आदर्श …

आदर्श …

मुझे नहीं लगता – हम अपने आदर्श ‘भगवान् बुद्ध’ / ‘महात्मा गांधी’ जैसे महापुरुषों में खोजते हैं – आदर्श हमेशा से आस पास के लोग ही होते हैं – भगवान् बुद्ध के साथ घूम रहे उनके चेलों के लिए ‘बुद्ध’ आदर्श रहे होंगे – नेहरु / पटेल के लिए महात्मा गांधी आदर्श रहे होंगे – पर हमारे लिए – वैसे ही लोग – जिन्हें हम देखे हों !
माता पिता के अलावा भी कई ऐसे लोग होते हैं – जिनकी खुबीयाँ हमको आकर्षित करती हैं – जैसे दादा / दादी , नाना / नानी , कोई गुरुजन , कोई सीनियर बॉस ….कोई भी ! एक ख़ास समय में ..जब हमें जरुरत हो ..उनके द्वारा उसी समय कही गयी कोई बात या उनका आचरण हमें इस कदर प्रभावित करता है – हम आजीवन उसको कैद रखते हैं फिर धीरे धीरे उनकी बात या उनका आचरण हमारे जीवन में प्रवेश करने लगता है !
मै कोई गलत या सही आचरण की बात नहीं कर रहा हूँ – बात है – आप किस वातावरण में पल बढ़ रहे हैं – अगर आपके इर्द गिर्द ‘बाहुबली’ लोग ही हों – और अगर आपका झुकाव भी उस तरफ हो – फिर उन बाहूबलीओं में ही आप अपने आदर्श खोजेंगे – उनकी जीवन शैली को अपनाने की कोशिश ….कुछ भी !
आपका आदर्श कैसा है …कौन बने …इसकी भी बहुत सारी वजहें होती हैं …आप कैसे पले – बढे से लेकर …आपको क्या लुभाता है …से लेकर ..आप किस चीज़ की कमी महसूस करते हैं …कई वजहें हैं …जिन्हें हम व्यक्तिगत जीवन की मान्यताएं कह सकते हैं …
बहुत कुछ है …समझने – सोचने को …व्यक्तित्व निर्माण एक कठिन एवं जटिल प्रक्रिया है …जो किताबों में नहीं मिलती ..:))
~ #ranjanrituraj #daalaan 18.09.2013
तस्वीर साभार ~ रंजन ऋतुराज / 18.09.2017

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