पंकज त्रिपाठी

PankajTripathi / 2020

आज दोपहर फोन से एक मैसेज लिख रहा था तो बेटी ने पूछा – कहां व्यस्त हैं ? तो मैंने कहा – पंकज को मैसेज कर रहा हूं । बेटी वापस चली गई और लौट कर पूछी – कौन पंकज ? मैंने कहा – पंकज त्रिपाठी गोपालगंज वाले । बेटी फिर वापस चली गई । फिर अचानक से लौटी और चहकने लगी – बॉलीवुड के सबसे डाउन टू अर्थ और अत्यंत बेहतरीन कलाकार , फिर उसने ढेर सारे सिनेमा के नाम बताए जिसमे मिर्ज़ापुर प्रमुख था । फिर उसे विश्वास भी नहीं हुआ । हा हा हा ।
तीन साल पहले , मैंने अंतिम सिनेमा देखी और वो थी – न्यूटन । सपरिवार । क्या नेचुरल एक्टिंग थी । गजब ।
और आज जब उनके व्यस्त क्षणों में बहुत थोड़ी बात हुई तो मेरा पहला ही प्रश्न था – कैसे इतना डाउन टू अर्थ व्यक्तित्व और असीम मौलिकता ? वो थोड़े गंभीर हुए और बोले – बस जमीन से तार जुड़े हुए हैं । कई प्रश्नों के उत्तर का सार यही था – बेतार नहीं हुआ हूं ।
गैंग्स ऑफ वासेपुर में इन्हे पहली दफा देखा था तब नहीं पता चला कि इनकी भी मिट्टी वही है जो मेरी मिट्टी है । फिर सोशल मीडिया से पता चला कि ये भी गोपालगंज के है । फिर पिछले साल मेरे मित्र और मेरे जबरदस्त पाठक – सुमंत तिवारी जी यह ज़िद लेकर बैठ गए की मेरी बात इनसे होनी चाहिए । मै भूल गया । फिर लॉकडाउन में पंकज के लाइव को देखा – एक वीडियो तो इस फेसबुक पर एक करोड़ से भी ज्यादा व्यू हैं । फिर लगा बात होनी चाहिए ।
फिर पवन भी बीच में आ गए । अपने कार्टूनिस्ट :))
आप पंकज के ट्विटर का वाल देखिएगा । ऐसे जैसे यह इंसान चकाचौंध की दुनिया में तो पहुंच गया लेकिन आत्मा अभी भी अपनी मिट्टी और उस मिट्टी से उपजे संस्कार में हैं । शायद , तभी मैंने थोड़ा टटोलना पसंद किया । जो तस्वीर में नजर आयी वही बातों में ।
मौलिकता पर भी बात हुई । हाल के दसक में मौलिकता उभर कर आई है । और इस मौलिकता में इतना दम है कि आज पंकज समुंदर को निहारते हुए अपने फ्लैट में है और एक अदना सा दालान भी अनजान को आकर्षित करता है ।
रचनात्मक दुनिया का जड़ ही मौलिकता है । कई इंटरव्यू में पंकज अपनी संघर्ष की कहानी सुनाते है , हर कलाकार या प्रसिद्ध इंसान सुनाता है लेकिन कई लोग डंडी मार देते हैं । बस उसे घोंटना मुश्किल हो जाता है । और आप पंकज को चबा चबा कर देखते हैं – हर एक रस के साथ :)) क्योंकि वहां शुद्धता है ।
अपने एक अग्रज से दो महीना पहले बात हो रही थी – बॉलीवुड पर – तो मैंने यही कहा था – बेसिक । पंकज को देखिए , उनका पेज फॉलो कीजिए – जो सबसे ज्यादा आकर्षित करेगी – वह यह है कि पंकज अपने बेसिक से थोड़ा भी नहीं हिले है , ना एक्टिंग में , ना अपने जीवन में । पंकज की आइक्यू हाई है , वो चीजों को पकड़ लेते हैं । ज़िद्दी भी है – तभी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का इंतज़ार भी किए । और फिर आहिस्ते आहिस्ते …एक झंडा । लहराता हुआ ।
अंत में यही – सब भगवती की कृपा है और भगवती की कृपा बनी रहे । आप मौलिक बने रहें ।
शुभकामनाएं …
~ रंजन / DAALAANBLOG / 2020

