प्रेम और युद्ध

दिनकर लिखते हैं – ” समस्या युद्ध की हो अथवा प्रेम की, कठिनाइयाँ सर्वत्र समान हैं। ” – दोनों में बहुत साहस चाहिए होता है ! हवा में तलवार भांजना ‘युद्ध’ नहीं होता और ना ही कविता लिख सन्देश भेजना प्रेम होता है ! युद्ध और प्रेम दोनों की भावनात्मक इंटेंसिटी एक ही है ! युद्ध में किसी की जान ले लेने की शक्ती होनी चाहिए और प्रेम में खुद को विलीन करने की शक्ती ! दोनों का मजा तभी है – जब सामनेवाला भी उसी कला और साहस से मैदान में है ! कई बार बगैर कौशल भी – साहस से कई युद्ध या प्रेम जीता जाता है – कई बार सारे कौशल …साहस की कमी के कारण वहीँ ढेर हो जाते हैं …जहाँ से वो पनपे होते हैं ! और एक हल्की चूक – युद्ध में जान ले सकती है और प्रेम में नज़र से गिरा सकती है !
इतिहास गवाह है – ऐसे शूरवीरों से भरा पडा है – जिसने प्रेम में खुद को समर्पित किया और वही इंसान युद्ध में किसी को मार गिराया – यह ईश्वरीय देन है – भोग का महत्व भी वही समझ सकता है – जिसने कभी कुछ त्याग किया हो !
कहते हैं – राजा दशरथ किसी युद्ध से विजेता होकर – जब कैकेयी के कमरे में घुसे तो उनके पैर कांपने लगे – यह वही कर सकता है – जिसे युद्ध और प्रेम दोनों की समझ हो ! दोनों में पौरुषता और वीरता दोनों की अनन्त शक्ती होनी चाहिए ! पृथ्वीराज चौहान वीर थे – प्रेम भी उसी कौशल और साहस से किया – जिस कौशल और साहस से युद्ध ! मैंने इतिहास नहीं पढ़ा है – पर कई पौरुष इर्द गिर्द भी नज़र आये – जिनसे आप सीखते हैं ! हर पुरुष की तमन्ना होती है – वो खुद को पूर्णता के तरफ ले जाए – और यह सफ़र आसान नहीं होता !
युद्ध और प्रेम …दोनों के अपने नियम होते हैं – और दोनों में जो हार जाता है – उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है ! रोमांस / इश्क प्रेम नहीं है …महज एक कल्पना है ! फीलिंग्स नीड्स एक्शन – जब भावनाएं एक्शन डिमांड करती हैं – तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है – तब पता चलता है – ख्यालों को मन में पालना और उन्हें हकीकत में उतारना – कितना मुश्किल कार्य है !
युद्ध के सामान ही प्रेम आपसे एक एक कर के सब कुछ माँगता चला जाता है – देनेवाला किसी भी हाल में लेनेवाले से उंचा और ऊपर होता है – युद्ध में हारने वाला आपसे माफी मांगता है – प्रेम में बहाने बनाता है – युद्ध में आप माफ़ कर सकते हैं – पर प्रेम में कभी माफी नहीं मिलती – युद्ध भी कभी कभी प्रेम में बदल जाता है और सबसे बड़ी मुश्किल तब होती जब आप जिससे प्रेम करे – उसी से युद्ध करना पड़े ! और उसी इंटेंसिटी से करें – जिस इंटेंसिटी से प्रेम किया था – फिर तो ….वह दुबारा भगोड़ा हो सकता है …:))

~ RR / Daalaan / 19.01.2015