Tag DaalaanDiary

घड़ी ….

अविनाश / ब्लैक डायल

बहुत दिनों तक हाथ में घड़ी पहन सोने की आदत बनी रही – इस बीच कई बार घड़ी स्लो हो जाती और देर से नींद खुलती – बहुत अफ़सोस और कुछ खोया खोया सा महसूस होता था – अब इस ग्लानी से ऊपर उठ चूका हूँ – लगता है – पाया ही क्या हूँ जो खोने का गम रखूं !
करीब पचीस साल पहले – अपनी पहली घड़ी खरीदी थी – बाबु जी पैसे दिए थे – साइकिल से हांफते हुए – एक दम से – पटना के हथुआ बाज़ार पहुँच गया था – अकेले ! बाबु जी हिदायत दिए थे – ‘एच एम टी ‘ का ‘जनता’ खरीदना – सफ़ेद डायल वाला ! मुझे वो पसंद नहीं पड़ा – अविनाश ले लिया काला डायल वाला ! एक बार वो चोरी भी हो गया – घर में जो पोचारा ( रंग ) करने आया था – उसी ने चोरी कर लिया – फिर दो चार हाथ दिए तो पायजामा से निकल के टेबुल पर रख दिया !
घर में एक परंपरा थी – ऐसी प्रथम घड़ी पुरुष या महिला अपनी शादी के वक्त छोटों को दे देते थे – बाबू जी भी अपनी घड़ी छोटे चाचा को दिए थे – ‘जनता’ ! पर चाचा अपनी शादी के वक्त अपनी पुरानी घड़ी मुझे नहीं दिए – परंपरा टूट गयी !
प्लस टू के बाद चाचा कुछ पैसे दिए – बस पकड़ बीरगंज ( नेपाल ) पहुँच गया – भर दम शौपिंग किया – एक और घड़ी ले लिया – उसके अंदर ‘लाल दिल’ बना हुआ था – क्वार्ट्ज़ घड़ी – बाबु जी बहुत गुस्साए – बोले – ‘छुछुन्दर’ जैसा लग रहा है – पर हम छुपा लिए – कॉलेज में कुछ ही दिन पहने – जिस दिन मुझे लगा – सचमुच में छुछुन्दर जैसा लग रहा है – होस्टल के मेस वाले को दे दिए – फेंकने में दर्द हो रहा था ! चावी वाला ‘अविनाश’ हाथ में बंधा रहा !
शादी के बाद गोल्डन टाइटन मिला – पहला दिन से ही पसंद नहीं आया – मौका के तलाश में था – पत्नी ने एक बार कुछ तीखा बोला – हम एक पल बिना गवाएं -ससुराली घड़ी सीधे खिडकी से बाहर वाले गड्ढे में – जाओ ..अब ऐश करो !
अब सस्ते घड़ी पहनने लगा – सौ रुपैये वाले – डेढ़ सौ रुपैये वाले – कई लोग टोके – कोई फर्क नहीं – एक मित्रवत शिक्षक और मेरे विद्यार्थी ‘हज’ करने गए तो एक महंगी घड़ी लेकर आ गए – आदत नहीं थी – पापा को दे दिया और उनसे उनका बयालीस साल पुराना ऑटोमैटीक सीको ले लिया – अलमीरा में रखा हुआ है !
कुछ साल पहले सास इंदिरापुरम आयीं थीं – ससुराल से मिला घड़ी का पूछताछ चालू हुआ – फिर वो थोडा ताव में आ गयीं – एक काफी ज्यादा महंगी घड़ी खरीद दीं – कोई फायदा नहीं – वो भी आलमीरा में बंद है !
छोटी बहन की शादी के समय – मन था – अपने बहनोई को खूब बढ़िया घड़ी दूँ – मना कर दिए – अरमान अरमान ही रह गए और अब मै देने से रहा !
अब मोबाईल या टैबलेट या लैपटॉप पर ही समय देखने का आदत हो गया है – वो भी क्या दौर था – जब मै ‘अविनाश’ पहन के नहा भी लेता था – अंदर पानी चला जाता – फिर धुप में उसको सुखाओ :))
~ 27 August / 2012

