कौन किसका दीदार करे …

तुम और ताज

कौन किसका दीदार करे …
तू ताज का करे
या ताज तेरा करे …
सुना है संगमरमर है
तराशे हुए दोनो तरफ़ …
कौन किसको स्पर्श करे …
तू ताज को करे
या ताज तुझे करे …

~ RR / #Daalaan / 09.01.2017

तस्वीर साभार : ऑनलाइन मैगज़ीन ‘ब्यूटिफ़ुल डेस्टिनेशन’ – जहाँ एक फ़ोटो प्रतियोगिता में लंदन के Joe O ने इस ताज की तस्वीर को डाल 7000 प्रतिभागियों में पहला स्थान लिया । Joe O महज़ 17 साल के हैं ।

छाया / साया / शैडो

Shadow

‘तू जहाँ जहाँ चलेगा …मेरा साया साथ होगा’ – राजा मेंहदी हसन अली खान की बेहतरीन पोएट्री ।
आख़िर ये साया / छाया / शैडो है क्या चीज़ । विज्ञान ने जो कुछ इसके बारे में समझाया – वह तो आँखों के सामने है , हर रोज दिखता है । लेकिन विज्ञान से आगे भी तो बहुत कुछ है – जहाँ हम इस शैडो को महसूस करते हैं । हर रोज़ महसूस करते हैं , कभी कभी तो किसी रोज़ हर पल महसूस करते हैं । रिश्तों में भी तो यादें शैडो की तरह होती है । जितना गहरा रिश्ता – उसकी शैडो उतनी ही बड़ी , जैसे उस शैडो में एक उम्र समा जाए !
पर कोई भी शैडो कितना सकून देगा , उसकी अहमियत क्या होगी , यह मौसम और वक़्त तय करेगा । गरमी के दिन में बरगद की छाया किसी अमृत से कम नहीं वहीं ठिठुरते जाड़े में बरगद के नीचे जान भी चली जाए । जिस गरमी धूप से बचने के लिए हम किसी शैडो की तलाश करते हैं वहीं जाड़े में हम शैडो को याद तक नहीं करते । ‘बस यहीं इंसान वक़्त और मौसम से हार जाता है’ !
इंसान इंसान के क़रीब आएगा – प्रकृति तो यही कहती है । एक दूसरे का शैडो एक दूसरे पर आएगा , पर ऐसा होता नहीं है । एक ऊँचा क़द वाला कड़ी धूप को झेल एक शैडो बनाएगा और दूसरा उस शैडो में सुस्ताएगा । लेकिन कब तक – एक बच्चा अपने माता पिता के शैडो में पलता बढ़ता है , उम्र के साथ वह अपनी ख़ुद की शैडो खोजता है । शायद आपका ख़ुद का शैडो होना आपके अस्तित्व की पहचान है – और इस जीवन की सारी लड़ाई तो इसी अस्तित्व की है – जहाँ एक शैडो बन रहा हो , आपका अपना – ख़ुद का ।
पर सबसे मुश्किल होता है – किसी अन्य के शैडो से बाहर निकलना । किसी के शैडो में रहो तो दम घुटता है – बाहर निकलो तो रिश्ता टूटता है ।
पर एक अजीब बात और है – शैडो तब नहीं बनता जब रौशनी बिलकुल सर पर हो या आसपास घुप्प अँधेरा हो । शैडो ख़ुद के क़द से बड़ा भी चढ़ती रौशनी / सूर्य में दिखता है या ढलते सूर्य / दूर जाती रौशनी में ।
और ख़ुद से बड़ा शैडो – एक भ्रम भी देता है , एक ख़ुशी के साथ ।
कुछ अजीब है – रौशनी और शैडो का रिश्ता । जहाँ रौशनी है वहीं एक शैडो है , या जहाँ एक शैडो हैं – वहीं आसपास एक रौशनी है …:))
कभी चाँदनी रात में ख़ुद का शैडो देखा है ? देखना …बड़ा सकून वाला होता है ….वो ख़ुद का एक शैडो …:))
~ रंजन / दालान
{ एक शाम अचानक एक काफी पुराने मित्र ने मुझसे इस विषय पर लिखने की सलाह दिए और शायद अगले आधे घंटे में , मैंने लिख दिया , शायद एक दो साल पहले 🙂 }

