नवरात्र ~ ६ , २०२०

नवरात्र ~ ६ , २०२०

~ खुद के आनंदित होने के बाद शक्ति का प्रमुख उपयोग रक्षा करना है । और शायद इसी रक्षा भाव से शक्ति की आराधना और स्थापना होती है । अगर देवी पूजन को देखें तो कई बार पर्वत और पहाड़ों पर घिरे गांव , टोले या कबीला में बहुत ही तीव्र भावना से होती है । शायद वो जगह प्राकृतिक आपदाओं से घिरे होते होंगे और खुद की रक्षा के लिए देवी की स्थापना । शायद यहीं से कुल देवी की स्थापना और पूजने की भाव निकलती होगी ।
लेकिन – शक्ति रक्षा करेगी या विपदा लायेगी , यह उसके पात्र की प्रकृति पर निर्भर करेगा । शक्ति का रूप पात्र के रूप से बदल जायेगा । जैसे मुख्यमंत्री नीतीश भी हैं और मुख्यमंत्री लालू भी थे , अब मुख्यमंत्री कि शक्तियों का उपयोग किस दिशा में होगी यह पात्र का व्यक्तित्व तय करेगा । जैसे गंगा कहीं बाढ़ लाती है तो वही गंगा कहीं उपजाऊ मिट्टी भी लाती है और वही गंगा फसलों को पानी भी देती है , अब गंगा तो सब जगह है लेकिन गंगा का आचरण बदल जायेगा , यह आचरण उसके बहाव के जगह पर निर्भर करेगा । गंगोत्री और कानपुर – दोनो जगह एक ही गंगा है लेकिन पानी अलग है ।
परिस्थितियां भी पात्र के रूप को बदल देती है । लेकिन सामाजिक परिस्थिति से आया बदलाव बदल भी सकता है । लेकिन जो ईश्वरीय देन है , वह बदलना मुश्किल है । वो कुछ समय बाद तेज होकर निकलेगा ही निकलेगा । अब यह तेज आपके लिए घातक है या फलदायक है , यह निर्भर करेगा कि शक्ति के सामने आप किस कोण पर खड़े हैं ।
आज नहीं बल्कि कई युगों से बढ़िया गुरु , स्कूल , कॉलेज इत्यादि इसलिए बनाए गए की वहां से निकले शक्तिशाली लोगों का पात्र गठन बढ़िया हो सके और कालांतर जब उनके अंदर सामाजिक शक्ति का समावहन हो तो पात्र अपनी मजबूती से उस शक्ति को समाज हित में प्रयोग कर सके ।
लेकिन सब फेल हो जाता है । जो द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु वही द्रोणाचार्य दुर्योधन के गुरु । ज्ञान की असीम सीमा लांघने वाले रावण भी अपनी मूल प्रकृति से नहीं बच सके । उसी घर , रहन सहन और भोजन के साथ विभीषण का चरित्र अलग था । दुर्भाग्य देखिए – राम भक्त होकर भी किसी हिन्दू ने अपने पुत्र का नाम विभीषण नहीं रखा और इतना ज्ञान के बाद भी रावण नाम का कोई दूसरा नाम नहीं हुआ ।
~ खैर , बात ईश्वरीय देन पात्र के बनावट और उसके अन्दर की शक्ति की है । पात्र के गठन पर बहस होनी चाहिए और समाज के द्वारा उस पात्र की विषमताएं कम करनी चाहिए । लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और अंतोगत्वा हम ईश्वरीय देन चरित्र पर ही आधारित होकर शक्ति के उस वाहक के हिसाब से शक्ति का उपयोग या दुरुपयोग झेलते हैं ।
साथ साथ यह मान कर चलना होगा कि हर तरह कि शक्ति किसी एक ख़ास के पास नहीं हो सकती । यह एक प्यास है और यह प्यास कालान्तर एक कुंठा बन के भी रह जाती है । मेरे पास पैसा है तो राजनीति भी मेरे पॉकेट में होनी चाहिए इत्यादि इत्यादि । यह सोच गलत है । जिस दिन यह सोच आपके अंदर आयेगी उसी रोज से आपकी प्रमुख शक्ति का विनाश शुरू हो जायेगा । या फिर शक्ति बली मांगती है । दोनो बात सच है । आध्यात्मिक शक्ति तो मांगती ही मांगती है । यह बस अनुभव की बात है कि आपने बलि पर क्या चढ़ाया ।
लेकिन आम गृहस्थ के लिए किसी एक ख़ास प्रमुख शक्ति के सहारे जीवन काटना सबसे उपयुक्त है । बहुत छेड़ छाड़ में , वह शक्ति आपको ही तंग करना शुरू कर देती है । यह बात बहुत महत्वपूर्ण है – इसको गौर से सोचिए । या फिर पात्र की कमजोरी के कारण शक्ति उसे विचलित कर देती है ।
शायद इसी लिए हमारे समाज में एक मिश्रित जिन्दगी की शैली को प्रमुखता दी गई है । थोडा़ अध्यात्म हो तो थोडा़ संसार भी हो । धन हो तो दान का साहस भी हो ।
नवरात्र की ढेरो शुभकामनाएं …कल हमारे बिहार में देवी का पट खुल जायेगा । हालांकि बंगाल में पहले से ही देवी का पट खुल जाता है । मेरे बिहार में सप्तमी के रोज ।
शुभकामनाएं ….
: रंजन , दालान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *