने से ब्रिटिश राजघराना पुरस्कार लेने नहीं जा रहे . प्रिंस चार्ल्स मुस्कुरा दिए : यही करुणा टाटा की पहचान है 😊
सन 2013 में जेएसएस , नोएडा त्यागने के बाद , मैंने प्रण लिया था की अब कोई नौकरी नहीं . लेकिन जब टाटा ब्रांड से प्रस्ताव आया तो ठीक एक महीना सोचने विचारने के बाद , प्रण टूट गया .
~ जो आपके प्रण को तुड़वा दे : वही ब्रांड , वही इंसान , वही भाव महान 🙏
सर , विदाई हो तो ऐसी 🙏 कल रात वाट्स एप स्टेटस पर देखा तो महज पाँच मिनट में सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही थे .
~ हर भारतीय की आत्मा आपके अंतिम विदाई में आपके साथ है . एक साथ अरबों लोगों के हाथ उठे और सर झुके हैं .
: सच में , विदाई हो तो ऐसी हो 🙏
: रंजन , दालान
शिक्षक दिवस
शिक्षक 🙏
~ मैंने जीवन में अनेकों काम किए . कुछ ग्रह दशा और कुछ चित चंचल 😊
लेकिन बतौर शिक्षक आत्मा को जो संतुष्टि मिली , वह कहीं नहीं मिली . क़रीब 15+ साल जीवन का एक सक्रिय शिक्षक के रूप में रहा .
मैट्रिक के बाद से स्नातक तक काफ़ी ख़राब परफॉरमेंस वाला विद्यार्थी रहा तो स्वयं को कभी बढ़िया शिक्षक नसीब नहीं हुआ . यह कसक मन में रही . जिसका रिजल्ट हुआ कि डायस पर अगर विद्यार्थी सजग रहे और ख़ुद का लेक्चर तैयार है तो हम उस वक़्त ख़ुद को दुनिया का सबसे बढ़िया शिक्षक मानते रहे थे 😀
~ मैंने मुख्यतः तीन विषय पढ़ाए : प्रोग्रामिंग , प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कॉरपोरेट स्ट्रेटेजी . सौभाग्य रहा कि इंजीनियरिंग के विद्यार्थी को मैनेजमेंट का ज्ञान देने का मौक़ा मिला और दुर्भाग्य रहा कि आधे सेमेस्टर के बाद ये विद्यार्थी मैनेजमेंट के विषय में रुचि खो बैठते थे 😐
~ स्नातक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन की पढ़ाई की . बेसिक प्रोग्रामिंग के बाद कुछ नहीं आता था लेकिन मैंने स्वयं किताब से पढ़ कर सी लैंग्वेज सीखी , सी++ भी . और उसका नतीजा हुआ कि मेसरा में पीजी करते वक़्त ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड टेक्नोलॉजी की मैडम अपने केबिन में बुला कर बोली : काश , हम आपको एक्सीलेंट दे सकते लेकिन मेसरा में इसकी इजाज़त नहीं है . आज भी उनके शब्द आँखों में तैर रहे हैं 😊
इसी मौसम सन 2012 की बात है . मैं बीटेक प्रथम वर्ष को सी प्रोग्रामिंग पढ़ा रहा था . तेज बारिश और पिन ड्राप साइलेंस . मैं पॉइंटर इन सी पढ़ा रहा था . पॉडियम पर ब्लैकबेरी रखा हुआ . जस्ट प्लस टू पास किए विद्यार्थियों की सारी चंचलता ग़ायब . मेरा 14 वर्ष का अनुभव . हाथ चाक से सफ़ेद , एक हाथ डस्टर . चाक गाढ़े रंग के ट्राउज़र को आधे सफ़ेद कर चुके . विद्यार्थियों का एक लगातार 50 मिनट पिन ड्राप साइलेंस हाथों के रोंगटे खड़े कर दिये 😊