एक कविता …

थोडा रुको …
कुछ सोचो …
ये सफ़र भी तुम्हारा है …
वो मंज़िल भी तुम्हारी है …
कुछ बहको…
थोडा महको …
ये ज़िंदगी भी तुम्हारी है …
वो ख्वाब भी तुम्हारे हैं …
कुछ पाओ …
थोड़ा गवाओं…
ये रात भी तुम्हारी है …
वो दिन भी तुम्हारा है …
थोड़ा खिलखिलाओ …
कुछ आंसू बहाओ…
ये सेहरा भी तुम्हारा है …
वो गुलशन भी तुम्हारा है …:))
~ RR
31 Jan , 2015

श्री बाबू : बिहार के प्रथम प्रधानमंत्री

#SriBabu
आज बिहार के प्रथम प्रधानमंत्री एवम मुख्यमंत्री श्री बाबु की पुण्य तिथि है । मेरे ननिहाल क्षेत्र ‘बरबीघा’ / पुराना मुंगेर के रहने वाले थे । मेरे ननिहाल का नाम ‘तेउस’ है और उनके गाँव का नाम ‘माऊर’ है …:))
जब तक दिल्ली रहा – वहाँ के बिहारी समाज द्वारा जब जब उनके जन्मदिवस या पुण्यतिथि के अवसर पर कोई भी आयोजन हुआ – दल बल / घोड़ा गाड़ी / आफ़िला क़ाफ़िला / दोस्त महिम के साथ ज़रूर गया । कुछ एक बार आशन भाषण भी दिया ।
बेगूसराय निवासी एवम सिक्किम के पूर्व राज्यपाल बाल्मीकी बाबू का श्री बाबु पर भाषण सुनना बढ़िया लगता था । एक बार वो भी तारीफ़ कर दिए – बढ़िया बोलते हो – चार दिन हम नशा में रहे – मुझसा कोई नहीं टाइप ।
श्री बाबु मेरे गाँव भी आए थे – गोपालगंज । मुख्यमंत्री थे । महेश बाबू के पीए होते थे – राम किशून बाबा । श्री बाबु दोपहर का भोजन महेश बाबु के आवास पर करते थे – महेश बाबु का रसोईया बेहतरीन था – ख़ानदानी थे महेश बाबु । एक दोपहर खाने के बाद – श्री बाबु अँचा रहे थे – राम किशून बाबा बोले – मेरी बहन की शादी है आपको मेरे गाँव आना होगा । श्री बाबु तैयार हो गए । छपरा से रेल का सैलून लगा । मेरे गाँव के बग़ल वाले स्टेशन पर रुका । सफ़ेद ऐंबेस्सडर लगा । गाँव के सबसे बड़े परिवार – रेवतिथ दरबार में दोपहर का भोजन हुआ । फिर वहाँ से मेरे दालान तक – सड़क पर एकरंगा बिछा दिया गया । भारी भरकम श्री बाबु और पीछे पीछे पुरा गाँव । न्योता पेहानी किए । रात हो गयी तो वापस अपने सैलून में विश्राम को चले गए । उनके परम मित्र अनुग्रह बाबू की मृत्यु हो चुकी थी – सो उसी सैलून में बैठे बैठे अनुग्रह बाबु के नाम पर एक स्कूल का अनुमोदन किए । किसी ने कहा – बिना स्कूल देखे – कैसे अनुमोदन – श्री बाबु बोले – बाबूसाहेब का नाम ही काफ़ी है ।
श्री बाबु अनुग्रह बाबु को बाबूसाहेब कहते थे और अनुग्रह बाबु श्री बाबु को मालिक कहते थे । आज यह दोनो पुकारू नाम – जातिविशेष से जोड़ दिए गए …:))
श्री बाबु बहुत बड़े विजनरी थे । देवघर के मंदिर में दलित समाज को इंट्री नहीं देते थे । १९५७ में समाज की गंदी सोच को तोड़ते हुए अपनी हुकूमत के बल पर दलित समाज के लोगों के साथ मंदिर में प्रवेश किए । समाज और सरकार हिल गयी – और राजनीति इस क़दर पलटी की – श्री बाबु के मृत्यु के बाद देवघर के एक पुजारी को ही कोंग़्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया :))
~ रंजन / दालान / 31 जनवरी

