~ प्रेम में बहुत शक्ति है । लेकिन हर किसी की चाह अनकंडीशनल प्रेम की होती है । हा हा हा । मुझे लगता है – यह प्रेम सिर्फ और सिर्फ मां से ही प्राप्त होता है लेकिन इसमें भी एक कंडीशन है – आपको उन्हीं के कोख से जन्मना होगा । हा हा हा । हां , कई दफा हमें ऐसा लगता है कि सामने वाला हमे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है लेकिन ऐसा प्रतीत होना भी गलत है । दरअसल , वह आपसे प्रेम तो कर रहा है लेकिन आपसे अपेक्षा भी रख रहा है । अब आप उसकी कसौटी पर नहीं उतरे तो वो आपसे बदला नहीं लेे रहा बल्कि माफ कर देे रहा है । इसका कतई मतलब नहीं कि वो आपसे अनकंडीशनल प्रेम कर रहा है ।
~ कहीं किसी फिलॉसफर को पढ़ा कि महिलाएं माफ तो कर देती है लेकिन पुरुष माफ नहीं कर पाते । वहीं , पुरुष भूल तो जाते है लेकिन महिलाएं भूल नहीं पाते । इस पर एक लम्बा चौड़ा लेख भी कुछ एक वर्ष पहले लिखा था । मुझे लगता है, उम्र के साथ पुरुष भी माफ करना जान जाते हैं । यह कोई उनके हॉर्मन बैलेंस का बात नहीं होता बल्कि उन्हें अब इस संसार से विदाई के द्वार आभास होने लगते है । पुरुष जानवर के नजदीक होते हैं , तमाम उम्र / जवानी तरह तरह कि लड़ाई लड़ते है । लड़ाई का मतलब मार पीट नहीं बल्कि द्वंद्व भी हो सकता है । स्त्रियां द्वंद्व में नहीं होती और शायद इसलिए वो पुरुषों की इस लड़ाई को समझ नहीं पाती । तमाम उम्र घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं का मन भी अन्दर की दुनिया / आंगन में ही होता है और तमाम उम्र पुरुष को कमरा में कैद कर दीजिए तो भी उसका मन बाहर की दुनिया में होता है । उदाहरण के लिए , मेरा पेट डॉग गूगल मेल है । दिन भर दरवाजे के पास बैठा रहता है कि जैसे गेट खुले और वो नजर बचा कर सीधे बाहर के प्रागंण में , जहां तक वो सूंघते सूंघते चला जाए :))
~ तो बात है प्रेम , माफी और भूलने की शक्ति । पुरुष को भूलने की शक्ति उसके ज़िन्दगी के सफ़र में एक वरदान है । अगर वो नहीं भूलेगा तो उसका सफर बीच किसी रास्ते अटक जायेगा । स्त्री के अन्दर माफ करने की शक्ति है वरना उसके साथ दुनिया में इतने जुल्म होते है कि वो बगैर माफ किए खुद खत्म हो जायेगी । पुरुष माफ करने लगे तो वो अपनी प्रकृति के हिसाब से लड़ाई हार जायेंगे और स्त्री भूलने लगे तो उसके मन की कोमलता ख़त्म हो जायेगी :))
~ लेकिन प्रेम तो सर्व शक्तिमान है । भावना के आगे सभी नतमस्तक हैं । गूगल / ट्विटर / या सोशल मीडिया के किसी भी अंग पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला शब्द ’ लव ’ है । इसकी क्षमता अनन्त है । इसके कई रूप है और हर सम्बन्ध का प्राण है । हालांकि रोमांटिक प्रेम एक ज़िद या अहंकार के साथ होता है जहां अलग अलग कंडीशन होते हैं । तभी इसे कभी पूर्ण प्रेम नहीं कहा गया । इन्द्रियों के आकर्षण से पैदा लिया प्रेम कब भटक जाए – कहना मुश्किल l
विशेष क्या लिखा जाए …मौसम में ठंड प्रवेश कर चुका है …देवी की कल्पना ही मन को प्रफुल्लित कर देती है …कभी साक्षात आ जाए तो क्या हो … :))
: रंजन , दालान
Aashima
भाव सच में सुंदर है। पर प्रेम है, तो अपेक्षाएँ क्यूँ नहीं? और अगर नहीं तो फिर किस से? दो ही तो लोग लगते हैं, एक दूसरे की हर अपेक्षा को पूरा करने को।प्रेम देख समझ के तो होता नहीं। और फिर रहीं भावनाये, क्षमा कर देने की, भूल जाने की, यही प्रेम है। प्रयास करना,हर अपेक्षा को पूरा करने का, करते रहने का, न पूरा होने पर माफ करने का, भूलते रहने का, नाम प्रेम है। मन के अमन हो जाने तक,या परम् हो जाने तक।