Archives October 2020

इंदिरा जी …

आज स्व श्रीमती इंदिरा गांधी की शहादत दिवस है ! आज से ठीक २९ साल पहले श्रीमती गांधी की हत्या कर दी गयी थी ! तब हम हाई स्कूल में होते थे – घर में कोंग्रेसी वातावरण होता था ! घर के “दालान” में श्रीमती गांधी के अलावा महात्मा गांधी / नेहरू / राजेन बाबू इत्यादी की तस्वीरें होती थी – फ्रेम की हुई ! चाईल्ड साइकोलॉजी – यही आदर्श बन गए – तब जब उनमे से एक उस वक़्त देश का प्रधानमंत्री हो ! मै उनका बहुत ही बड़ा फैन हुआ करता था – उसकी एक वजह थी – एक बचपन से अपने दादा जी की साइकिल हो या लाल बत्ती कार – जब तक स्कूल में रहा – खूब घुमा – जब बाबा के साथ राजनीतिक लोगों के यहाँ जाता – लोग नेहरू – इंदिरा का उदहारण देते और मै खुद में श्रीमति गांधी की छवी देखता – “पिता का पत्र पुत्री के नाम ” एवं “वानर सेना” की कहानियां बहुत लुभाती थी – जो हम स्कूल में पढ़ते थे !
सन चौरासी के फरवरी महीने में कांग्रेस के सीनियर लोगों की एक मीटिंग होने वाली थी – दिल्ली में ! अपने बाबा के साथ मै भी हो चला ! तब हम सभी २६ , महादेव रोड ठहरे थे – वह जगह थी हमारे इलाके के लोकसभा सांसद शहीद नगीना राय का डेरा – अगले दिन मीटिंग थी – सुबह से हम भी ज़िद पद अड़ गए – कई लोग समझाए – तुम उब जाओगे फलाना ढेकना – अब हम कहाँ मानने वाले – दिल्ली आये ही थे – प्रधानमंत्री से मिलने – बिना मिले कैसे चले जाएँ 🙁 खैर सभी लोग मान गए – जबतक लोग तैयार होते – हम भाग के प्रगति मैदान से एक सौ रुपैया में कैमरा खरीद लाये – ब्लैक & व्हाईट इंदु फिल्म्स के साथ ! तब बड़े बड़े लोकसभा सांसद इत्यादी भी अपनी कार नहीं रखते थे – सभी लोग ऑटो से मीटिंग के तरफ निकले ..:))
वहाँ पहुँचने पर अद्भुत नज़ारा था – बाबा सभी बड़े कोंग्रेसी से परिचय करा रहे थे – सबको पैर छू कर प्रणाम कीजिये – आशीर्वाद लीजिये ! पोर्टिको में खड़ा थे – तब तक तीन ऐम्बैसडर कार तेज़ी से आयी – सभी लोग सतर्क हो गए – अंतिम कार से अपने सर साड़ी का पल्लू को सम्भालते श्रीमती इंदिरा गांधी – मैंने अपना पूरा रील वहीँ खाली कर दिया और वो जैसे ही पास आयीं – पैर छू एक आशीर्वाद लिया …:)) एक हाईस्कूल के बच्चे के साफ़ दिमाग में जो खुछ घुस सकता था – घुस गया – आजीवन के लिए :))
उसी साल उनसे दूसरी मुलाकात हुई पटना में – उनकी मृत्यु से ठीक पंद्रह दिन पहले – पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में – तब जब बिहार के प्रथम वित्त मंत्री श्री अनुग्रह नारायण सिंह के छोटे पुत्र श्री सत्येन्द्र बाबू वापस कांग्रेस ज्वाइन कर रहे थे – दिन था – सोलह ओक्टूबर – हम कहाँ मानने वाले थे – स्टेज से बिलकुल सटे हुए कुछ कुर्सीयां रखी हुई थी – बाबा अन्य नेताओं के साथ पीछे बैठे थे – और हम सांसदों के बैठने वाली कुर्सी पर – किसकी मजाल जो मुझे उठा दे ..:)) अबोध मन …लगा …जब श्रीमती गांधी के नज़दीक रहूंगा – वो शायद पहचान लेंगी – यह वही लड़का है …जो फरवरी में मुझसे मिला था …:)) सचमें ..एक मन क्या क्या सोच लेता है …:))
इस मुलाक़ात के पंद्रह दिन बाद उनकी हत्या हो गयी …उसके बाद राजनीति में बहुत बदलाव आया …इसपर क्या टिपण्णी करूँ …पर मेरा यह पुरजोर मानना है …चाईल्ड साइकोलॉजी पुरे जीवन पर शासन करती है …
श्रीमति गांधी को श्रद्धांजली !!

