मुंशी प्रेमचंद और रफी साहब

क्रिएटिविटी की दुनिया में आज का दिन महतवपूर्ण है ! आज महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन है और महान पार्श्व गायक मोहम्मद रफ़ी साहब का पुण्यतिथि !
मुंशी प्रेमचंद से मुलाकात उनकी कहानी ‘दो बैलों की कहानी’ से हुई थी ! फिर पञ्च परमेश्वर , नमक का दारोगा , बड़े घर की बेटी ! ठीक चार साल पहले मैंने उनकी कहानिओं का पूरा संग्रह भी ख़रीदा था ! सौ साल – नब्बे साल पुरानी कहानी – आज भी जिन्दा है ! कभी कभी लगता है – मुंशी प्रेमचंद की नज़र कितनी पैनी रही होगी की आस पास के किरदार को उठा कर – उन किरदारों को वो अमर बना दिए ! अदभुत ! उनकी कहानिओं में – उनके शब्दों में – कहीं जटिलता नहीं है तभी तो वो महान बन पाए ! ईश्वरीय देन है ! क्रिएटिविटी की दुनिया का प्राण ही मौलिकता होता है ! जो मौलिक है – वही अमर है !
आज रफ़ी साहब की पुण्यतिथि भी है ! रफ़ी साहब को बैजू बावरा सिनेमा के गीतों से जाना था और आज भी वो सारे गीत बेहद पसंद हैं ! वो आत्मा से गाते थे – शायद इसी वजह से उनके गीत उनके आत्मा से निकल सुनने वाले की आत्मा में प्रवेश कर जाता था ! उनका एक गीत ‘मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे …लूट गए होश तो होश में आऊँ कैसे’ – बेहतरीन ! हज़ारों गीत से – कोई एक पसंदीदा गीत चुनना बहुत मुश्किल है !
समाज की समझ पैदा करनी हो तो मुंशी प्रेमचंद को पढ़िए और रोमांस और महबूबा के मनोभाव को समझना है तो रफ़ी साहब को सुनिए !
पर याद रखिये – क्रिएटिविटी की दुनिया ‘मौलिकता’ पर टिकी होती है ! मिटटी के खिलौने भी सजते है , ख़ूबसूरत लगते है – बशर्ते वो मौलिक हों :))
आप दोनों को नमन….!!!
~ रंजन / दालान / ३१ जुलाई /२०१६

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