छाता …

आइये मेरे पटना में – बारिशों का मौसम है ..:)) जबरदस्त बारिश हो रही है – मेरे पटना में …
छाता ….पहले लकड़ी वाला छाता होता था …जैसा छाता वैसा उस इंसान का हैसियत …कलकत्ता से छाता आता था …एक फेमस ब्रांड होता था …नाम भूल रहा हूँ …स्प्रिंग एकदम हार्ड …सब अजिन कजिन उस छाता को खोलने का प्रयास …किसी का उंगली ‘चिपा’ गया …बाकी सब फरार ..:)) फिर आया ..स्टील वाला छाता …नेपाल से …बटन वाला ….कोई गेस्ट अगर वैसा छाता के साथ आ गया …इतना न उसका बटन ‘पुट-पुटाते’ थे …जैसे ही बटन दबाते वो छाता खुलता …चेहरे पर एक विजयी मुस्कान …:)) फिर उसको बंद करो …फिर बटन दबाओ …फिर उस छाते को गीली जमीन में उल्टा कर के धंसा देना …लगता था ..जैसे वहां कोई किला फतह कर लिए ..:)) फिर आया ‘लेडिज छाता’ फोल्ड वाला …लाल – नीला – अलग अलग रंग वाला ….घर में छाता नहीं मिल रहा …कोई हाथ में ‘लेडिज छाता’ थमा दिया …बहुत बेइज्जती जैसा लगता था ….हूँ…रोड पर लेडिज छाता लेकर जायेंगे …हुंह …कोई देखेगा तो क्या बोलेगा …हा हा हा हा …अब वो फोल्ड हो जाने वाला छाता काला मिलने लगा …यूनिसेक्स हो गया …एक ही छाता सब लोग यूज करने लगे …
सीढीघर में …रेलिंग के सहारे खडा वो छाता …बूँद – बूँद टपक रहा ..वो छाता …कोई आया है …मेरे गाँव से … :))

14.08.14

प्रेम का आधार …

शायद मैंने पहले भी लिखा था और फिर से लिख रहा हूँ ! प्रेम का आधार क्या है ? मै ‘आकर्षण’ की बात नहीं कर रहा ! मै विशुद्ध प्रेम की बात कर रहा हूँ ! मेरी नज़र में प्रेम का दो आधार है – ‘खून और अपनापन’ ! बाकी सभी आधार पल भर के लिए हैं !
यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटीविटी भी काम करती है ! खून एक जबरदस्त आधार है ! कभी गौर फरमाईयेगा – फुआ , मौसी , चाचा , मामा से आप खुद को ज्यादा नजदीक पायेंगे ! वहीँ फूफा , मौसा , चाची , मामी इत्यादी से थोड़ी दूरी ! हो सकता है – मौसा या मौसी से परिचय आपका जन्म से ही है फिर भी मौसी आपसे ज्यादा नजदीक होंगी या आप खुद को पायेंगे ! इसी आधार पर मैंने एक बार लिखा था की आप यूरोप या अमरीका में किसी पाकिस्तानी को देखते है तो आप खुद को उसके ज्यादा नजदीक पाते हैं , उसी पाकिस्तानी को आप भारत में रहते हुए दिन भर गाली देते हैं ! ठीक उसी तरह जब आप मंगल गृह पर जायेंगे तो पृथ्वीवासी ही आपके सुख दुःख को समझ पायेंगे !
शायद यह खून ही है की आजीवन पति पत्नी आपस में लड़ते हैं लेकिन औलाद के लिए दोनों के अन्दर सामान प्रेम होता है ! कई बार पुरुष यहीं फंस जाते हैं – माँ या पत्नी ! महिलायें भी आजीवन अपने पति / प्रेमी में अपने पिता की छवी तलाशती रहती हैं !
दूसरा आधार है – अपनापन ! यह बहुत लम्बे समय साथ रहने से होता है ! जब आप सुबह से शाम तक किसी के संपर्क में रहेंगे – अपनापन हो ही जाएगा और वह भी एक जबरदस्त प्रेम का आधार बन जाता है पर शर्त रहती है की आप कितने करीब हो पाते हैं ! आप एक दुसरे के खूबी / कमी को कितना महसूस कर पाते हैं !
शायद खून ही एक आधार है जिसके कारण समाज में ‘जाति’ आज भी बरकरार है ! श्री लालू प्रसाद को देख कई लोगों में यह भाव आया – कोई मेरे जैसा , मेरा कोई अपना उस शिखर पर है ! सुन्दर पिचासी को गूगल के शिखर पर देख लोगों के अन्दर भाव आया – कोई मेरा भारतीय – हम जैसा – उस शिखर पर है वहीँ से एक प्रेम छलकता है !
मेरा तो यही दोनों आधार है ! बाकी ‘आकर्षण’ को बस स्टॉप पर भी हो जाता है – इस उम्र तक यह समझ तो ही गयी है – वह आकर्षण जितना आसानी से आता है उतनी ही तेज़ी से जाता भी है ! प्रेम का तो बस एक दो ही आधार है – खून और अपनापन ! तभी तो खून जब पुकारता है – लोग सात समुन्दर पार भी अपने माता पिता के लिए बेचैन हो जाते हैं ! खून आधार नहीं होता तो ‘सौतेली माँ’ शब्द ही नहीं बनता …और ना ही एकता ‘सास बहु ‘ का सीरियल बना करोडो कमाई होती :))
और जहाँ असल प्रेम है वहीँ वफादारी भी है :))

~13 अगस्त , 2015

कहानी साबुन की …

खस साबुन

इस छोटे से जीवन में तरह तरह का साबुन देखा और लगाया लेकिन आज भी गर्मी के दिनों में खस और जाड़ा में पियर्स का कोई जोड़ नहीं है ।
बाबा को लक्स लगाते देखते थे । दे लक्स …दे लक्स । ढेला जैसा लेकिन सुगंधित । किसी पर चला दीजिए तो कपार फुट जाए । बाबू जी का पसंदीदा होता था – मार्गो – नीम वाला । जब हम लोग टीन एजर हुए तो – जिसका टीवी प्रचार बढ़िया – उहे साबुन खरीदाएगा । लिरिल 😝 आज भी लिरिल के प्रचार का कोई बराबरी नहीं कर पाया । नींबू की खुशबू के साथ – लिरिल से नहा लीजिए तो तन से लेकर मन तक फ्रेश फ्रेश 😊 नहाते वक़्त उसका प्रचार भी याद कर लीजिए 😝 मन कुछ और भी फ्रेश । फिर सिंथॉल आया – घोड़ा लेकर विनोद खन्ना अंकल ऐसा दौड़े की सिंथॉल भी बाज़ार में दौड़ने लगा – लेकिन हम कभी नहीं लगाए 😐 पिता जी उम्र के विनोद खन्ना नहीं पसंद 😐 आज तक सिंथॉल नहीं लगाए 😝
एक आता था – मोती साबुन । वो और भी ढेला । तराजू के बटखरा जैसा । चंदन की खुशबू पहली बार मोती में ही सुंघे । फिर दक्षिण भारत गए तो मैसूर चंदन वाला – सरकारी साबुन । ऐसा लगता था कि नहाने के बाद अब सीधे पूजा ही करना है – चंदन का असर होता था । कभी कभार खरीद कर थोक में घर भी लाते । अलग अलग क्वालिटी । एक्सपोर्ट क्वालिटी खरीदते वक्त एनआरआई टाइप फिल होता था 😁
लाइफबॉय का नसीब देखिए । उसका जिंदगी टॉयलेट के पास ही कट गया । कटा हुआ लाइफबॉय । जब किसी के शरीर में चमड़े का कोई बीमारी होता था तो बाबू उसको सलाह देते थे कि लाइफबॉय लगाव । हम उनका मुंह देखते थे – कोई कैसे शरीर में लाइफबॉय लगा सकता है 😐 लेकिन बैक्टीरिया मारने का सबसे बेजोड़ साबुन लाइफबॉय ही होता था ।
उसी टीनएज डिंपल आंटी गोदरेज के किसी साबुन के प्रचार में आई । कुछ ग्लोरी टाइप । ऐसा ना जुल्फ झटकी की दो चार महीना वो भी खारीदाया । कोई दोस्त महिम बोल दिया – लेडिस साबुन है । डिंपल आंटी का प्रचार मन में रह गया और साबुन दूर हो गया ।
पार्क एवेन्यू भी दूध के स्मेल टाइप कुछ प्रोडक्ट लाया लेकिन हम नहीं लगाए । बेकार । पूरा शरीर दुधाईन महकता था । फिर कुछ ओव डोब आया – जनानी टाइप । लगा के नहाने के बाद , कितना भी तौलिया से देह पोंछिए – लगता था अभी भी साबुन देह में लगा ही हुआ है 😐