बिहार की मदद और अप्रवासी बिहारी

Kind Attn : #NonResidentBihari : –
विगत कुछ सालों में बिहार को लेकर सबसे ज्यादा बदलाव अप्रवासी बिहारियों के सोच में आया है । पिछले 17 सालों मैं अप्रवासी बिहारी के कई सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ा रहा हूँ – पिछले पांच सालों में उनके बिहार के प्रति रुख में जबरदस्त गिरावट है । यह सोच बहुत ही नकरात्मक है ।
कोई जमीन या मिट्टी अपनी नही होती – जहां माँ बाप होते हैं – वही जमीन या मिट्टी अपनी होती है । अगर मैं पटना शहर की बात करूँ और खासकर मिडिल क्लास की तो – मेरी उम्र के लोग अपने माता पिता या उनमें से एक खोने लगे हैं या फिर माता पिता को अपने पास बुला लिए है और बच्चे भी आपकी कर्मभूमि के सभ्यता या संस्कार में पल बढ़ – बिहार का परिचय – मम्मी डैडी का गाँव बन चुका है । बहुत हुआ तो बहुत करीबी वैसे रिश्तेदार जो आपकी तरह बाहर नही जा सके – उनके यहां किसी शादी विवाह में पहुंच खुद को #NRB के स्टेटस और अपने कर्मभूमि के बखान से ज्यादा इस मिट्टी से कोई लगाव नही है – बहुत हुआ तो कुछ तस्वीरें अपने उस पुअर कजिन के साथ या फिर अपनी माँ के गुजर जाने के बाद पटना की संपत्ति को बेचने के लिए किसी दोस्त महिम को इशारा में बताना । आपके इस बदलाव को वक़्त की मजबूरी कहा जा सकता है – लेकिन मेरे जैसों के लिए यह बदलाव देखना एक दर्द है ।
मेरे मित्र और आईजी शालिन कहते हैं – बिहारी के बीच क्षेत्रीयता घमंड या भावना कम और प्रबल जातीयता भावना देख अजीब लगता है । उनका कहना सही है ।
यहूदी अमरीका जा बसे लेकिन अमरीका से ही अपने जन्मभूमि इस्रायल की रक्षा के लिए जिस हद तक जाना पड़े , उस हद तक जाकर , अमरीका सरकार पर दबाब बनाये रखते हैं ।
बिहार तभी सुधरेगा जब बाहर जा कर बसे हुए बिहारी हर माध्यम से यहां दबाब बनाएंगे क्योंकि मेरा यह पुरजोर मानना है कि अधिकतर वैसे अप्रवासी बिहारीं जात पात से उठ चुके हैं । ऐसा भी नही है कि अप्रवासी बिहारीं आगे नही आये हैं , वो आये लेकिन यहां की ‘सामाजिक न्याय और न्याय के साथ विकास’ वाली सरकारों पर उनका विस्वास नही जम पाया – वापस लौट गए ।
पंजाब , गुजरात या महाराष्ट्र में ऐसा नही है – वहां के अप्रवासी ना सिर्फ लोकल घटनाओं पर नज़र रखते हैं बल्कि अपने मन लायक परिस्थिति बनाने पर सरकारों को मजबूर भी करते हैं । लेकिन बिहार में ऐसा नही है । खबर पर नज़र है लेकिन अपने तरफ से कोई दबाब नही है ।
आवाज़ में दम होता है । आवाज़ उठाएं । एक घटना याद है – मेरे एक मित्र आईआईटी से पास कर सीधे इंटेल अमरीका जॉइन किये , बहुत ऊंचे पद तक पहुंचे और हज़ार करोड़ की संपत्ति खड़ा किये । संपति , मेहनत और पद के बदौलत वो अमरीका के इलीट सोसाइटी तक पहुंचे और फिर उस सोसाइटी में उनके धन और ओहदा की चर्चा नही हुई बल्कि उनसे उनके ‘जड़’ को लेकर चर्चा हुई । ” आप हैं कौन ? – क्या आपकी जड़ें सही सलामत हैं या आप उखड़ चुके हैं ? इस सवाल ने मेरे मित्र को वापस दिल्ली और फिर बिहार में अपनी कमाई का एक अंश लगाने पर मजबूर किया ।
भूख सिर्फ पेट की नही होती है – भूख दिल , आत्मा और ललाट की भी होती है । लेकिन हम इतने गरीब राज्य की पैदाइश है कि जीवन पेट की भूख में ही सिमट कर रह गया । पेट के आगे भी एक दुनिया है – यह ना उस बिहारीं मजदूर को पता है और ना ही महलों में रहने वाले मानसिक गरीब बिहारीं को ।
कहने का मतलब की बिहार से भावमात्मक लगाव को बरकरार रखिये । यह आपका घर था , है और रहेगा । मौरिशस गए गरीब मजदूर भी आज अरबपति हो गए लेकिन भावनात्मक संपर्क बरकरार रखे ।
सर्वप्रथम अपनी सभ्यता और संस्कृति बरकरार रखिये , फिर किसी बहाने सपरिवार बिहार आते जाते रहिये । अलग अलग फोरम पर अपनी आवाज़ उठाइये ।
और हाँ …अपने माता पिता के मृत्यु का इंतज़ार के दौरान बिहार वाला घर कितने में बेचना है – यह मत सोचिए – यह सोच बहुत दर्दनाक है । मैं इसलिए कह रहा हूँ कि बिहार के शहरों या मिडिल क्लास के गांव में स्थिति बहुत बुरी हो चुकी है । बड़े बड़े घर भुतहा बंगला बन चुके है – इस इंतज़ार में की कब नया मालिक आएगा …
क्रमशः
~ रंजन ऋतुराज / दालान / 30.01.2019

