बेगूसराय …

बेगूसराय

बेगूसराय :
~ इस इलाके कि पहली याद यह है कि बहुत बचपन में रांची से मुज़फ्फरपुर के रास्ते सुबह चार बजे मोकामा राजेन्द्र ब्रिज पर , परिवहन निगम के लाल डब्बा बस पर , मां हमे जगा दिया करती थी – बरौनी रिफाइनरी का जगमगाता टाउनशिप । आधी नींद में बस की खिड़की से झांक उन रोशनियों को देखना । बहुत बढ़िया लगता था :))
~ बेगूसराय की दूसरी छवि यह है कि यहां के लोग बिहार के दूसरे ज़िले से ज्यादा उद्यमी हैं । कारण स्पष्ट है – खेत था , खलिहान था और आज़ादी के तुरंत बाद ही औद्योगिकरण हुआ । गंगा पार मोकामा भी एक औद्योगिक नगर बसाया गया । और कुछ खून और मिट्टी का भी असर । बोली मगही और मैथिली की मिक्स है और व्यक्तित्व में अग्रेषण है , जिसका फायदा भी इन्हें मिलता है और नुकसान भी । महिलाओं को अन्य ज़िले से ज्यादा सामाजिक महत्व और बराबरी का दर्जा है ।
~ बिहार में कम्युनिस्ट क्रान्ति का गढ़ बेगूसराय रहा है । बीहट के लाल – कॉमरेड चन्द्रशेखर बाबू से ज्यादा इज्जत शायद ही कोई बिहारी कम्युनिस्ट पाया हो ।
~ अग्रेशन का हाल यह है कि लोग कहते हैं कि सन 1957 में ही बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बाबू के पक्ष में यहां के रामदीरी गांव में मतदान केन्द्र हाइजैक कर लिया गया था ।
~ यहीं के थे – इंटरनेशनल सम्राट कामदेव सिंह । बिहार में जब 1986 में टाइम्स ऑफ इंडिया लॉन्च हुआ तो अपने पहले पन्ने पर कामदेव सिंह के किस्से का सीरीज कई दिनो तक छापा गया । ये वही कामदेव सिंह थे जिनकी छवि उस दौरान रॉबिनहुड की थी और कहते हैं गरीबों की बेटी की शादी में खुलकर अपना सहयोग करते थे और बिहार नेपाल बॉर्डर के हर एक सर सिपाही को सरकार के बराबर का तनख़ाह कामदेव सिंह के तरफ से मिलता था । इंदिरा गांधी के स्वागत में उन्होंने रजिस्ट्रेशन नंबर 1 से 40 तक सफेद एम्बेसडर की लाइन लगा दी थी । तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को अपने बिरादरी के सभी आईपीएस को कामदेव सिंह को मारने में लगा देना पड़ा था । कभी विस्तार से कामदेव सिंह की चर्चा होगी :))
~ बहुत शुरुआत में ही शहर के औद्योगिकरण होने के कारण , यहां बिहार के अन्य जिलों की तरह पैसा कमाना जुर्म नहीं माना जाता । हर घर ट्रक और एक ठीकेदारी करता नवयुवक मिल जायेगा । बिहार के कई बड़े ठीकेदार इस ज़िले से हैं ।
~ एक बात और है । यहां के लोगों में क्षेत्रवाद जबरदस्त है । विश्व के किसी भी कोना में एक बेगूसराय वाला दूसरे बेगूसराय वाला को बस बोली से पहचान मदद को तैयार हो जाता है । पांच लोगों के बीच अगर चार बेगूसराय वाले हैं तो पांचवा खुद ब खुद इग्नोर महसूस करेगा । मिथिला का यही एकमात्र असर यहां है ।
~ बाकी , बेगूसराय तो बेगूसराय ही है । सांसद अपनी मिट्टी के लोगों से नहीं चुनते हैं । मेरा स्कोप भी बनता है 😎
रंजन ऋतुराज / दालान / जिउतिया / 10.09.20

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