सन 2012 से लगातार इस पटल पर शक्ति / देवी की विवेचना करता आया हूं । कुछ एक पाठक अवश्य से ही इसका इंतजार करते हैं । लेकिन यह अनुभव एक गोलचक्कर जैसा है – जहां से चले थे फिर वहीं पहुंच गए :))
लेकिन मै किसी मंज़िल की तरफ नहीं बढ़ा था । बस एक जिज्ञासा हुई और विवेचना शुरू किया । सबसे बड़ी खुशी तब हुई जब 2014/ 2015 / 2016 में मेरे कई लेख मुस्लिम समाज के भाई बहन पढ़े भी , लाइक भी किए और कमेंट भी । बड़ी रोचकता से वो पढ़े क्योंकि शक्ति की विवेचना धर्म से परे है ।
~ शक्ति का मूल उद्देश्य आत्मा की संतुष्टि है । किसी भी तरह कि शक्ति की । जैसे आपके पास बहुत सारा पैसा है तो अपना पासबुक देख पहली अनुभूति यह होनी चाहिए कि आपकी आत्मा प्रफुल्लित हो । लेकिन उस प्रफुल्लता के बाद इंसान संसार में फंस जाता है । संसार उससे उस शक्ति के प्रदर्शन की चाह रखता है । इसके कई वजह हो सकते हैं , शायद संसार में कई लोग उस खास शक्ति के बगैर होते हैं , जो आपकी शक्ति के सहारे खुद को शक्तिशाली महसूस करें इत्यादि इत्यादि ।
लेकिन यह नवरात्र एक ख़ास अनुभव की राते होती है । मुझे कर्मकाण्ड नहीं आता लेकिन अब मै इसके महत्व को समझता हूं । लेकिन जानता नहीं । मूल पूजा – केन्द्रित होना है । मन को बांधना । मन को किसी एक ख़ास जगह केन्द्रित रखना । प्रकृति के बहाव को वश में रखना ही योग है । और पूजा एक योग है । सारी शक्ति आपके मन में है ।
लेकिन शक्ति आयेगी , रुकेगी फिर वो आपको चंचल बनायेगी ही बनायेगी । और इसी चंचलता से बिखराव शुरू होगा और फिर एक दिन वो शक्ति फुर्ररर …हा हा हा । यह शक्ति किसी इंसान की हो सकती है , किसी समाज की हो सकती है , किसी गांव या टोला की हो सकती है ।
~ एक बात जो हमेशा स्त्री समाज कहता है कि पुरुष नवरात्र में देवी / दुर्गा की पूजा तो करते हैं लेकिन आम जीवन में वो आदर आस पास की महिला को नहीं देते । ” एक बात कहूंगा – पूजा किसी स्त्री की नहीं होती है , पूजा स्त्री के एक ख़ास रूप की होती है ” जो स्त्री आपकी प्रेमिका या पत्नी है , वो किसी की बेटी , बहन या मां भी है । जिसके हिस्से में जो रूप आयेगा , वह उसी रूप / नजर के हिसाब से उसे देखेगा । कभी किसी मां की बेइज्जती करते किसी पुत्र को देखा है ? अगर आवेश में कभी हुआ भी तो कौन ऐसी मां है जो अपने पुत्र को माफ नहीं की होगी ? फिर वही स्त्री अपने प्रेमी / पति को माफ क्यों नहीं करती ? बात नजर की है :))
खैर , दुर्गा स्त्री की वो भव्य रूप है जो पुरुष की कल्पना में होती है । सर्वशक्तिमान । कोई इन्हे मां रूप में देखता है तो कोई बेटी रूप में ।
~ मैंने सन 2015 में लिख दिया , दुर्गा को मै प्रेमिका रूप में देखता हूं । हुआ हंगामा । हा हा हा ।
~ पूजा भी अलग है । मै देवी के पास पुजारी रूप में नहीं जा सकता । घोड़े पर सवार उस राजकुमार की तरह जो देवी के पास गया , हाथ जोड़ प्रार्थना किया और उनका सारा आशीर्वाद पल भर में लिया और फिर घोड़े पर सवार आगे की ओर निकल पड़ा । यह कल्पना ही मेरे अन्दर रोमांच भरती है । उस एक क्षण में पूरे जिन्दगी की ऊर्जा मिलती है ❤️
आप सभी को नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …
: रंजन , दालान , 2020 .
Beingcreative
🙏🙏👌👌