हरश्रृंगार

हरश्रृंगार

पांच साल पुरानी तस्वीर है । इसी शरद ऋतु की एक सुबह अपने गाँव में – घर के बाहरी आँगन में लगे हरसिंगार के पौधे से झरते फूलों को इकट्ठा कर यह तस्वीर मैंने खिंची थी ।
शेफाली, पारिजात, सिउली, हरसिंगार, प्राजक्ता …न जाने कितने नाम हैं ।
अपनी मीठी ख़ुशबू से सारी रात चाँद को रिझाना और सुबह होते ही धरती को बिछावन बना ख़ुद को सौंप देना । शायद यही नियति है – हरसिंगार की । यही प्रकृति है – हरसिंगार की ।
” विदेशों में एक कहानी है – पारिजात को सूर्य से असीम प्रेम था पर कोमल पुष्प सूर्य की धधकती ज्वाला को बर्दाश्त नहीं कर पाती इसलिए सूर्य के डूबने के बाद यह खिलती है और सुबह सूर्य के उगने से पहले दर्द भरे आंसुओं की भावना देते हुए पेड़ से झड़ कर ज़मीन पर गिर जाती है । “
असीम ख़ुशबू के साथ साथ असीम प्रेम का भी बोध भी है – हरसिंगार का फूल , शायद तभी हम इसे देवी को भी समर्पित करते हैं :)) किसी ने कहीं लिखा है – “हरसिंगार सी झरती हैं तेरी यादें …शरद ऋतु के इस सुबह की बेला में …तुम्हारी ख़ुशबू के साथ …लाज सी बिछी तुम पारिजात …कहती को …चुन लो मुझे …अंज़ूरी में भर लो मुझे” …:))

वहीं महान कवि पंत लिखते हैं –

शरद के
एकांत शुभ्र प्रभात में
हरसिंगार के
सहस्रों झरते फूल
उस आनंद सौन्‍दर्य का
आभास न दे सके
जो
तुम्‍हारे अज्ञात स्‍पर्श से
असंख्‍य स्‍वर्गिक अनुभूतियों में
मेरे भीतर
बरस पड़ता है !

  • सुमित्रानंदन पंत
    ~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना

ब्लैकबेरी

सहरा की भिंगी रेत पर , मैंने लिखा आवारगी
~ मोहसिन की बेहतरीन पोएट्री ।
तस्वीर इसी मौसम और शायद इसी महीने की है , वर्ष था 2012 . सात साल पहले की है । शनिवार का दिन था और कॉलेज से हाफ डे के बाद मुझे अपने कॉलेज के दिनों के दोस्तों से मिलने जाना था । बेटी ने ब्लैकबेरी से मेरी तस्वीर उतारी । कई फोन आए और गए लेकिन जो रईसी ब्लैकबेरी में था – वो आईफोन में भी नजर नहीं आया । बेहतरीन लेदर के होल्डर में ब्लैकबेरी को रखिए और आराम से उस होल्डर से ब्लैकबेरी को निकालिए ।
शायद इस वक्त मेरे जेहन में कहीं से भी कुछ नहीं था कि अगले कुछ महीनों में ज़िन्दगी बदलने वाली है । राहु अपनी आयु के चरम सीमा पर था ।
खैर , जिंदगी बड़ी गुलज़ार थी । सुबह ठीक 7.35 में गाढ़ी और बासी दूध के चाय के साथ नींद खुलती थी । करीब 8 अख़बार लेता था । लेकिन सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया से ही होती थी । अख़बार और चाय के खत्म होते ही , तैयार होने की हड़बड़ी । ठीक 8.10 में तैयार ।घी से तरबतर पराठा और आलू गोभी की सब्जी । सालों भर गोभी चाहिए – जहां से आए , वो मेरा हेडेक नहीं रहता था । आराम से 8.45 में कॉलेज । 2009 में ही एसोसियेट प्रोफेसर बन चुका था सो क्लास भी कम । मुश्किल से एक क्लास प्रतिदिन । दोपहर 1 बजे वापस घर – दाल , भात , घी , अचार , नेनुआ का सब्जी , पापड़ , तीलौड़ी । डाइनिंग टेबल पर अकेले । फिर एक राउंड बाकी का अख़बार । फिर 2 बजे वापस कॉलेज । और 4.30 बजे वापसी । वापस लौट कर खुद चाय बनाते थे । बेहतरीन दार्जिलिंग चाय । बिन बैग पर पसर कर टीवी और अख़बार । मूड हुआ तो एक आध घंटे बाद , किसी दोस्त यार की महफ़िल में – टेनिस , बैडमिंटन हुआ । और देर शाम वापस । फिर लैपटॉप पर दे फेसबुक …दे फेसबुक । हा हा हा । रात 1.30 तक जागना । लेकिन तकिया के बगल में किताब का जरूर होना ।
लेक्चर भी मस्त होता था । पांच मिनट लेट घुसना , पांच मिनट जल्दी निकल जाना । दस मिनट अटेंडेंस । हां जी फलाना , तुम कल क्यों नहीं आए टाइप भाषण । एक घंटा के लेक्चर में – सिर्फ 35 मिनट पढ़ाते थे । वो 35 मिनट किसी परम आनंद से कम नहीं होता था । ऐसा लगता था कि जैसे झामझामा कर बारिश हो रही हो ।खुद को प्रफुल्लित महसूस करते थे ।
इज्जत बहुत थी । पेशा का असर था । एक तो प्रोफेसर ऊपर से दालान का लेखक । बीच में दाएं बाएं भी कमाए लेकिन उसको भी बड़ी इज्जत के साथ ।
लेकिन राहु कब तक इंतजार करता । 25 फरवरी , 2013 को माथा में घुस गया – चलो पटना , वापस ।
यहां कोई ज़िन्दगी नहीं है । हर एक इंसान असुरक्षित है । इस असुरक्षा की भावना में वो खुल कर किसी से हाथ भी नहीं मिला पाता है ।

