गप्प …दे गप्प …दे गप्प …

गप्प …दे गप्प …दे गप्प …

सुख क्या है ? आनन्द की अनुभूती कब होती है ? परम आनन्द कैसे मिले ? कई सवाल हैं ! हर उम्र और मौके के हिसाब से इन सब की व्याख्या है ! पर एक सुख है – वो है – ‘गप्प’ ! जिसे मेरे बिहार में ‘गप्पासटिंग’ भी कहते हैं ! और हम एक ऐसे परिवेश से आते हैं – जहाँ ‘गप्प’ की प्रधानता हमेशा से रही है !
अभी माँ – बाबु जी आये थे – देर रात तक गप्प – गप्प और गप्प ! सोफा पर लेट गए – उधर बाबु जी आराम कुर्सी पर – फिर चालू …बीच बीच में चाय आ रहा है …बालकोनी से बरखा की फुहार …गप्प ..गप्प ! थक गए – सो गए – फिर रविवार सुबह सुबह छ बजे ही उठ के गप्प …यह एक सुख है .. आनन्द है ! लेकिन परम आनंद तब है जब इस गप्प में किसी की ‘परनिंदा’ दिल खोल के की जाए – कोई खास – कोई पुराना मित्र – कोई नजदीक का रिश्तेदार – कोई सहकर्मी ..सच में ..ऐसा लगता है ..किसी ने दिल पर ‘बनफूल’ तेल लगा दिया हो …ठंडा – ठंडा सा एहसास !
हर मौसम में गप्प का मजा है ! जाड़े के दिन में बड़े पलंग पर रजाई के चारों कोने पर चार आदमी – चाय के बड़े मग को दोनों हाथ से पकड़ – गप्प पर गप्प ! थक गए – देर हो गयी – मन हल्का हुआ तब जा कर उठे ! गर्मी में ..छत पर ..एक तरफ से ढेर सारे चौकी – खटिया / सफ़ेद सूती वाला मच्छरदानी और मसनद …फिर बगल वाले चौकी पर लेटे / सोये ..किसी कजिन से गप्प …उस कजिन की परनिंदा जो अभी वहाँ नहीं है …मजा आ जाए …रात के दो बजे ..अब सोना चाहिए …कह के हलके मन से मसनद पर पैर चढ़ा गाढी नींद में ….फिर सुबह गप्प होगी !
किताब में लिखी चीज़ें ‘छुई’ हुई होती है ..जूठा सा लगता है ..जैसे किसी ने पहले भी उसे पढ़ा होगा …पर गप्प हमेशा ‘फ्रेश’ होता है ..ताजा होता है …कई भाव और सन्देश को लपेटे हुए ..किसी कोजी में ..गर्माहट के साथ !

~ 4 September / 2012 , Indirapuram

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *