“इतने बड़े महल में , घबराऊँ मैं ‘बेचारी’ ” ।
इस गीत में जब लता मंगेश्कर की आवाज़ वैजयंती माला के होंठ से , तब जब वो जिस अदा से ‘बेचारी’ बोलती हैं , कसम से दिल पर कोई छुरी नही चलती है , लगता है जैसे इस मासूम दिल को कोई रेंत रहा है …उफ्फ्फ । ऐसे जैसे दिन भर ये दिल रेंत वाने को ही बना है । रेंत लीजिए , आपका ही दिल है । रख लीजिये , आपका ही दिल है टाईप फीलिंग आने लगता है ।
सिनेमा के रिलीज़ के वक़्त मेरे पिता जी प्लस टू में रहे होंगे और अभी मेरे बच्चे प्लस टू में आ गए लेकिन मेरे मन से ये गीत न कल गया , न आज गया और न कल जायेगा ।
निर्देशक लेख टंडन महान थे , इस सिनेमा की कॉस्टयम डिजाईनर भानु अतथैया ने कॉस्टयम डिजाईन को समझने के लिए कई दिन अजंता और एलोरा की गुफाओं में गुजारा । शायद एक महिला ही दूसरे महिला की खूबसूरती को समझ सकती है , वर्ना हम पुरुष तो यूँ ही बदनाम रहते हैं ।
बाकी थोड़ा बहुत ‘गुन्डा’ तो हर पुरुष होता है लेख टंडन , रंजन ऋतुराज ही हो गए तो कौन सा पहाड़ टूट गया । जो बिल्कुल भी गुन्डा नही है , वह पुरुष नही मउगा है , ऐसा हम नही हर एक ‘बेचारी’ वैजयंती माला के होंठ कहते है ।
~ रंजन / दालान / 24.10.2017
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