Archives January 2021

हर ज़िन्दगी एक कहानी है …

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – आउट ऑफ़ साईट , आउट ऑफ़ माइंड – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही …न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !
~ रंजन / दालान / 18.01.15

आत्माएं भाव की भूखी होती है …

आत्माएं भाव की भूखी होती है और उसी भाव से आत्म विश्वास पनपता है । भाव बहुत महत्वपूर्ण है । आज माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला के बारे में पढ़ रहा था । उन्होंने अपने बचपन के स्कूली क्रिकेट की चर्चा की । उन्होंने कहा – एक स्कूल क्रिकेट मैच के दौरान , गेंदबाजी करते वक़्त , एक ओवर वो बुरी तरह पिट गए । उस टीम के कप्तान ने फिर से उनपर भरोसा जताते हुए , फिर से गेंदबाजी का मौका दिया । सत्या लिखते है – वह एक क्षण था , जिसने उनकी ज़िन्दगी को एक जबरदस्त मोड़ दिया , और उनका आत्मविश्वास लौट आया । और वो आज विश्व की सबसे नामी आईटी कम्पनी के सीईओ हैं ।
उस भाव में आदर छुपा होता है । आदर देना सीखिए । आदर निगाहों से होकर जुबान पर नहीं भी आया तो दिल में अवश्य समाता है । भारत जैसे देश में मिडिल क्लास को दो वक़्त की रोटी और छत मुश्किल नहीं रही , तब वह एक आदर खोजता है । हर इंसान सत्या नडेला नहीं बन सकता लेकिन यह भी सत्य है कि विश्व के शिखर पर पहुंच कर , सत्या अपने स्कूल के उस कैप्टन को नहीं भूल सकते । वो स्कूली कैप्टन न जाने कहां होगा , लेकिन वो आजीवन किसी कि नजर में ऊंचा है ।
उत्तम पुरुष कभी एहसान नहीं भूलते । और जिंदगी कुछ बेसिक संस्कार से चलती है – आपके पास कुछ नहीं है फिर भी लोग आपके उस संस्कार के लिए याद रखेंगे ।
सूर्य उत्तरायण हो चुके है । नव वर्ष अब अपने रंग में आई है । 15 दिन बाद वसंत ऋतुराज भी आपसे मिलने के आतुर होंगे ।
कुछ नए इरादे बनाइए । कुछ मंज़िल खोजिए और कदमों को आगे रखिए …..

शुभ मकरसंक्रांति …..
~ दालान / मकरसंक्रांति / 2020

लेखक और काल

मुझे ऐसा लगता है – जो कोई भी लेखक है – किसी भी रूप में – साहित्यकार हो या फ़िलॉसफ़र । मूलतः वो अपने ‘काल’ से ही अपनी रचना को सजाते हैं । शेक़सपियर हों या कालिदास या फिर प्रेमचंद । सभी ने अपनी रचना के मूल में ‘मानव स्वभाव’ को रखा और उसको अपने काल / दौर से सजाया । जब से इंसान इस धरती पर आया – हर काल में उसकी भावना एक ही रही है – काल / दौर बदल जाता है । क्रोध , प्रेम , जलन – या जो कोई भी भावना हो – वह तो वही रहेगी ।
दिनकर की रचना ‘उर्वशी’ बेहद पसंद है । वह दूसरे काल को ध्यान में रखकर की गयी काव्य नाटक है लेकिन उसके मूल में प्रेम है – उर्वशी और पुरु का । वह इतना शक्तिशाली है की हम काल को भूल जाते हैं ।
पर सभी लेखक अपने काल के इर्द गिर्द ही लिखे हैं । और लिखना भी चाहिए । हम पूर्व के काल की रचनाओं को इतना पढ़ चुके होते हैं की वर्तमान के लेखक को उस दबाव में डाल देते हैं । हिंदी मतलब प्रेमचंद जैसी गाँव की बातें । हिंदी का मतलब इंफ़ोसिस के परिसर में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को लेकर चल रही बहस आधारित कहानी क्यों नहीं ? प्रेम सिर्फ़ कालिदास की शकुंतला ही क्यों ? प्रेम का मतलब पेरिस के बिस्ट्रोस में कॉफ़ी के मग के साथ जीवन की गुत्थी सुलझाते दो प्रेमी क्यों नहीं । समाज और उसके नियम बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं – लेखकों को उस बदलाव के साथ मूल को ज़िंदा रखना चाहिए ।

: रंजन / 14.01.2016