Gulzar – Happy BirthDay Sir 🙂
‘खट्टी मीठी आँखों की रसीली बोलियाँ
बोलिए सुरीली बोलियाँ ‘
- गृहप्रवेश का यह गीत एक तड़के सुबह से आँखों में गूंज रहा है ! जब आप आगे लिखते हैं – ‘रात में घोले चाँद की मिश्री – दिन के गम नमकीन लगते है – नमकीन आँखों की नशीली बोलियाँ’ !
बस उसी वक़्त दिन ठहर जाता है और न जाने कब दिन घुल के सांझ और फिर रात हो जाता है ! एक बात कहता हूँ – मैंने कभी आपको सुना नहीं , सच में ! हर बार – आपको महसूस किया !
कोई मुझसे पूछे की गुलज़ार कौन है ? मै तो यही कहूँगा – पिछले चालीस सालों से उम्र के उसी पडाव में खड़ा एक इंसान ! कई बार सोचता हूँ – कोई कैसे एक ख़ास उम्र में तमाम उम्र जी सकता है – चालीस वाले उम्र में ! जब आप चालीस के पहले थे तब भी आप उसी उम्र में लिखते थे और अब जब 83 वसंत ,पतझड़ , सावन देख चुके हैं – तब भी आप चालीस के लिए ही लिखते हैं :))
कोई मुझसे पूछे की गुलज़ार कौन है ? मै तो यही कहूँगा – जीवन के इस सफ़र में गुलज़ार नाम की एक गली है , जहाँ कई बार ज़िन्दगी रुक सी जाती है ! तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी भी तो एक नज़र इस गली को देखती ही होगी ! और हम जैसे तो बस उस गली में ही अपना बसेरा बना लेते है 🙂 हाँ , वही गली जहाँ गुलज़ार अपनी नज़्म पेश करते हैं , जैसे कोई पास आया तो इलाईची दाना की तरह लेकिन उनके नज़्म हाथ कहाँ लगते हैं , बस दिल में घुल जाते हैं और बस घुलते रहते हैं 🙂
अब मै क्या लिखूं , पिछले पांच – छः सालों में आपको सुना , देखा पढ़ा और महसूस किया !
लेकिन आप आये भी तो मेरी चालीस में , या तो आप खड़ा मेरा इंतज़ार कर रहे थे या वक़्त ने मुझे आप तक पहुंचा दिया ! जो भी हो , आपका आना बढ़िया लगा और आपका ठहरना तो और बढ़िया ..:))
मेरे और मेरी लेखनी की तरफ से आपको शुभकामनाएं और प्रणाम …:)
~ रंजन ऋतुराज / दालान ब्लॉग / १८.०८.२०१७
इस धूप में लैला की रूह नज़र आती है – कभी तिलमिलाती है – कभी मुस्कुराती है
चुप चाप मीठी धूप मेरे घर तक टपक गयी – टुकुर टुकुर देखा और प्यार हो गया :)))
~ गुलज़ार
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