रंजन , दालान

31.10.2013

आम्रपाली …

वैजयंती माला

“इतने बड़े महल में , घबराऊँ मैं ‘बेचारी’ ” ।
इस गीत में जब लता मंगेश्कर की आवाज़ वैजयंती माला के होंठ से , तब जब वो जिस अदा से ‘बेचारी’ बोलती हैं , कसम से दिल पर कोई छुरी नही चलती है , लगता है जैसे इस मासूम दिल को कोई रेंत रहा है …उफ्फ्फ । ऐसे जैसे दिन भर ये दिल रेंत वाने को ही बना है । रेंत लीजिए , आपका ही दिल है । रख लीजिये , आपका ही दिल है टाईप फीलिंग आने लगता है ।
सिनेमा के रिलीज़ के वक़्त मेरे पिता जी प्लस टू में रहे होंगे और अभी मेरे बच्चे प्लस टू में आ गए लेकिन मेरे मन से ये गीत न कल गया , न आज गया और न कल जायेगा ।
निर्देशक लेख टंडन महान थे , इस सिनेमा की कॉस्टयम डिजाईनर भानु अतथैया ने कॉस्टयम डिजाईन को समझने के लिए कई दिन अजंता और एलोरा की गुफाओं में गुजारा । शायद एक महिला ही दूसरे महिला की खूबसूरती को समझ सकती है , वर्ना हम पुरुष तो यूँ ही बदनाम रहते हैं ।
बाकी थोड़ा बहुत ‘गुन्डा’ तो हर पुरुष होता है लेख टंडन , रंजन ऋतुराज ही हो गए तो कौन सा पहाड़ टूट गया । जो बिल्कुल भी गुन्डा नही है , वह पुरुष नही मउगा है , ऐसा हम नही हर एक ‘बेचारी’ वैजयंती माला के होंठ कहते है ।

~ रंजन / दालान / 24.10.2017

हवाई यात्रा नहीं किए हैं …

हम आज तक हवाई जहाज़ पर नहीं चढ़े हैं 😐 आपकी क़सम । जब कोई फ़ेसबुक पर हवाई अड्डा पर चेक इन करता है – कैसा कैसा दो मन करने लगता है । हमारे जैसा आदमी के अंदर हीन भावना आती है । 😐 फिर हम कल्पना करने लगते है…
बचपन में छत से एकदम ऊँचा हवाई जहाज़ नज़र आता था । छत से ही टाटा करते थे – मन भर देख भी नहीं पाते थे – दौड़ कर अजिन कज़िन को बुला कर दिखाने के चक्कर में ही हवाई जहाज़ आसमान से ग़ायब हो जाता था 😐 तब तक कोई बड़ा अजिन कज़िन का हवा शुरू – कैसे उसके नाना जी हवाई जहाज़ पर चढ़े थे , मन एकदम से चिढ़ जाता था । जलन होती थी । यहां पांच पीढ़ी में कोई हवाई जहाज पर नहीं चढ़ा और उसके नाना जी हवाई जहाज पर ही घूमते है ।
मेरा जन्म भी मिडिल में भी मिडिल और उसके भी मिडिल क्लास में हुआ 😐 ब्रह्मा जी पिछला जनम में मेरे ‘गुंडागर्दी’ से परेशान रहे होंगे , धर के बिहार के मिडिल क्लास में टपका दिए 😟 स्कूल में भी ‘बस यात्रा , रेल यात्रा , चाँदनी रात में नौका विहार ‘ इत्यादि पर लेख लिखने को आता था लेकिन कोई शिक्षक ‘हवाई यात्रा’ पर पैराग्राफ़ तक लिखने को नहीं बोला । हिन्दी स्कूल का यही दिक्कत । अंग्रेजी वालों के यहां पैराग्राफ लिखने को आता होगा । मालूम नहीं । यहां तो रेलयात्रा पर ही निबंध लिखने में हाईस्कूल खत्म हो गया ।
कॉलेज में कुछ दोस्त यार हवाई जहाज़ वाले थे । सेमेस्टर परीक्षा के बाद सबसे अंत में होस्टल छोड़ते थे और हवाई जहाज से सबसे पहले अपने घर पहुँच जाते थे । ब्रह्मा जी पर ग़ुस्सा आता था । जेनरल बॉगी में सूटकेस पर बैठ कर यात्रा करना होता था 😐

कभी कभी किसी को एयरपोर्ट पर सी ऑफ करने जाते हैं तो मन मे उदासी की कैसा दोस्त है , कभी तो बोलेगा – चलो रंजन , इस बार तुम भी हवाई जहाज पर चढ़ लो । मुंह मारी ऐसा धनिक लोग का ।
कभी कभी चार्टेड से पटना दिल्ली करने का मन । एकदम सफ़ेद ड्रेस में , सफेद बुशर्ट , सफेद पैंट और सफेद जूता और हरा ग्लास वाला गॉगल्स । घस्स से पटना हवाई अड्डा पर स्कॉर्पीओ रुका – फट फट गेट खुला , खट खट बंद हुआ । लेदर वाला पतला ब्रीफ़केस , अरमानी का गागल्स , सीधे चार्टेड के अंदर । चेला चपाटी टाटा किया । एक मुस्कान एयर होस्टेस को 😎 सीधे दिल्ली वाया लखनऊ !
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 26.10.2016

