प्रेम …

प्रेम …

प्रेम का कोई अलग अलग रूप नहीं होता …हां इसके अलग अलग स्तर जरुर होते हैं ..अब आप किस स्तर पर हैं …यह आपकी क्षमता है …जैसे किसी महासागर की गहराई को नापने की क्षमता …गोताखोर के ताकत पर ! यह जरुरी नहीं की प्रेम स्त्री और पुरुष के बीच ही हो …एक वैज्ञानिक अपने लैब से प्रेम करता है …एक लेखक अपने विचार से प्रेम करता है …एक चित्रकार अपने चित्र से करता है …एक कंप्यूटर इंजीनियर अपने कोडिंग से प्रेम करता है …प्रेम वही जहाँ आपको आनंद मिले …कई लोग खुद से भी प्रेम करते हैं ..आईने में खुद को देख मंत्रमुग्ध …जहाँ खुशी मिले ..वही प्रेम है …
पर …यह इतना भी आसान नहीं ..जितना यहाँ लिखना …प्रेम एक एक कर के आपसे सब कुछ मांगता है …आप कहाँ तक अपने प्रेम पर न्योछावर हैं…यह आपकी क्षमता …और आप उसी स्तर को जीते हैं …पर इस अनंत गहराई को छूने की कोशिश ही …प्रेम है !
स्त्री और पुरुष के बीच का प्रेम प्रकृती है …और कोई इंसान इतना ताकतवर नहीं हुआ है जो प्रकृती से लड़ सके …यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ! जीवन एक सफ़र है – और जहाँ मन हमेशा के लिए ठहर जाय …वही प्रेम है ! मन चंचल है – उसे विशुद्ध प्रेम से बांधना होता है …पर विशुद्ध प्रेम क्या है …’माँ – औलाद’ का प्रेम ? प्रकृती का नियम है – जो माँ अपने औलाद को अनंत प्रेम करती है – वही माँ दुसरे के बच्चे के लिए वही प्रेम क्यों नहीं पैदा कर पाती – ‘प्रेम अपनापन तलाशता है’ – यह अपनापन खून से भी आ सकता है – साथ रहने से भी हो सकता है – जहाँ अपनापन नहीं वहां प्रेम नहीं …
प्रेम आदर खोजता है …प्रेम को सिंहाशन चाहिए …वह सर्वोत्तम है …भावनाओं का बादशाह …विशुद्ध प्रेम आशीर्वाद देता है – ताकत देता है – जीने की उमंग देता है …प्रेम से सबकुछ लेने के लिए उसे पूजना होता है …अपने अहंकार को उसके चरणों में समर्पित करना होता है …और समर्पण बगैर विश्वास नहीं आता …और किसी के विश्वास की हिफाज़त करना ही …शायद ‘प्रेम’ है …:))

~ रंजन

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