विदाई : रतन टाटा

रतन टाटा

बड़पन्नता 🙏 सरलता
~ बात दस साल पहले की होगी , बात बड़पन्नता और सरलता की हो रही थी तो पंकजा ठाकुर ( 95 बैच आईआरएस ) , पूर्व सीईओ , सेंसर बोर्ड ने कहा की बॉम्बे में किसी मीटिंग में रतन टाटा के साथ भेंट मुलाकात और लंच का प्रोग्राम था . लंच के बाद आदतन पंकजा अपना लेडीज पर्स / टोट बैग वहीं छोड़ अपने कार के तरफ़ बढ़ गई तो रतन टाटा उस बैग को लेकर पंकजा तक आ गए : ‘आपका बैग वहीं छूट गया था’

: शायद पंकजा ठाकुर थैंक्स भी नहीं बोल पाई . पिता से भी 10 साल बड़े , भारत ही नहीं विश्व के सबसे प्रतिष्ठित कॉरपोरेट. धन और फ़िलन्थ्रॉपी की बात ही मत पूछिए .
~ इंसान अचानक से इतने बड़े व्यक्तित्व के सरलता और बडपन्नता से इतना चकित हो जाता है की उसके मन की बात मुँह पर आ कर अटक जाती है . पंकजा आगे कहती हैं की उस पल भर की घटना ने उनके मन और आचरण को प्रभावित नहीं किया बल्कि एक बदलाव भी दिया 🙏

अभी सुहेल सेठ का एक इंटरव्यू देख रहा था . ब्रिटिश राज घराना रतन टाटा को पुरस्कार देने वाला था . सुहेल लंदन पंहुचे तो बॉम्बे से रतन टाटा का 11 मिस कॉल . सुहेल वापस रिंग बैक किए तो पता चला की करुणा से भरपूर रतन टाटा अपने पेट डॉग के बीमार होने से ब्रिटिश राजघराना पुरस्कार लेने नहीं जा रहे . प्रिंस चार्ल्स मुस्कुरा दिए : यही करुणा टाटा की पहचान है 😊

सन 2013 में जेएसएस , नोएडा त्यागने के बाद , मैंने प्रण लिया था की अब कोई नौकरी नहीं . लेकिन जब टाटा ब्रांड से प्रस्ताव आया तो ठीक एक महीना सोचने विचारने के बाद , प्रण टूट गया .
~ जो आपके प्रण को तुड़वा दे : वही ब्रांड , वही इंसान , वही भाव महान 🙏

सर , विदाई हो तो ऐसी 🙏 कल रात वाट्स एप स्टेटस पर देखा तो महज पाँच मिनट में सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही थे .
~ हर भारतीय की आत्मा आपके अंतिम विदाई में आपके साथ है . एक साथ अरबों लोगों के हाथ उठे और सर झुके हैं .
: सच में , विदाई हो तो ऐसी हो 🙏