सेंधमारी , चोरी और डकैती …

सेंधमारी , चोरी और डकैती :
बचपन का गाँव याद आता है । भोरे भोरे एक हल्ला पर नींद ख़ुलती थी । बिना हवाई चप्पल के ही बाहर भागे तो पता चला रमेसर काका के घर सेंधमारी हुआ है । 😳 नयकी कनिया के घर में अर्धचंद्रकार ढंग से दीवार तोड़ – उनका गहना ग़ायब । कोई देवर टाइप मज़ाक़ कर दिया – आया होगा कोई पुराना आशिक़ 😝 सेंधमारी का अपना अलग औज़ार होता था – बिना आवाज़ के मोटा दीवार तोड़ देना कोई मज़ाक़ नहीं । अब सेंधमारी नहीं होता है , कला विलुप्त हो गयी है । लेकिन सेंधमारी को कभी सिरीयस नहीं लिया गया । इस कला को ना तो इज़्ज़त मिली और ना ही धन ।
एक होता है – चोरी । सेंधमारी से थोड़ा ज़्यादा हिम्मत । छप्पर छड़प के घर में ‘हेल’ गए । मुँह में नक़ाब लगा कर – थोड़ा ‘मऊगा’ टाइप । अधिकतर चोर हल्की फुल्की सामान चोरी करते हैं । परीक्षा में भी चोरी । ताक झाँक से लेकर पुर्ज़ा तक । वक़्त सिनेमा में राजकुमार टाइप चोर भी – निगाहें मिलाते मिलाते रानी साहिबा का हार ग़ायब ! दिल का भी चोरी , चोर जैसा चुपक़े चुपके आहिस्ता आहिस्ता । लेकिन चोरी कैसा भी हो – कितना बड़ा भी चोरी हो – उसे सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिली । चोर अपने आप में एक गाली है – क्या ‘चोर’ जैसा मुँह बनाए हुए हो ।
एक होता है – डकैती । सुनील दत्त टाइप घोड़ा पर सवार । काला टीका । बंदूक़ के नाल पर रूपैया रख – ठाएँ । माँ भवानी किया और बीच बाज़ार उठा लिया । अब बैठ कर गीत गाते रहिए – रात है कुछ मध्यम मध्यम , वहीदा रहमान टाइप । डकैत ले गया – सब कुछ । डकैती का क़िस्सा भी थोड़ा स्टेटस वाला , स्कूल में हवाबाज़ी – मेरे घर डकैती हुआ था , बेंच पर हाथ मुँह रख ख़ूब चाव से सुनते थे । डकैत आया और दिया दो तबड़ाक ‘पुत्तु चाचा’ को । 😝 डकैत संस्कार वाले होते हैं । न्याय देते हैं । डकैती को सामाजिक इज़्ज़त है – सर सिपाही भी घबराते हैं । डकैत का ललाट चमकता है । डकैती गाली नहीं है । डकैत को गोली लगती है और चोर बँधा के पिटाता है और सेंधमार कभी पकड़ा नहीं जाता है 😎
लेकिन सेंधमारी , चोरी और डकैती तीनों का मंज़िल एक ही है – अब आप क्या करते है – यह आपके आंतरिक व्यक्तित्व पर निर्भर करता है 😝
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 2016

ये जो अक्टूबर है .. न …

ये जो ऑक्टोबर है न …इसे शरद का वसंत भी कहते है । गोधुलि की बेला के बाद से ही हल्की ठंड की एहसास शुरू हो जाती है । तुम्हें पता है – गोधुलि की बेला किसे कहते हैं ? सूरज के ढलते ही चरवाहे अपने गाय के साथ वापस लौटते है …एक तरफ़ सूरज ढल रहा होता है और उसकी किरणों के बीच गाय के ख़ुरों से जो धूल उड़ती है …बड़ी पवित्र नज़र आती है । उसे ही गोधुलि कहते हैं …:)) हाँ …गाय के गले में बंधी घुँघरू की आवाज़ भी ..:))
पर तुम्हारे शहर में तो बड़ी कोठियाँ और लॉन होते हैं । ऑक्टोबर की शाम – बड़े लॉन में – मखमली घास पर एक बेंत की कुर्सी जिस पर तुम और …और एक कुर्सी ख़ाली …बरामदे में एक मध्यम रौशनी …और अंदर उस बड़े ड्रॉइंग रूम से बिलकुल उस मध्यम रौशनी की तरह बोस के स्पीकर से सैक्सोफ़ोन की धुन …बेहतरीन दार्जिलिंग चाय …
पर वो एक कुर्सी ख़ाली …बेंत वाली …लॉन के बीचोबीच …
अब तो ठंड भी लग रही होगी …कहो तो कुर्सी बरामदे में रखवा दूँ …उस अकेली कुर्सी को वहीं लॉन में अकेला छोड़ ….
~ RR / दालान / 25.10.2016

