गुल्लक …

गुल्लक …

गुल्लक बेहद पसंद । कहीं से भी आओ और पॉकेट में खनखनाते चंद सिक्कों को गुल्लक में डाल निश्चिंत । फिर उस गुल्लक के भरने का इंतजार ताकि उसे फोड़ा जा सके । कभी किसी को कड़कड़ाते नोट गुल्लक में डालते नहीं देखा । हमेशा सिक्के ही ।
पर कभी कभी ऐसा लगता है क्या इतने दिनों मौन रह कर हर एक सिक्के को खुद के अंदर महसूस कर , उन सिक्कों से उस गुल्लक को लगाव नहीं हो जाता होगा ? और जो उस गुल्लक में सिक्कों को डाल रहा होता है , उसे उस गुल्लक से लगाव नहीं होता होगा ? शायद नहीं । गुल्लक को सिक्कों से लगाव हो भी जाए तो सिक्कों के मालिक को नहीं होता है वरना कभी कोई गुल्लक फूटे ही नहीं , बस सजता रहे , आजीवन । क्या दुर्भाग्य है , गुल्लक की आयु तभी तक है , जब तक वो खाली है । जैसे जैसे वो भरता जाता होगा , वह गुल्लक एक भय में जीता होगा । प्लीज़ …अब और नहीं । कभी भी फोड़ दिया जाऊंगा ।
और एक दिन वो फोड़ दिया जाता है । गुल्लक का मालिक उन सिक्कों से कोई मनचाही सामान खरीदने निकल पड़ता है । कोई फुट कर आपको मजबूत करता है और आप किसी को फोड़ कर मजबूत होते हैं ।
इंसान भी गुल्लक है । नहीं । वो गुल्लक नहीं है । भले ही उसके नसीब में कड़कड़ाते नोट न हों लेकिन वो सिक्कों को महसूस अवश्य करेगा …

कुछ…कुछ …यूं ही …बेवजह ही …:))

~ गुल्लक , 28.11.2019

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