अगर दिक्कत न हो तो इसे शेयर करें । बिहारियत की भावना ही अब बिहार को बचा सकती है ।

धन्यवाद ।

वसंत और खेत

हर किसी ने आज वसंत पंचमी को अपने अपने रंग में मनाया तो धरा ने भी प्रकृति के साथ मिल , आज खुद को कुछ यूं रंग लिया … :)) ~ यह खूबसूरत तस्वीर पटना से पूरब ‘ लखीसराय ‘ जिले की है । पटना से पूरब ज़मीन थोड़ी नीची होते चली जाती है जिसके कारण गंगा या अन्य छोटी नदियों से उर्वरक मिट्टी आती भी है और काफी दिनों तक जल जमाव भी रहता है । इस इलाके में विश्व प्रसिद्ध ‘ मोकमा टाल ‘ / बड़हिया टाल इत्यादि क्षेत्र है , जहां लाखों हेक्टेयर में कोई गांव नहीं है और सिर्फ ‘ तेलहन और दलहन ‘ की खेती होती है । मोकामा टाल कृषि क्षेत्र को ‘ दाल का कटोरा ‘ कहा जाता है । थोड़ा और आगे लखीसराय / बड़हिया बढ़ेंगे तो इस मौसम हर खेत तेलहन की खेती मिलेगी । अगर आप इस मौसम छोटे हेलीकॉप्टर से इस इलाके का दौरा करेंगे तो पाएंगे कि धरती पर बेहतरीन नक्काशी की गई है :)) अपनी कार की खिड़की हल्की नीचे कर दीजिए , और बगल के खेत से सरसों को छू कर जो पवन आप तक आएगी , उसकी खुशबू बेतरीब आपको मुस्कुराने पर मजबूर कर देगी :)) ~ रंजन / दालान / वसंत पंचमी – 2020

ज़िन्दगी : एक अधूरी कहानी

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – Out of sight -out of mind – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !
18.01.15