~ और जीवन में ऐसे कई मौक़े आये लेकिन कब आये ? जब स्वयं का लेक्चर ज़बरदस्त प्रीपेयर हो , आपके अंदर ज्ञान को सरल और तरल कर के प्रवाह की क्षमता हो फिर पिन ड्राप साइलेंस होना तय है 😊
: टाटा जॉइन किया तो भारतवर्ष की एक अत्यंत खूबसूरत महिला पत्रकार नोएडा में स्वयं कॉफ़ी पर आमंत्रित की . अत्यंत खूबसूरत , वैजयन्ती माला जैसी लेकिन जेनिफ़र लोपेज़ 😊 कॉफ़ी मग को दोनों हाथ से पकड़ तीखे नज़र से टोंट कसी : लोग जवानी में कॉरपोरेट और 40 बाद प्रोफ़ेसर बनते हैं , लेकिन आपका उल्टा ही है 😀
हमने कहा की लगता है आपको जवान प्रोफ़ेसर से मुलाक़ात नहीं हुई है . वरना फ़ेयरवेल के रात , अंतिम वर्ष के विद्यार्थी कॉलेज पार्किंग में आपको देख सिटी बजाती है , वह एक अलग आनंद है 😊 बतौर शिक्षक कुछ ऐसे भी अनुभव होते हैं 😀
~ आईआईएम , आईआईटी , मेसरा , मैसूर , पटना के तमाम शिक्षकों इत्यादि का विद्यार्थी रहा लेकिन स्वयं का सहकर्मी रिंकज गोयल से बढ़िया शिक्षक कभी नहीं मिला . कॉलेज शुरू होने के आधे घंटे पहले आ जाना , पहला लेक्चर रिंकज़ का . पागल की तरह लड़के आधी नींद में सुबह सुबह उसके क्लास में . कभी इंटरनल परीक्षा का कॉपी चेक नहीं करना और विद्यार्थी थर्र थर् काँप रहे जबकि वो कभी किसी को फेल नहीं किया 😊 “रिंकज शिक्षक नहीं , आतंकवादी है “ : बेंच पर ऐसा लिखा भी मैंने पाया 🤣 सन 2005 में वो दूसरा यूनिवर्सिटी जॉइन कर लिया . कानपुर का रहने वाला , हमको दादा कहता था और कॉलेज के बाहर पैर छू के प्रणाम 😀
सन 2002 में , पहली बार जब जेएसएस नोएडा में पढ़ाया तो एक लेक्चर की तैयारी में तीन घंटा लगाया करता था . स्वाभाविक है कि लेक्चर बेहतरीन होगा . कोई बिहारी लड़का मेरा नाम ही बदल दिया : की रंजन सर रंजन झा हैं 😀 इतना ज्ञान झा जी लोग के ही पास होता है 🤣
~ प्रोफ़ेशन की ऊब , लेक्चर का तैयार नहीं होना , मेट्रो शहर में और ज़्यादा पैसा कमाने का दबाव इत्यादि आपको एक रोज़ बढ़िया शिक्षक से बकवास शिक्षक भी बना देती है . यह ट्रैप है . इससे बचना चाहिए वरना आगे गड्ढा है : जिसमें आप मेरी तरह गिर भी सकते हैं 😐
~ जीवन में एक बार शिक्षक का काम अवश्य करना चाहिए . डायस पर खड़ा होकर एक साथ 60/90/120 विद्यार्थी को कमांड करना पड़े तो सब स्मार्टनेस ग़ायब हो जाती है 🤣
रंजन ऋतुराज , दालान
मुझे अपने जीवन में स्वयं के ज्ञान या बुद्धिमत्ता से कहीं ज़्यादा तेज तरार और बेहतरीन विद्यार्थी मिले . आप सभी का शुक्रिया 😊
प्रमथ राज सिन्हा : बिहारी
Bihari on top : Mr Pramath Raj Sinha
