क्या तुम ही मेनका पुत्री शकुंतला हो ? क्या तुम ही मेनका – विश्वामित्र के प्रेम की धरोहर हो ? क्या तुम ही राजा दुष्यंत की असीम चाहत हो ? क्या तुम ही गंधर्व विवाह की जनक हो ? क्या तुम ही राजा भरत की कोख हो ?
या फिर तुम महाकवि कालिदास की महज एक कोरी कल्पना हो ? अगर तुम सच हो तो फिर मैंने आज तक देखा क्यों नहीं ? अगर तुम झूट हो तो फिर मैंने आज तक तुम्हे तलाशा क्यों नहीं ?
अगर तुम सम्पूर्ण हो तो मेरा ये स्वप्न कैसा ? अगर तुम अधूरी हो तो फिर मिलन का तड़प कैसा ?
~ रंजन / दालान / 20.12.19