छोटे व्यापार और मिडिल क्लास

नया नया नोएडा गया था तो सोसायटी के गेट पर ही एक सब्जी विक्रेता थे । पटना के ही थे सो उन्ही के यहां से सब्जी आता था । सुबह सुबह वो अपना दुकान लगा लेते । सेक्टर 62 नोएडा के सोसायटी पब्लिक सेक्टर कंपनी के थे । मदर डेयरी का बूथ नहीं आया था ।
सब्जी विक्रेता से परिचय हो गया । दुआ सलाम होने लगा । उन्हें पता था कि मुझे गोभी सालों भर पसंद सो वो बिन मौसम भी लेे आते ।
शुरुआती दौर था सो बाबा दो किचेन हेल्पर भी गांव से भेज दिए । सब्जी विक्रेता भी मेरे रहन सहन और बात बर्ताव से कुछ छवि बना लिए । एक रोज वो बोले – सर , तीन लाख रुपया मिलेगा ? हम एकदम से हड़बड़ा गए । पंचम वेतन आयोग में मुश्किल से 16-17 हज़ार तनख़ाह , ऊपर से एक तिहाई किराया में । फिर भी हम उनसे पूछे – क्या कीजिएगा तीन लाख का ? वो बोले – पटना बाईपास पार दो कट्ठा ज़मीन तय किए हैं – छह लाख का , तीन का इंतजाम हो गया है । बाकी तीन का करना है ।
तब मेरे पास पचास हज़ार भी होता तो हम फ्लैट बुक कर देते । ई हमसे तीन लाख मांग रहे हैं ।
लेकिन एक बात समझ में आई – इस बिजनेस में पैसा था । जब सड़क किनारे सब्जी वाला उस दौर में तीन लाख जमा कर सकता था तो हम ई पैंट बुशर्ट झाड़ के क्या कर रहे हैं ।
खैर , कुछ वर्षों बाद – सेक्टर 58 नोएडा में लिट्टी वाले मिल गए – मुजफ्फरपुर के थे सो दोस्ती भी हो गई । वो इतने बढ़िया लिट्टी बनाते की टाइम्स ऑफ इंडिया वाला खबर भी बना दिया । बेहतरीन लिट्टी । उनका भी हाल इस सब्जी वाले जैसा था । बोरा के नीचे सौ टकीया तहिया के रखते थे ।
कहने का मतलब – आई ए , बी ए , इंजीनियरिंग पास कर के कटोरा लेकर मत घूमिए । थोड़ा लाज संकोच छोड़िए । छोटे व्यापार कीजिए । घर का मोह माया त्याग कीजिए । बड़े शहर में अवसर हैं । लिखना तो नहीं चाहिए लेकिन लोग कहते हैं – नोएडा के एक बड़े बिल्डर का छोटा पार्टनर एक चाय वाला था । कभी जरूरत पड़ा तो उसने उस बिल्डर को दो चार लाख का मदद किया और इस बदले उसे कंपनी में शेयर मिला । अब सच झूठ नहीं पता ।
अब पटना में मेरे ऑफिस के बगल में – जो चाय वाला है , वो नवंबर से मार्च तक प्रतिदिन पांच हज़ार कमाता है । खोजिए जगह , लडिए ।
पॉकेट में पैसा रहेगा – दुनिया पूछेगा । जब बड़े लोगों के नजदीक जाइएगा तो वो तो ऐसे ऐसे काम करते हैं – जो आपके लिए अकल्पनीय है । वैसे कामों से ये सब काम बेहतर है – किसी का पैसा तो चोरी नहीं कर रहे । किसी नेता को दिल्ली या बॉम्बे तो नहीं घुमा रहे । किसी अफसर की शाम का इंतजाम तो नहीं कर रहे ।
मेहनत कीजिए । काम बड़ा या छोटा नहीं होता ।
~ रंजन / 23.01.20

वसंत पंचमी और सरस्वती

वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की शुभकामनाएं …!!!