नवरात्र ~ ९ , २०२०

देवी

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
~ आज महानवमी और कल विजयदशमी । ढेरो शुभकामनाएं । देवी पूजन के 9 रात और शक्ति के एक रूप रचनात्मकता की पूजा के मेरे भी 9 साल ।
ढेरो सवाल आते हैं । सबका ज़बाब मुश्किल है । उम्र , अनुभव और महसूस करना – शायद इन्हीं के इर्द गिर्द आपके सभी सवाल के जवाब है ।
लेकिन मेरा मानना है कि जब तक देवी खुद आपको नहीं चुनेंगी , आप इनके रहस्य को नहीं समझ पायेंगे । मै बात देवी की कर रहा हूं ना की शक्ति की । मेरी नजर में , शक्ति पात्र के साथ है और देवी अपने पात्र के पास :)) शक्ति बिना शिव के नहीं और देवी बिना साधक के नहीं :))
इसी 9 साल में मैंने दुर्गा सप्तशती को छोड़ अनेकों दुर्गा स्तुति के संस्कृत में लेखनी पढ़े जिन्हें आप श्लोक भी कह सकते हैं , गूगल केे कारण ट्रांसलेशन भी मिला । कुल मिला कर यही लगा कि जितने भी साधक रहे वो मूलतः देवी की प्रशंसा ही किए । पूजा की शुरुआत उन्होंने मां रूप से की और अंतोगत्वा देवी की आराधना वो प्रेमी रूप में करने लगे । अब आप ललिता सहस्रनाम को ही पढ़ लीजिए , साधक देवी के इतने नजदीक हो गए की वो देवी के शारीरिक अंगों की स्तुति करने लगे हैं । यह मां रूप में असम्भव है । लेकिन यह इजाजत भी देवी हर किसी को नहीं देे सकती । यह बिल्कुल एक स्त्री और पुरुष के उस प्रेम की तरह है जो आत्मा से शुरू होकर मिलन तक जा पहुंचता है । यह आसान भी नहीं है । कठोर साधना । जब तक भाव नहीं उत्पन्न होगा – प्रेम का कोई भी रूप व्यर्थ है । आप कहां तक डूबते हैं , यह आपकी साधना तय करेगी और साधना की पराकाष्ठा आपकी आत्मा में पनप रहे पूजा रूपेण प्रेम से होगी ।
लेकिन यह एक अलग ही दुनिया है । इसका अंत कहां है – किसी को नहीं पता । नशा नहीं कह सकते क्योंकि नशा भी कभी न कभी टूटता है । यह श्रृंखला कभी नहीं टूटता । बचपन में साधकों के बारे में सुनता था । अब महसूस किया हूं । गृहस्थ जीवन में भी साधना सम्भव है और शायद इसी लिए नवरात्र का जन्म हुआ ।
लेकिन अंतोगत्वा मांगना बहुत मुश्किल है और वो भी खुद के लिए । हां , पूजा के बाद करबद्ध इंसान देवी के सामने खड़ा हो सकता है , अपने परिवार , मित्र के लिए मांग सकता है । लेकिन खुद के लिए …मुश्किल है । जो मिल जाए वही परसाद है । नहीं मिला तो पास रहने का वो क्षण ही परसाद है ।
क्योंंकि साधना के बाद साधक भी देवी के समकक्ष हो जाता है – इस भावना के साथ की अगर तुम शक्ति हो तो हम शिव है 🙏 क्षमाप्रार्थी हूं । और समकक्षों से मांगा नहीं जाता …जो मिल जाए … उसे सहज भाव से स्वीकार किया जाता है …
कुछ तो मिला ही होगा …एक नज़र ही सही । और ये क्या कम है कि एक नजर पड़ गई :))
सभी को महानवमी की ढेरो शुभकामनाएं 🙏
: रंजन , दालान 🙏❤️🙏

