वर्ल्ड रेडियो डे

वर्ल्ड रेडियो डे

आज वर्ल्ड रेडिओ डे है – रेडिओ से जुडी कई यादें हैं – यूँ कहिये जिस जेनेरेशन से हम आते हैं – वो रेडिओ से ही शुरू होता है ..फिर रेडिओ से स्मार्टफोन तक का हमारा सफ़र ..:)

बाबा रात में पौने नौ वाला राष्ट्रिय समाचार जरुर से सुनते थे – फिर समाचार के वक़्त ही रात्री भोजन – बड़े वाले पीढ़ा पर बैठ कर – वहीँ बगल में हम भी उनके गोद में ..:) लगता था ..ये लोग कौन हैं ..जो ‘समाचार पढ़ते’ हैं …बस एक कल्पना में उनकी आकृती होती थी …साढ़े सात का प्रादेशिक समाचार …फिर दोपहर का धीमीगती का समाचार …हर घंटे समाचार ..:)
रेडिओ विश्वास था – जब तक रेडिओ ने कुछ नहीं कहा – कैसे ‘झप्पू भैया’ का बात मान लें …रेडिओ ने कह दिया …जयप्रकाश नारायण नहीं रहे – स्कूल में छुट्टी …रेडिओ अभी तक नहीं कहा …की श्रीमति इंदिरा गांधी की ह्त्या हुई है – अरे , कोई बीबीसी तो लगाओ 🙂
आज भी कानो में गूंजती है – “ये आकाशवाणी है ..अब आप रामानन्द प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए” …
कुछ चाचा / मामा टाईप आइटम होते थे …कब किस स्टेशन से गीत आ रहा होगा …एकदम से एक्सपर्ट …रेडिओ हाथ में लिया और धडाक से वही स्टेशन ..हम बच्चे मुह बा के उनको देखते …गजब के हाई फाई हैं …फिर उन गीतों में फरमाईश …क्या जमाना था ..लोग एक गीत सुनने के लिए ..पोस्टकार्ड पर पुरे गाँव / मोहल्ले का नाम लिख भेजते थे …फलना पोस्टबैग नंबर …नासिक से रीता बाघमारे …झुमरी तिलैया से पिंकी , रिंकी , टिंकी…:))

एक याद है – फाइनल ईयर में था – ठीक 7.40 शाम पूरा शहर घूम कर अपने कुर्सी टेबल पर बैठ जाता था और टेबल पर सामने रेडियो और रेडियो पर बीबीसी – हिंदी सेवा । 8.30 तक । इतना देर ध्यान केंद्रित करने में ही लग जाता था । बीबीसी की क्या कद्र थी – किसी खबर के सच का पता लगाना हो तो बीबीसी सुनिए :)) अभी फेसबुक पर देखा तो यहां की मेरी सबसे पुरानी मित्र शीबा लंदन बीबीसी स्टूडियो में थी – बहुत ही अच्छा लगा , कोई जान पहचान का चेहरा बीबीसी में हो । मार्क टुली तो भारतीय ही हो गए थे । मालूम नहीं अब कहां हैं ।

पिता जी के जमाने से ही सायनी साहब का बिनाका टॉप टेन । साल के अंतिम सप्ताह धड़कने बढ़ जाती थी – कौन सा गीत टॉप तीन में होगा । जिसे उन्होंने घोषित कर दिया वहीं टॉपर हो गया । आपको बताता चलूं – बिनाका टूथपेस्ट के साथ एक बेहतरीन रबर का जानवर खिलौना भी मिलता था जो उसके डब्बे में पैक होता था । और वैसे रबर के जानवर आकृति वाले खिलौने जमा करना एक अलग शौक होता था :))


जब पूरा गाँव सो जाता था …तब भी कहीं किसी के घर से देर रात तक रेडिओ से गीत बजता था …किसी ने कहा ..’नयकी भाभी’ हैं ..बिना गीत सुने नींद नहीं आती है …’नयकी भाभी’ को देखने उनके घर पहुँच गए ..पर्दा से उनको झाँक …भाग खड़ा …उन्होंने ने भी प्यार से बुलाया – बउआ जी ..आईये …:)

~ रंजन ऋतुराज / वर्ल्ड रेडियो डे / 2014 – 2020

2 comments

Sheeba Aslam

लंदन आइए, इतना इतिहास बिखरा पड़ा है यहाँ की लगता है एक साथ कई सदियों में जी रहे हैं। बीबीसी की बिल्डिंग खुद हेरिटिज है और दूसरे पुराने स्टूडीओ भी देखने लायक़ हैं।

Sumita

Ranjan ji through Amateur radio we are trying to keep radio love alive. We talk everyday with our Ham friends all over the world on HF.
Wanted to share a memory of mid 80’s trunk calls used to get connected with difficulty . My grand father used to listen to evening pradeshik samachar n we heard that few dacoits entered a house in Gopalganj district at xyz house and few dacoits were killed and that was our maternal grandfather’s house.

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