~ प्रमथ कहते हैं कि दादा परदादा ज़मींदार थे . अचानक ज़मींदारी ख़त्म हुई तो अंग्रेजों द्वारा बेचे गये पुराने प्रिंटिंग प्रेस को ख़रीद उनके दादा जी ने अशोक प्रेस की स्थापना की . और शायद यही वो इनका भावनात्मक लगाव रहा जो इन्होंने कालांतर हरियाणा में विश्वस्तर विश्वविद्यालय बनाया जिसका नाम ‘ अशोका यूनिवर्सिटी ‘ है 😊
एक और इंटरव्यू में ये कहते हैं कि दादा जी और पिता जी साहित्यकार थे लेकिन जीवन यापन के लिए स्कूल के किताब भी छापते थे . उसी दौरान रिक्शा और ऑटो से उनके पिता जी शिक्षकों को डायरी , कैलेंडर इत्यादि गिफ्ट देते तो यहीं से उन्हें व्यापार का रोमांच भी पैदा लिया 😊
अपनी ग्यारहवीं कक्षा में इन्हें अपनी बड़ी बहन के पास सैन फ़्रांसिस्को जाना पड़ा और वहाँ स्टैनफ़ोर्ड और बर्कली में विश्वविद्यालय की पहली नज़र इनके तरुण मन पर ऐसी पड़ी कि आईआईटी कानपुर और पेनिसेलविया इत्यादि के बाद विश्व की जानी मानी मैककिंजी में काम के बाद इन्होंने भारत में आईएसबी हैदराबाद और अशोक विश्वविद्यालय का जन्म दिया 😊
लल्लनटॉप के सौरभ द्विवेदी ने इनसे काफ़ी लंबी बात की है . बेहतरीन बात चीत . काफ़ी सरल शब्दों और वाक्यों में प्रथम राज सिन्हा अपनी बात कहते हैं . किसी भी सिनेमा से ज़्यादा यह बात चीत आपको बांध कर रखेगी और इन्स्पायर करेगी . वर्तमान में सौरभ और काम्या जानी मेरे दो पसंदीदा है 😊
~ अब सवाल उठता है : सेंट माइकल पटना के इस विद्यार्थी ने बिहार में क्यों नहीं अपना प्रोजेक्ट लगाया ? इसका जवाब हम बिहारियों के पास ही है 😀
लिंक है . फ़ुरसत में देखिए . अवश्य देखिए . आराम से 😊
https://youtu.be/qKsv–7tieA?si=PsLBjkZqD6bUNqIA
~ रंजन , दालान
मदारी
~ अब जब मदारी जिस रोज घर से बाहर नहीं निकलता है , उस रोज मै भयभीत हो जाता हूं । आज ना वो मुझे नचाएगा और ना ही मेरे नाचने पर चंद सिक्के आएंगे …फिर भोजन कहां से आएगा ?
देर सुबह मै उसके पैर झकझोरता हूं – उठो , जागो अब देर हो रही । तुम्हे कमाने जाना है और मुझे नाचने । अब यही बंधन अच्छा लगता है । बंधन तो है लेकिन दो वक़्त की रोटी भी तो मिलती है । हां , मदारी जब अपने बड़े एल्युमिनियम के कटोरे से कुछ कुछ निकाल खाता है । मै भी वहीं बैठा रहता हूं – अब मुझे भी कुछ मिल जाएगा 😐 देह हाथ कि थकान खत्म हो जाती है जब अंत में वो अपने झोले से केला निकालता है ।
कभी कभी मन करता है – भाग जाऊं , वापस लौट जाऊं अपने झुंड में । फिर अपने झुंड में अपनों को किस्से सुनाऊं – शहर के मदारी का खेल और उस खेल से निकले दो वक़्त की रोटी का…
कौन सुनेगा उस झुंड में मेरे किस्से … वो तो अपनी दुनिया में मस्त होंगे …एक टहनी से दूसरी टहनी …अपनी प्रकृति के संग …अपनी दुनिया में मस्त …
या फिर मै ही फंस गया या यही मेरी प्रकृति बन गई …मदारी के साथ …इस शहर से उस शहर … इस गली से उस गली…इस दरवाजे से उस दरवाजे …
~ रंजन / दालान / 28 जुलाई 2020