लेकिन 15 साल दिल्ली / एनसीआर रहा । नया नया में फैब इंडिया गया – जेएनयू टाइप फिल करवाने के लिए – वहां से भी खस खरीदा लेकिन अफ़ग़ान ऑटो खस जैसा कहीं नहीं मिला । उत्तर भारत में ही बनता है लेकिन बिहार में बिकता है । हर साल थोक में अफ़ग़ान ओट्टो खस साबुन पटना से खरीद कर नोएडा / इंदिरापुरम जाता था । अब इसका लिक्विड भी आया है । गर्मी के दिन में ठंडा पानी से नहाने के साथ खस लगा लीजिए – पूरा दिन मन ठंडा ठंडा रहेगा । अब ये भी पहले वाला जैसा नहीं रहा – अलोए वेरा और गिलिश्रिन मिला दिया है । अब एक साबुन केक का दाम – 40 है ।
नोएडा में मॉल संस्कृति आया तो ‘ द बॉडी शॉप ‘ खुला । 300 -400 वाला साबुन भी आया । स्ट्राबेरी और मालूम नहीं क्या क्या सुगंध । वह दुकान पटना के मौर्या होटल में भी है ।
फिर , भारत का सबसे महंगा साबुन – मिलेनियम । ₹ 850 प्रति केक । 12 % चंदन का तेल । लगा लीजिए तो ऐसे ही खुद को मैसूर महाराजा समझने लगिएगा । अखोर बखोर से बात करने का मन नहीं करेगा 😝 7-8 साल से यही साबुन । बाबू जी किसान के बेटा हैं – एक दिन धमका दिए – जमीन जायदाद बेच के साबुन लगाओ 😐
हद हाल है …अब जन्मकुंडली के केंद्र में शुक्र बहुत मजबूती से बैठे हैं तो मेरा क्या दोष 😐 अब यही सब पसंद आएगा – साबुन तेल पाउडर गीत ग़ज़ल इत्यादि इत्यादि 😝
खैर …इस गर्मी अफ़ग़ान ओट्टो खस का कोई जवाब नहीं :))
~ रंजन / दालान

कुछ यूं ही …

मेरे गाँव के पास से एक छोटी रेलवे लाईन गुजरती है – हर दो चार घंटे में एक गाड़ी इधर या उधर से – पहले भाप इंजन – छुक छुक …लेकिन अब डीजल इंजन है ..भोम्पू देता है ..बचपन में छुक छुक गाड़ी को देखने के बहाने रेलवे ट्रैक के पास जाते थे ..वहाँ ..पटरी के बगल में पत्थर होते थे …कोई बढ़िया ..सुन्दर थोडा बड़ा पत्थर उठा लाते थे …घर आकर सीधे ..पूजा पर ..कभी कोई टोका नहीं ..कभी कोई रोका नहीं …कुछ दिन बाद देखा …किसी ने उसको रोड़ी / चन्दन / सिन्दूर लगा दिया ….परदादी रोज सुबह हनुमान चालीसा पढ़ती थी …बगल में बैठ जाता …मै भी परदादी के साथ बुदबुदाता …फिर मै अपने उस पत्थर को देखता ….एक श्रद्धा के साथ ..एक विश्वास के साथ …समर्पण में ..पूजा में ..प्रार्थना में बड़ी ताकत है ….श्रद्धा / विस्वास / पूजा / समर्पण ..पत्थर को भी भगवान बना दे …वरना इंसान हीरे को भी …समुद्र में बहा दे …