नवरात्र ~ ८ , २०२०

~ असंख्य शक्तियां है । आप यह नहीं कह सकते कि फलाना शक्ति ही महत्वपूर्ण है । फिर भी , हम पुरुषों को पद को लेकर बड़ी लालसा होती है । क्योंकि हम बाहरी दुनिया यानी समाज में उठते बैठते हैं । पुरुषों में यह आचरण जेनेटिक है । मुहल्ले में दुर्गा पूजा हो रही है , नवयुवक मंडली बना तो सबसे पहले पद पर फैसला होगा । हा हा हा । मुन्ना को संयुक्त सचिव पद नहीं मिला तो वो विद्रोह कर दिया । हा हा हा । सामाजिक नेतृत्व भी व्यक्तित्व/ कद के हिसाब से पद बांटता है । कई दफा यहां भी झोल । फिर भी , पद का बहुत महत्व है । स्त्रियां भी इसे ही प्रमुख समझती है । मंत्री जी का भतीजा है तो वही बढ़िया प्रेमी होगा । एक भोजपुरी गाना है – हमरा पीछे लागल बा मोछमुंडा , हीरो होंडा लेे के – लईका के नेता ह , नेता के लईका ह । मतलब की – मेरे पीछे एक एक लड़का पड़ा हुआ है जो हीरो होंडा चलाता है , फिर वो खुद विद्यार्थियों का नेता है और सबसे अच्छी बात की वो किसी नेता का पुत्र भी है । हा हा हा । स्त्री मनो विज्ञान को भी किसी पुरुष ने गीत का शब्द दिया । लेकिन यह सच है ।
~ लेकिन पुरुष का कर्तव्य हैं कि वो अपने सामाजिक पद के हिसाब से अपने कद को बढ़ाए । अब बन गए ससुर और दिन भर आंगन में खटिया पर बैठे रहिएगा , कुछ दिन बाद आप अपनी इज्जत खो बैठेंगे । जिस दिन ससुर बने , उसी दिन आंगन का त्याग कर दालान पर झोला डंडा लेकर बैठ जाइए । आपका कद भी सुरक्षित और पद की गरिमा भी । अब आप रट रटा के बहुत बडा़ अफसर बन गए और दिन भर सोशल मीडिया पर गीत , नाक में क्लिप लगा के , मउगा टाइप । एक दो दिन बाद आप अपना आकर्षण खो बैठेंगे । बहुत पुरुषों की आदत होती है , पत्नियों के सखी सहेली के बीच हाई फाई बात करने की । पहला दिन तो बढ़िया लगता है – मेरी दोस्त के पति कितने हंसमुख है , कोई ईगो नहीं इत्यादि इत्यादि और एक आप हैं इत्यादि इत्यादि । इसी बीच कुछ दिन बाद कोई हाई आइक्यू महिला रही तो बोल देगी – फलनवा के पति भारी मउग है , मुंह तक्का टाइप 😂
~ पद मिले तो अपने कद का बदलाव कीजिए । योग कीजिए । प्रकृति के बहाव पर नियंत्रण रखिए । योग का मतलब नहीं कि अर्ध नग्न फोटो इंस्टाग्राम पर डालिए – टॉय बॉय बनने के चक्कर में 😂 किसी को सुष्मिता सेन के टॉय बॉय का नाम नहीं पता । कोई अर्जुन कपूर को इज्जत नहीं देता है । मिस्टर प्रियंका चोपड़ा बउआ लगता है 😂
~ बड़ी मुश्किल से पद मिलता है । भारत में भेड़िया धसान है । लोग किसी भी पद के लिए, कोई भी राजनीति चल देते हैं । माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला लिखते हैं , माइक्रोसॉफ्ट जैसी संस्था के वीपी किसी भी वक्त एक दूसरे के पीठ पर छुरा चलाने को तैयार थे । वो अमरीका है , इसका मतलब नहीं कि वहां के पुरुष अपने प्रकृति को भूल जाएं :))
बाकी …आज महागौरी का दिन 🙏❤️🙏
: रंजन , दालान