~ रंजन / 02.09.19

गुलाबी सूरज


” गुलाबी सूरज ”
सूरज भी कभी कभी ‘गुलाबी’ हो जाता है …धरती को कुहासे में ढका देख …शर्मा जाता है … :))
~ RR
01.02.2013
Blackberry 5 MP Camera .

ब्लैकबेरी बेहतरीन स्टाइलिश फोन होता था ।

आज ब्लैकबेरी का कनेक्शन हटवा दिया ! अच्छा नहीं लगा ! मन बहुत उदास हो गया ! अगस्त 2012 के प्रथम सप्ताह में लिया था ! टचस्क्रीन वाला मोडल है ! एक झटके में ले लिया था ! हाथ में ब्लैकबेरी , बढ़िया लगता था ! पर ऐसा लग रहा है जैसे आपकी सबसे प्यारी चीज़ बेजान हो गयी हो ! अब वो सिंपल फ़ोन की तरह काम करेगा ! अब उसपर कोई इमेल नहीं आएगा ! अब उसपर कोई बीबीएम टेक्स्ट नहीं आयेगा ! धीरे धीरे किसी रोज़ किसी दराज़ घुस जायेगा !
लेदर होल्डर में रखता था ! कितने आराम से उसको लेदर होल्डर से निकलता था ! जब तक कॉलेज में पढ़ाया , किताबों और डस्टर के बीच यह फोन भी पोडियम पर आ बैठ जाता – हक़ से ! बहुत प्यार से और संभाल के रखता था ! आज भी बिलकुल नया जैसा है ! हर दो तीन दिन पर उसको पोंछना ! न जाने कितनी अनगिनत तस्वीरें खींचा ! हर वक़्त शर्त के ऊपर वाले पॉकेट पर , पार्कर के सबसे महंगे वाले कलम के साथ यह लड़ता रहता था ! सोते वक़्त तकिया के बगल में रखना ! मेमोरी कम थी , इसलिए कभी कोई फ़ालतू का एप्प नहीं रखा , तस्वीरों से मेमोरी भर गया तब तुरंत सारी तस्वीरें डिलीट कर देता था , ऐसा लगता था जैसे मेरे ब्लैकबेरी का दम घूंट रहा है , ऐसा कैसे हो सकता है की मेरी सबसे प्यारी चीज़ का दम घूंटे ! *Action starts here वाला ऐड ! जैसे कुछ भी नया इन्फोर्मेशन आया – वो पिली बत्ती का ‘भूक भूक ‘ कर के हमको बता देना ! बहुत कुछ मिस करूँगा ! फुर्सत में कभी कभी फेसबुक को भी देख लेना ! ईमेल के जबाब के अंत में सिग्नेचर के साथ – sent from Blackberry !
दो साल हो गए दिल्ली / एनसीआर छूटे पर इस ब्लैकबेरी का नंबर नहीं बदला ! पटना में लोग टोकते थे – क्यों नहीं कोई लोकल नंबर ले लेते हैं , मुस्कुरा देता था !
यादों के फव्वारे के बीच यह फोन अभी लैपटॉप के बगल में चुप चाप बैठा हुआ है , जैसे हर वक़्त बैठा होता था – टुकुर टुकुर देख रहा है ! शायद दराज़ में घुसाने वाली बात उसके दिल को ठेस पहुंचा दी होगी , ऐसा नहीं होगा – जबतक मेरे अन्दर दम है यह साथ रहेगा – अपने उसी नंबर वाले सिम के साथ ! इतना हक तो उसका भी बनता है – वादा निभाना भी तो मेरा फ़र्ज़ बनता है …! ~ RR / 27.05.2015