कहानी साइकिल की …

कहानी साइकिल की : ब्रांड रेलेे 😊
कोई राजा हो या रंक – हमारे समाज में उसकी पहली सवारी साइकिल ही होती है और साइकिल के प्रति उसका प्रेम आजीवन रहता है – भले ही वो चढ़े या नहीं चढ़े ।
अगर आप अपने बचपन को याद करें तो बड़े बुजुर्ग ब्रांड रेलेे की बात करते थे । सन 1885 के आस पास इंग्लैंड कि यह ब्रांड भारत के इंग्लिश राज में मंझौले रईसों की पहचान हो गई थी ।
हमारे सम्मिलित परिवार में सन 1975 के आस पास तक मोटर नहीं था , आया भी तो सरकारी । हाथी घोड़ा पालकी और समपनी थी लेकिन मोटर नहीं । लेकिन बाबा के पास फिलिप्स कंपनी की हरे रंग की साइकिल होती थी । दोपहर के भोजन और विश्राम के बाद उनकी साइकिल साफ होती , बाबा बेहतरीन खादी कुर्ता और धोती में – अपने मित्रो के साथ आस पास के बड़े बाज़ार निकल जाते । गांव गांव उसी साइकिल से घूमते । आजीवन साइकिल चलाए तो उनके श्राद्ध में मैंने खुद से पड़ोस के गांव से नया साइकिल कसवा कर दान भी दिया । ऐसे जैसे टॉर्च , छाता और साइकिल – यही पहचान ।
खैर , साइकिल पर चलने के अपने एटिकेट्स होते थे । जैसे अगर आप साइकिल से हों और सामने से गांव घर का कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति आ रहा हो तो आपको चंद मिनट के लिए साइकिल से उतर कर अभिवादन करना है । इस घटना को आपमें से कई नहीं देखे होंगे – लेकिन मैंने देखा और किया भी है । सब कुछ बदल गया तो ये भी संस्कार बदल गया ।
गांव में साइकिल मांगने की प्रथा होती थी । बाबा से कोई साइकिल मांगने आया तो महिन नेता आदमी – आंगन से पूछ लो कह के अपना इज्जत बचा लेते थे और जो साइकिल मांग दिया – मेरी दादी उसकी इज्जत उतार देती थी । हा हा हा । क्या मजाल की कोई दुबारा साइकिल मांगने आए 😉
परबाबा मुजफ्फरपुर ज़िला स्कूल पढ़ने गए तो उधर से रेलेे खरीदते आए – बाबा कहते थे – रेलेे साइकिल को देखने के दस कोस से लोग आया था । हा हा हा । शायद वह तब के सम्मिलित परिवार की पहली साइकिल रही होगी । सन 1920 के आस पास । तब से लेकर आज तक हर पीढ़ी के पास उसके हाईस्कूल के दौर से साइकिल खरीदना एक प्रथा है और शायद हर मिडिल क्लास में ।
मेरी पहली बाई साइकिल भी सातवीं कक्षा में खरीदी गई थी । शायद 18 इंच वाली । उसी नए साइकिल पर सीखे भी । गजब का थ्रील आता था – जैसे इस सड़क पर हम भी अब दू पैसा के आदमी हो गए हैं :)) शायद एवन थी । फिर हीरो और फिर ब्लू कलर की बीएसए एसएलआर । कॉलेज में फैशनेबल साइकिल रखे थे । कई स्कूटर और बाइक वाले मित्र मांग कर ले जाते थे – कैट टाइप 😎
अब फिर से साइकिल खरीदने का मन । बहुत हल्का नहीं लेकिन बेहतरीन ब्रांड । रेलेे । साइकिल खरीदने जाना और दुकान में उसको कासवाना फिर घर आना :)) साइकिल को सूती कपड़ा से हर रोज पोछना और कभी कभी कभार उसका ओवर हौलिंग करवाना । नारियल के तेल से उसका रिम साफ करना इत्यादि इत्यादि – सब याद है :))
टीन येज में साइकिल से पूरा पटना धांगे हुए हैं 😎 गोग्गलस पहन कर ।
बहुत कुछ छूट गया – बहुत कुछ लिख दिया – अब कुछ आप भी लिखें :)) अपनी साइकिल की यादें …!!!
~ रंजन / दालान / 29.05.20

अंचार….