नवरात्र ~ ७ , २०२०

~ आज सप्तमी है । बिहार में देवी का पट खुल गया होगा । सर्वप्रथम देवी पूजन हमारे घर की बहन , बेटी और बहु करेंगी । देवी का आगमन और देवियों के द्वारा स्वागत ❤️
सब कुछ तो हमारी सभ्यता से ही है । जब कोई दुल्हन प्रथम बार ससुराल आती है तो उसका स्वागत भी घर की महिलाएं ही करती है :)) कितनी अचरज की बात है कि हिन्दू धर्म के जितने भी पर्व और त्योहार है , सभी किसानों के समय को या उनके सुविधा अनुसार ही बनाए गए हैं । किसान मूल हैं ।🙏
~ मैंने देखा है लोग अपनी शक्ति से ज्यादा दूसरों की शक्ति को तौलते हैं । यह उतना उचित नहीं है । खुद की शक्ति को पहचानिए । दो वक़्त की रोटी और एक छत के बाद , इस संसार में किसी से डरने की जरूरत नहीं है । अपना पॉजिटिव प्वाइंट समझिए । अपने खुद के प्रकृति को समझिए । आप अव्वल दर्जे के फ्रॉड हैं तो यह भी एक पॉजिटिव प्वाइंट है लेकिन उस शक्ति का आदर कीजिए । हम जैसे साधुओं को जान बक्श दीजिए । रोड किनारे , स्टेशन पर , मेला में फ्राउडगिरि कीजिए । हम जैसे लोग आपको प्रणाम कर के आगे बढ़ जायेंगे। यह मेरा स्वभाव है , आप चोर हैं , चोट्टा है , फ्रॉड है – हम अपनी मूल प्रकृति के अनुसार आपको नहीं टोकेंगे जब तक कि आपकी चोर कटाई से हमको कोई फर्क नहीं पड़ता । समाज है – हर तरह के लोग है , आप भी रहिए । खुशी खुशी अपना चोर और चोट्टा के ग्रुप में ।
हमको अपना पॉजिटिव प्वाइंट पता है । निगेटिव भी पता है । किसी का आठ आना भी नहीं मारेंगे । पैसा के मामले में पक्का ईमानदार । अब खूबसूरती नजर के सामने से गुजरेगी तो कनखिया के एक नज़र देखेंगे ही देखेंगे । अब वो एक घड़ी , पेन या कोई हम उम्र बेमिसाल हो । मूल प्रकृति है । पढ़ने में मन नहीं लगा तो कभी किसी को खुद को होशियार समझ कर बर्ताव नहीं किया । भाई , हम बकलोल और आप होशियार । अब आगे बढ़िये । अब बाप दादा हाथी रखता था तो वो लिखेंगे ही लेकिन अपना पटल पर । भांट की तरह दरवाजे दरवाजे नहीं । हे हे …मौसी जी , अहं बड नीक छीये । मार साला मऊग के । किसी की यही प्रतिभा । गीत गाते गाते अंगना में ढूक गए । हा हा हा । भाई , ई सब प्रतिभा हम में नहीं 🙏
तो घुमा फिरा के कहने का मतलब की आप अपने मूल प्रकृति को समझिए । मूल शक्ति वही है । आपका स्वभाव । वहीं से आपको इज्जत मिलेगी या बेइज्जती । बड़का फ्रॉड तो बड़का फ्रॉड के समूह में जाए – बहुत इज्जत मिलेगी । साधु के ग्रुप में जायेंगे तो बेइज्जती मिलेगी । बड़का साधु हैं तो साधु के समाज में रहे , वहीं इज्जत मिलेगी । फ्रॉड के समाज में जायेंगे तो गाली मिलेगी । देख साला साधु को , बैठ कर खाता है । हा हा हा ।
क्योंकि शक्ति का एक मंज़िल – सामाजिक प्रतिष्ठा भी है :))
: रंजन , दालान

