प्रेम और विशालता :
दिनकर लिखते हैं – “नर के भीतर एक और नर है जिससे मिलने को एक नारी आतुर रहती है – नारी के भीतर एक और नारी है – जिससे मिलने को एक नर बेचैन रहता है ” ..:))
और यहीं से शुरू होती है …प्रेम और विशालता की कहानी ! ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है !
कोई भी नर किसी नारी के प्रेम से उब नहीं सकता – उसके अन्दर प्रेम की कमी होती है – वो कठोर होता है – उसे खुद को मृदुल बनाना होता है – वह डूबता चला जाता है – वह डूबता चला जाता है ! नारी हैरान रहती है – आखिर क्या है इस प्रेम में – वो समझा नहीं पाता है – उसे वो प्रेम का सागर भी कम लगता है !
अब सवाल यह उठता है – प्रेम में डूबने के बाद भी – वह प्रेम उसे कम क्यों लगता है ? नारी अपने प्रेम के बदले नर की विशालता देखना चाहती है – क्योंकी प्रकृती ने उसे प्रेम तो दिया पर उस प्रेम को रखने के लिए एक विशालता नहीं दी ! नारी अपने प्रेम को उस विशाल नर को सौंपना चाहती है जो उसके प्रेम को अपने विशालता के अन्दर सुरक्षित रख सके ! और यहीं से शुरू होता है – द्वंद्ध !
तुम मुझे थोड़ा और प्रेम दो – तुम थोड़े और विशाल बनो ! अभी मै भींगा नहीं – अभी मै तुम्हारे विशालता में खोयी नहीं – वो अपना प्रेम देने लगती है और नर अपनी विशालता फैलाने लगता है – हाँ …प्रेमकुंड और विशालता ..दोनों एक ही अनुपात में बढ़ते रहने चाहिए ! एक सूखे कुंड में एक विशाल खडा नर – अजीब लगेगा और एक लबालब भरे कुंड में – एक छोटा व्यक्तित्व भी अजीब लगेगा !
नारी उस हद तक विशालता खोजती है जहाँ वो हमेशा के लिए खो जाए – नर उस हद प्रेमकुंड की तलाश करता है – जहाँ एक बार डूबने के बाद – फिर से वापस धरातल पर लौटने की कोई गुंजाईश न हो !
इन सब के जड़ में है – माता पिता द्वारा दिया गया प्रेम – पिता के बाद कोई दूसरा पुरुष उस विशालता को लेकर आया नहीं और माँ के बराबर किसी अन्य नारी का प्रेम उतना गहरा दिखा नहीं – फिर भी तलाश जारी है – डूबने की …फैलने की …प्रेमकुंड की …विशालता की !
अपने प्रेमकुंड को और गहरा करते करते नारी थक जाती है – अपनी विशालता को और फैलाते फैलाते नर टूट जाता है …शायद इसीलिये दोनों अतृप्त रह जाते है …अपनी गाथा …अगले जन्म में निभाने को …
ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है – जहाँ उन्मुक्ता बगैर किसी भय के हो ….
~ कुछ यूँ ही …:))
28 Feb 2015 .
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