आपके डाइनिंग टेबल या आपके भोजन पर बेहतरीन अंचार अवश्य होना चाहिए । अब खाना बढ़िया नहीं बना है , यह कहने का हिम्मत बहुत कम लोगों को होता है तो उसकी भरपाई वह अंचार करता है 😝
दस बजिया स्कूल में पढ़े है । मतलब सुबह दस से शाम चार वाला । टिफिन ले जाना थोड़ा शान के खिलाफ भी होता था सो 4 बजे घर लौटते ही – सब्जी खत्म – दाल खत्म इत्यादि इत्यादि फिर दिन का बचा हुआ चावल और बोईआम से निकला हुआ बड़का आम के फांक वाला अंचार और उसका मसाला । भात में सान दीजिए और भर दम खा लीजिए 😎 उसके बाद क्रिकेट / फुटबॉल / लट्टू – जो मन करे ।
अंचार को लेकर थोड़ा सेंसिटिव हूं । दिन के प्रथम भोजन में बिल्कुल नहीं चाहिए लेकिन बाकी के सभी भोजन में चाहिए ही चाहिए टाइप ।
तरह तरह का अंचार देखा , जाना और चखा लेकिन मेरे इलाके में मुख्यत आम का , मिर्च का , कभी कभी कटहल का , भोज में आलू का भी । करौंदा का भी – कभी कभार थोड़ा महिन परिवार के भौजाई के यहां या फिर जो दक्षिण भारत ट्रैवल कर के आया हो तो – तनी टेस्ट कीजिए न रंजू बाबू , हैदराबाद से लाए हैं टाइप 😝
अंचार बहुत शुद्धता से बनाया जाता है । बचपन में देखते थे – आम आया , फंहसूल से कटाया , मसाला तैयार हुआ , तेल पेराया , बड़का बड़का सीसा वाला बॉईआम साफ हुआ । आम सुखाया गया , उसके फांक में मसाला डाला गया – सरसों के तेल में सम्पूर्ण स्नान इत्यादि के साथ उसको धूप दिखाया गया । फिर उसको सीसा के मर्तबान में रखा गया । जिस आम के अंचार से टप टप तेल नहीं टपका – मतलब कहीं कुछ कंजूसी हुआ है 😐
खैर , हमको भी अंचार बनाने आता है 😝 हॉर्लिक्स का एक सीसी ले लीजिए । उसको सर्फ के घोल से साफ कर के धूप में सूखा दीजिए । आधा किलो हरा मिर्च खरीद के लाइए । हर एक मिर्च का पेट काट दीजिए । फिर उसको हॉर्लिक्स वाले सीसी में रख कर छह नींबू का रस उसमे डाल दीजिए और थोड़ा अदरक का महिन पिस । स्वादानुसार नमक और अगर घर में आम का अंचार या भरवां मिर्च का अंचार बन रहा हो तो उसका मसाला इस हरे मिर्च वाले में डाल दीजिए । थोड़ा दो चार दिन धूप दिखा दीजिए ।
फिर जब गैर खून नजदीकी संबंधी ने बढ़िया स्वादिष्ट खाना नहीं बनाया हो फिर इस आपके हरे मिर्च वाले अंचार को भोजन के साथ लेे । ना शिकायत होगी और ना ही भूखे पेट एक दूसरे के कूल खानदान और सभ्यता पर कोई श्लोक बाजी 😝
दिन सुखमय रहेगा 😐
~ रंजन / दालान / 25.05.20