शिशिर का भाई हेमंत अभी भी उत्तर भारत में अपने पैरों को जमाए खड़ा है और ऋतुराज वसंत भी चौखट पर है । कहने का मतलब की ठंड है ।
यह तस्वीर 1650 की मेवाड़ स्टाइल पेंटिंग है । मैंने इधर करीब 5 सालों में लाखों अलग अलग तरह की देवी और देवताओं की पेंटिंग देखी है । मेरे पिछले ही मोबाईल में करीब 16000 तस्वीरें थी । सरस्वती क्रिएटिविटी की देवी हैं और मैंने देखा कि हर एक क्रियेटिव इंसान अपने क्रिएटिविटी में काल और स्थान / जियोग्राफिकल लोकेशन को ही दर्शाया है । उसकी कल्पना वहीं सिमट कर रहती हैं । अगर देवी / देवताओं की पेंटिंग करनी है तो वह कहीं न कहीं अपने मन को रंगों में उतार देता है । तिब्बत की देवी और दक्षिण की देवी की आकृति में अंतर है । अधिकांश देवताओं के चेहरे को कोमल बनाया गया क्योंकि यह मान कर चला जाता है कि जो सच में शक्तिशाली है उसके अंदर क्षमा की शक्ति आएगी ही आएगी और क्षमा आपके अंदर की कोमलता को बढ़ाएगी । हालांकि आजकल के शिव जिम से लौटते ज्यादा नजर आते हैं , शक्ति के लिए बेचैन कम । हा हा हा । खैर , फिर से एक बार लिख रहा हूं – शक्ति के हजारों रूप और उन रूपों तक पहुंचने का दो ही आधार – या तो ईश्वरीय देन या फिर साधना । अब मेरा यह पुरजोर मानना है कि साधना से प्राप्त शक्ति कि आयु कम होती है और ईश्वरीय देन अंतिम दिन तक रहता है और आकर्षण हमेशा ईश्वरीय देन वाली शक्ति ही पैदा करती है । लेकिन शक्ति का असल आनंद आकर्षण पैदा करने में नहीं है , खुद से उसके आनंद पाने में हैं । लेकिन इंसान का व्यक्तित्व ही इतना छोटा होता है कि वह आनंद छोड़ बाज़ार में आकर्षण पैदा करने निकल पड़ता है । अब यह सही है या गलत – बहस का मुद्दा है ।
लेकिन , मैंने सरस्वती को खुद को छूते हुए महसूस किया है , कब , कैसे और क्यों – पता नहीं । और शक्ति के किसी भी रूप का खुद को छूते हुए महसूस करना ही असल आनंद है या कभी कभी पीड़ा भी :)) हा हा हा ।
फिर से एक बार – वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं …!!! ऋतुराज वसंत का आनंद लीजिए …
धन्यवाद ..!!!
~ रंजन / दालान / वसंत पंचमी – 2020

