एक अच्छे कॉलेज में पढ़ाने का फल यह हुआ कि में बहुत ही कम उम्र में अपने विषय का हेड एग्जामिनर बन गया । पूरे यूपी के सभी इंजीनियरिंग कॉलेज के उक्त विषय कि कॉपियां मुझे मिली और कई साल यह काम करने का मौका मिला । जहां कहीं भी सेंटर होता था – वहां का एक बड़ा कमरा और उस कमरे में करीब 40-50 परीक्षक । सामने एक ऊंचे डायस पर मै बैठा । युनिवर्सिटी नियमो के अनुसार मुझे बतौर हेड एग्जामिनर करीब 10 % कॉपियां फिर से जांचनी होती थी । हरे रंग की स्याही वाली कलम मिलती थी :))
बाकी के मेरे कलीग परीक्षकों को मेरा स्पष्ट निर्देश होता था – कोई भी फेल नहीं करेगा – किसी भी सूरत में । बाकी का मै संभाल लूंगा । चौहान साहब वाइस चांसलर होते थे और उन्हें यह लगता था कि हमारे कॉलेज जैसा कोई नहीं और यहां के शिक्षक जैसा कोई नहीं । वो इतने सख्त इंसान थे कि एक बार हमारे कलीग अमित तिवारी ने उनकी बेटी को ही आंतरिक परीक्षा में सबसे कम नम्बर दिया और बतौर वाइस चांसलर चौहान साहब कुछ नहीं बोले । कुछ नहीं ।
खैर , मेरे रहते कोई विद्यार्थी फेल कर जाए – यह असम्भव था । कारण खुद की साइकोलॉजी थी – जब मै पढ़ता था तो मेरे शिक्षकों का पहला उद्देश्य मुझे ही फेल करना होता था , यह पीड़ा मेरे मन में थी । पोस्ट ग्रेजुएशन में संभवतः मेरे अन्य सेमेस्टर में सबसे बढ़िया नम्बर थे तो थीसिस में सबसे कम नम्बर देकर , मेरे पूरे सीजीपीए को कम किया गया । मै इस घाव में था सो मैंने अपने जीवन में निर्णय लिया की कोई नहीं फेल होगा ।
कारण एक और है – आपके लिए 40,000 विद्यार्थी के कॉपी है । 2 या 4 प्रतिशत को फेल कर देना आपके लिए एक आंकड़ा है लेकिन उस विद्यार्थी के लिए वह विषय सिर्फ और सिर्फ एक ही बार आएगा । कम नम्बर देना उसके लिए आजीवन एक घाव बन सकता है – कारण और भी थे , तब जब इंडस्ट्री मान कर चलती है कि इंजीनियरिंग कॉलेज की पढ़ाई बकवास है और वो विद्यार्थियों के आइक्यू के आधार पर भरती करती है और ना की विषय की जानकारी पर ।
काफी शुरुआत में ही , एक और घटना घटी । तब हम नए नए थे और सामान्य परीक्षक थे । वर्तमान एसएसपी फ़िरोज़ाबाद सचिंद्र के बैच के एक विषय को मेरे कलीग कॉपी जांच रहे थे और कॉपियां कोडिंग की थी , वो मेरे सामने बैठे थे और मूड कर उन्होंने कहा – रंजन सर , लगता है यह अपने विद्यार्थियों की कॉपी है और यह कॉपी उस क्लास के टॉपर की प्रतीत हो रही । हम खुश हो गए और अपने कलीग को बोले – हुमच के पूरे बंडल में नंबर झाड़ दो और टॉपर को 98 दे दो । ऐसा कह कर मै अपने बंडल में लग गया । उन्होंने उस टॉपर को मात्र 72 नम्बर दिए । विद्यार्थी डिग्री लिए और अपनी अपनी नौकरी में चले गए ।
वो टॉपर लड़की अपनी पहले ही प्रोजेक्ट में लंदन गई । मै उसके ग्रुप का गाइड भी था सो एक स्नेह था , नौकरी और लंदन से उसने एक ईमेल भेजा – सर , सिर्फ दो नंबर से मेरा युनिवर्सिटी रैंक छूट गया , अगर दो नंबर ज्यादा होते तो मै अपने ब्रांच में युनिवर्सिटी टॉप 10 होती और बीस तीस नम्बर ज्यादा होते तो शायद पूरे युनिवर्सिटी में प्रथम । उस ईमेल को पढ़ , मै एक गहरे अवसाद में था । काश , मै अपने कलीग के माथा पर सवार हो कर , उस पूरे बंडल में नम्बर की झड़ी लगवा देता । उसने अपने ईमेल में एक और बात लिखी थी – नौकरी और लंदन तो आते जाते रहेगा लेकिन युनिवर्सिटी रैंक होल्डर तो आजीवन साथ रहता । उसे आज तक नहीं पता की उसके पूरे क्लास की कॉपी हम सभी के आंखों से गुजरी थी । काश ….। शायद इस घटना ने मुझे एक बेहतरीन हेड एग्जामिनर बनाया । मानवता के साथ ।
एक विद्यार्थी सिविल सर्वेंट है । अपनी गाथा कहने लगे – यूपीएससी में दो बार असफल इंटरव्यू के बाद , तीसरे प्रयास में उनके बोर्ड में एक यूपी वाले मिल गए और वो इनके पक्ष में , पूरे बोर्ड को हाईजैक कर लिए और मेरा एक विद्यार्थी आज सीनियर प्रशासक है ।
कहने का मतलब – 130 करोड़ की जनता में 2 या 4 हज़ार मौत किसी प्रमुख के लिए आंकड़ा हो सकता है लेकिन उसके परिवार के लिए और उसके लिए सिर्फ और सिर्फ एक मौत जो फिर कभी जीवन बन के वापस नहीं लौटेगा ।
बचा लीजिए ….जीवन को । भगा दीजिए ….मौत को – जो दरवाजे खड़ी है , खटखटा रही है ।
~ रंजन / दालान / 28 मार्च , 2020
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