~ 14 August 2012

इंस्टैंट मुहब्बत …

InstantMuhabbat

नॉएडा के , सेक्टर अठारह के , एचएसबीसी बैंक ब्रांच में उस रोज – झुकी पलकों को आहिस्ता से उठा , अपने गेशुओं को एक तरफ़ शाने पर रख , वो एक हमउम्र जब पाँच क़दम चल कर, मुझ अनजान तक पहुँच , कहती है – ‘एक्सक्यूज मी , पेन प्लीज़’ । सेकेंड के सौवें हिस्से में – मेरे मन में झंकार बिट्स बजने लगते है 😐 मैं मासूम छोरा – पेन की ढक्कन खोल ख़ुद को पृथ्वीराज चौहान समझ उनको अपना पेन समर्पित करता हूँ – इस घमंड के साथ की , बैंक में अन्य बीस मर्द भी थे पर उस मासूम ने मुझसे ही पेन माँगा है । जब तक वो अपने चेकबुक पर कुछ लिखती हैं – मेरे मन मंदिर में एक ही गाना बजता है – ‘यह पेन नहीं मेरा दिल है’ ।
इंसान ख़्वाबों में जीता है । मेरे मासूम मन में ख़्वाब जाग जाते है – जब वो क़लम वापस करेंगी , मैं उन्हें कॉफ़ी के लिए पूछूँगा , कॉफ़ी पर ही बातों का सिलसिला चल पड़ेगा , इस कॉफ़ी के ख़त्म होने के साथ , अगली मुलाक़ात का समय तय होगा । ख़्वाबों के सिलसिले भला कब रुकते हैं 😐
पर ऐसा हो न सका – टेलर से पैसे निकाल , लूई वेटन के लाल टोट बैग में पैसा रखते ही वो झुकी पलकें थोड़ी कठोर हो गयीं । बड़े ही कठोर निगाहों से उन्होंने मेरा पेन वापस किया – मेरे दिल ने कहा – काश आप ये क़लम रख लेती । पर अब तो पेन का काम ख़त्म हो चुका था , भला क्यों वो उसी अदा में रहतीं 😐
ताश के पत्ते की तरह सारे ख़्वाब बिखरते चले गए । अंतिम आस थी – काश वो थैंक यू कहती । पर मुझ जैसे नसीब के छोटे आदमी को थैंक्स भी नसीब नहीं हुआ । पेन लौटाते वक़्त वो निगाहें भी नहीं मिल सकीं । हाँ , वो वही क़ातिल निगाहें थी जिन्होंने बड़े मासूमियत से पेन माँगा था । एक झटके में वो बाहर निकल गयीं ….और मैं देखता रह गया …अपने टूटे दिल के बिखरते ख़्वाबों को समेटते हुये …
फिर सोचा …कुछ देर और रुक जाऊँ …फिर कोई और पेन माँगनेवाली आ जाए …😐
~ रंजन ऋतुराज / #Daalaan / 11.01.17
यह महज़ एक कल्पना है , हास्य है , एक व्यंग्य है – उन सोख हमउम्र हसीनाओं पर जो हज़ारों के लूई वेटन बैग में एक क़लम तक नहीं रखती हैं और काम ख़त्म हो जाने के बाद , क़लम वापस करते वक़्त – थैंक्स तक नहीं बोलतीं है । और हम पुरुष न जाने कितने ख़्वाब बुन लेते हैं – क़लम देने और वापस लेने के बीच 😕
लेकिन यह शुद्ध कल्पना भी नहीं है , यह दुर्घटना सितंबर , 2016 में नोएडा में हुई और चेक पर साईन करते वक़्त , मैंने उनका नाम भी पढ़ा और फेसबुक खोल उनका प्रोफाईल भी चेक किया , फ्रेंड रिक्वेस्ट का कोई ऑपशन नहीं दिखा – मर्द जात …कुकुर 😐 बड़का भारी कुकुर …हा हा हा ।