अभिभावक होना …

इस जीवन में कई मुश्किल काम करने होते हैं – उन्ही में से एक है – ‘पैरेंटिंग’ ! अब इस उम्र में जब बच्चे टीनएजर हो चुके हैं – इसका दबाब महसूस होता है ! हर एक पीढी अपने हिसाब से – अपने दौर की नज़र से – अपनी बेसिक क्लास की समझ से ‘पैरेंटिंग’ करना चाहती है ! जैसे मेरे माता पिता जिस जमाने से आते थे – वहां ‘नौकरी’ ही बहुत बड़ी चीज़ थी और मै जिस तरह की विचारधारा और एक्सपोजर ले रहा था – वहां एक जबरदस्त कनफ्लिक्ट था – जीवन मतलब ‘आदर’ और किसी भी तरह की नौकरी से किसी के जीवन का भरण पोषण हो सकता है – उसे ‘आदर’ कैसे मिल सकता है – यह बात मेरी समझ से परे था ! संभवतः मेरे बचपन में मेरे दादा जी का प्रभाव था जो ‘पोलिटिक्स’ में थे और मेरे पिता जी – मुझपर से अपना लगाम ढीली करने के मूड में नहीं थे – संभवतः आज भी नहीं – उन्हें आज भी लगता है – जिस दिन लगाम ढीली हुई – मै ‘हेड ओं कोलिजन’ कर बैठूँगा…हा हा हा !
खैर …अब ज़माना बहुत बदल चुका है …बच्चे जन्म से ही ग्लोबल एक्सपोजर ले रहे हैं …जो मेट्रो लिविंग हमारे कल्पना में बसती थी …वो इलेक्ट्रोनिक माध्यम से उनकी नज़र में चौबीस घंटे हैं …जो गीत हम रेडिओ पर सुने ..वो किसी भी पल उनके उंगली के इशारे इंटरनेट के माध्यम से है ..! सबसे बड़ी बात – “एक प्लेन / समतल प्लेटफार्म’ की तरह समाज हो चुका है – जहाँ न कोई बड़ा है और ना ही कोई छोटा है – यह इस शताब्दी की सबसे बड़ी सामाजिक परिवर्तन है ! हम नेहरु और मुस्तफा कमालपाशा को पढ़ बड़े हुए – हमारे बच्चे स्टीव जॉब्स और फ्लिप्कार्ट / अमेज़न की सफलता पढ़ रहे हैं ! दो वक़्त की रोटी अब दिक्कत नहीं रही – मेरे गुरु और भारत के मशहूर प्रोफ़ेसर स्व० चन्द्रशेखर झा ( भूतपूर्व आईआईटी डाइरेक्टर एवं बीएचयू वाईस चांसलर) ने करीब दस साल पहले कहा था – तुम एक शिक्षक हो – तुम्हारे विद्यार्थी तीस की उम्र तक लगभग छः देशों के नागरिक के साथ काम कर चुके होंगे – जिन गोरों को देख तुम आँखें बड़ी कर लेते हो – तुम्हारे बच्चे उनके साथ न्यूयार्क के किसी रेस्त्रां में – किसी वीकएंड अपनी शाम बिता रहे होंगे – उन गोरों के बराबर कांफिडेंस के साथ !
अब इस माहौल में – कैसी ‘पैरेंटिंग’ हो – एक अज़ीज़ मित्र ने कहा – औलाद के जीने खाने के लिए अकूट धन है – बस एक ही चीज़ सिखानी है – इस भीड़ में कैसे रहा जाए – और खुद की भावनाओं को किसी चोट से कैसे बचाया जाय – क्योंकी यह ‘इंसान की प्रकृती’ से जुड़ा है ! उसके कहने का एक ही मतलब था – अपने बच्चे के अन्दर ‘ फेक और असल’ की पहचान करने की क्षमता बढ़ाना !
कई बार बेहतर बेहतर पैरेंटिंग के चक्कर में – हमारी पिछली पीढी – हमें इतना ज्यादा सुरक्षा कवच पहना दी – यह भूलते हुए – एक दिन हमें उसी समाज में जाना है – जिससे बचा के हमारी परवरिश की गयी – फिर हमपर जो गुज़री वो हम ही जाने – सिखने के चक्कर में – हम अपनी मासूमियत कब खो बैठे – पता ही नहीं चला !
सबसे बड़ी मुश्किल है – बेटीओं की पैरेंटिंग – अब उनपर जबरदस्त बोझ आ चुका है – उन्हें ना सिर्फ अपनी ‘प्रकृती’ के हिसाब से जीवन जीना है बल्की अपने जीवन के हमसफ़र के साथ कदम भी मिलाना है – उसे अपने क्लास में टॉप कर के बढ़िया प्रोफेशनल / नौकरी भी पकडनी है – अपनी कोमलता को भी बरक़रार रखना है – और माँ भी बनना है – हाँ …सुबह का नास्ता भी तो तैयार करना है – अपनी मेट्रो रेल को पकड़ने के पहले – देर शाम थकने के बाद – चाय बनाना भी तो उनके जिम्मे होगा …अगर हमसफ़र ने कोई नया फ़्लैट खरीदा – लोन में आधा का हिस्सेदार भी बनना है …और न जाने …क्या क्या …वीकएंड में बच्चों का होमवर्क भी !
लडके तो वही थे …जो कल थे …!
पैरेंटिंग मुश्किल हो चुकी है …जो कुछ हम अपने अनुभव से सिखायेंगे …बच्चे उससे बीस साल आगे की सोच में जियेंगे …लगाम कब ढीली रखनी है …कब जोर से पकड़ना है …कुछ तो हमें भी सिखना है …:))
बस यूँ ही …कई आयामों को एक सांस में …लिखते हुए …:))
थैंक्स …:))
~ रंजन /दालान