मेरा गांव – मेरा देस – मेरा दशहरा

हर जगह का ‘दशहरा’ देखा हूँ 🙂 मुज़फ्फ्फरपुर –  रांची – पटना – गाँव – कर्नाटका – मैसूर – नॉएडा -गाज़ियाबाद 🙂
गाँव में बाबा कलश स्थापन करेंगे ! हर रोज पाठ होगा ! बाबा इस बीच दाढ़ी नहीं बनायेंगे ! पंडित जी हर रोज सुबह सुबह आयेंगे ! नवमी को ‘हवन’ होगा ! दशमी को मेला ! दशमी को हम सभी बच्चे मेला देखने जाते थे – हाथी पर् सवार होकर 😉 ( सौरी , मेरी हाथी वाली किस्से पर् कई भाई लोग नाक – भों सिकोड़ लेते हैं )…महावत को विशेष हिदायत …बगल वाले गांव के सबसे बड़े ज़मींदार के दरवाजे के सामने से ले चलो …जब तक मेरा हाथी उनका पुआल खाया नहीं …तब तक मन में संतोष कहाँ …😉  गाँव से दूर ब्लॉक में मेला लगता था ! जिलेबी – लाल लाल 🙂 मल मल के कुरता में ! फलाना बाबु का पोता ! कितना प्यार मिलता था ! कोई झुक कर सलाम किया तो कोई गोद में उठा कर प्यार किया ! किसी ने खिलौने खरीद दिए तो किसी ने ‘बर्फी मिठाई’ ! तीर – धनुष स्पेशल बन कर आता था ! लगता था – हम ही राम हैं 🙂 पर् किस सीता के लिए ‘राम’ हैं – पता नहीं होता ! 
रांची में याद है  नाना जी के एक पट्टीदार वाले भतीजा होते थे – एच ई सी में – हमको मूड हुआ – रावणवध देखने का – ट्रक भेजवाये थे ! ट्रक पर् सवार होकर हम ‘रावण वध’ देखने गए थे ! ननिहाल से लेकर अपने घर तक – दुश्मन से लेकर – दोस्त तक – ‘भाई ..बात साफ़ है ….मेरा ट्रीटमेंट एकदम ‘स्पेशल’ होना चाहिए …अभी भी वही आदत है …जहाँ हम हैं ..वहां कोई नहीं .. 😛
मुजफ्फरपुर में ‘देवी स्थान’ ! बच्चा बाबु बनवाए थे – सिन्धी थे – पर नाम ‘बिहारी’ ! अति सुन्दर – दुर्गा की प्रतिमा  ! वहाँ से लेकर कल्याणी तक मेला ! पैदल चलते चलते पैर थक जाता था 🙁 चाचा जैसा आइटम लोग पीठईयाँ कर लेता 🙂 फिर बाबू जी एक आर्मी वाला सेकण्ड हैंड जीप ले लिए ! पूरा मोहल्ला उसमे ठूंसा जाता ! फिर रात भर घूमना 🙂 झुलुआ झुलना ! कुछ खिलोने – चिटपुटिया बन्दूक  !  उस ज़माने में दुर्गा पूजा के अवसर पर् – ओर्केस्ट्रा आता था ! शाम से ही आगे की कुर्सी पर् बैठ जाना और प्रोग्राम शुरू होने के पहले ही सो जाना 🙂 पापा मोतीझील के पूजा मार्किट से एक हरे रंग का ‘एक्रिलिक’ का टी शर्ट खरीद दिए थे – तब वो पी जी ही कर रहे थे – मोहल्ला के सीनियर भईया लोग के साथ घुमने गए थे – बहुत साल तक उस हरे रंग के टी शर्ट को ‘लमार – लमार’ के पहिने ..:)) 
पटना आ गया ! विशाल जगह था ! बड़ा ! माँ – बाबु जी घूमने नहीं जाते ! कोई स्टाफ साथ में ! भीड़ ही भीड़ ! मछुआटोली आते आते – लगता कहाँ आ गए ! तब तक आवाज़ आती – अमूल स्पेय की दुर्गा जी – पूरा भीड़ उधर ! ठेलम ठेल ! ये लेडिस के लाईन में घुसता है ? हा हा हा हा ! उफ्फ्फ …बंगाली अखाड़ा ! नवमी को दोस्त लोग मिलता – कोई बोलता – फलाना जगह का मूर्ती कमाल का है – फिर नवमी को ..वही हाल ! 
 गाँधी मैदान और पटना कौलेजीयट में तरह तरह का प्रोग्राम होता – पास कैसे मिलता है – पता ही नहीं था ! गाँधी मैदान गया था – महेंद्र कपूर आये थे ! देख ही लिए 🙂 एक बार मूड हुआ ‘गाँधी मैदान’ का रावण वध देखने का ! एक दोस्त मेरे क्लास का ही – हनुमान बना था – राम जी के साथ जीप पर् सवार था ! इधर से बहुत चिल्लाये – नहीं सुना 🙂 एक बार गए – फिर दुबारा नहीं गए ! बाद में छत पर् पानी के टंकी पर् चढ  कर देखने का एहसास करते थे 🙂
थोडा जवानी की रवानी आयी तो सुबह में – सुबह चार बजे ..:)) जींस के जैकेट में ….बाल में जेल वेल लगा के …जूता शुता टाईट पहिन के …:)) आईक – बाईक पर ट्रिपल सवारी …पूरा पटना रौंद देते थे …
नॉएडा आ गए ! बंगाली लोग का एक मंदिर है – कालीबाड़ी ! वहाँ जरुर जाते ! नवमी को मोहल्ले में ही ‘बंगाली दादा’ लोग पूजा करता था ! जबरदस्त ! अब यहाँ एकदम एलीट की तरह ! मल मल का कुरता ! बेटा भी ! दुर्गा माँ को साष्टांग ! हे माँ – इतनी शक्ति देना की ……….! फिर प्रोग्राम ! रविन्द्र संगीत और नृत्य ! ये लोग बड़े – बड़े कलाकार बुलाते हैं – कभी कुमान शानू तो कभी उषा उथप ! गाना साना सुने ! ढेर बंगाली दादा लोग हमको ‘बिहारी बाहुबली’ ही समझता था – सो इज्जत भी उसी तरह ! पर् अच्छा लगता था !

रंजन ऋतुराज – इंदिरापुरम !

