प्रेम का आधार …

शायद मैंने पहले भी लिखा था और फिर से लिख रहा हूँ ! प्रेम का आधार क्या है ? मै ‘आकर्षण’ की बात नहीं कर रहा ! मै विशुद्ध प्रेम की बात कर रहा हूँ ! मेरी नज़र में प्रेम का दो आधार है – ‘खून और अपनापन’ ! बाकी सभी आधार पल भर के लिए हैं !
यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटीविटी भी काम करती है ! खून एक जबरदस्त आधार है ! कभी गौर फरमाईयेगा – फुआ , मौसी , चाचा , मामा से आप खुद को ज्यादा नजदीक पायेंगे ! वहीँ फूफा , मौसा , चाची , मामी इत्यादी से थोड़ी दूरी ! हो सकता है – मौसा या मौसी से परिचय आपका जन्म से ही है फिर भी मौसी आपसे ज्यादा नजदीक होंगी या आप खुद को पायेंगे ! इसी आधार पर मैंने एक बार लिखा था की आप यूरोप या अमरीका में किसी पाकिस्तानी को देखते है तो आप खुद को उसके ज्यादा नजदीक पाते हैं , उसी पाकिस्तानी को आप भारत में रहते हुए दिन भर गाली देते हैं ! ठीक उसी तरह जब आप मंगल गृह पर जायेंगे तो पृथ्वीवासी ही आपके सुख दुःख को समझ पायेंगे !
शायद यह खून ही है की आजीवन पति पत्नी आपस में लड़ते हैं लेकिन औलाद के लिए दोनों के अन्दर सामान प्रेम होता है ! कई बार पुरुष यहीं फंस जाते हैं – माँ या पत्नी ! महिलायें भी आजीवन अपने पति / प्रेमी में अपने पिता की छवी तलाशती रहती हैं !
दूसरा आधार है – अपनापन ! यह बहुत लम्बे समय साथ रहने से होता है ! जब आप सुबह से शाम तक किसी के संपर्क में रहेंगे – अपनापन हो ही जाएगा और वह भी एक जबरदस्त प्रेम का आधार बन जाता है पर शर्त रहती है की आप कितने करीब हो पाते हैं ! आप एक दुसरे के खूबी / कमी को कितना महसूस कर पाते हैं !
शायद खून ही एक आधार है जिसके कारण समाज में ‘जाति’ आज भी बरकरार है ! श्री लालू प्रसाद को देख कई लोगों में यह भाव आया – कोई मेरे जैसा , मेरा कोई अपना उस शिखर पर है ! सुन्दर पिचासी को गूगल के शिखर पर देख लोगों के अन्दर भाव आया – कोई मेरा भारतीय – हम जैसा – उस शिखर पर है वहीँ से एक प्रेम छलकता है !
मेरा तो यही दोनों आधार है ! बाकी ‘आकर्षण’ को बस स्टॉप पर भी हो जाता है – इस उम्र तक यह समझ तो ही गयी है – वह आकर्षण जितना आसानी से आता है उतनी ही तेज़ी से जाता भी है ! प्रेम का तो बस एक दो ही आधार है – खून और अपनापन ! तभी तो खून जब पुकारता है – लोग सात समुन्दर पार भी अपने माता पिता के लिए बेचैन हो जाते हैं ! खून आधार नहीं होता तो ‘सौतेली माँ’ शब्द ही नहीं बनता …और ना ही एकता ‘सास बहु ‘ का सीरियल बना करोडो कमाई होती :))
और जहाँ असल प्रेम है वहीँ वफादारी भी है :))

~13 अगस्त , 2015

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो …

मोनिका बलूची

कभी मिलो तो कुछ ऐसे मिलो जैसे एक लम्बे उम्र का इंतज़ार …चंद लम्हों में मिलो …
हां …उसी रेस्तरां में …जब तुम वेटर को एक कप और चाय की फरमाईश करते हो …जैसे …मै इतनी मासूम ….मुझे कुछ पता ही नहीं …कुछ देर और रुकने का बहाना खोजते मिलो …अपनी मंद मंद मुस्कान में बहुत प्यारे दिखते हो ….:))
वहीँ टेबल पर ….कभी अपने कार की चावी तो कभी मोबाईल को नचाते …चुप चाप मेरे तमाम किस्से सुनते हो …और फिर एक लम्बी सांस के साथ …एक गहरी नज़र मेरी आँखों में डालते हो …जैसे क़यामत को कोई और पल नहीं चाहिए ….
हाँ ..कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो …जैसे मेरी तमाम उलझनों को …हौले हौले सुलझाते मिलो ..और मै अपने मन की सारी बातें कह …खुद को खाली कर दूँ …
..लौटते वक़्त …रेस्तरां से कार पार्किंग तक के सफ़र में …तुम्हारे हाथों से …मेरे हाथों का स्पर्श ……धड़कने वहीँ पिघल के …न जाने कब तुममे समा जाती है …कह नहीं सकती …पर कभी न मिटने वाली एक एहसास छोड़ जाते हो …
कभी मिलो तो कुछ यूँ मिलो ….:))

~ RR / #DaalaanBlog / 2014