Bihari on top : Mr Pramath Raj Sinha
~ प्रमथ कहते हैं कि दादा परदादा ज़मींदार थे . अचानक ज़मींदारी ख़त्म हुई तो अंग्रेजों द्वारा बेचे गये पुराने प्रिंटिंग प्रेस को ख़रीद उनके दादा जी ने अशोक प्रेस की स्थापना की . और शायद यही वो इनका भावनात्मक लगाव रहा जो इन्होंने कालांतर हरियाणा में विश्वस्तर विश्वविद्यालय बनाया जिसका नाम ‘ अशोका यूनिवर्सिटी ‘ है 😊
एक और इंटरव्यू में ये कहते हैं कि दादा जी और पिता जी साहित्यकार थे लेकिन जीवन यापन के लिए स्कूल के किताब भी छापते थे . उसी दौरान रिक्शा और ऑटो से उनके पिता जी शिक्षकों को डायरी , कैलेंडर इत्यादि गिफ्ट देते तो यहीं से उन्हें व्यापार का रोमांच भी पैदा लिया 😊
अपनी ग्यारहवीं कक्षा में इन्हें अपनी बड़ी बहन के पास सैन फ़्रांसिस्को जाना पड़ा और वहाँ स्टैनफ़ोर्ड और बर्कली में विश्वविद्यालय की पहली नज़र इनके तरुण मन पर ऐसी पड़ी कि आईआईटी कानपुर और पेनिसेलविया इत्यादि के बाद विश्व की जानी मानी मैककिंजी में काम के बाद इन्होंने भारत में आईएसबी हैदराबाद और अशोक विश्वविद्यालय का जन्म दिया 😊
लल्लनटॉप के सौरभ द्विवेदी ने इनसे काफ़ी लंबी बात की है . बेहतरीन बात चीत . काफ़ी सरल शब्दों और वाक्यों में प्रथम राज सिन्हा अपनी बात कहते हैं . किसी भी सिनेमा से ज़्यादा यह बात चीत आपको बांध कर रखेगी और इन्स्पायर करेगी . वर्तमान में सौरभ और काम्या जानी मेरे दो पसंदीदा है 😊
~ अब सवाल उठता है : सेंट माइकल पटना के इस विद्यार्थी ने बिहार में क्यों नहीं अपना प्रोजेक्ट लगाया ? इसका जवाब हम बिहारियों के पास ही है 😀
लिंक है . फ़ुरसत में देखिए . अवश्य देखिए . आराम से 😊
https://youtu.be/qKsv–7tieA?si=PsLBjkZqD6bUNqIA
~ रंजन , दालान