: रंजन , दालान

अनुशान , प्रेम और अहंकार …

सामाजिक जीवन में सफलता अनुशासन से ही मिलती है लेकिन ऐसी कई सफलताओं को पाने के बाद ऐसे घोर अनुशासित लोगों को यह भ्रम भी हो जाता है की जीवन की सारी अनुभूतियां अनुशासन से ही प्राप्त हो जाएंगी ।
~ ऐसा मै नही मानता । भूखे पेट सोना भी एक अनुभूति है । और यह अनुभूति तब मिलेगी जब आपको अनुशासन तोड़ एक रात भूखे पेट सोना हो । उस खास अनुभूति को आप बिना अनुशासन तोड़ नहीं समझ सकते ।
~ लेकिन दूसरा तर्क यह भी है की हर रात कोई उसी अनुभूति को प्राप्त करने में भूखे पेट सोने लगे तो वह बहुत ही दुर्बल हो सकता है । यह भी सही बात है ।
: लेकिन मेरा तर्क है की जीवन में उस अनुभूति के लिए आपको अनुशासन तोड़ना ही पड़ेगा । अन्यथा , यह वह कैसा जीवन जहां सब कुछ तो है लेकिन भूखे पेट की अनुभूति नहीं है ।
~ जहां प्रेम है वहां अहंकार नहीं और जहां अहंकार है वहां प्रेम नही । अहंकार सामाजिक जीवन की जरूरत है । वर्षों पहले मेरी एक मित्र ने कहा था – जिन जिन संबंधों में उसने अपने अहंकार को समर्पित किया उन्ही संबंधों ने उसे पैर का पोंछा बना दिया । शायद , वैसे संबंध में उसका अहंकार जागृत हो गया होगा । तो कहने का मतलब इंसान अपने अहंकार को मारता है नही बल्कि प्रेम में अभिभूत होकर अपने अहंकार को सुला देता है । फिर जैसे ही उसे आदर या प्रेम की कमी महसूस होती है , उसका अहंकार वापस ज़िंदा या जाग जाता है । मतलब की इंसान बिना अहंकार रह ही नहीं सकता ।
: लेकिन इंसान की जरूरत प्रेम भी है । बड़े से बड़े अहंकारी को भी उसके कमज़ोर क्षण में अनकंडीशनल लव के लिए बिलखते देखा है । वक्त है । वक्त किसी के बाप का नहीं होता । वो आपके जीवन में अपने हिसाब से चलेगा । और वही इंसान का वक्त ठीक होते ही , उसको अब अनकंडीशनल लव की जरूरत नहीं होती । यह मानव स्वभाव अदभुत है ।
~ हाई स्कूल के दौरान एक मित्र था । प्रमोद । हम दिन भर साथ रहते । शाम को तो अवश्य ही । मेरे लिए उसकी भावनाएं पवित्र होती है । समर्पण था । लेकिन प्लस टू में नए मित्र बने और प्रमोद का साथ छूट गया । कई साल अपनी नई जिंदगी में उसकी कमी नही महसूस किया । लेकिन इधर अचानक से उसकी याद आने लगी । अब महसूस हो रहा है की उसकी भावनाएं मेरे लिए कितनी पवित्र थी और शायद आज भी होंगी । कुछ साल पहले उसके आवास की तरफ गया था , वो अपने चाचा के घर में रहता था । हिम्मत ही नहीं हुई की दरवाजा खटखटा कर पूछे की प्रमोद अब कहां है । खुद में ग्लानि हुई । हम तो नए मित्रों में कई वर्ष खोए रहे और जब कमज़ोर वक्त आया तो पवित्र भावना तलाश रहे हैं ।
: हम भी तो वही इंसान है जो ऊपर बाकी अहंकारिओं पर छिछा लेदर कर रहे हैं । हम कहा अलग है ? सारा खेल इसी भावनाओं का है । तभी तो गोरी हो या काली , लंबी हो या छोटी , मोटी हो या पतली , धनिक हो या गरीब – मां बस मां होती है क्योंकि उसकी भावनाएं हमारे लिए पवित्र होती हैं ।
~ इस रिश्ते को हटा दें तो बाकी के सभी रिश्ते थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी पर चलते हैं । हा हा हा । हमसे कोई मजबूत मिला तो अहंकार झुका दिए और कमज़ोर मिला तो उसको अपना ताकत दिखा दिए । हा हा हा ।
~ मुश्किल है मानव स्वभाव को समझना या यह एक विशुद्ध फॉर्म्युला पर आधारित है । कुछ है जो खुशी भी देता है और गम भी ।
: रंजन , दालान / 08.06.2021

ज़िन्दगी : एक अधूरी कहानी

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – Out of sight -out of mind – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !
18.01.15

अभिभावक होना …

इस जीवन में कई मुश्किल काम करने होते हैं – उन्ही में से एक है – ‘पैरेंटिंग’ ! अब इस उम्र में जब बच्चे टीनएजर हो चुके हैं – इसका दबाब महसूस होता है ! हर एक पीढी अपने हिसाब से – अपने दौर की नज़र से – अपनी बेसिक क्लास की समझ से ‘पैरेंटिंग’ करना चाहती है ! जैसे मेरे माता पिता जिस जमाने से आते थे – वहां ‘नौकरी’ ही बहुत बड़ी चीज़ थी और मै जिस तरह की विचारधारा और एक्सपोजर ले रहा था – वहां एक जबरदस्त कनफ्लिक्ट था – जीवन मतलब ‘आदर’ और किसी भी तरह की नौकरी से किसी के जीवन का भरण पोषण हो सकता है – उसे ‘आदर’ कैसे मिल सकता है – यह बात मेरी समझ से परे था ! संभवतः मेरे बचपन में मेरे दादा जी का प्रभाव था जो ‘पोलिटिक्स’ में थे और मेरे पिता जी – मुझपर से अपना लगाम ढीली करने के मूड में नहीं थे – संभवतः आज भी नहीं – उन्हें आज भी लगता है – जिस दिन लगाम ढीली हुई – मै ‘हेड ओं कोलिजन’ कर बैठूँगा…हा हा हा !
खैर …अब ज़माना बहुत बदल चुका है …बच्चे जन्म से ही ग्लोबल एक्सपोजर ले रहे हैं …जो मेट्रो लिविंग हमारे कल्पना में बसती थी …वो इलेक्ट्रोनिक माध्यम से उनकी नज़र में चौबीस घंटे हैं …जो गीत हम रेडिओ पर सुने ..वो किसी भी पल उनके उंगली के इशारे इंटरनेट के माध्यम से है ..! सबसे बड़ी बात – “एक प्लेन / समतल प्लेटफार्म’ की तरह समाज हो चुका है – जहाँ न कोई बड़ा है और ना ही कोई छोटा है – यह इस शताब्दी की सबसे बड़ी सामाजिक परिवर्तन है ! हम नेहरु और मुस्तफा कमालपाशा को पढ़ बड़े हुए – हमारे बच्चे स्टीव जॉब्स और फ्लिप्कार्ट / अमेज़न की सफलता पढ़ रहे हैं ! दो वक़्त की रोटी अब दिक्कत नहीं रही – मेरे गुरु और भारत के मशहूर प्रोफ़ेसर स्व० चन्द्रशेखर झा ( भूतपूर्व आईआईटी डाइरेक्टर एवं बीएचयू वाईस चांसलर) ने करीब दस साल पहले कहा था – तुम एक शिक्षक हो – तुम्हारे विद्यार्थी तीस की उम्र तक लगभग छः देशों के नागरिक के साथ काम कर चुके होंगे – जिन गोरों को देख तुम आँखें बड़ी कर लेते हो – तुम्हारे बच्चे उनके साथ न्यूयार्क के किसी रेस्त्रां में – किसी वीकएंड अपनी शाम बिता रहे होंगे – उन गोरों के बराबर कांफिडेंस के साथ !
अब इस माहौल में – कैसी ‘पैरेंटिंग’ हो – एक अज़ीज़ मित्र ने कहा – औलाद के जीने खाने के लिए अकूट धन है – बस एक ही चीज़ सिखानी है – इस भीड़ में कैसे रहा जाए – और खुद की भावनाओं को किसी चोट से कैसे बचाया जाय – क्योंकी यह ‘इंसान की प्रकृती’ से जुड़ा है ! उसके कहने का एक ही मतलब था – अपने बच्चे के अन्दर ‘ फेक और असल’ की पहचान करने की क्षमता बढ़ाना !
कई बार बेहतर बेहतर पैरेंटिंग के चक्कर में – हमारी पिछली पीढी – हमें इतना ज्यादा सुरक्षा कवच पहना दी – यह भूलते हुए – एक दिन हमें उसी समाज में जाना है – जिससे बचा के हमारी परवरिश की गयी – फिर हमपर जो गुज़री वो हम ही जाने – सिखने के चक्कर में – हम अपनी मासूमियत कब खो बैठे – पता ही नहीं चला !
सबसे बड़ी मुश्किल है – बेटीओं की पैरेंटिंग – अब उनपर जबरदस्त बोझ आ चुका है – उन्हें ना सिर्फ अपनी ‘प्रकृती’ के हिसाब से जीवन जीना है बल्की अपने जीवन के हमसफ़र के साथ कदम भी मिलाना है – उसे अपने क्लास में टॉप कर के बढ़िया प्रोफेशनल / नौकरी भी पकडनी है – अपनी कोमलता को भी बरक़रार रखना है – और माँ भी बनना है – हाँ …सुबह का नास्ता भी तो तैयार करना है – अपनी मेट्रो रेल को पकड़ने के पहले – देर शाम थकने के बाद – चाय बनाना भी तो उनके जिम्मे होगा …अगर हमसफ़र ने कोई नया फ़्लैट खरीदा – लोन में आधा का हिस्सेदार भी बनना है …और न जाने …क्या क्या …वीकएंड में बच्चों का होमवर्क भी !
लडके तो वही थे …जो कल थे …!
पैरेंटिंग मुश्किल हो चुकी है …जो कुछ हम अपने अनुभव से सिखायेंगे …बच्चे उससे बीस साल आगे की सोच में जियेंगे …लगाम कब ढीली रखनी है …कब जोर से पकड़ना है …कुछ तो हमें भी सिखना है …:))
बस यूँ ही …कई आयामों को एक सांस में …लिखते हुए …:))
थैंक्स …:))
~ रंजन /दालान

ज़िन्दगी के पन्ने

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही – कहानी को सुन्दर बनाता है ! “अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है – और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता “
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर ‘अप – डाउन ‘ देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो – वो अपने जीवन के एक ‘ब्लैक होल’ से जरुर गुजरता है – अब वह ‘ब्लैक होल’ कितना बड़ा / लंबा है – यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे – पर खुद को शांती में देखना चाहता है – कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है – थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है – पर कई बार ‘लत / आदत’ हमें घेरे रहती हैं – आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है – इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता – यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं – हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है – एक उदहारण देता हूँ – ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे – बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था – जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे – ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है – आप कभी भी / किसी भी अवस्था में ‘अकेले’ नहीं हैं – इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है – या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की …ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है – “भूलने की शक्ती” – हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं – जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे – उस काले पन्ने में ‘कोई इंसान / कोई काल – समय / कोई जगह’ – कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है – आउट ऑफ साईट , आउट ऑफ माइंड – और जब तक यह नहीं होगा – आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे – और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी 🙂
हिम्मत कीजिए – कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !

~ RR / Daalaan / 18.01.2015