07.10.2010

दस साल पुराना लेख है :))

नवरात्र ~ ६ , २०२०

~ खुद के आनंदित होने के बाद शक्ति का प्रमुख उपयोग रक्षा करना है । और शायद इसी रक्षा भाव से शक्ति की आराधना और स्थापना होती है । अगर देवी पूजन को देखें तो कई बार पर्वत और पहाड़ों पर घिरे गांव , टोले या कबीला में बहुत ही तीव्र भावना से होती है । शायद वो जगह प्राकृतिक आपदाओं से घिरे होते होंगे और खुद की रक्षा के लिए देवी की स्थापना । शायद यहीं से कुल देवी की स्थापना और पूजने की भाव निकलती होगी ।
लेकिन – शक्ति रक्षा करेगी या विपदा लायेगी , यह उसके पात्र की प्रकृति पर निर्भर करेगा । शक्ति का रूप पात्र के रूप से बदल जायेगा । जैसे मुख्यमंत्री नीतीश भी हैं और मुख्यमंत्री लालू भी थे , अब मुख्यमंत्री कि शक्तियों का उपयोग किस दिशा में होगी यह पात्र का व्यक्तित्व तय करेगा । जैसे गंगा कहीं बाढ़ लाती है तो वही गंगा कहीं उपजाऊ मिट्टी भी लाती है और वही गंगा फसलों को पानी भी देती है , अब गंगा तो सब जगह है लेकिन गंगा का आचरण बदल जायेगा , यह आचरण उसके बहाव के जगह पर निर्भर करेगा । गंगोत्री और कानपुर – दोनो जगह एक ही गंगा है लेकिन पानी अलग है ।
परिस्थितियां भी पात्र के रूप को बदल देती है । लेकिन सामाजिक परिस्थिति से आया बदलाव बदल भी सकता है । लेकिन जो ईश्वरीय देन है , वह बदलना मुश्किल है । वो कुछ समय बाद तेज होकर निकलेगा ही निकलेगा । अब यह तेज आपके लिए घातक है या फलदायक है , यह निर्भर करेगा कि शक्ति के सामने आप किस कोण पर खड़े हैं ।
आज नहीं बल्कि कई युगों से बढ़िया गुरु , स्कूल , कॉलेज इत्यादि इसलिए बनाए गए की वहां से निकले शक्तिशाली लोगों का पात्र गठन बढ़िया हो सके और कालांतर जब उनके अंदर सामाजिक शक्ति का समावहन हो तो पात्र अपनी मजबूती से उस शक्ति को समाज हित में प्रयोग कर सके ।
लेकिन सब फेल हो जाता है । जो द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु वही द्रोणाचार्य दुर्योधन के गुरु । ज्ञान की असीम सीमा लांघने वाले रावण भी अपनी मूल प्रकृति से नहीं बच सके । उसी घर , रहन सहन और भोजन के साथ विभीषण का चरित्र अलग था । दुर्भाग्य देखिए – राम भक्त होकर भी किसी हिन्दू ने अपने पुत्र का नाम विभीषण नहीं रखा और इतना ज्ञान के बाद भी रावण नाम का कोई दूसरा नाम नहीं हुआ ।
~ खैर , बात ईश्वरीय देन पात्र के बनावट और उसके अन्दर की शक्ति की है । पात्र के गठन पर बहस होनी चाहिए और समाज के द्वारा उस पात्र की विषमताएं कम करनी चाहिए । लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और अंतोगत्वा हम ईश्वरीय देन चरित्र पर ही आधारित होकर शक्ति के उस वाहक के हिसाब से शक्ति का उपयोग या दुरुपयोग झेलते हैं ।
साथ साथ यह मान कर चलना होगा कि हर तरह कि शक्ति किसी एक ख़ास के पास नहीं हो सकती । यह एक प्यास है और यह प्यास कालान्तर एक कुंठा बन के भी रह जाती है । मेरे पास पैसा है तो राजनीति भी मेरे पॉकेट में होनी चाहिए इत्यादि इत्यादि । यह सोच गलत है । जिस दिन यह सोच आपके अंदर आयेगी उसी रोज से आपकी प्रमुख शक्ति का विनाश शुरू हो जायेगा । या फिर शक्ति बली मांगती है । दोनो बात सच है । आध्यात्मिक शक्ति तो मांगती ही मांगती है । यह बस अनुभव की बात है कि आपने बलि पर क्या चढ़ाया ।
लेकिन आम गृहस्थ के लिए किसी एक ख़ास प्रमुख शक्ति के सहारे जीवन काटना सबसे उपयुक्त है । बहुत छेड़ छाड़ में , वह शक्ति आपको ही तंग करना शुरू कर देती है । यह बात बहुत महत्वपूर्ण है – इसको गौर से सोचिए । या फिर पात्र की कमजोरी के कारण शक्ति उसे विचलित कर देती है ।
शायद इसी लिए हमारे समाज में एक मिश्रित जिन्दगी की शैली को प्रमुखता दी गई है । थोडा़ अध्यात्म हो तो थोडा़ संसार भी हो । धन हो तो दान का साहस भी हो ।
नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …कल हमारे बिहार में देवी का पट खुल जायेगा । हालांकि बंगाल में पहले से ही देवी का पट खुल जाता है । मेरे बिहार में सप्तमी के रोज ।
शुभकामनाएं ….
: रंजन , दालान