आत्माएं भाव की भूखी होती है …

आत्माएं भाव की भूखी होती है और उसी भाव से आत्म विश्वास पनपता है । भाव बहुत महत्वपूर्ण है । आज माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला के बारे में पढ़ रहा था । उन्होंने अपने बचपन के स्कूली क्रिकेट की चर्चा की । उन्होंने कहा – एक स्कूल क्रिकेट मैच के दौरान , गेंदबाजी करते वक़्त , एक ओवर वो बुरी तरह पिट गए । उस टीम के कप्तान ने फिर से उनपर भरोसा जताते हुए , फिर से गेंदबाजी का मौका दिया । सत्या लिखते है – वह एक क्षण था , जिसने उनकी ज़िन्दगी को एक जबरदस्त मोड़ दिया , और उनका आत्मविश्वास लौट आया । और वो आज विश्व की सबसे नामी आईटी कम्पनी के सीईओ हैं ।
उस भाव में आदर छुपा होता है । आदर देना सीखिए । आदर निगाहों से होकर जुबान पर नहीं भी आया तो दिल में अवश्य समाता है । भारत जैसे देश में मिडिल क्लास को दो वक़्त की रोटी और छत मुश्किल नहीं रही , तब वह एक आदर खोजता है । हर इंसान सत्या नडेला नहीं बन सकता लेकिन यह भी सत्य है कि विश्व के शिखर पर पहुंच कर , सत्या अपने स्कूल के उस कैप्टन को नहीं भूल सकते । वो स्कूली कैप्टन न जाने कहां होगा , लेकिन वो आजीवन किसी कि नजर में ऊंचा है ।
उत्तम पुरुष कभी एहसान नहीं भूलते । और जिंदगी कुछ बेसिक संस्कार से चलती है – आपके पास कुछ नहीं है फिर भी लोग आपके उस संस्कार के लिए याद रखेंगे ।
सूर्य उत्तरायण हो चुके है । नव वर्ष अब अपने रंग में आई है । 15 दिन बाद वसंत ऋतुराज भी आपसे मिलने के आतुर होंगे ।
कुछ नए इरादे बनाइए । कुछ मंज़िल खोजिए और कदमों को आगे रखिए …..

शुभ मकरसंक्रांति …..
~ दालान / मकरसंक्रांति / 2020

छठ क्या है ?

छठ क्या है ? छठ यही है 🙏
~ किसी भी बिहारी के लिए यह समझा पाना की छठ क्या है । दुनिया का सबसे मुश्किल काम । जाति को कौन पूछे – धर्म की दीवारें गिर जाती है ।
~ भावनाओं का वह सागर किस तूफान पर होता होगा जब गांव के नथुनी मियां कहते हैं –” बउआ , दु सूप हमरो तरफ से , बेटा के अरब में नौकरी लाग गइल । “
~ कैसा है यह पर्व । दलित के बगल में ब्राह्मण भी उसी घाट पर खड़ा । राजा के बगल में रंक । चोर के बगल में सिपाही । जमींदार के बगल में बेलदार । कलक्टर के बगल में चपरासी । सभी के सभी एक साथ पहले डूबते और फिर उगते सूर्य की ’अरग ’ 🙏
~ कितना कठिन पर्व । पहले दिन १२ घंटे का बिना जल का उपवास । फिर दूसरे दिन २४ घंटे का बिना जल का उपवास । और फिर ३६ घंटे का बिना जल महा उपवास 🙏
~ हिन्दू धर्म मंत्रोचारण पर निर्भर है । ना किसी ब्राह्मण की ज़रूरत और ना ही किसी वेद की पढ़ाई । ना किसी हवन की ज्वाला और ना ही किसी जनेऊ और टीक का धारण 🙏
~ जो है तो बस वही है – ऊर्जा के सबसे बड़े श्रोत – सूर्य की उपासना । पहले डूब रहे सूर्य की पूजा फिर एक कठोर रात गुजारने के बाद उग रहे सूर्य की पूजा ।
और आप हमसे पूछते हैं …छठ क्या है । और क्या लिखे और क्या समझाएं कि छठ क्या है । ना हम लिख सकते हैं और ना आप समझ सकते हैं ।
आप अगर हम है तो बस समझ जाइए – आज नहाय खाय है । छठ व्रती नहाने के बाद साल का सबसे पवित्र और सात्विक भोजन करेंगे 🙏 अरवा चावल , चना का दाल और कद्दू की सब्जी – पता है …इस पवित्रता को एक साल का इंतजार होता है 🙏
और आप हमसे पूछते हैं …छठ क्या है …
: रंजन , दालान / 18.11.2020