कभी मिलो तो ऐसे मिलो

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे किसी रेस्तरां में …अपने जुड़े के क्लिप को दांतों में फंसा …अपनी हाथों से …अपने तंग जुल्फों में व्यस्त मिलो …
कभी मिलो तो ऐसे मिलो …जैसे मेरी नज़र तुम्हारे उस खुबसूरत पेंडेंट पर अटकी हो …और तूम अपने उस बड़े लाल टोट बैग में …अपनी लिपस्टिक को खोजती …थोड़ी परेशान मिलो …
इन्ही छोटी – छोटी उलझनों के बीच …वो जो तुम्हारा हसीन चेहरा …थोड़ा तंग लेकिन गुलाबी दिखता है …बेफिक्र होकर भी …थोड़ी फिक्रमंद दिखती हो ….प्यारी लगती हो …
वो जो अपने लिपस्टिक – जुड़े का गुस्सा …अपने लाल टोट बैग में खोये सामान का गुस्सा …मुझपर निकालती हो …अच्छी लगती हो ….
हाँ ..उसी रेस्तरां में …एक प्याली चाय और गर्म पनीर पकौड़े के बीच …जब तुम्हे शाम के पहले अपने घर लौटने की हडबडी में ..तब मुझसे ही लिफ्ट मांगती हो …
……..मेरे चेहरे पर तुम्हारी गुलाबी मुस्कान आ जाती है ….:))
…अच्छी लगती हो …

~ रंजन / एक लेखक की कल्पना / 2014

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो …

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो जैसे एक लम्बे उम्र का इंतज़ार …चंद लम्हों में मिलो …
हां …उसी रेस्तरां में …जब तुम वेटर को एक कप और चाय की फरमाईश करते हो …जैसे …मै इतनी मासूम ….मुझे कुछ पता ही नहीं …कुछ देर और रुकने का बहाना खोजते मिलो …अपनी मंद मंद मुस्कान में बहुत प्यारे दिखते हो ….:))
वहीँ टेबल पर ….कभी अपने कार की चावी तो कभी मोबाईल को नचाते …चुप चाप मेरे तमाम किस्से सुनते हो …और फिर एक लम्बी सांस के साथ …एक गहरी नज़र मेरी आँखों में डालते हो …जैसे क़यामत को कोई और पल नहीं चाहिए ….
हाँ ..कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो …जैसे मेरी तमाम उलझनों को …हौले हौले सुलझाते मिलो ..और मै अपने मन की सारी बातें कह …खुद को खाली कर दूँ …
..लौटते वक़्त …रेस्तरां से कार पार्किंग तक के सफ़र में …तुम्हारे हाथों से …मेरे हाथों का स्पर्श ……धड़कने वहीँ पिघल के …न जाने कब तुममे समा जाती है …कह नहीं सकती …पर कभी न मिटने वाली एक एहसास छोड़ जाते हो …
कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो ….:))

~ RR / #DaalaanBlog / 2014

हे ऋतुराज वसंत …

हे ऋतुराज वसंत …
कौन दिशा आते हो …
शिशिर के घमंड को तोड़…
किस रंग में हमें रंग जाते हो …
हे ऋतुराज वसंत …
तेरे आने की खबर हमें कौन दे जाता है …
खेतों में लहलहाते सरसों के फूल …
या कोयल की मधुर बोल …
हे ऋतुराज वसंत …
तुम्हारे इंतज़ार में …ठिठुरती धरती भी …
तेरे आगमन से…थोडा इठलाती है …
परागों के यौवन को देख …’प्रकृती’ भौरों में समा जाती है …”

~ RR / #Daalaan / 03.02.2014 / प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ के पटना संस्करण में भी छपा था ।

वो एक पल ….

हम और तुम

कभी कबड्डी खेले हो ? सामने से एक बंदा बड़ी तेजी से , अपनी दम साधे आता है , साँसों को रोक कर , तुम्हे छूता है और भाग खड़ा होता है । पकड़ भी लिया गया तो दम नही छोड़ता , साँसों को रोके रखता है । तुम उसे पकड़ भी लिए तो वो अपनी सांसे नही तोड़ता – खिलाड़ी जो है ।
कुछ इश्क़ ऐसे भी होते है , अपनी साँसों को रोक , सामने वाले को छू कर वापस अपने घेरे में आ जाना । दम टूटने पर अपनी हार और दम ना टूटे तो सामने वाले कि हार । और इसी ज़िद में एक पल वो तुम्हे छोड़ देता है , तुम जीत कर मुस्कुराते हो और वो हार कर मुस्कुराता है ।
और इसी मुस्कान में जो इश्क़ जवां होती है , बड़ी दूर तलक जाती है …बड़ी दूर … :)) कहां तक जाती है …दोनों को नहीं पता :))
तुम्हे भी पता था , उस पल के आगे तुम्हारी हार थी और उसे भी पता था , उस पल के आगे उसकी जीत थी ।
अब बताओ …जीता कौन …हारा कौन :))
खैर , एक सच तो है …न , भागते वक़्त हौले से तुमने उसे छू लिया , हां …उसी वक़्त जब तुम्हारी सांस भी टूट गई थी …वो एक पल तुम्हे भी याद होगा …और वो एक पल उसे भी याद है …

~ रंजन / 31.01.20

एक कविता …

थोडा रुको …
कुछ सोचो …
ये सफ़र भी तुम्हारा है …
वो मंज़िल भी तुम्हारी है …
कुछ बहको…
थोडा महको …
ये ज़िंदगी भी तुम्हारी है …
वो ख्वाब भी तुम्हारे हैं …
कुछ पाओ …
थोड़ा गवाओं…
ये रात भी तुम्हारी है …
वो दिन भी तुम्हारा है …
थोड़ा खिलखिलाओ …
कुछ आंसू बहाओ…
ये सेहरा भी तुम्हारा है …
वो गुलशन भी तुम्हारा है …:))
~ RR
31 Jan , 2015